एक रिश्ता ऐसा भी (भाग ३)
ऑफिस के अलावा दोनों का बाहर मिलना कम ही हो पाता था । उत्तरा रोज ठीक ६ बजे ऑफिस से निकल जाती पर मयंक अकाउन्ट डिपार्टमेन्ट में होने से अक्सर देर से ही निकल पाता । लंच टाइम में दोनों कभी कभी बाहर निकल जाते और अपने प्यार की नींव पर सजाएं जाने वाले भविष्य की बातें किया करते । उस दिन वे दोनों लंच लेकर उस रेस्टारेन्ट से बाहर निकल रहे थे तभी किसी काम से उस ओर आए उत्तरा के भाई की नजर उन दोनों पर पड़ी । किसी भी भाई के लिए उसकी बहन का किसी अनजान पुरुष के साथ यूं हाथों में हाथ डाले घूमते देखना असहनीय होता है । उस शाम उत्तरा के घर पर उसका मयंक के साथ प्रेम प्रकरण उजागर हो गया ।
उत्तरा रुढ़िवादी राजपूत परिवार से थी जबकि मयंक कुलीन ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखता था । उत्तरा के पिता अपने समाज के आगेवानों में से एक थे और पूरी जाति में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता था । अपनी बेटी का किसी अन्य जाति के लड़के के साथ सम्बन्ध उनकी प्रतिष्ठा पर प्रश्न चिन्ह था । वे किसी भी कीमत पर अपनी प्रतिष्ठा धूमिल नहीं होने देना चाहते थे इसी से उस दिन उन्होंने उत्तरा को उसके मयंक के साथ के सम्बन्ध का यहीं अंत ला देने के लिए समझाने की कोशिश की । जवाब में उत्तरा मौन ही रही । उसके मौन को उन्होंने उसकी सहमति मानकर बात को वहीं खत्म कर दिया ।
मात्र ८ महिनों में ही उनके प्रेम को जातिवाद का ग्रहण लग गया । उत्तरा का अब ऑफिस के बाहर मयंक से मिलना लगभग बंद ही हो गया । उस शाम मयंक ने ऑफिस से छूटने के बाद काफी आग्रह और मिन्नतें कर उत्तरा को बस स्टैंड तक अपने साथ चलने को मना लिया । बस स्टैंड उत्तरा के घर के रास्ते के बीच ही पड़ता था तो मयंक को वहां तक साथ देने में उसे वैसे कोई आपत्ति नहीं थी पर उसे डर था कि कहीं उसका भाई या भाई के दोस्त उसे मयंक के साथ देख न ले । मयंक ने सोचा था कि बस स्टैंड तक उत्तरा के साथ होने से वह उससे बात कर शादी के लिए मना लेगा पर उसके बात छेड़ने से पहले ही उत्तरा के भाई ने सामने से आकर दोनों को रोक लिया । अपने भाई को यूं अचानक बीच रास्ते में देख उत्तरा सहम गई । उसकी गुस्से से लाल हुई आंखों से इशारा पाकर उत्तरा मयंक को वहां अकेला छोड़कर आगे निकल गई । उसने मयंक की कॉलर पकड़कर उसे सख्त शब्दों में उत्तरा से फिर कभी न मिलने की हिदायत देकर छोड़ दिया ।
इस घटना के बाद मयंक फिर कभी उत्तरा से नहीं मिल पाया । अगले ही दिन से उत्तरा का ऑफिस आना बंद हो गया । उत्तरा किसी न किसी तरीके से पत्र के द्वारा मयंक को अपनी प्रेम भरी संवेदनाएं पहुंचाती रही । उसके प्रेम भरे पत्र धीरे धीरे उसकी बेबसी को व्यक्त करने लगे और उसके लिखे इस पत्र के साथ ही उनकी प्रेम कहानी पर विराम लग गया ।
तभी बैडरूम से कुछ आहट उसके कानों में पड़ते ही उसने उस पत्र को वापस फाइल में रख दिया ।
क्रमश: