PUSTAKON KI DUNIYA in Hindi Motivational Stories by Anand M Mishra books and stories PDF | पुस्तकों की दुनिया

Featured Books
Categories
Share

पुस्तकों की दुनिया

पुस्तकों का संसार! आज के डिजिटल युग से बिल्कुल अलग! पुस्तकें इतिहास, साहित्य, विज्ञान और सभ्यता की संवाहक हैं। दुनिया में परिवर्तन के इंजन हैं। दुनिया को देखने की खिड़कियां हैं। समय के समुद्र में बने प्रकाशस्तंभ हैं। ये हमारे सबसे अच्छे मित्र, शिक्षक हैं। जैसे ही हम उन्हें खोलते हैं तो तुरंत दूसरी दुनिया में चले जाते हैं। एक तरह से पुस्तक जादू का काम करती है।

वास्तव में पुस्तकों की दुनिया ही निराली हैं। जो एक बार पुस्तकों की निराली दुनिया में डूब गया वो शायद ही उससे निकलना चाहे। अच्छी पुस्तकों के द्वारा हमारे अंदर छुपे रचनात्मक पहलू को नयी दिशा मिलती हैं। हालाँकि, आजकल डिजिटल युग में, लोग पढ़ने की अपेक्षा अपना ज्यादा समय ऑनलाइन गेम्स और इंटरनेट की आभासी दुनिया में व्यतीत करना पसंद करते हैं। ये आज के समय में अत्यंत चिंता का विषय हैं क्योंकि अच्छी पुस्तकों में छिपे हुए ज्ञान को जो व्यक्ति आत्मसात कर लेता हैं वो जीवन में पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखता है।

अच्छी पुस्तकें जीवन्त देव-प्रतिमाएँ हैं। उनकी आराधना से तत्काल प्रकाश और उल्लास मिलता है। सबसे अच्छी बात यह है कि जब मनुष्य विशेष रूप से प्रतिभाशाली या प्रतिभाशाली, प्राचीन काल से लेकर इतनी दूर तक किताबों में शब्दों के माध्यम से सीधे बात करते हैं। पौराणिक काल के श्रीराम-श्रीकृष्ण या जरासंध-कंस या पश्चिमी सभ्यता के जूलियस सीजर से लेकर अल्बर्ट आइंस्टीन या न्यूटन तक कोई भी हो सकता है।

जरा सोचिए कि कितना आनंद सोचकर मिलता है। हमलोग पुस्तकों की पूजा वर्ष के एक दिन सरस्वती पूजा के दिन करते थे। उस दिन पुस्तकों को आराम देते थे। वैसे दुर्गापूजा के अष्टमी के दिन भी पुस्तकों को ‘जगाने’ का कार्य घर में नानी-दादी-चाची-मामी किया करती थी।

यदि ईमानदारी से बात कहूं तो जीवन के बढ़ते हुए वर्षों में ज्यादातर कहानी की श्रृंखला वाली पुस्तकें पढने का जुनून था। पत्रिकाओं, लेखों, समाचार पत्रों के अलावा इतिहास और सभ्यता पर किताबों पर एक सामान्य पठन का कार्य कितना अच्छा लगता था। ऐसा लगता है कि नौकरी से पहले, हम वास्तव में किताबें पढ़ते हैं, भले ही उधार या मांग कर ली गई हो।

नौकरी के बाद, हम किताबें खरीदते हैं और यह दिखाने के लिए शेल्फ में जमा करते हैं कि हमें पढ़ने की आदत है और हम बुद्धिजीवी हैं। लेकिन इसका इसका आधा हिस्सा भी नहीं छूते हैं। कुछ किताबें चखने के लिए होती हैं, कुछ निगलने के लिए, और कुछ चबाने और पचाने के लिए; अर्थात्, कुछ पुस्तकें केवल भागों में पढ़ने के लिए हैं; दूसरों को पढ़ने के लिए, लेकिन उत्सुकता से नहीं; और कुछ को पूरी तरह और परिश्रम और ध्यान के साथ पढने के लिए रखना है।

मानव जाति ने अब तक लगभग जितनी समस्याओं का सामना किया है, उनके समाधान पुस्तकों में उपलब्ध हैं। एक किताब लिखने में बहुत ज्ञान और मेहनत लगती है। कई किताबें पढ़ने के साथ-साथ अपनी किताब लिखने के अपने व्यक्तिगत अनुभव के साथ साझा कर सकता हूं। हमारे देश के पौराणिक गर्न्थों ने हमें विश्वगुरु बनाया। हमने अपने ग्रंथों की इज्जत नहीं की। इसकी परिणति हमारे गुलाम बनने से हुई। अंग्रेजों ने हमारे प्राचीन इतिहास में बहुत छेड़छाड़ किया है। इस प्रश्न को कोई नहीं पूछता। अंग्रेजो ने बिना तर्क के हमारे देश के लिए संदिग्ध दुनिया बना दी। हमारे देश के ऊपर संदेह किया।

अंत में हम इतना ही कह सकते हैं कि कौन-सी सभ्यता कितनी पढ़ी-लिखी है वह उस गाँव में स्थापित पुस्तकालय पर निर्भर करती है। आप सभी पूरी तरह से इस बात पर सहमत होंगे। हमारे अपने पैतृक गाँव में एक पुस्तकालय नहीं है। जबकि वहां के जन काफी पढ़े-लिखे हैं। नाटक करेंगे। दुर्गापूजा में पूजा करेंगे। काली पूजा करेंगे। सभी पर्व मनाएंगे। लेकिन पुस्तकालय की बात नहीं करेंगे। क्यों नहीं हम अपने गाँव में एक पुस्तकालय खोलें? जिसमे रामायण, महाभारत, गीता, गांधी, फुले, पेरियार, अम्बेडकर, लोहिया, स्वतंत्रता संग्राम आदि पर पुस्तकें हिंदी / अंग्रेजी में उपलब्ध हों।