politics of lanka in Hindi Spiritual Stories by Anand Tripathi books and stories PDF | लंका की राजनीति

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लंका की राजनीति

जिस पंक्ति का मैं और गहराई से वर्णन करता हूं तो आता है। की ऋषि बहुत तपस्वी थे और जनक की भात अपने पुत्रों और पुत्री की रक्षा भी करते थे परंतु श्री हरि के श्राप वश होने के कारण ही रावण को राक्षस रूप लेना पड़ा इसलिए ही रावण ने तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त कर और उन पर कई उपाय भी किए। लंका को पाने में रावण ने अथक प्रयास किए। जो की कोई भी साहस नहीं कर सका। शिव द्वारा बनाई गई इस स्वर्ण नगरी लंका को रावण ने वरदान स्वरूप मांग लिया। शिव ने भी बड़ी प्रसन्नता से नगरी रावण को पूजा करवाने के उपलक्ष में भेट स्वरूप दे दी। शिव बड़े दानी है वह जल्दी से प्रदान कर देते है जो भी कामना होती है। मनुष्य की इसलिए रावण भी लंका को विश्व विजय बनाने के लिए शिव को आराध्या मान लिया। और बड़े दीन भाव से उनकी नित्य सेवा कार्य करने लगा। जिस तरह से उसने अपनी लंका बनाती ऐसे ही कपट और छल से ही उसने संपूर्ण विश्व को अपना बनाया और तमाम शक्ति को प्राप्त किया जो की कभी अमूल्य हुआ करती थी। रावण की नगरी में जीवन केवल सुखमय रक्षसो का हुआ करता था। और रावण के भाई विभीषण को हरी नाम लेने के कारण ही अलग किया हुआ था। जिस कारण से वे अलग रहा करते थे। ये लंका की राजनीति एक दृढ़ और एक पंथ विचारधारा की राजनीति हुआ करती थी। को की यह दर्शाती है की वहा एक ही राजा रहेगा और नगरी का राजा वंशानुगत होगा। यह परंपरा सदियों से ही चली आ रही परंपरा। है। और कई लोगो को बंदी बनाना और गुप्तचर बनाना यह भी एक आम बात थी। जिस कारण कई लोग उनके यहां गुलाम और दास प्रथा को भी मानते थे। लंका अपनी राजा का सम्मान उसके डर से ही करती थी। लेकिन राजा इसको सम्मान मानता था। रावण की राजनीति में गुप्तचर एजेंसियों द्वारा जासूसी की जाती थी। और इस प्रकार जैसे आज raw के लोग काम करते है। और कई दूसरे स्रोत है। सैनिक और सुरक्षा मामला भी काफी मुस्तैद हुआ करती थी। लंका की बनावट उसके रख रखाव की समनय पर ही होती थी। उस समय लंका में वंशानुगत विचार धारा वाले। लोग हुआ करते थे। इसलिए ही रावण को किसी से कोई भय नहीं था। और रावण को यह पता था। की ईश्वर ही सर्वधार है। इस लिए उसने ऐसा कृत्य किया को उसके इतने करोड़ लोग जो ना जाने कब से तारण हार की प्रतीक्षा में है। और आज हरी सम्मुख है फिर भी मैं प्रयास न करू अपने मुक्ति का तो इससे बड़ा पाप नही होगा। इसलिए ही रावण ने सीता को हरण किया और राम को लंका आने पर विवश किया। नही तो त्रिलोकी राम यहां क्यों आते और क्यों रावण का वध होता ? तो लंका में परिस्थिति मनस्थिति के अनुसार चलती थी। जिस कारण लंका निवासी भय भीत नही होते है। एक और अगर कोई मांस खाता है। तो दूसरी ओर विभीषण और त्रिजटा भी है जो नित्य रामगुण गाती है। सब। कुछ है लंका की राजनीति में लेकिन इतनी मुस्तैद सरकार होने के बाद भी सुख नही है। इसलिए ही बस लंका कही रुकी हुई है। और एक चीज और है। की राम के लंका जाने के बाद उस लंका की इज्जत बढ़ी। जिसको लंका कहते थे। उसे श्री लंका कहा जाने लगा। राम ने लंका के लोकतंत्र पर एक अमित छाप छोड़ी है। जिसका वर्णन स्वयं संभू भी करते है। रावण के दो पुत्र थे और उनके नाम थे अक्षय कुमार,इंद्रजीत जो मंदोदरी से हुए थे। लेकिन प्रश्न यह उठता है। की लोग ऐसा क्यों करते है की रावण को गलत साबित करते है। जलते है। उसके चरित्र को समझने का प्रयत्न क्यों नही करते है। रावण ने अगर कोई एक पाप किया हो तो बताओ। रावण ने सीता का हरण किया वो भी सत्य स्वरूप का नही केवल छाया का। और कैसा आरोप की रावण ने सीता जिसको कोई भी जगत का व्यक्ति हाथ नही लगा सकता है तो आप क्या है खैर लेकिन रावण कोई साधारण व्यक्ति नही था। वह भी। रावण को यह पता था कि वह परमेश्वर। से बैर ले रहा है। और रावण यह सब भली भाटी जनता है की समय के साथ उसका क्या हाल होगा इसलिए ही वह अपने आपको बड़ा सहज महसूस करता था क्योंकि वह यह बात जनता था की अब वह अकेला नहीं उसका संपूर्ण परिवार तर जाएगा। अयोध्या से रावण का कोई बैर नहीं था था रावण तो एक अच्छा मित्र था श्री दशरथ का लेकिन उसकी जानकारी के बाद की राम उनके घर जन्म लिए है यह सुनकर। वो बहुत प्रसन्न होता है। क्योंकि शिव से ही वह कहता है की प्रभु अब कष्ट को निवारो। अब मुझे बर्दाश्त नहीं है। रावण बहुत ज्ञानी था। स्वयं श्री हरि जिस ज्ञान ले उसको कितना ज्ञान है यह बात आप और हमसे परे है। सदा के लिए जन्म सफल हो गया रावण का देवी को स्वर्ग से ही प्रणाम करता है। और प्रभु लक्ष्मण को भेजते है। और इनसे ही अपनी बात कहलवाते है। प्रभु की दिव्यता है की वो रावण का वध करने के बाद भी उनसे मिलते हैं। और रावण उन्हें कई ज्ञान की बाते बताता है। जिसकी रोधी क्या है। सिद्धि क्या है। कैसे प्राप्त करें। और दशरथ को मिलने के बाद रावण भी रोया होगा। की प्रभु के प्रेम का अमृत मुझे भी मिला। जय और विजय ही तो रावण है। या कोई और है। सनाकादी ऋषि ने श्राप वश इन्हे रक्षध वध में शामिल होना पड़ा। और रावण को प्रकांड माना जाता है। और रहेगा। भी। कैसी भी परिस्थिति हो रावण हमेशा जनता था। को नरम पड़ा तो प्रभु छोड़ेंगे और गर्म हुआ और दुष्टता की तो परिवार सहित मैं तर जाऊंगा। और उससे अच्छा तो कुछ नही हो सकता है। जन्म से बिखरा मन और कलुषित हृदय दोनो को मुक्ति मिलेगी यह आस लेकर हीरावन लड़ा था और अंततः वह अपने सभी परिवार को मुक्ति दिलवाता है। यह तक की कुंभकरण को भी। जबकि कुंभकरण को विधिवत पता था। की जगदंबा और हरी से बैर लेना ठीक नहीं होगा।