Risky Love - 56 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | रिस्की लव - 56

Featured Books
Categories
Share

रिस्की लव - 56



(56)

अंजन ने अपना गिलास टेबल पर रखा। सबसे पहले वीडियो के साथ आए हुए टेक्स्ट को पढ़ा। टेक्स्ट पढ़कर गुस्से से वह पागल हो उठा। पूरा मैसेज पढ़ने के बाद उसने वीडियो देखा। सिर्फ तीस सेकंड्स का वीडियो था। सोती हुई मीरा बहुत कमज़ोर लग रही थी। उसने अपना फोन टेबल पर रखा। शराब का गिलास उठाकर खाली कर दिया।
गुस्से में उससे बैठा भी नहीं जा रहा था। वह उठकर कमरे में टहलने लगा। मैसेज का एक एक शब्द हथौड़े की तरह दिमाग पर चोट कर रहा था।
'तुम्हारी प्रेमिका मीरा हमारे पास है। बेचारी बहुत बीमार है। फिर भी हमें उसे यहाँ लाना पड़ा। बेचारी तुम्हारा नाम सुनकर यहाँ चली आई। पर अब इस बीमारी की हालत में उसका इलाज कैसे होगा। बिना इलाज के तो और जल्दी मर जाएगी। पर हमारे हाथ में कुछ नहीं है। तुम चाहो तो उसे बचा सकते हो। पुलिस के हाथ आ जाओ तो हमारे बारे में मत बताना। तुम हमारा सहयोग करोगे तो हम उसका इलाज कराएंगे। नहीं तो तकलीफ से मरेगी बेचारी।'
अंजन की मुठ्ठियां तनी हुई थीं। अपने अंदर उपजे गुस्से को वह रोकने की कोशिश कर रहा था। कुछ ही देर में गुस्सा बेचारगी में बदल गया। वह रोने लगा। रोते हुए उसके मन ने उसे धिक्कारा। वह कायरों की तरह क्यों पेश आ रहा है। इसी दम पर वह अपना खोया हुआ सबकुछ वापस पाने की सोच रहा है। उसने अपने ऊपर शर्म आने लगी।
कुछ ही समय में उसके मन में अलग अलग तरह के भाव पैदा हुए थे। गुस्से से बेचारगी और फिर शर्मिंदगी तक पहुँच गया था। अपने मन की स्थिति को वह खुद ही समझ नहीं पा रहा था। तभी उसका फोन बजा। उसने फोन उठाया। अजय मोहते का फोन था। उसने कहा,
"क्यों अंजन.... अपने बाल नोच रहे हो या गुस्से में हाथ पैर पटक रहे हो। अब इससे अधिक तो कुछ कर नहीं सकते हो तुम।"
उसकी ज़हर भरी बात सुनकर अंजन गुस्से में बोला,
"बहुत बड़े कमीने हो तुम। इतने घटिया आदमी हो कि मुझे दबाने के लिए एक लड़की का सहारा ले रहे हो। वह भी बीमार लड़की का।"
उधर से अजय मोहते के हंसने की आवाज़ आई। अजय मोहते ने कहा,
"सही कहा तुमने मैं बहुत बड़ा कमीना और घटिया इंसान हूँ। सिर्फ अपनी जीत के बारे में सोचता हूँ। चाहें कैसे भी मिले। अब अपनी माशूका की ज़िंदगी तुम ही बचा सकते हो। बेचारी बार बार कह रही थी कि मेरा अंजन आएगा। मुझे ले जाएगा। अब उस बेचारी को क्या पता कि उसका अंजन किसी काम का नहीं रहा।"
अजय मोहते ने जो आखिरी बात कही थी उसने अंजन के पुरुषत्व को बुरी तरह चोट पहुँचाई थी। उसने कहा,
"देख अजय मोहते अगर मीरा को कुछ हुआ तो मुझसे तुझे कोई नहीं बचा पाएगा।"
"अंजन समझदारी से काम लो। मैंने तुम्हें इसलिए फोन किया है कि तुम खुद को मेरे हवाले कर दो। मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि तुम्हारी इस सारे झंझट से निकलने में मदद करूँगा। फिर तुम्हारी महबूबा तुम्हारे पास होगी। उसका इलाज कराना। आराम से एक नई ज़िंदगी जीना।"
"मैं तुम पर यकीन नहीं कर सकता हूँ।"
उस तरफ कुछ सेकेंड्स के लिए शांति रही। उसके बाद अजय मोहते ने कहा,
"अंजन ना तो तुम चाहते हो और ना ही मैं चाहता हूंँ कि तुम पुलिस के हाथ लगो। इसलिए मेरी बात मानो। मैं तुम्हें एक नई ज़िंदगी शुरू करने का अवसर दूँगा।"
"तुमने तो पहले भी मदद का वादा किया था। पर किया कुछ नहीं।"
उधर से अजय मोहते गुस्से में बोला,
"बेवकूफ के जैसे बात कर रहे हो। तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हें वहाँ से निकालना जादू की छड़ी घुमाना है। भारत और सिंगापुर की पुलिस तुम्हारे पीछे है। पर फिर भी मैंने इंतज़ाम कर दिया था। मेरा आदमी तुम्हें खोजते हुए उस मकान में पहुँच गया था जहाँ तुम्हारी महबूबा तुम्हें ठहरा गई थी।"
उसकी इस बात को सुनकर अंजन को उस पर कुछ विश्वास हुआ। अजय मोहते ने आगे कहा,
"वो जब वहाँ पहुँचा तो तुम थे नहीं। तुम्हारा इंतज़ार करके लौट गया। बाद में पता चला कि तुम किसी बार से पुलिस से बचकर भागे हो। तुम्हारे ऊपर पुलिस का खतरा है इसलिए हमने तुम्हारी महबूबा को किडनैप कर लिया। अब तुम सोचकर फैसला कर लो क्या करना है।"
अपनी बात कहकर अजय मोहते फिर चुप हो गया। अंजन के मन में एक उथल पुथल शुरू हो गई थी। एक तरफ उसे लग रहा था कि अजय मोहते सच कह रहा है। उसने उसकी मदद के लिए अपना आदमी भेजा होगा। वह उस पर यकीन कर सकता है। लेकिन उसके मन से आवाज़ आ रही थी कि अजय मोहते झूठ बोल रहा है। इसलिए उसे सावधान रहना चाहिए।
उसके चुप रहने से अजय मोहते को लग रहा था कि अंजन उहापोह में है। नहीं तो अब तक साफ मना कर चुका होता। उसने कहा,
"अंजन तुम्हारे लिए एक एक पल मुश्किल है। पुलिस तुम्हें गिरफ्तार करने की हर संभव कोशिश करेगी। इसलिए तुम मुझे अपना पता बता दो। मैं अपने आदमी को भेजकर तुम्हारी मदद करूँगा।"
अब तक अंजन समझ चुका था कि अजय मोहते उसकी स्थिति को भांपकर जाल फैला रहा है। लेकिन मीरा उसके कब्ज़े में थी। इसलिए वह समझदारी से काम लेना चाहता था। उसने कहा,
"अजय मोहते अभी मेरा दिमाग परेशान है। मैं तुम्हें सोच नहीं पा रहा हूँ। मुझे कुछ वक्त दो। मैं तुम्हें फोन करके बताता हूँ।"
"अंजन वक्त ही तो कम है तुम्हारे पास। फिर भी अगर तुम सोचना चाहते हो तो सोच लो। लेकिन जितनी जल्दी मेरी बात पर भरोसा कर लोगे उतना ही अच्छा होगा। लेकिन अगर पुलिस के हाथ लग जाओ तो याद रखना कि मीरा मेरे पास है।"
अजय मोहते ने यह कहकर कॉल काट दी।
मीरा को अपने कब्ज़े में लेकर अजय मोहते ने अंजन पर दबाव बना दिया था। यह दबाव था कि वह मीरा को उसके चंगुल से मुक्त करवा कर यह साबित कर दे कि अभी भी उसमें बहुत दम है। अंजन उस दबाव में आ गया था। इस समय वह बस यही सोच रहा था कि कुछ भी करके मीरा को अजय मोहते की कैद से छुड़ा ले।
उसे इस फ्लैट में आए लगभग तीस घंटे का समय हो चुका था। इस बीच प्रवेश गौतम एक बार ही आया था। वह उसे खाने पीने का सामान दे गया था। उसे आश्वासन दे गया था कि वह जल्दी ही कुछ करता है। लेकिन उसके बाद ना तो वह आया था और ना ही उसका फोन उठाया था। अंजन इस फ्लैट में एक कैदी की तरह था। वह केवल उस घड़ी का इंतज़ार कर सकता था जब प्रवेश गौतम उसे यहाँ से ले जाए। यह स्थिति बहुत असहनीय थी। उस पर अब यह एहसास और परेशान कर रहा था कि मीरा बीमारी की हालत में भी अजय मोहते की कैद में है।

निर्भय और मानवी बीच पर टहल कर वापस लौटे थे। नौकर ने चाय की ट्रे लाकर रख दी। मानवी अपने और निर्भय के लिए चाय बनाने लगी। निर्भय की बिना शुगर की चाय का कप उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोली,
"अगर हमको ही करना है तो कोई अच्छा वकील तलाश करते हैं।"
निर्भय ने अपने कप से एक सिप लेकर कहा,
"नया वकील क्यों ढूंढ़ें। बैकुंठ आगरकर ने बेल दिलवाई है वह संभाल सकता है।"
अपने लिए चाय बनाते हुए मानवी ने कहा,
"बेल के केस में उसे बहुत मुश्किल हुई थी। अब बात इल्ज़ाम को झूठा साबित करने की है। मुझे लगता है कि हमें सोच समझकर निर्णय लेना चाहिए।"
उसकी बात सुनकर निर्भय सोच में पड़ गया। कुछ देर में बोला,
"सही कहा तुमने। थोड़ी सी गलती जेल पहुँचा सकती है। इंस्पेक्टर कौशल सावंत ने हमारे खिलाफ बहुत कुछ जमा किया है। मैं सोच रहा हूँ कि एक बार फिर लोकेश कुमार का नंबर मिलाऊँ। बात हो जाती है तो इस संबंध में ही कुछ मदद मांग लेंगे।"
निर्भय ने चाय का कप रखा। मोबाइल निकाल कर लोकेश कुमार का नंबर मिलाया। उसने फोन स्पीकर पर डाल दिया। इस बार लोकेश ने फोन उठा लिया। उसके फोन उठाते ही निर्भय ने शिकायत की,
"चलिए आपका फोन तो उठा। मुझे तो लगा था कि आपका काम निकल गया अब बात होना मुश्किल है।"
लोकेश कुमार ने बड़ी शांति से कहा,
"वादा मंत्री जी की तरफ से हुआ है। वो अपना वादा अवश्य निभाएंगे। जहाँ तक फोन ना उठने की बात है तो जब आप फोन मिला रहे थे तब मैं पार्टी की आवश्यक मीटिंग में था। इसलिए फोन स्विचऑफ कर दिया था। अभी कुछ देर पहले ही फुर्सत मिली है।"
"लोकेश जी हमारी मदद कैसे होगी ?"
"केस शुरू होने दीजिए। गवाह वही कहेंगे जो हम चाहेंगे।"
यह सुनकर निर्भय और मानवी दोनों के ही चेहरे चमक गए। निर्भय ने कहा,
"हम किसी अच्छे वकील की तलाश में थे।"
"आप कोई भी वकील कीजिए। गवाह उसके साथ होंगे।"
लोकेश ने फोन काट दिया। निर्भय अब संतुष्ट नज़र आ रहा था। उसने मानवी की तरफ देखा। वह भी खुश थी। निर्भय ने उससे कहा,
"आज कुक से कहो कि कुछ अच्छा बनाए।"
मानवी ने भी उसकी बात का समर्थन किया। वह उठकर कुक को निर्देश देने चली गई।