Haunted House - 3 in Hindi Horror Stories by suraj sharma books and stories PDF | घर का डर - ३

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घर का डर - ३

"क्या बकवास करते हो ? मैने ये कब कहा तुमसे ..?

रसोइया खून जमा देने वाली हँसी के साथ एक अलग ही आवाज़ में बोला,

"चुपचाप घर पर खाना देकर आजायेगा, वरना आपके पिताजी भी सरपंच थे गांव के पर खुदको बचा वो भी नहीं पाए

रसोइए ने एक इतनी बड़ी बात खड़ी थी जो नन्दन सोच नही पाया था.. उसने जब पूछा की वो कहना क्या चाहता है ?

तो रसोइए ने उसी मुस्कान के साथ कहा

" आपके पिताजी भी एक दिन खाना ले जाना भूल गए थे इसलिए तो ये हाल हुआ.. आप मत भूलिएगा और अब जाइए देर हो रही है

नन्दन ने कुछ कहा ही नहीं बस चुपचाप टिफिन उठाया और बाहर निकल गया !!

रास्ते में नंदन के दिमाग में एक तरकीब आयी क्या जरूरत थी इतना घबराने की ट्रेन नही तो क्या हुआ सीधा जीप पकड़ कर के पास के गांव के बस अड्डे से दूसरी गांव की बस पकड़ कर के भी वो शहर जा ही सकता था ..

नंदन ने वैसा ही किया, जाकर सीधे जीप स्टैंड के पास एक जीप में बैठ गया और चुपचाप इंतजार करने लगा की कब जीप निकलेगी ड्राइवर ने भी कुछ देर इंतजार किया सवारियां का लेकिन रात के वक्त गांव में कहा सवारियां मिलेगी !! उसने गाड़ी शुरू आकर दी

तकरीबन एक घंटे से ज्यादा लगना था बस स्टैंड आने को तो नन्दन गाड़ी में ही सो गया

जीप चलती रही और काफी देर के बाद नींद में नन्दन ने जीप वाले की आवाज सुनी तो उसक नींद खुली

"येलो बाबूसाहेब”, "जाइए खाना दे आइए और भविष्य में फिर कभी भागने की कोशिश मत कीजिएगा"

नन्दन ने आंखे खोलकर चारों ओर एक निगाह दौड़ायी तो उसे लगा जैसे उसके सिर पर बालों के बीच सांप रेंग रहे थे.. नन्दन ना सिर्फ अभी भी अपने गांव में ही था बल्कि उसी मकान के सामने था !! वही किशन और शबाना के मकान के सामने ।।

जैसे हिम्मत हार ही गया अपनी बस वो चुपचाप अन्दर गया और किसी बच्चे की तरह अन्दर खाना देकर अपने गहर आ गया..

आगे नन्दन के लिए ये दिक्कत बढ़ता जा रहा था वो रोज़ रात को जाता और खाना देकर आता सुकून सिर्फ इतना था की गाँव में किसी की भी जान नही जा रही इसका मतलब ये ही था की जब तक खाना पहुंचाया जायेगा तब तक कोई दिक्कत नही थी लेकिन अगर खाना एक दिन भी ना पहुंचाया तो मौत पक्की थी..

नंदन काफी दिनों तक चुपचाप अच्छी तरह सारी बातों को मानता रहा लेकिन एक रात उसने ठान ली की बहुत हुआ अब और नही वो सीधा भागा जिप पकड़ने, छुपके जिप में बैठा रहा की कही कोई फिर पहचान ना ले ..जिप चली तो किसी तरह छुपते छुपाते नंदन पहोचा और अब बस की ओर लपक के दौड़ा..

बस चल चुकी थी लेकिन पीछे पीछे किसी को अन्देरे में ऐसे दौड़ते देखे बस रुकी और कंडक्टर ने दरवाज़ा खोला ही था नन्दन को बिठा ने के लिए.. जब नन्दन की शक्ल कंडक्टर ने ध्यान से देखी और उसे पहचान ते ही नन्दन के मुह पर दरवाज़ा बंद कर दिया और बस आगे चलवा दी !!

नंदन भागता रहा बस के पीछे लेकिन बस रुकी नहीं

तभी बस के खिड़की से अपना मुह बाहर निकलते हुए कंडक्टर कहने लगा,

"भागने की कोशिश मत करो नन्दन बाबु, इस कड़ी को तोड ना पाओगे तुम..