Mout Ka Khel - 16 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | मौत का खेल - भाग-16

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

Categories
Share

मौत का खेल - भाग-16

लाश का डीएनए


इंस्पेक्टर सोहराब लाश को बड़े ध्यान से देख रहा था। लाश के चेहरे की हालत देख कर उसने यह अंदाजा तो लगा ही लिया था कि चेहरे पर तेजाब अभी नहीं डाला गया है। उसने लाश घर के इंचार्ज को तलब कर लिया। सोहराब ने उससे लाश की डिटेल बताने को कहा। इंचार्ज ने पहले लाश को देखा उस के बाद उसकी डिटेल निकालने लगा।

उसने बताया कि लाश आज ही पुलिस यहां लेकर आई है। लाश जंगलाती इलाके में लावारिस हालत में मिली थी। लाश की शिनाख्त मिटाने के लिए चेहरे पर तेजाब डाल दिया गया था। इंचार्ज की एक बात ने सोहराब को बुरी तरह से चौंका दिया। उसने बताया कि इस लाश की यह ड्रार नहीं है। इस नंबर में एक बच्चे की लाश रखी हुई थी।

उसकी बात से सोहराब सोच में पड़ गया। अहम सवाल यह था कि ऐसा क्यों किया गया? क्या किसी को उसके यहां आने की भनक पहले लग गई थी? लेकिन कैसे? वह यहां आने वाला है, इस बारे में उसे और सलीम के अलावा किसी तीसरे को नहीं मालूम था। फिर वह कौन है? क्या उस महिला ने लाश को बदल दिया?

सोहराब ने लाश का एक बाल तोड़ कर रुमाल में लपेट कर रख लिया। इसके बाद उसने ड्रार को बंद कर दिया। सोहराब अभी भी उसी ड्रार के पास ही खड़ा था। उसने कोतवाली इंचार्ज मनीष को फोन मिलाया और तुरंत ही दो सिपाहियों की 24 घंटे के लिए लाश घर पर ड्यूटी लगाने के लिए कहा। उसने यह भी ताकीद कर दी कि बिना उसके संज्ञान में लाए कोई भी लाश बाहर न ले जाई जाए। न ही बिना पुलिस की मौजूदगी के कोई अंदर ही जा सकता है। मनीष अभी भी आसपास के फार्म हाउस पर सर्च आपरेशन चला रहा था।

इंस्पेक्टर सोहराब ने लाश घर इंचार्ज से पूछा, “इस हाल में कितने दरवाजे हैं?”

“दो दरवाजे हैं सर!” लाश इंचार्ज ने जवाब दिया।

“दूसरे दरवाजे को अंदर से बंद कर दीजिए और बाहर से भी उसमें ताला डाल दीजिए। यहां कुछ देर में दो सिपाही पहुंच जाएंगे। वह चाबी उनके पास रहेगी। इंट्री सिर्फ सदर दरवाजे से होगी।”

इंचार्ज ने दूसरे दरवाजे को अंदर से बंद कर दिया। वह ताले का इंतजाम करने की बात कह कर वहां से चला गया। सोहराब लाश घर से बाहर आ गया। बाहर आकर उसने दस्ताने उतार कर डस्टबिन के हवाले कर दिए। उसने जेब से सिगार निकाली और उसे सुलगा कर कश लेने लगा।

कुछ देर बाद दो पुलिस कांस्टेबल वहां पहुंच गए। उन्होंने सोहराब को सैल्यूट मारा। सोहराब ने उन्हें पूरी बात समझाने के बाद कहा, “इस मामले में किसी भी तरह की कोताही नहीं होनी चाहिए। जब तक आपकी जगह लेने के लिए दूसरे सिपाही यहां न आ जाएं। आप में से कोई भी यहां से हिलेगा भी नहीं। बाकी बातें आपको इंस्पेक्टर मनीष ने समझा दी होंगी।”

“यस सर!” दोनों ने एक साथ कहा।

लाश घर इंचार्ज ताले की दोनों चाबी लेकर पहुंच गया। उसने दोनों चाबियां सिपाहियों के सुपुर्द कर दीं। यह सारी कार्रवाई मुकम्मल होने के बाद इंस्पेक्टर सोहराब वहां से निकल आया। सोहराब ने पोस्टमार्टम हाउस का रुख किया। वहां रखी लाशें भी उसने चेक कीं। वहां उसे तीन लाश मिलीं। इनमें एक महिला की थी और दो एक्सीडेंटल थीं। मरने वाले दोनों एक ही परिवार के सदस्य थे।

इंस्पेक्टर सोहराब फैंटम पर सवार हो कर खुफिया विभाग की तरफ चल दिया। उसकी कार की रफ्तार 80 के आसपास थी, लेकिन कार से तेज उसका दिमाग चल रहा था। सोहराब की अब तक की तफ्तीश और एनालिसिस कहती थी कि डॉ. वीरानी को बाकायदा तौर पर कत्ल किया गया था। इस मामले में उसके सामने तीन बड़े सवाल थे। पहला कत्ल का मकसद क्या था? दूसरा कातिल कौन है? तीसरा लाश कहां गायब हो गई है? दूसरे सवाल के साथ एक अहम सवाल और जुड़ा हुआ था कि यह सिर्फ एक आदमी का काम था, या इसमें कई लोग शामिल थे? और क्या ‘मौत का खेल’ जानबूझ कर खेला गया था?

लाश के गायब होने के बारे में इतना तो तय था कि कातिल ने सबूत मिटाने के लिए ही लाश को गायब कर दिया है। यह सोहराब के लिए भी एक बड़ा मसला बन गया था। जब तक किसी की लाश न बरामद हो जाए, कानूनन उसे मरा हुआ घोषित नहीं किया जा सकता है। दूसरे, लाश न मिलने की सूरत में तफ्तीश भी अधूरी ही थी। आखिर लाश बिना यह कैसे साबित किया जा सकता है कि उस शख्स का कत्ल किया जा चुका है?

खुफिया विभाग के गेट पर पहुंचने के बाद वह फैंटम से उतर आया। उसने अपनी आंखों की रेटिना को स्कैन कराया। बायोमेट्रिक्स पर उंगलियों की छाप देने के बाद आटोमेटिक गेट खुल गया। उसने कार की स्टेयरिंग संभाली और सीधे लैब की तरफ बढ़ गया। लैब पहुंच कर उसने जेब से रुमाल निकाल कर लैब इंचार्ज को देते हुए कहा, “इसमें एक बाल है। उसका डीएनए टेस्ट किया जाना है। जितनी जल्दी हो सके रिपोर्ट मेल पर भेज देना।”

इसके बाद सोहराब अपने ऑफिस की बिल्डिंग की तरफ चला गया। वहां पहुंच कर उसने फैंटम को पार्किंग लॉट में पार्क किया और कार से नीचे उतर आया। बाहर निकल कर उसने दो-तीन गहरी-गहरी सांसें लीं। खुफिया विभाग में हर तरफ पेड़ ही पेड़ थे। बल्कि एक छोटा-मोटा जंगल ही आबाद था। यहां की आबो-हवा सोहराब को बहुत पंसद थी। वहां यहां आकर हमेशा तरोताजा महसूस करता था।

वह सीधे अपने ऑफिस की तरफ चला गया। वहां पहुंच कर उसने ऑटोमेटिक अलमारी को खोलने के लिए पहले कोड डाला उसके बाद फिंगर लगाई। इसके बाद अलमारी खुल गई। डॉ. वरुण वीरानी की फाइल निकालने के बाद उसने अलमारी को फिर से लॉक कर दिया। इसके बाद ऑफिस से बाहर आ कर पार्किंग की तरफ बढ़ गया। वहां पहुंच कर उसने फैंटम की स्टेयरिंग संभाली और सीधे गुलमोहर विला की तरफ रवाना हो गया।

रास्ते में उसने कार को एक तरफ लगा दिया और कोतवाली इंचार्ज मनीष को फोन मिलाया। उधर से फोन रिसीव होते ही इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा, “छापे की कार्रवाई पूरी करने के बाद सीधे कोठी पर आ जाना वहीं मिलूंगा।”

सोहराब ने फोन काट दिया और फिर से कार स्टॉर्ट करके कोठी की तरफ चल दिया। कार की रफ्तार अभी भी तेज थी।


कोठी पर लाश


इंस्पेक्टर कुमार सोहराब जब कोठी पर पहुंचा तो शाम ढल चुकी थी, लेकिन अभी अंधेरा नहीं फैला था। वह यह देख कर चौंक गया कि लॉन में एक लाश पड़ी हुई थी। उसे एक सफेद चादर भी ओढ़ाई गई थी। उसने लॉन के पास ही फैंटम को रोक दिया और कार से नीचे उतर आया। अचानक उसके कानों में हंसी की आवाज आई। उसने आवाज का पीछा किया तो देखा कि नौकर कोठी के दरवाजे पर खड़े हंस रहे थे।

सोहराब को माजरा समझते देर न लगी। उसने पास में रखे हजारा को उठाया और उसका सारा पानी उस लाश पर उंडेल दिया। हजारा पौधों में पानी डालने वाले बर्तन को कहते हैं। पानी पड़ते ही लाश से ‘हाय मार डाला’ की आवाज आई और वह उठ कर बैठ गई। यह सार्जेंट सलीम था।

“यह क्या बेहूदगी है?” सोहराब ने डपटते हुए कहा।

“लाश की गिनती करते-करते लाश बन गया हूं।” सलीम ने बड़ी मासूमियत से कहा।

“तुम्हारी यह हरकतें मुझे जरा भी पसंद नहीं हैं।” इंस्पेक्टर सोहराब ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा।

“हाय बड़ी सर्दी है.... मर गया...। अबे झाना जल्दी से कॉफी लाना।” सलीम ने कहा और फिर चादर लेकर तेजी से अपने रूम की तरफ भाग गया। वहां पहुंच कर भीगे कपड़े बदले। उसके बाद सीटी बजाता हुआ आ कर ड्राइंग रूम में बैठ गया। सोहराब वहां पहले से ही मौजूद था।

“रिपोर्ट।” सोहराब ने उसके बैठते ही कहा।

सलीम ने दिन भर की सारी रूदाद उसे बता दी। सोहराब उसकी बातें ध्यान से सुनता रहा। उसके बाद उसने कहा, “कोई ऐसी बात जो खास तौर से काबिले जिक्र हो।”

“यह दुनिया मिथ्या है बॉस! आज श्मशान घाट जा कर यही ज्ञान प्राप्त किया है। सब मोह माया है। मैं तो यह केस सॉल्व करने के बाद हिमालय की तरफ निकल जाऊंगा। आपको भी चलना हो तो बताइएगा। आपके लिए भी एक गेरुआ चोला बनवा लूंगा।” सलीम ने पूरी गंभीरता से कहा।

“श्मशान और कब्रिस्तान जाते रहा करो। हो सकता है तुम्हें हिमालय जाने बिना ही ज्ञान की प्राप्ति हो जाए।” सोहराब ने सिगार सुलगाते हुए कहा।

सलीम ने भी जेब से पाइप निकाला और पाउच से उसमें वान गॉग तंबाकू भरने लगा। कुछ देर बाद उसने कहा, “आप के हाथ कोई बटेर लगी।”

“एक तीतरी हाथ से निकल गई।” सोहराब ने जवाब दिया।

“मतलब?” सलीम ने पूछा।

जवाब में सोहराब ने उसे पूरी बात बता दी।

झाना कॉफी लेकर आ गया। सलीम ने पहले सोहराब के लिए ब्लैक कॉफी बनाई उसके बाद अपने लिए दूसरी कॉफी बना कर उसमें दूध मिलाने लगा। तभी कोतवाली इंचार्ज मनीष वहां आ गया। सलीम ने अपनी कॉफी मग मनीष को पकड़ा दिया। उसके बाद वह अपने लिए अलग कॉफी बनाने लगा।

“क्या निकला सर्चिंग में।” इंस्पेक्टर सोहराब ने मनीष से पूछा।

“आपका अंदाजा सही था।” मनीष ने कॉफी का सिप लेते हुए कहा।


*** * ***


डीएनए रिपोर्ट में क्या निकला?
कोतवाली इंचार्ज मनीष को सर्च आपरेशन में क्या जानकारी मिली।?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...