एक रिश्ता ऐसा भी (भाग ४)
अगले दिन नलिनी की तबियत ज्यादा खराब होने से अपने बेटे को स्कूल छोड़ आने के बाद वह उसे लेकर पास के ही एक प्राइवेट अस्पताल में चैकअप के लिए ले गया । संजोग बार बार उसके अतीत को उसके सामने लाकर खड़ा कर दे रहे थे । यहां रिशेप्सन डेस्क पर उत्तरा को पाकर वह ठिठक गया । वह समझ नहीं पा रहा था कि पिछले ८ वर्षों से इसी शहर में रहने के बावजूद कभी भी उत्तरा से उसकी मुलाकात नहीं हुई और अब अचानक ऐसा क्या हो गया जो उत्तरा बार बार उसके सामने आ रही है । अपने आप को संयत कर नलिनी का चैकअप करवा कर वह वहां से निकल गया । आज उत्तरा को फिर से देखकर उसके मन में खलबली मच गई । समय मिलते ही उसने अस्पताल के नम्बर पर फोन कर उत्तरा से एक बार बात कर लेने का मन बना लिया ।
‘हैल्लो, स्पर्श हॉस्पीटल । हाऊ मे आय हेल्प यू सर ?’ फोन लगाते ही सामने से सुनाई देता स्वर पहचानने में उसे क्षण भर की भी देर नहीं लगी ।
‘जी, क्या मैं उत्तरा जी से बात कर सकता हूं ?’ औपचारिकतावश उसने पूछा ।
‘मयंक ?’ उत्तरा ने भी उसकी आवाज पहचानने में भूल नहीं की ।
‘उत्तरा । मैं एक बार तुमसे मिलना चाहता हूं , प्लीज मना मत करना ।’ मयंक ने साफ साफ शब्दों में कहा ।
‘नहीं मयंक । हम दोनों ही अलग अलग राहों पर काफी दूर जा चुके है । अब जानबूझ कर न मिलने में ही हमारी भलाई है ।’
‘प्लीज, एक बार उत्तरा । जब संजोग यूं अचानक इतने वर्षों बाद हमें आमने सामने ला रहे है तो कुछ तो संकेत होगा इसके पीछे ।’ मयंक ने आग्रह किया ।
जवाब में उत्तरा चुप रही ।
‘सिर्फ एक बार । तुमसे मिलकर जब तक एक बार बात नहीं कर लेता मुझे चैन नहीं मिलेगा ।’
‘ठीक है । कल सुबह जब मैं पिन्की को स्कूल छोड़ने आऊंगी उसी वक्त मिल लेना ।’ उत्तरा जानती थी मयंक जब तक उसके मुंह से हां नहीं कहलवा लेगा तब तक फोन नहीं रखेगा ।
नलिनी अब पहले से बेहतर महसूस कर रही थी पर अगली सुबह नलिनी को आग्रहपूर्वक आराम करने की हिदायत देकर धैर्य को लेकर वह स्कूल की ओर निकल गया । उत्तरा स्कूल गेट के बाहर ही खड़ी थी । धैर्य को अन्दर छोड़ने के बाद उत्तरा के पास लाकर उसने अपनी बाइक खड़ी कर दी ।
कुछ देर दोनों ही एक दूसरें को चुपचाप देखते रहे फिर मयंक ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा – ‘मैं ८ साल से इसी शहर में हूं पर पहले कभी भी तुमसे मुलाकात नहीं हुई । शादी के बाद तो तुम दिल्ली चली गई थी न ?’
‘पिछले ६ महीने से यहीं हूं ।’कहते हुए उत्तरा के चेहरे पर एक उदासी छा गई ।
‘तुम यहां नौकरी कर रही हो । सबकुछ तो ठीक है न ?’ मयंक उत्तरा को लेकर अपने मन में चल रही सारी जिज्ञासाओं को खत्म कर देना चाहता था ।
‘तलाक हो जाने के बाद अपनी बेटी को लेकर इसी शहर में रह रही हूं ।’ उत्तरा ने कुछ भी छुपाना ठीक नहीं समझा ।
‘ये क्या कह रही हो उत्तरा तुम ? यह अब कैसे हो गया ?’ सच्चाई जानकार मयंक दुखी हो गया ।
‘मयंक, आते जाते लोग हमें ही देख रहे है । वैसे भी मुझे देर हो रही है । ९ बजे अस्पताल पहुंच जाना पड़ेगा।’ मयंक की बात सुनकर उत्तरा ने कुछ असहज होते हुए कहा और एक्टिवा लेकर वहां से चली गई ।
क्रमश: