Kanhar Pad mal- Pad- based on classic music - 29 in Hindi Spiritual Stories by ramgopal bhavuk books and stories PDF | कन्‍हर पद माल - शास्त्रीय रागों पर आधारित पद - 29

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कन्‍हर पद माल - शास्त्रीय रागों पर आधारित पद - 29

कन्‍हर पद माल- शास्त्रीय रागों पर आधारित पद 29

सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज कृत

(शास्त्रीय रागों पर आधारित पद.)

हस्‍त‍लिखित पाण्‍डुलिपि सन् 1852 ई.

सर्वाधिकार सुरक्षित--

1 परमहंस मस्‍तराम गौरीशंकर सत्‍संग समिति

(डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)

2 श्री श्री 1008 श्री गुरू कन्‍हर दास जी सार्वजनिक

लोकन्‍यास विकास समिति तपोभूमि कालिन्‍द्री, पिछोर।

सम्‍पादक- रामगोपाल ‘भावुक’

सह सम्‍पादक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्‍त’ राधेश्‍याम पटसारिया राजू

परामर्श- राजनारायण बोहरे

संपर्कः -कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0)

पिन- 475110 मो0 9425715707 tiwariramgopal5@gmail.com

प्रकाशन तिथि- 1 चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी सम्‍वत् 2045

श्री खेमराज जी रसाल द्वारा‘’कन्‍हर सागर’’ (डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)

2 चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी सम्‍वत् 2054

सम्‍पादकीय--

परमहंस मस्‍तराम गौरी शंकर बाबा के सानिध्‍य में बैठने का यह प्रतिफल हमें आनन्‍द विभोर कर रहा है।

पंचमहल की माटी को सुवासित करने जन-जन की बोली पंचमहली को हिन्‍दी साहित्‍य में स्‍थान दिलाने, संस्‍कृत के महाकवि भवभूति की कर्मभूमि पर सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज सम्‍वत् 1831 में ग्‍वालियर जिले की भाण्‍डेर तहसील के सेंथरी ग्राम के मुदगल परिवार में जन्‍मे।

सन्‍त श्री कन्‍हरदास जी के जीवन चरित्र के संबंध में जन-जन से मुखरित तथ्‍यों के आधार पर श्री खेमराज जी रसाल द्वारा ‘’कन्‍हर सागर’’ में पर्याप्‍त स्‍थान दिया गया है। श्री वजेश कुदरिया से प्राप्‍त संत श्री कन्‍हर दास जी के जीवन चरित्र के बारे में उनके शिष्‍य संत श्री मनहर दास जी द्वारा लिखित प्रति सबसे अधिक प्रामाणिक दस्‍तावेज है उसे ही पदमाल से पहले प्रस्‍तुत कर रहे हैं।

कन्‍हर पदमाल के पदों की संख्‍या 1052 दी गई है लेकिन उनके कुल पदों की संख्‍या का प्रमाण--

सवा सहस रच दई पदमाला।

कृपा करी दशरथ के लाला।।

के आधार पर 1250 है। हमें कुल 1052 पद ही प्राप्‍त हो पाये हैं। स्‍व. श्री दयाराम कानूनगो से प्राप्‍त प्रति से 145 पद श्री रसाल जी द्वारा एवं मुक्‍त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्‍कृतिक समिति द्वारा श्री नरेन्‍द्र उत्‍सुक के सम्‍पादन में पंच महल की माटी के बारह पदों सहित शास्‍त्रीय संगीत की धरोहर

तीस रागनी राग छ:, रवि पदमाला ग्रन्थ।

गुरू कन्‍हर पर निज कृपा, करी जानकी कन्‍थ।।

विज्ञजनों को समर्पित करने एवं मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्री राम के जीवन की झांकी की लीला पुरूषोत्‍तम श्री कृष्‍ण का जीवन झांकी से साम्‍य उपस्यित करने में बाबा कन्‍हर दास जी पूरी तरह सफल रहे हैं।

डॉ0 नीलिमा शर्मा जी जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर से शास्‍त्रीय संगीत की धरोहर कन्‍हर पदमाल पर शोध कर चुकी हैं।

सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज का निर्वाण एक सौ आठ वर्ष की वय में चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी रविवार सम्‍वत् 1939 को पिछोर में हुआ।

नगर निगम संग्रहालय ग्‍वालियर में श्री कन्‍हर दास पदमाल की पाण्‍डुलिपि सुरक्षित वसीयत स्‍वरूप रखी हुई है। श्री प्रवीण भारद्वाज, पंकज एडवोकेट ग्‍वालियर द्वारा पाण्‍डुलिपि की फोटो प्रति उपलबध कराने में तथा परम सन्‍तों के छाया चित्र उपलबध कराने में श्री महन्‍त चन्‍दन दास छोटी समाधि प्रेमपुरा पिछोर ने जो सहयोग दिया है इसके लिए हम उनका हृदय से आभार मानते हैं।।

पंचमहली बोली का मैं अपने आपको सबसे पहला कवि, कथाकार मानता था लेकिन कन्‍हर साहित्‍य ने मेरा यह मोह भंग कर दिया है।

इस सत् कार्य में मित्रों का भरपूर सहयोग मिला है उनका हम हृदय से आभार मानते हैं। प्रयास के बावजूद प्रकाशन में जो त्रुटियां रह गई हैं उसके लिए हम सुधी पाठकों से क्षमा चाहेंगे।

रामगोपाल भावुक

दिनांक 16-4-97 श्री राम नवमी सम्‍पादक

राग – भैरौं

बृज मण्‍डल में सुख भरि पूरि रह्यौ।।

जन्‍मै कुंअर नंद गृह सुंदर, सब मन मोह लहौ।।

आनंद छाइ रहौ त्रिभुअन में, सुरगन गान ठयौ।।

कन्‍हर धन्‍य घरी हरि प्रगटे, सुख पितु मातु दयौ।।991।।

पालना झूलत श्री नंद चंद।।

किलकि – किलकि मन मोद बढ़ावत, बृज जीवन सुखकंद।।

अंग नील मनि लसत मनोहर, मुख सरोज छवि चंद।।

कन्‍हर बलि – बलि जात जसोदा, पुरजन मन मकरंद।।992।।

हरि के सुमिरौ रूप सुहाई।।

चैत्र चारू – शुक्‍ला तिथि पांचै, मीन कीन वपु आई।।

जेष्‍ठ सुदी द्वादसी लगन सुचि, कूरम प्रगट दिखाई।।

चैत्र कृष्‍ण नवमी कौ सुंदर, वाराह वर मन भाई।।

चतुरदसी वैसाख मास सुदि नरसिंह रूप निकाई।।993।।

राग – रागश्री, ताल – त्रिताल

भादौं सुदी द्वादसी बसी मन, वामन वटु सुखदाई।।

सुदि वैसाख मास वर तृतीया, परसराम वपु पाई।।

चैत्र चारू शुक्‍ला नवमी तिथि, राम जन्‍म श्रुति गाई।।

भादौं वदी अष्‍टमी लग्‍न शुभ, कीरति कृष्‍ण लुनाई।।

जेष्‍ठ सुदी दुतिया दुति सोभित, बोध रूप छवि छाई।।

दनुज दलनि‍ह कलिकी कलि में, पुनि महि धर्म दिठाई।।

कन्‍हर दस अवतार नाम कहि, नर भव पार पराई।।994।।

पुष्‍प विमान मनोहर राजै।।

भ्रातनि सहित राम छवि सोभित, उपमा कहि कवि लाजै।।

बाजे बजत पूरि रहौ रव वर, मानौं नभ घन गाजै।।

हय गज रथ जुत्‍थ केत पताका, पवन झूमि झुकि साजै।।

धावत मुनि गन देव नाग नर, जल विहार काजै।।

कन्‍हर छत्र चमर लियै ढोरत, सरन भयै अघ भाजै।।995।।

राग – भैरौं

जल बिहार विहरन हरि जाई।।

अंग विभूषन भूषित सुंदर, बरनत मति सकुचाई।।

धनुस बान कर कमलनि राजत, चित चितवनि मृदु सुखदाई।।

क्रीट मुकुट मकराकृत कुंडल, मुक्‍तनि माल सुहाई।।

चमर छत्र सुभ ढुरत दुहूं दिसि, बंदीजन गुन गाई।।

यह आनंद पूरि रहौ दस दिसि, देव पुष्‍प झर ल्‍याई।।

नारदादि सुंदर गुन गावत, आंनद उर न समाई।।

कन्‍हर छवि लखि मगन भये जन, भव के भर्म नसाई।।996।।

राग – भोपाली

मनोहर छवि रघुनाथ बनी।।

सजि करि चले कृपा करूणानिधि, त्रिभुअन नाथ धनी।।

असुनि मास विजय दशमी, शुभ सुकल पछि कमनी।।

अंग विभूषन बहु सुभ राजत, उपमा बहुत धनी।।

हेरत धनुस बान कर कमलनि, कहि नहिं सकत फनी।।

हय गज रथ दल ध्‍वजा पताका, सजि – सजि चली अनी।।

बन्‍दीजन गंधर्व गुन गावत, रघुकुल तिलक मनी।।

कन्‍हर बजति दुंदभी तिहुं पुर, जय – जय शब्‍द ठनी।।997।।

सरद चांदनी रैनि सुहाई।।

राजत सिया सहित रघुनायक, वेद पार नहिं पाई।।

सरजू सलिल बहति शुभ निर्मल, त्रिविधि बयारि सुखदाई।।

कमोदिनी विगसी सुभ सुंदर, भ्रमर गुंजन रव ल्‍याई।।

वन उपवन वाटिका मनोहर, कोइल शब्‍द सुनाई।।

सोभित भूमि सुहावनि लागति, मुनि गन मन हरषाई।।

अवधपुरी छवि क्‍यों कहि बरनौं, सारद मति सकुचाई।।

कन्‍हर जुगन चरन लखि सुंदर, तिन्‍ह मति तूं बिसराई।।998।।

मगन भई री आली, लखि चारौं भइया।।

छिटकी सरद चांदनी निरमल, बिगसी नलिन सुहइया।।

स्‍याम गौर सुभ अंग मनोहर, मनमथ देखि लजइया।।

विचरत सरजू तीर स‍खनि जत, सोभित राम ललैया।।

अधर कपोल चिबुक सुभ ग्रीवा, मनि उर माल लसैया।।

क्रीट मुकुट मकराकृत कुंडल, चितवनि चितहि चुरइया।।

पीताम्‍बर वर लसत मनोहर, मंद – मंद मुसिकइया।।

कन्‍हर प्रभु प्रगट देखि मगन मन, उपमा ढूंढि़ न पइया।।999।।

दीप दान छवि लगत सुहाई।।

गृह – गृह द्वार – द्वार प्रति राजत, सब ही के मन भाई।।

राम महल पर लसत मनोहर, जगमगात दुति छाई।।

सरजू कूल दुहूं दिसि सोभित, उपमा बहु किमि गाई।।

अवधपुरी छवि कहा लगि बरनौं, तिमिर समूह नसाई।।

नारदादि सनकादि आदि कवि, आनंद उर न समाई।।

राजत राम भानुकुल भूषन, लखि छवि ससि सकुचाई।।

कन्‍हर देव सुमन झर बरसत, जय रघुकुल मनिराई।।1000।।

राग – सारंग

राम सचिव सुमिरौ मन मेरे।।

अंगदादि सुग्रीव विभीषन, सुफल मनोरथ तेरे।।

विजयी सिष्‍ट जयंत केसरी, राम काज हरषे रे।।

पनस असोक सुमंत गंध बल, जुद्ध मध्‍य कर जेरे।।

सदा आनन्‍द सुमन्‍त कुमुद मुख जामबन्‍त प्रभुहेरे।।

दुविद मयंद सुराष्‍ट सुभट, शुभ मारूति लाल अनेरे।।

गवै गवछ नील नल वर धन, भये समर में बेरे।।

उल्‍का निपुन मनोहर दधिमुख, सबही सरन तके रे।।

जे कोई ध्‍यान धरत है इनकौ, ते भव पार परे रे।।

कन्‍हर राम भक्ति वर मांगत, कीजै कृपा करौ मति देरे।।1001।।

जय रघुवीर जक्‍त हितकारी, प्रगट करी विद्या दस चारी।।

ब्रम्‍ह ज्ञान वेदांत रसायन, भेषज रोगनि टारी।।

ज्‍योतिष नाद नीर कौ तरिवौ, धनुष बान गति न्‍यारी।।

लिखिवौ बरन कोक नट कौ, क्रत वाहन बाज सवारी।।

वसु व्‍याकरन और संबोधन, चातुरता बलिहारी।।

कन्‍हर प्रभु प्रसन्‍न जाउ पर, ताकौ सुलभ सुखारी।।1002

सुंदर लोहागर राजै।।

चहूं दिस मालकेतु परवत, लखि उपमा बहु लाजै।।

मध्‍य कुण्‍ड वर लसत मनोहर, परसत अघ भाजै।।

कन्‍हर जे कोउ ध्‍यान धरत है, फलित सदा सब काजै।।1003।।

गिरवर राज महा छवि छाये।।

गंगा निकट मानसी सुंदर, कवि बरनत सकुचाये।।

ललित मनोहर सदा पियारे, बृज भूषन मन भाये।।

कन्‍हर सनकादिक नित आवत, कहि प्रभु गनु हरषाये।।1004।।

गिरवर राज दरस मन भाये।।

दीपमाल छवि लसत मनोहर, उपमा बहु छवि गाये।।

शोभित निकट मानसी गंगा, परसत भ्रम नसाये।।

कन्‍हर बरनि सेस मुख नारद, वेद पार नहिं पाये।।1005।।

धनि वृंदावन कुंज सुहाई।।

बोलत मोर पपीहा सुंदर, कोइल वचन मनोहर पाई।।

धनि वंसी वट धनि जमुना तट, विहरत कृष्‍ण गोपिका आई।।

कन्‍हर मुदु मुसिक्‍यानि माधुरी सदा बसौ हमरे मन आई।।1006।।

सुंदर महि मथुरा श्रुति गावै।।

जमुना सदा मनोहर पावन, परसत पाप परावै।।

गोपिनि संग दिवस निसि विहरत, वेद पार नहिं पावै।।

पावन भूमि मुक्ति फल्‍दाता, कृष्‍न परम प्रिय भावै।।

मुनि गन देव रहत हैं छाये, गुन गन कहि हरषावै।।

घाट सलिल सोभित बहु नीके, निर्मल मति उपजावै।।

वन उपवन वाटिका चहूं दिसि, वृंदावन छवि ल्‍यावै।।

कन्‍हर प्रिय मधुपुरी सुहाई, दरस हेत सब आवै।।1007।।

श्री निधि चरन बसै उर मेरे।।

बाये अंग प्रिया प्रिय राजति, चितवनि मृदुल मनोहर हेरें।।

भूषन अंग मनिनि जुत सोभित, उपमा कोटि अनंगन फेरे।।

जिनि चरननि कौ ध्‍यान धरत ही, सदा भक्‍त सुख पावत तेरे।।

स्‍याम वपुष उर माल पीत पट, मानौं तडि़त पुंज घन घेरे।।

कन्‍हर सरनागत कहि आवत ताके, भव आताप निवेरे।।1008।।

नाम रूप सुंदर सुभ पाई।।

स्‍याम अंग पीताम्‍बर सोहत, जिमि घन चपला छाई।।

सिर पै पेच जरकसी राजत, केसरि तिलक सुहाई।।

करत ध्‍यान कल्‍यान राइ कौ, कन्‍हर बसि उर आई।।1009।।

राग – देस, ताल – कव्‍वाली

जय कल्‍यान राइ जदुराई।।

अंग विभूसन सोभित सुंदर, मुक्‍ता माल लसे उर आई।।

माथै मुकट रतनमय सोभित, बाजुबंद लसत भुज दाई।।

नाम तुम्‍हारौ सब सुखकारी, कन्‍हर के प्रभु सदा सहाई।।1010

राग- भोपाली

बिहारी जी की छवि पर बलिहारी।।

पग नूपुर सुंदर कटि किंकिनि, मुक्‍त माल दुति प्‍यारी।।

पट पीताम्‍बर श्‍याम सलोनी, छटा मोहिनी न्‍यारी।।

कन्‍हर वेद पार नहिं पावत, निकट प्रिया छवि चारी।।1011

बांके बिहारी थारी जाउं बलिहारी।।

बायें अंग प्रिया प्रिय राजति, वदन चंद्र छवि वारी।।

मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, आर मुरलिया प्‍यारी।।

केसरि तिलक मनोहर सोभित, मुक्‍त माल दुति न्‍यारी।।

पग नूपुर पहौंची कर कमलनि, चरन चिन्‍ह दुति धारी।।

भूसन कलित ललित उर राजत, निरखि मदन मद टारी।।

सनमुख पवन कुमार विराजत, भक्‍तन के हितकारी।।

कन्‍हर सरन तकौ है तुम्‍हरौ, लीजौ खबरि हमारी।।1012।।

राग- देस

केवलपुर के गिर पर राजत, जय अंबे हरसिद्धी है।।

नाम तुम्‍हारौ जन हितकारी, करतु ज्ञान की वृद्धी है।।

जो कोउ ध्‍यान धरत निसि बासर, लहत सदा नव निद्धी है।।

कन्‍हर राम चरन रति मांगत, बसौ जुगल मम हृदी है।।1013।।

राजकुमार देखि सुखमानी।।

स्‍याम गौर सुभ अंग मनोहर, बरनत मति सकुचानी।।

क्रीट मुकुट कर धनुस विराजत, वय किसोर छवि आनी।।

सोभित वदन सरोरूह लोचन, लखि सरूप हरषानी।।

अलकैं कुटिल भृकुटी वर बांकी, चितवनि चारू सुहानी।।

कन्‍हर के प्रभु मोद बढ़ावत, पूछत सखिनि सुबानी।।1014।।

राम सुख पौढ़े सुखदाई, सजग होउ जाई।।

सिव सनकादि आदि ब्रम्‍हादिक, निज – निज लोक पठाई।।

बड़े – बड़े वीर धीर बलि बंका, महलनि पास रहाई।।

कन्‍हर प्रभु के निकट मारूत, रहे ध्‍यान ल्‍याई।।1015।।

सरजू अवधपुरी मनमानी।।

रतन जटित मय भूमि मनोहर, सीताराम सदा प्रिय जानी।।

निर्मल नीर बहत सरजू कौं, विचरत देव संत मुनि ज्ञानी।।

है निजु धाम पुरी अति पावन, सोभा करि किमि कहौं बखानी।।

सुफल जन्‍म जनपुर नित रहहीं, तिनि कर महिमा कहि किमि बानी।।

तीरथ राज आदि सब सोभित, रहे राम उर की पहिचानी।।

ढूंढैं चारि पदारथ कर तल, सेवत निगम नीति गुन गानी।।

कन्‍हर सुनि कै सरन तकौ है, बसौ हृदै रघुपति रजधानी।।1016

रामकुमर अवलोकि मनोहर, तब ते देह गेह बिसराई।।

सुंदर रघुवीर धीर ठाढ़े हैं सरजू तीर,

स्‍याम गौर अंग लसत, भूपति सुखदाई।।

देखत मति चकृत भई लखि करि मोहि रही,

चितवनि मैं चित हरौ बरनौं किमि जाई।।

हो गई मैं बावरी निरखि छवि रावरी,

कन्‍हर कही नहीं परै नैननि उरझाई।।1017।।

सामरे सौं कैसे निबहै प्रीति।।

आवत जात डगर म्‍हारी रोकत, ऐसी कहं की रीति।।

कहौ न मानत बहुत झिकावत, जानत नाहीं नीति।।

कन्‍हर सोच संकोच भयौ अब, सोचत रैनि व्‍यतीति।।1018।।