अध्याय -2
दीदी तूम्हे आज खाने को क्या मिला ' सात वर्षीय बिरजू ने अपनी बीस वर्षीय बहन कजरी से उत्साह से पूछा।
'अरे मुझे तो आज खाने को रसमलाई मिली '। कजरी ने बिरजू को चिढ़ाते हुए कहा।
'अम्मा मुझे भी रसमलाई खानी है'। बिरजू ने अपनी माँ से जिद करते हुए कहा,जो अभी - अभी उनके लिए खाना मांग कर लाई थी।
'क्या?क्यों तू मुझे परेशान कर रहा,जा खेल ले जाकर '। बिरजू की माँ बिमला ने खिझते हुए कहा।
'अरे लल्ला तुम मेरे पास आओ मैं तुम्हें लाकर् दूँगा रसमलाई'।बिरजू के बापू शंकर ने उसे प्यार से अपने पास बुलाते हुए कहा।
'सच्ची बापू '। बिरजू ने खुशी से उछलते हुए कहा ओर शंकर की गोद में जाकर बैठ गया।
' अब मैं भी तुमको नहीं दूँगा दीदी '। बिरजू ने कजरी को चिढ़ाते हुए कहा।
'हाँ तूम ही खा लेना '। कजरी ने बिरजू की और नाक सिकोड़ते हुए कहा।
'शंकर काका ज़रा बाहर आना तो' । उनके घर के बाहर खड़े विसम्बर ने आवाज़ दी ।
'कहो विशम्बर बाबू आज हमारे यहाँ कैसे आना हुआ'। शंकर ने अपनी झोपड़ी के बाहर आते हुए कहा।बिमला भी उसकी आवाज़ सुनकर बाहर आ गई थी।कजरी और बिरजू दरवाजे की ओट में छीप गए।
' तुम्हारे लिये खुशखबरी लाया हूँ,लो मुँह मीठा करो'। विसम्बर ने मिठाई का डिब्बा आगे बढ़ाते हुए कहा जो वह अपने साथ लाया था।
'कैसी खुशखबरी'।बिमला ने उत्सुकता से पूछा।
'क्या आप मुझे काम दोगे विस्म्बर बाबू '। शंकर ने पूछा।
'अरे अब नौकरी करने के दिन गए और बैठ कर खाने के दिन आ गये है'।
'क्या मतलब आपका हम कुछ समझे नहींं'। शंकर ने पूछा।
' अरे मैं तुम्हारे लिए ऐसी खबर लाया हूँ जिसे सुनाकर तुम ख़ुशी से पागल हो जाओगे '।
'अब बता भी दो विसम्बर बाबू क्यों जी जला रहे हो ' । बिमला ने कहा।
'हमारे पड़ोसी राज्य में एक रघुनाथ नाम के सज्जन है जो वहां एक गाँव के सरपंच है,ओर खेतीबाड़ी भी बहुत है । उनको अपने छोटे बेटे की शादी के लिय एक लड़की चाहीए तो उसका रिश्ता हमारी कजरी के लिय लाया हूँ '।
'विसम्बर बाबू तुम पागल हो गये हो क्या ? हमारी कजरी कभी पड़ोस के गाँव में नहीं गई उसे इतनी दूर कैसे ब्याह दे '। बिमला ने कहा।
'अरे काकी बहुत बड़े घर का रिश्ता है,रही बात दूर रहने की तो एक दिन का रास्ता है बस सुबह वहां से चलेंगी तो शाम को कजरी आपके पास '।
' नहीं बाबू इतनी दूर हम कजरी का ब्याह नहीं करेंगे'। शंकर ने कहा।
'अरे काका वो लोग कजरी की शादी का खर्चा भी खुद उठाएंगे ओर तुम्हें सामने से ढाई लाख रुपये भी देंगे, सोच लो काका फायदे का सौदा है '।
'क्या ढाई लाख रुपये ?'। दोनों पति -पत्नी ने साथ कहा। इतनी बड़ी रकम की बात सुनकर उनकी आँखे फटी की फटी रह गई ।
'हाँ काकी सोच लो आप लोगों की ज़िन्दग़ी सँवर जाएगी ओर कजरी भी सुखी रहेगी। देखो तुम लोग आपस में सोच विचार लो सुबह आता हूँ मैं '।ये कहकर विसम्बर चला गया। अंदर खड़ी कजरी अपने बारे में ये बातें सुनकर सहम गई।
' क्या कहती हो कजरी की माँ ,कर दे क्या इसका ब्याह ?'।
'ब्याह तो करना है ही पर घरबार भी तो देखें ना ऐसे ही कैसे भेज दे '।
'देखो विस्म्बर भरोसे का आदमी है उसने पिछले साल भी ऐसे ब्याह करवया था और पैसे भी सही दे रहे हैं हमें यूँ भूखा नहीं मरना पड़ेगा,ओर कजरी भी सुखी रहेगी '। शंकर ने कहा।
'हाँ बात तो आप सही कह रहे हो। इतने पैसों से हम कुछ काम शुरू कर लेंगे और बिरजू को भी अच्छे से पढ़ाएंगे '।बिमला ने कहा।
इतने पैसों की बात सुनकर वो अपने भविष्य के सपने देखने लगे।वो अपने लालच के आगे कजरी की मर्जी को भूल गए।सुबह विसम्बर आया ओर उसके साथ कजरी और उसके पिता रघुनाथ के घर के लिए रवाना हो गये।
तीनोंं लोग ट्रेन से रघुनाथ के घर पंहुचे।रघुनाथ के घर की शान - शौकत देखकर शंकर हतप्रभ रह गया। रघुनाथ का दो मंजिला मकान, घर के बाहर खड़े गाड़ी और टेक्टर, इतने संपन्न परिवार को शंकर ने कभी नहीं देखा।वो इस चकाचौंध में खो गया। लेकिन कजरी को कुछ समझ नहीं आ रहा था वो सहमी सी अपने पड़ता बापू के साथ खड़ी थी।उसके मन में कई सवाल थे, ये सब उसके समझ से बाहर था। कजरी इस रिश्ते के लिए मना करना चाहती थी पर अपने माँ - बाप की ख़ुशी के लिए वो चुप रही । उनकी आँखों में जो चमक थी उसे वो खत्म नहीं करना चाहती थी । फिर इतने बड़े घर में रिश्ता होना उसके लिए बहुत बड़ी बात थी।
'कितने मै तय हुआ '।रघुनाथ ने विस्म्बर से पूछा।
' देखो साहब चार लाख आप दे देना जिसमें सब हो जाएगा, काफी गरीब लोग है जीवन भर आपका अहसान मानेगें' विस्म्बर ने कहा।
कजरी को जानकी अपने साथ घर दिखाने ले गई। कजरी दिखने में सुंदर थी तो जानकी को वो पहली नज़र में ही भा गई।यूँ तो जानकी छोटी जाति वालोंं को अपनी चोखट पर भी ना आने दे पर आज उसे इन सब का भान नहीं रहा।
'लड़के को बुलाओ मैं देखना चाहता हूँ ' ।शंकर ने कहा।
'माधो राघव को बुलाओ'।
माधो राघव को लेकर आया उसे देखकर शंकर के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। राघव कजरी से बीस साल बड़ा था। शंकर ने उसे देखते ही मना कर दिया।
'देखो मैं तुम्हें साढे़ तीन लाख रुपये दूँगा,बस तुम ये शादी कर दो '।रघुनाथ ने कहा।
इतने पैसों को मना करने का साहस शंकर में नहीं था। उसने इसे कजरी का भाग्य समझकर राघव से ब्याह करा दिया और कजरी के सर पर हाथ फेरकर वहां से विदा हो गया।