Offering - (last part) in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | अर्पण--(अन्तिम भाग)

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अर्पण--(अन्तिम भाग)

देवनन्दिनी को सोफे पर बैठा देखकर बाहर से आते हुए रामू ने पूछा___
क्या हुआ दीदी!आप छोटी दीदी के कमरे में नहीं गईं।।
अरे, नहीं रे! बहुत थकी थी, इसलिए सीढ़ियां चढ़ने का मन ना हुआ,तू ऐसा कर बबलू को मेरे पास छोड़ दें, मैं उससे बातें करतीं हूं,तू चाय चढ़ा दें और राज के कमरें से सुलक्षणा जी को बुलाकर ले आ , मैं उनसे यही नीचे मिल लूंगी,देवनन्दिनी बोली।।
जी बहुत अच्छा, और इतना कहकर रामू ने किचन में जाकर चाय चढ़ाई और सुलक्षणा को बुलाने चला गया।।
कुछ देर बाद सुलक्षणा और राज दोनों ही नीचे आ गईं,सबने साथ में शाम की चाय पी ,कुछ इधर-उधर की बातें की,कुछ देर बाद सुलक्षणा बोली___
मैं अब चलती हूं, श्रीधर मिल से आ गया होगा,
बहुत जल्दी जा रहीं हैं आप! देवनन्दिनी शिकायत करते हुए बोली।।
जी,फिर कभी समय लेकर आऊंगी तो फिर रूकूंगी आपके घर,सुलक्षणा बोली।।
जी बहुत अच्छी बात है,देवनन्दिनी बोली।।
कुछ देर और रूक जाती लेकिन घर की चाबी मेरे पास है,श्रीधर मिल से आ गया होगा तो दरवाजे के बाहर ही खड़ा होगा,सुलक्षणा बोली।।
तो फिर ना रोकूंगी,आप जा सकतीं हैं,देवन्दिनी बोली।।
अच्छा! दीदी! नमस्ते! राज बोली।।
नमस्ते! नन्दिनी जी और इस तरह से सुलक्षणा ने राज के नमस्ते का जवाब दिया और देवनन्दिनी से भी नमस्ते करके तांगे में बैठकर घर को रवाना हो गई।।
सुलक्षणा का तांगा जैसे ही घर के सामने रूका तो उसने देखा कि श्रीधर मिल से आ चुका है,वो तांगे से उतरी ,किराया दिया और दरवाजे तक आई ही थी तभी श्रीधर ने उससे उतावलेपन से पूछा____
राज मिली! क्या बात हुई उससे? वो नाराज़ क्यों है मुझसे?
अरे,सब्र रख,सब बताती हूं,पहले घर का ताला तो खोलने दें,भीतर चल फिर तेरे सभी सवालों के जवाब देती हूं,सुलक्षणा बोली।।
क्या करूं ? जीजी! मुझसे सबर ही नहीं हो रहा,श्रीधर बोला।।
तीनों भीतर पहुंचे,सुलक्षणा कुर्सी पर बैठ गई और श्रीधर नीचे फर्श पर उसके पैरों के पास बैठ गया और फिर अपने सवालों की झड़ियां लगा दीं।।
वो कैसी है ?जीजी!श्रीधर ने पूछा।।
एकदम ठीक है,सुलक्षणा बोली।।
क्या उसे पता चल चुका है ? कि देवनन्दिनी जी मुझे पसन्द करती हैं,श्रीधर ने पूछा।।
हां,उस दिन जब तुम मिल से वापस आकर मुझे सब बता रहे थे तो उसने सब सुन लिया था और चुपचाप अपने घर लौट गई थी इसलिए वो तुमसे नहीं मिलना चाहती,उसने कहा कि वो अपनी दीदी की खुशियों के आड़े नहीं आएगी और उसने ये भी कहा है कि श्रीधर बाबू को नन्दिनी दीदी से ब्याह करना ही होगा,सुलक्षणा बोली।।
लेकिन जीजी! ये कैसे हो सकता है? मैं राज से मौहब्बत करता हूं, मैं नन्दिनी जी से ब्याह कैसे कर सकता हूं?मेरा ज़मीर गंवारा नहीं करता,श्रीधर बोला।।
अब मैं भी क्या करूं? मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की और तब तक नन्दिनी जी ने हम दोनों को चाय पीने के लिए बुला लिया,सुलक्षणा बोली।।
नन्दिनी जी को शायद अभी तक पता नहीं चला कि राज मुझे पसंद करती है, क्योंकि वो ऑफिस में मुझे आज फिर से ढूंढ़ रहीं थीं और मैं उनसे भागा भागा फिर रहा था,श्रीधर बोला।।
नन्दिनी जी की इस गलत़फहमी को किसी भी हाल में दूर करना ही होगा,सुलक्षणा बोली।।
लेकिन कैसे? श्रीधर ने पूछा।।
उसके लिए भी कुछ सोचती हूं, फिलहाल मैं कपड़े बदलकर रसोई में खाना बनाने जा रही हूं,बाद का बाद में सोचेंगें,सुलक्षणा बोली।।
और इधर रात का खाना खाने के बाद नन्दिनी अपने कमरें में उदास सी लेटी कुछ सोच रही थी,उसके मस्तिष्क में उठ रहे तूफान ने उसके मन में एक अज़ब सी हलचल मचा रखी थी,वो कैसे अपनी छोटी बहन की खुशियों को अनदेखा कर सकती है,पहले तो उसे सच्चाई नहीं पता था इसलिए उसने श्रीधर बाबू से अपनी मौहब्बत का इज़हार कर लिया, लेकिन अब तो वो जानती है कि श्रीधर और राज एक दूसरे को चाहते हैं और उन दोनों को हमेशा हमेशा के लिए एक हो जाना चाहिए,मेरा क्या है? मैं तो पहले भी अकेली थी आगे भी अकेली ही रह जाउंगी लेकिन मेरी वज़ह से उन दोनों की खुशियों में आग नहीं लगनी चाहिए,यही सोच सोचकर नन्दिनी गहरी उदासी में डूबती जा रही थी।।
और वहीं दूसरे कमरें में राज भी अपनी बड़ी बहन की खुशियों के बारें में सोच रही थी,उसे हाल में नन्दिनी का घर बसाना था वो भी श्रीधर के साथ,इसके लिए वो श्रीधर को हमेशा हमेशा के लिए भूलने का मन बना चुकी थी।।।
ऐसे ही उदासी भरे दिन सबके बीत रहें थे ,सब अपनी अपनी जगह परेशान थे,अब मिल में नन्दिनी ने श्रीधर के सामने पड़ना बिल्कुल बंद कर दिया था वो कोशिश करती कि उसे श्रीधर का सामना ना करना पड़े।।
इसी तरह एक रोज़ श्रीधर मिल पहुंचा और अपने केबिन में जाकर उसने अपने कमरे के फैन का स्विच ऑन किया,तभी बिजली के बोर्ड में स्पार्किंग हुई,श्रीधर ने फौरन फैन का स्विच ऑफ किया और मुंशी जी के केबिन में जाकर बोला___
मुंशी जी! जरा किसी इलेक्ट्रीशियन को बुलवाकर मेरे केबिन का बिजली का बोर्ड दिखवा दीजिए, मैंने पंखा लाया तो उसमें अभी स्पार्किंग हो रही थी।।
ठीक है श्रीधर बाबू! अभी इलेक्ट्रीशियन को टेलीफोन किए देता हूं वो आ जाएगा, मुंशी जी बोले।।
ठीक है तो मैं जाता हूं,श्रीधर बोला।।
तभी मुंशी जी बोले___
ये रूपयों का बैग रख लीजिए श्रीधर बाबू! आपको पता है ना कि आज पहली तारीख़ है,शाम को सभी की तनख्वाह बांटनी है।।
जी ठीक है, मैं सब हिसाब किताब देख लेता हूं,आप चिंता ना करें,श्रीधर बोला।।
और इतना कहकर श्रीधर अपने केबिन में आ गया,कुछ देर बाद इलेक्ट्रीशियन आया और बोर्ड ठीक करने के बाद बोला___
साहब! मैंने अभी टेम्पररी ठीक तो कर दिया है,अभी नई तार नहीं लाया था,कल फिर से आकर नई तार लगाकर मरम्मत कर दूंगा।।
ठीक है ,लेकिन कल जरूर ठीक कर देना,मिल में इतनी मशीनें हैं आग लगने का खतरा रहता है,श्रीधर बोला।
जी साहब! कल जरूर ठीक कर दूंगा और पैसे भी कल ही लूंगा,अच्छा तो अब मैं चलता हूं और इतना कहकर इलेक्ट्रीशियन चला गया,
इधर श्रीधर हिसाब किताब में लग गया कि किसने कितना एडवांस ले रखा है,किसने कितना ओवरटाइम किया है,किसको बोनस मिलना चाहिए,श्रीधर अपने काम में मग्न था उधर दरवाजे के पास लगें बिजली बोर्ड में स्पार्किंग हुई श्रीधर ने ध्यान ना दिया, स्पार्किंग से दरवाज़े पर लगे पर्दे ने आग पकड़ ली जब श्रीधर को कपड़ा जलने की बू आई तब उसने देखा कि आग लग गई है और श्रीधर ने आग...आग चिल्लाना शुरू किया, धीरे-धीरे लकड़ी के दरवाज़े ने आग पकड़ ली,श्रीधर की आवाज सुनकर सब भागे, नन्दिनी भी भागकर आई,मुंशी जी ने आग देखकर फौरन मिल का फायर अलार्म बजा दिया और फायर ब्रिगेड को टेलीफोन कर दिया और सबसे बोले घबराओ नहीं आग बुझाने वाली गाड़ी आ रही है ,फिर श्रीधर के केबिन का दरवाजा तोड़ने की कोशिश करने लगे,
उधर श्रीधर का धुंए से दम घुट रहा था क्योंकि केबिन में धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी,तभी दरवाज़ा जलकर गिर गया लेकिन उसमें आग अब भी लगी थी, नन्दिनी ने झट से मिल का ही एक मोटा सा कपड़ा उठाया और ओढ़कर श्रीधर को बचाने भागी, उसने श्रीधर के पास जाकर वो कपड़ा उसे ओढ़ाया और बाहर ले आईं,बाहर सब श्रीधर को सम्भालने लगे।।
तभी श्रीधर को याद आया कि रूपयों का बैग तो भीतर ही रह गया, ग़रीबों की तनख्वाह थी वो।।
नन्दिनी ने आव देखा ना ताव,वो कपड़ा ओढ़कर फिर से भीतर चली गई, लेकिन मामूली सा कपड़ा दूसरी बार आग ना सह सका और उसने आग पकड़ ली, नन्दिनी बैग तो बाहर ले आईं लेकिन अब आग उसकी साड़ी ने भी पकड़ ली थी, जिससे वो बुरी तरह झुलस कर बेहोश होकर गिर पड़ी , फ़ौरन एम्बुलेंस को टेलीफोन किया गया,इधर फायर ब्रिगेड ने मिल की आग बुझा दी।
एम्बुलेंस ने नन्दिनी को अस्पताल पहुंचाया वहां दो तीन घंटों के उपचार के बाद डाक्टर बोले...
उनकी हालत बहुत ही गम्भीर है,कुछ कह नहीं सकते,शरीर का पचहत्तर प्रतिशत हिस्सा जल चुका है, ईश्वर से प्रार्थना कीजिए,शायद अब उसी की जरूरत है,होश आने का इन्तज़ार कीजिए....
और इतना कहकर डाक्टर चले गए और सबकी आंखें भर आईं,मिल के सभी कर्मचारी देवनन्दिनी के लिए प्रार्थना करने लगे,कुछ देर के इन्तज़ार के बाद नन्दिनी को होश आ गया____
सिस्टर ने फौरन डाक्टर को बुलाया, डाक्टर साहब आए और नन्दिनी को देखा___
बाहर आकर बोले___
आप में से केवल उनके परिवार के सदस्य और करीबी ही मिल सकते हैं,भीड़ इकट्ठी मत कीजिए....
कुछ देर में श्रीधर, कमलकान्त बाबू और राज, नन्दिनी के पास खड़े थे और राज बेतहाशा रोएं जा रही थी,मुंशी जी राज को अपने कांधे से लगाकर खड़े थे....
तभी नन्दिनी ने लरझते शब्दों में कुछ बोलने की कोशिश की,उसे बोलने में बहुत तकलीफ़ हो रही थी,वो बोली___
राज!
हां,दीदी! राज ने जवाब दिया।।
फिर नन्दिनी बोली...
मैंने उस ....दिन तुम्हारी.... तुम्हारी और सुलक्षणा...के बीच की बातें सुन लीं थीं और श्रीधर बाबू.... मुझे ये सच्चाई मालूम होती तो मैं ....आपसे कभी भी अपने ....मन की बात ना कहती,आप दोनों...मुझे माफ़ कर दो...
और इतना कहते ही नन्दिनी ने दम तोड़ दिया,राज ,नन्दिनी से लिपटकर फूट फूटकर रो पड़ी...
किसी के जाने से लोग जीवन जीना तो नहीं छोड़ देते इसलिए नन्दिनी के जाने के बाद सबका जीवन ऐसे ही चलने लगा,अब राज ने मिल की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी।।
फिर एक दिन श्रीधर ने राज से शादी के लिए पूछा....
राज ने श्रीधर से कहा....
श्रीधर बाबू! मेरी दीदी ने मेरे प्रेम के लिए अपना जीवन अर्पण कर दिया,तो क्या उनके लिए मैं अपना प्रेम अर्पण नहीं कर सकती,अगर मैने आपसे ब्याह कर लिया तो मेरी आत्मा मुझे जीवन भर कचोटती रहेगी कि जिस बहन ने अपना सबकुछ यहां तक की अपना जीवन मुझ पर अर्पण कर दिया, उसे मैं कभी कुछ ना दे सकीं, मैं इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती,मुझे लगता है कि वो मुझसे बड़ी थीं इसलिए आपके प्रेम पर उनका अधिकार पहले होना चाहिए था, इसलिए मैं उन पर अपना प्रेम अर्पण करती हूं, मैं जीवनभर ब्याह नहीं करूंगी,दीदी की तरह अपनी जिम्मेदारी निभाऊंगी,इतना कहकर राज चली गई।।
कुछ दिनों में राज को भी मिल के लोग खड़ूस मालकिन के नाम से पुकारने लगे,उसने अनाथाश्रम से एक बेटी को गोद ले लिया,अब वो उसकी ही देखभाल करती है और मिल सम्भालती है,श्रीधर का ब्याह सुलक्षणा ने एक भली लड़की से करवा दिया है और वो अब एक बच्चे का बाप भी बन गया है।।
इस तरह ये थी दो बहनों के अर्पण की कहानी।।

समाप्त...🙏🙏😊
सरोज वर्मा...