सभी की परीक्षाएं शुरू होने में अब ज्यादा समय नहीं बचा था इसीलिए कॉलेज की भी छुट्टियां हो गई थीं ताकि सब अपनी अपनी पढ़ाई कर सकें। त्रिधा अब हर्षवर्धन, प्रभात या संध्या किसी से भी नहीं मिलती थी क्योंकि अब सिर्फ उसे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना था। हालांकि पढ़ाई के अलावा जब भी त्रिधा कोई भी काम कर रही होती तब उसे हर वक्त प्रभात की कही बातें याद आतीं। जब प्रभात कह रहा था कि उसे शर्म आती है त्रिधा को अपनी दोस्त कहते हुए। बस वही एक बात हर वक्त त्रिधा के कानों में गूंजती रहती थी।
एक शाम माया और त्रिधा अपने अपने कपड़े तह करके रख रही थीं और अपनी स्टडी टेबल को भी व्यवस्थित कर रही थीं तभी माया ने त्रिधा से कहा - "मुझे यहां भोपाल आए हुए काफी दिन हो चुके हैं त्रिधा और मैं तब से ही देख रही हूं तुम बहुत उदास रहने लगी हो। आजकल प्रभात और संध्या से भी बात नहीं करती हो। तुम तीनों के बीच में कोई बात हुई है क्या?"
माया का सवाल सुनकर त्रिधा उदास हो गई। वह माया से कहने लगी - "तुम्हारे जाने के कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक था माया मगर उसके बाद सब कुछ बदल गया। हमारी जूनियर के रूप में आई वर्षा और देखते ही देखते कब संध्या और प्रभात के इतने करीब हो गई कि हम में से किसी को भी कुछ पता ही नहीं चला। वर्षा हर्षवर्धन की एक्स है इसीलिए मुझे वह शुरू से ही थोड़ी नापसंद थी मगर सिर्फ इस वजह से कि वह हर्षवर्धन की एक्स है, मैं उसके बारे में कोई राय नहीं बनाना चाहती थी। अपनी इसी सोच के कारण, संध्या और प्रभात के साथ-साथ मैंने भी उसे पूरा समय दिया कि वह मेरी दोस्त बन सके। हालांकि इससे हर्षवर्धन हम लोगों के ग्रुप से थोड़ा दूर रहने लगा क्योंकि उसे वर्षा का साथ पसंद नहीं था।
त्रिधा की पूरी बात सुने बिना ही माया बीच में बोल पड़ी - "तुम लोगों ने हर्षवर्धन के साथ यह सही नहीं किया। वह तुम्हारा पहले से दोस्त है और तुम्हें उसके बारे में भी सोचना चाहिए था।"
माया की बात सुनकर त्रिधा ने हां में सिर हिलाया और आगे कहने लगी - "वर्षा सबका बहुत ख्याल रखती और सबसे बहुत अच्छे से बातें करती थी लेकिन कुछ समय बाद मुझे भी यह एहसास होने लगा कि हम लोगों के ग्रुप में वर्षा की कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि जब से वह आई थी प्रभात और संध्या का समय बंट गया था। मैंने अपने आपको समझाया कि मैं संध्या और प्रभात की सबसे अच्छी दोस्त हूं पर इसका मतलब यह तो नहीं कि मेरे अलावा उनकी जिंदगी में और कोई दोस्त आएगा ही नहीं! और इसीलिए मैंने भी वर्षा के प्रति मेरे मन में आ रही नकारात्मकता को सिर्फ अपनी जलन समझ कर इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया और यही मेरी सबसे बड़ी गलती साबित हो गई। एक शाम मैं, हर्षवर्धन, प्रभात, संध्या और वर्षा हम सभी एक रेस्टोरेंट से लौट रहे थे तब एक तेज रफ्तार से आती हुई कार से संध्या का एक्सीडेंट होने वाला था। मैं और वर्षा हम दोनों ही संध्या को बचाने के लिए भागे, लेकिन मैं जमीन पर गिर पड़ी और वर्षा ने जाकर संध्या को बचा लिया। वह सिचुएशन कुछ ऐसी थी कि अगर वर्षा को जरा सी भी चूक होती तो उसकी खुद की जान भी जा सकती थी मगर फिर भी उसने संध्या को बचाया और इसी कारण प्रभात और संध्या की बहुत अच्छी दोस्त बन गई वर्षा। यहां तक भी सब ठीक था। मगर जब वह मेरे, संध्या और प्रभात के बीच में जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी करने लगी तो मुझे लगा कि आप मुझे संध्या और प्रभात से इस बारे में बात करना ही चाहिए। साथ ही इसका एक कारण यह भी था कि मुझे वर्षा को लेकर बहुत ज्यादा अच्छे इंस्टिंक्ट्स नहीं आ रहे थे। मैंने संध्या प्रभात को बार-बार वर्षा के बारे में आगाह करने की कोशिश की मगर हर बार उन्होंने मेरी बात टाल दी। फिर एक दिन वर्षा मुझे कैंटीन में बैठी मिली। उसने मुझे सब कुछ बताया, अपना पूरा प्लान जिसका अर्थ बस यही है कि वह मुझसे बदला लेना चाहती है क्योंकि मैंने हर्षवर्धन को उससे छीन लिया।" इतना कहकर त्रिधा चुप हो गई और फिर माया को गौर से देखने लगी क्योंकि आगे जो वह कहने वाली थी उससे पहले वह आश्वस्त हो जाना चाहती थी कि अब माया ठीक है या नहीं।
त्रिधा को चोट देख कर माया कहने लगी- " क्या हुआ? आगे बोलो न... फिर आगे क्या हुआ त्रिधा?"
त्रिधा बोली वर्षा मुझसे बदला लेना चाहती है क्योंकि उसे लगता है कि मैंने न सिर्फ हर्षवर्धन को उससे दूर किया बल्कि उसे राजीव से भी दूर कर दिया।"
त्रिधा की बात सुनते ही माया हैरानी से उसके चेहरे की ओर देख रही थी। उसने सोचा भी नहीं था कि उसकी जिंदगी तबाह करने वाली वर्षा ही वह वर्षा होगी जो हर्षवर्धन की एक्स है और अब त्रिधा की जिंदगी में परेशानियां खड़ी कर रही है। माया त्रिधा को देखते हुए हैरानी से बोली - "यह… यह... वही वर्षा है!" त्रिधा ने हां में सिर हिलाया और चुप रही तब माया कहने लगी - "तुम हर्षवर्धन से प्यार करती हो, हर्षवर्धन तुमसे प्यार करता है और इसलिए हर्षवर्धन ने वर्षा का साथ छोड़ दिया। तुम उन दोनों के बीच में आईं यहां तक की बात मुझे फिर भी समझ आती है... मगर राजीव और वर्षा के अलग होने का कारण तुम कैसे हो त्रिधा?"
त्रिधा कहने लगी - "मुझे माफ कर दो माया मुझे यह बात तुम्हें पहले ही बता देनी चाहिए थी मगर उस समय मुझे तुम लोगों को यह बात बताना ठीक नहीं लगा। दरअसल एक शाम को मैं राजीव से मिलने गई थी, तुम दोनों के बारे में बात करने के लिए। मैंने उसे बहुत देर तक समझाया था और उसके बाद वह समझ भी गया था और शायद इसीलिए उसने वर्षा का साथ छोड़ दिया था। जब तुमने मुझे कॉल करके बताया था कि तुम्हारे पास राजीव का कॉल आने लगा था, मैं उसी वक्त समझ गई थी कि राजीव ने मेरी बात मान कर वर्षा को छोड़ दिया है लेकिन उसके बाद तुमने मुझे जो कुछ भी बताया, उसे सुनकर मुझे बस इतना ही समझ आया कि अब बहुत देर हो चुकी थी और हालात इतने बदल गए थे, चीजें इतनी बिगड़ गई थीं कि मुझे यह बात कभी किसी को बताना सही भी नहीं लगा।"
त्रिधा की बात सुनकर माया ने त्रिधा को गले से लगा लिया और बोली - "तुम मेरे बारे में इतना सोचती थीं और मुझे कभी इस चीज का एहसास भी नहीं होने दिया। मैं अपनी जिंदगी में, अपने आज में बहुत खुश हूं मगर मेरे बीते हुए कल में भी मैं बहुत खुश थी और जब राजीव मुझसे दूर गया मैं बहुत टूट गई थी मेरी उस खुशी को लौटाने की कोशिश करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद त्रिधा।"
माया की बात सुनकर त्रिधा बस मुस्कुरा दी तब माया कहने लगी फिर आगे क्या हुआ प्रभात और संध्या अब भी तुमसे बात क्यों नहीं करते?"
पतंजलि कहने लगी - "मैंने कोशिश की थी उन्हें सच बताने की मगर वर्षा बहुत शातिर है। मैं अब तक यह साबित नहीं कर पाई हूं कि वर्षा गलत है बावजूद इसके कि अब तो मैं सारा सच जानती हूं कि वह उनकी दोस्त बनना ही नहीं चाहती है बल्कि वह तो मुझे सबसे दूर करना चाहती है और शायद प्रभात और संध्या को भी एक दूसरे से दूर करना चाहती है क्योंकि उसने कुछ दिन पहले ही उन दोनों की डेट खराब कर दी थी… मगर मैं क्या करूं माया कोई मेरी बात का विश्वास करना ही नहीं चाहता है प्रभात और संध्या दोनों मुझसे नाराज हैं और सच कहूं तो मैं सबसे लड़ते-लड़ते अब थक चुकी हूं माया… अब और लड़ने की ताकत और हिम्मत मुझ में नहीं है। बस इसीलिए सब कुछ किस्मत के भरोसे छोड़ कर फिलहाल तो अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान दे रही हूं। पढ़ाई ढंग से नहीं की तो स्कॉलरशिप रद्द हो जाएगी और स्कॉलरशिप रद्द होते ही मुझे यहां से जाना पड़ेगा जो थोड़ा बहुत समय संध्या और प्रभात के साथ बिता सकती हूं, वह भी हाथों से रेत की तरह फिसल जाएगा जैसे अब तक हर रिश्ता फिसलता गया है।" यह कहते वक्त त्रिधा की आंखों में भरे आंसू अब उसके गालों पर लुढ़क चुके थे।
त्रिधा की बात सुनकर माया ने बस इतना ही कहा - "हे भगवान इतना सब हो गया और मुझे पता तक नहीं चला।"
माया की बात सुनकर त्रिधा फीकी सी मुस्कुराहट के साथ बोली - "बहुत कुछ बदल चुका है माया और बहुत कुछ खत्म हो चुका है... बेहतर यही होगा कि अभी मैं खुद को ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रखने की कोशिश करूं क्योंकि अच्छा वक्त भुलाए नहीं भूला जाता और बुरा वक्त काटे नहीं कटता!"
त्रिधा अपना सिर माया की गोद में रखकर लेट गई। माया धीरे से उसका सिर सहलाते हुए बोली - "मैं बात करने की कोशिश करूंगी संध्या और प्रभात से... और उन्हें बताऊंगी कि वह वर्षा ही थी जिसने मेरा और राजीव का रिश्ता खराब किया था। मेरी जिंदगी तो वह तबाह कर चुकी ही है मगर मैं उसे तुम्हारी दोस्ती बर्बाद नहीं करने दूंगी त्रिधा।"
त्रिधा उठ कर बैठ गई और माया से कहने लगी - "नहीं माया अभी सही समय नहीं है। अभी सब की परीक्षाएं आने वाली हैं और इन सब बातों से सभी परेशान हो जाएंगे। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से अब कोई भी परेशान हो। परीक्षाएं खत्म होने के बाद हम इस बारे में कुछ न कुछ जरूर सोचेंगे मगर अभी नहीं। अगर अभी मेरी वजह से प्रभात, संध्या या हर्षवर्धन का रिजल्ट खराब हुआ तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा।"
माया ने एक बार फिर त्रिधा को गले लगा लिया और कहने लगी - "त्रिधा हम सब इंसान हैं, कोई भी हम में से परफेक्ट नहीं है और न ही कभी हो सकता है इसीलिए अपने आप से हमें यह उम्मीद करना भी छोड़ देना चाहिए कि हम परफेक्ट होंगे। हर चीज को माफ करना, समझना, सहन करना, संभव नहीं होता है, असहिष्णु हम सब होते हैं, कुछ न कुछ बुराइयां हम सब में होती हैं। प्रभात और संध्या की कमी यह है कि वे किसी पर भी जल्दी विश्वास कर लेते हैं। तुम्हारी कमी यह है कि तुम उन दोनों को खोने से इतना डरती हो कि सही गलत के बीच की छोटी सी रेखा भूल जाती हो और यही शायद उस दिन कैंटीन में हुआ था जिसका खामियाजा तुम आज तक भुगत रही हो। हर्षवर्धन भी बहुत गुस्से वाला है और गुस्से में बार-बार गलतियां करता है। हमारी कहानी लोगों को बस यही दिखाएगी कि परफेक्ट कोई भी नहीं होता है और न ही हमें किसी से परफेक्ट होने की उम्मीद रखनी चाहिए। हम सब अपनी अपनी कमियों से लड़ते हैं। अपनी इन्हीं कमियों के चलते कभी-कभी हम लोगों को तो कभी-कभी लोग हमें खो देते हैं मगर यही जिंदगी है त्रिधा। जो लोग तुम्हारे हैं, वे तुमसे दूर जाकर भी लौट आएंगे और जो तुम्हारे हैं ही नहीं, वे साथ रहकर भी दूर चले जाएंगे। मेरा विश्वास करो, प्रभात और संध्या तुम्हारी ही हैं, कुछ समय के लिए तुमसे दूर जरूर हो सकते हैं मगर तुम्हारा प्रभात तुम्हारे पास लौट आएगा और तुम्हारी संध्या को भी ले आएगा। बस थोड़ा सब्र रखो जो तुमने फैसला लिया है, वह बिल्कुल सही फैसला है। हमें कुछ समय रुकना चाहिए और फिर एक अच्छे प्लान के साथ वर्षा का सच सबके सामने लाना चाहिए।"
माया से बात करने के बाद त्रिधा को बहुत अच्छा महसूस हो रहा था साथ ही उसकी कही हुई बातें भी अब उसकी समझ में आने लगी थीं। अब तक अकेले सब कुछ संभालते संभालते वह शायद अपने आप से और दूसरों से भी कुछ ज्यादा ही उम्मीदें करने लगी थी। वह सिर्फ प्रभात और संध्या से ही समझदारी की उम्मीद कर रही थी मगर थोड़ी समझदारी यदि उसने भी रखी होती तो शायद चीजें इतनी खराब नहीं होती। त्रिधा मुस्कुराते हुए अपनी जगह से उठ खड़ी हुई, अपना फोन लेकर आई और संध्या और प्रभात को एक एक मैसेज भेज दिया जिसमें उसने लिखा था 'उस दिन जो कुछ भी हुआ उसके लिए आई एम वेरी सॉरी। अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, ऑल द बेस्ट।' इसके बाद त्रिधा ने एक मैसेज हर्षवर्धन को भेजा जिसमें उसने लिखा था 'मैं अब बिल्कुल ठीक हूं हर्षवर्धन… अब तुम भी अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो क्योंकि मैं भी अब सब कुछ भूल कर सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान दे रही हूं। आगे जो कुछ भी होगा, हम परीक्षाओं के बाद देखेंगे।'
त्रिधा को मुस्कुराते हुए देखकर माया भी मुस्कुरा दी और कहने लगी - "चलो अब समझदारी बहुत हुई, थोड़ा घूम कर आते हैं और वापस आकर अपनी अपनी पढ़ाई में लगते हैं। हालांकि मैं नीचे से फर्स्ट आती हूं लेकिन इस बार कोशिश करूंगी कि तुम्हारे बराबर कहीं न कहीं तो आ ही जाऊं।" माया ने हंसते हुए कहा तब त्रिधा भी हंस पड़ी और बोली - "कभी नहीं होगा ऐसा।"
***
कुछ दिन बीत गए। सबकी परीक्षाएं शुरू हो चुकी थीं और सभी अपनी अपनी पढ़ाई में बहुत व्यस्त हो गए थे। कॉलेज में मिलने पर सब एक दूसरे से हाय-हेलो बोलते और अपनी-अपनी परीक्षाएं देकर वापस घर लौट जाते। माया को वापस देखकर संध्या प्रभात और हर्षवर्धन बहुत खुश हुए मगर हल्की-फुल्की बातों के बाद सबको घर पहुंचने की जल्दी होती थी क्योंकि सबको अपनी अपनी पढ़ाई करनी होती थी। उस दिन त्रिधा के भेजे हुए उस मैसेज के कारण संध्या, प्रभात और त्रिधा के बीच अब कोई मनमुटाव नहीं रहा था... हां मगर पहले जैसी बात भी नहीं रही थी, जो कहीं न कहीं त्रिधा को अंदर ही अंदर कचोटती थी। त्रिधा के साथ-साथ प्रभात को भी यह बात बहुत कचोटती थी कि शायद उसने त्रिधा को समझने की कोशिश की होती मगर फिर उसे लगता कि और कितना समझने की कोशिश करता वह त्रिधा को! इस समय दोनों ही अलग-अलग होते हुए भी एक जैसी परिस्थिति में थे। दोनों ही एक दूसरे को समझते हुए भी नहीं समझ रहे थे। परेशान दोनों ही थे और सही भी दोनों ही थे, जरूरत थी बस अपना अपना नजरिया बदलने की और बस यही ये दोनों नहीं कर पा रहे थे।
***
एक महीना बीत गया। अब तक सबकी परीक्षाएं खत्म हो गईं थीं। त्रिधा के सारे पेपर्स अच्छे गए थे मगर इस बार उसे अपने रिजल्ट से ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं क्योंकि इस साल वह बहुत परेशान रही थी और पहली साल की अपेक्षा इस साल वह लगातार पढ़ी भी नहीं थी फिर भी उसने अंतिम दिनों में सारा सिलेबस कर कर लिया था। अब बस उसे रिजल्ट का इंतजार था। सिर्फ त्रिधा ही नहीं प्रभात और हर्षवर्धन भी इस साल काफी परेशान रहे थे मगर संध्या और माया को कोई चिंता नहीं थी। दोनों ही अपने अपने रिजल्ट से खुश रहती थीं, उनके लिए तो वे बस पास हो जाएं काफी था। संध्या साल भर बिलकुल नहीं पढ़ती थी बस परीक्षाओं से पहले पढ़ती थी और पिछली बार टॉप करने के कारण इस बार वह और आराम में आ गई थी।
त्रिधा का हॉस्टल एक बार फिर पूरा खाली हो गया था। पिछले साल की तरह इस बार भी हॉस्टल में सिर्फ त्रिधा ही बची थी। हालांकि इस बार माया भी उसके साथ थी। माया कुछ दिन और त्रिधा के साथ रह कर वापस अपने घर जाने वाली थी और छह दिन बाद वापस वहां से लौट कर आने वाली थी।
हॉस्टल में सारा दिन खाली रहती त्रिधा एक बार फिर अपने पुराने दिनों की बारे में सोचने लग गई थी। अब पढ़ाई भी नहीं थी उसके पास जो उसका ध्यान भटकाए रखती। माया त्रिधा से सारे दिन बातें करती है मगर जब भी माया के पास उसके घर से कॉल आता उस समय त्रिधा अपने पुराने दिनों के बारे में सोचने लग जाती। आज से ठीक एक साल पहले इन्हीं दिनों में त्रिधा संध्या के साथ अपना पूरा दिन बिता कर आई थी और फिर प्रभात हर दिन उसे अपने घर ले जाकर अपनी मम्मी के हाथ का बनाया हुआ खाना खिलाता था। उन दिनों त्रिधा को ऐसा लगने लगा था जैसे उसके एक नहीं दो दो माता-पिता हैं। जहां संध्या के माता-पिता भी उसे संध्या से ज्यादा मानते थे वहीं प्रभात की मम्मी भी उसे बहुत मानती थीं। मगर इस साल वह बिल्कुल अकेली थी। रह रहकर उसे प्रभात और संध्या की याद आ रही थी। त्रिधा का उदास चेहरा देखकर माया उससे कहने लगी - "त्रिधा क्यों न आज शाम को हम मूवी देख कर आएं और लौट कर आते समय बाहर से ही कुछ खाते भी आएंगे?"
माया की बात त्रिधा को भी ठीक लगी। उसे लगा अपनी सोच से उसका भी ध्यान हटेगा और घूमने फिरने से थोड़ा मन भी बदल जाएगा, यही सोचकर उसने भी उसने भी हां बोल दिया।
शाम को त्रिधा और माया दोनों हॉस्टल से जल्दी ही निकल गई थीं ताकि आठ बजे से पहले वापस हॉस्टल आ जाएं।
मूवी देखने के बाद जब त्रिधा और माया लौट रहे थे तो माया ने अपने और त्रिधा के लिए आइसक्रीम खरीद ली। त्रिधा को एक आइसक्रीम कोन पकड़ाने के बाद अपने हाथ में चार आइसक्रीम कोन्स को पकड़े हुए माया एक-एक कर सब में से आइसक्रीम खा रही थी। माया को ऐसे आइसक्रीम खाते देखकर त्रिधा वहीं पर ठहाके लगाकर हंसने लगी। त्रिधा को इतने समय बाद हंसते हुए देख कर माया भी मुस्कुरा दी और फिर और ज्यादा नाटकीय अंदाज में बच्चों की तरह आइसक्रीम खाने लगी।
त्रिधा हंसते हुए माया से कहने लगी - "बस करो मोटू और कितना खाओगी? माया अगर तुम ऐसे ही खाती रही न तो माया की जगह सब तुम्हें मोटू ही बुलाने लग जाएंगे। अब जल्दी चलो वरना हॉस्टल पहुंचने में देर हो जाएगी तो मैडम बोलेंगी कि छुट्टियां देखकर तुम लोग मस्ती ज्यादा करने लगे हो।"
त्रिधा की बात सुनकर माया ने फटाफट अपनी आइसक्रीम खत्म की और फिर दोनों अपने हॉस्टल की तरफ जाने लगीं। वे दोनों थोड़ी ही आगे बढ़ी थीं कि तभी किसी ने पीछे से आकर माया का हाथ पकड़ लिया। माया ने पीछे मुड़कर देखा तो कुछ पलों के लिए सन्न रह गई फिर कुछ देर बाद हैरानी से बोली - "तुम!"
माया अचानक के रुक जाने के कारण त्रिधा भी रुक गई और जब पीछे मुड़कर उसने देखा तब वह भी हैरान रह गई, सामने राजीव खड़ा था और उसने माया का हाथ पकड़ रखा था। उन दोनों को देखकर त्रिधा भी वहीं आ गई।
राजीव, माया के एकदम सामने आकर खड़ा हो गया और उससे कहने लगा - "तुमने शादी कर ली माया और मुझे बताना तक जरूरी नहीं समझा।"
माया उसे बस देखती रही। त्रिधा ने इस वक्त कुछ न बोलना ही ठीक समझा।
राजीव आगे कहने लगा - "तुम जैसी लड़कियों को बहुत अच्छे से जानता हूं मैं। जब तक तुम्हें घुमा फिरा रहा था तब तक ठीक था और जब मैं किसी और को पसंद करने लगा तो तुमने क्या किया? कुछ नहीं बस अपनी इस दोस्त को भेज दिया मेरे पास मुझे समझने के लिए। मैंने भी सोचा था कि मैं गलत हूं मगर मुझसे ज्यादा गलत तो तुम निकली। जब हमारे बीच सब ठीक था तब तुमने शादी कर ली। मुझे धोखा देने से पहले तुमने एक बार भी नहीं सोचा माया कि मैं तुमसे प्यार करता था! आज एहसास हुआ मुझे कि वर्षा को पसंद करके मैंने कोई गलती नहीं की। तुम हो ही इतनी गिरी हुई लड़की कि तुम मेरे प्यार के लायक ही नहीं हो।"
राजीव की बात सुनते ही त्रिधा ने राजीव के गाल पर दो थप्पड़ जड़ दिए और बोली - "माया गिरी हुई है तो तुम क्या हो राजीव? यही था तुम्हारा प्यार जो कभी किसी और को पसंद करने लगे तो कभी माया को गिरी हुई लड़की कहने लगे?"
राजीव ने त्रिधा को गुस्से से घूरा और बोला - "ये तुम्हारा मामला नहीं है इससे दूर रहो समझी।"
इतने में माया राजीव को दूर धकेलती हुई बोली - "मैंने तुम्हें धोखा दिया? मैंने तुम्हारे प्यार का नहीं सोचा? तो तुमने वर्षा के साथ जो कुछ किया, वह क्या था? हमारे रिश्ते का तोहफा था वह? धोखा तुमने मुझे दिया था वर्षा के लिए मुझे छोड़कर। हां मैंने शादी कर ली क्योंकि मैं एक बेटी भी हूं… अपनी मां की चिता पर अपने प्यार की दुनिया नहीं बसा सकती थी मैं। मगर सच कहूं आज बहुत खुशी है मुझे कि मैंने शादी की, कम से कम तुम जैसे इंसान से दूर हूं मैं। तुम्हारा यह रूप तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था राजीव।" इतना कहकर माया त्रिधा का हाथ पकड़कर वहां से जाने लगी तभी राजीव उनके पास आया और वापस माया का हाथ पकड़ लिया मगर तभी उसके मुंह पर एक जोरदार मुक्का पड़ा। माया और त्रिधा उस ओर देखने लगे, सामने हर्षवर्धन खड़ा था। हर्षवर्धन और राजीव की हाथापाई देखकर वहां भीड़ बढ़ने लगी। भीड़ बढ़ती देखकर राजीव ने वहां से जाने में ही अपनी भलाई समझी और हर्षवर्धन भी माया और त्रिधा को कार में बैठने का कहकर वहां से चल दिया।
हर्षवर्धन, त्रिधा और माया झील के किनारे लगी बेंच पर बैठे हुए थे।
हर्षवर्धन दोनों को घूरता हुआ बोला - "अभी पूछना भी पड़ेगा क्या?"
हर्षवर्धन के इतना कहते ही माया ने उसे पूरी बात बता दी। माया की बात सुनने के बाद हर्षवर्धन ने अपना सिर पीट लिया और बोला - "त्रिधा तुम्हारे सारे दोस्तों के साथ परेशानियों का फ्री पैकेज मिलता है क्या?"
त्रिधा और माया दोनों ने ही कुछ नहीं कहा तब हर्षवर्धन बोला - "लुक आय'म सॉरी अगर तुम लोगों को बुरा लगा, मैं बस तुम दोनों का मूड ठीक करना चाहता था।"
माया थोड़ी सी मुस्कुराई और बोली - "मुझे बुरा नहीं लगा हर्ष बल्कि यह सच है।" और यह कहते कहते माया भी हंसने लगी।
त्रिधा बोली - "माया राजीव ने फिर कभी तुम्हें परेशान किया तो? या फिर आशीष जी से बात करने की कोशिश की तो?"
माया बोली - "तुम चिंता मत करो त्रिधा। मैंने पहले ही आशीष जी को सब बता दिया था बस तुम्हें नहीं बताया वरना तुम नाराज होती। उन्हें वक्त लगा मुझे समझने में मगर वे समझते हैं मुझे। जीवन भर जो इंसान परेशानियां देखता है भगवान उसे कोई न कोई अपना देता ही है... जैसे तुम्हें भी दिया है।" इतना कहकर माया त्रिधा को देखते हुए, हर्षवर्धन को देखने लगी। माया की बात सुनकर त्रिधा और हर्षवर्धन दोनों ही इधर उधर देखने लगे। काफी देर तक माया दोनों से बात करती रही मगर वे दोनों बुरी तरह झेंप गए थे।
कुछ देर बाद हर्षवर्धन ने माया और त्रिधा को उनके हॉस्टल छोड़ा। लौटते समय हर्षवर्धन माया से कहने लगा - "माया यहां आशीष या तुम्हारा परिवार नहीं है तो तुम घबराना मत, मैं हूं यहां। त्रिधा की दोस्त मेरी भी कुछ लगती है। अच्छा चलता हूं साली साहिबा।" कहकर हर्षवर्धन हंसता हुआ भागकर अपनी कार में बैठ गया, त्रिधा उसे मारने दौड़ी मगर तब तक वह चला गया। माया हंसते हुए दोनों को देख रही थी। माया और त्रिधा अपने कमरे में जाकर पसर गई। बहुत देर तक दोनों बातें करती रहीं। उधर हर्षवर्धन मुस्कुराता हुआ अपने घर आया तो उसके मॉम डैड वहीं थे और अपने बेटे की मुस्कुराहट को देखकर समझ गए कि वह त्रिधा से मिलकर आ रहा है। हर्षवर्धन के डैड उसके पास आकर बोले - "तो क्या कहा हमारी त्रिधा बिटिया ने?"
अपने डैड की बात सुनकर हर्षवर्धन झेंपता हुआ अपने कमरे में भाग गया।
***
अगली सुबह त्रिधा आराम से सोकर उठी और माया अब तक सो ही रही थी। माया को आराम से सोती हुई देखकर त्रिधा मन ही मन हैरान थी कि जो माया जरा जरा सी बात पर परेशान हो जाती थी वही माया आज राजीव के इतना कुछ बोल देने पर भी निश्चिंत थी। त्रिधा सोच रही थी एक सही इंसान जीवन की दिशा ही बदल देता है और एक गलत इंसान पूरा जीवन बर्बाद कर सकता है। माया इसका सबसे अच्छा उदाहरण थी त्रिधा के सामने। जहां राजीव ने उसे हमेशा हल्के में लिया, उसे धोखा दिया वहीं आशीष ने उसे पूरा मान सम्मान दिया और जीवन को लेकर उसका नजरिया ही बदल दिया था। अब कितनी शांत रहती थी माया और उसका चुलबुलापन बहुत नजाकत से संभाल लिया था आशीष ने।
कुछ दिन बीत गए। माया के साथ त्रिधा खुश थी। हालांकि संध्या और प्रभात की कमी उसे खलती थी मगर अब खुद को संभालना चाहती थी वह क्योंकि वह जानती थी कि यदि उसने सूझ बूझ से काम नहीं लिया तो वर्षा को कभी हरा नहीं पाएगी।
लंच करते वक्त माया, त्रिधा से कहने लगी - "आशीष जी आज आ रहे हैं मुझे लेने के लिए।"
त्रिधा खुश हो गई और बोली - "अरे वाह! मैं भी मिल लूंगी आशीष जी से।"
माया हंसते हुए बोली - "तुमसे ज्यादा तो वे उत्साहित हैं तुमसे मिलने के लिए। बहुत बातें करती थी मैं तुम्हारी।"
त्रिधा ने अपना सिर पीट लिया और बोली - "तुम, संध्या, हर्ष सब के सब मुझे ही फेमस करने का सोच कर बैठे हो क्या?" तब माया भी हंस पड़ी।
शाम होने पर माया ने अपना जरूरी सामान एक बैकपैक में रखा और त्रिधा के साथ एक रेस्टोरेंट में चली गई। दरअसल आशीष उसे लेने आ रहे थे और क्योंकि सफर लंबा था तो वे कुछ देर आराम करने के बाद वापस जाना चाहते थे। मगर माया और अंजली का गर्ल्स हॉस्टल होने के कारण वे वहां पर आराम नहीं कर सकते थे।
शाम को त्रिधा, माया और आशीष एक रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे। आशीष जी को देखकर त्रिधा ने अपने हाथ जोड़ लिए बदले में आशीष जी भी मुस्कुरा दिए और बोले - "आपकी बहुत तारीफ करती हैं माया। ऐसा लगता है जैसे आपसे ज्यादा अच्छी दोस्त इनकी कभी कोई रही ही नहीं होगी।"
आशीष जी की बात सुनकर त्रिधा मुस्कुरा दी और कहने लगी - "माया है ही इतनी प्यारी... हमेशा दूसरों से बहुत प्यार करती है मगर माया की सबसे अच्छी दोस्त मैं नहीं हूं, बल्कि मेरी सबसे अच्छी दोस्त माया है। माया जैसा अच्छा और साफ दिल का इंसान मैंने पहले कभी नहीं देखा। बहुत मासूम सी है यह मोटू। इसका हमेशा ध्यान रखिएगा।"
त्रिधा की बात सुनकर माया मुस्कुरा दी और आशीष जी माया को देखते हुए मुस्कुराने लगे। कुछ देर बाद आशीष जी जाने के लिए उठ खड़े हुए, माया भी त्रिधा के गले लग गई और बोली - "तुम परेशान मत होना त्रिधा, मैं जल्दी आ जाऊंगी।" माया को जाते हुए देखकर त्रिधा उदास हो गई उसकी आंखों में आंसू भर आए जो अगले ही पल उसकी आंखों से होते हुए उसके गालों पर ढुलक गए। आशीष, त्रिधा को देखते हुए बोले - "आप भी अपना ध्यान रखिएगा, जीवन में परेशानियां बहुत होती हैं और कई बार अपने भी आपका साथ छोड़ देते हैं। माया ने मुझे आपके बारे में सब बताया है हिम्मत रखिए… आपके दोस्त वापस मिल जाएंगे आपको। मैं माया को जल्द ही वापस लेकर आऊंगा। अब चलता हूं।" कहकर आशीष ने अपने हाथ जोड़ लिए तब त्रिधा ने भी प्रतयुत्तर में मुस्कुराते हुए अपने हाथ जोड़ लिए। आशीष और माया चले गए। त्रिधा भी अपना हैंड बैग उठाकर वापस हॉस्टल की तरफ लौट रही थी और तभी….
क्रमशः
आयुषी सिंह