मेजर विश्वजीत की पार्टी में खलल पड़ गया था। उसका मूड बुरी तरह से ऑफ था। राजेश शरबतिया उसे शांत करने की कोशिश कर रहा था। उसने मेजर विश्वजीत को गले से लगा रखा था और धीरे-धीरे उस की पीठ थपथपा रहा था। इस थैरेपी ने अपना असर दिखाया और मेजर विश्वजीत कुछ देर में ही शांत हो गया। विश्वजीत ने पार्टी खत्म करने का एलान कर दिया। नतीजे मे धीरे-धीरे लोग चले गए। उस हाल में सिर्फ मेजर विश्वजीत, रायना और राजेश शरबतिया ही बच गए थे।
शरबतिया ने आगे बढ़ कर उलटे पड़े पुतले को सीधा कर दिया। उसका चेहरा देखते ही तीनों ही बुरी तरह से चौंक गए। मेजर विश्वजीत एक बार फिर गुस्से से भर गया। उसने लगभग चीखते हुए कहा, “यह जिसने भी किया है... मैं उसे गोली मार दूंगा।”
दरअसल पुतले के चेहरे की जगह डॉ. वरुण वीरानी का फोटो लगा हुआ था। फोटो देख कर तीनों ही लोगों पर अलग-अलग असर हुआ था। मेजर विश्वजीत जहां गुस्से से भर गया था। वहीं राजेश शरबतिया का चेहरा सफेद पड़ गया था। वहीं रायना भी कुछ परेशान नजर आ रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे रियेक्ट करे।
“इस सब का आखिर क्या मतलब है... कोई मुझे समझाएगा।” मेजर विश्वजीत फिर दहाड़ा।
राजेश शरबतिया ने उस के हाथ को अपने दोनों हाथों से थाम लिया और उस से शांत रहने के लिए कहने लगा।
मेजर विश्वजीत ने सभी नौकरों को तलब कर लिया। सभी एक लाइन से लग कर खड़े हो गए। वह सभी काफी डरे-सहमे हुए थे। मेजर विश्वजीत ने उनसे कड़क आवाज में पूछा, “यह पुतला यहां कैसे आया?”
किसी भी नौकर ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया। सभी गर्दन नीचे झुकाए खड़े थे।
“बोलते क्यों नहीं हरामजादों! मैं चमड़ी उधेड़ दूंगा।” मेजर विश्वजीत गुर्राया।
अचानक एक बूढ़ा नौकर डर से बेहोश हो कर गिर पड़ा। किसी नौकर में इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वह उसे उठाता या उसका हाल पूछता। तभी रायना ने मोर्चा संभाल लिया।
“रिलैक्स मेजर रिलैक्स... रुकिए मैं देखती हूं।” रायना ने जमीन पर गिरे बूढ़े की तरफ देखते हुए नौकरों से कहा, “आप लोग बाबा को ले जाइए।”
बाकी नौकर तेजी से बुजुर्ग नौकर को लेकर भाग खड़े हुए। जैसे उन्हें रायना ने जीवनदान दे दिया हो। नौकरों के जाने के बाद रायना ने पुतले का जायजा लिया। उसके सर पर एक छोटा सा हुक लगा हुआ था। उसमें एक पतली सी डोरी फंसी हुई थी। वह डोरी को पकड़े हुए आगे बढ़ने लगी। उस डोरी का एक सिरा एक तीर के पिछले हिस्से में बंधा हुआ था। एक तीर लकड़ी की दीवार में फंसा हुआ था। रायना ने दूसरा सिरा तलाशा तो वह नहीं मिला। अचानक उसकी निगाह रोशनदान की तरफ उठ गई। बात उसकी समझ में आ गई थी।
उसने मेजर विश्वजीत को समझाते हुए कहा, “ऊपर रोशनदान से पहले यह तीर डोरी बांध कर दीवार पर फेंका गया। उसके बाद उसी डोरी में पुतला बांध कर स्टेज पर सरका दिया गया। चूंकि उस वक्त सभी डांस में मसरूफ थे और म्यूजिक भी काफी लाउड था, तो किसी को कोई आवाज भी नहीं सुनाई दी। सभी ने बस पुतला गिरते हुए ही देखा।”
उसकी बात सुनने के बाद मेजर विश्वजीत ने कहा, “लेकिन यह किसकी हरकत हो सकती है और फिर डॉ. वीरानी का पुतला फेंकने का मतलब क्या हो सकता है?”
“मेजर पहले छत चेक कराओ! जहां से यह पुतला नीचे फेंका गया है!” राजेश शरबतिया ने रोशनदान की तरफ देखते हुए कहा।
“मैं ही देखता हूं। नौकर तो सब डफर हैं।” मेजर विश्वजीत ने कहा और वह आगे बढ़ गया। उसके पीछे शरबतिया और रायना भी थे। मेजर विश्वजीत बड़ी फुर्ती से सीढ़ियां चढ़ता हुआ चला जा रहा था। उसने सीढ़ी का दरवाजा खोल दिया और तीनों छत पर पहुंच गए।
विश्वजीत ने अपने मोबाइल की लाइट आन कर ली थी। वह जब रोशनदान के करीब पहुंचे तो वहां उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि पुतला वहीं से फेंका गया था। अहम बात यह भी थी कि पुतला वहीं बैठ कर बनाया गया था। वहां कुछ कपड़े और कागज के टुकड़े बिखरे हुए पड़े थे। बाकी बची डोर भी उन्हें नजर आ गई।
“आखिर वह छत पर पहुंचा कैसे?” मेजर विश्वजीत ने गंभीर आवाज में पूछा।
“उस जामुन के पेड़ से।” रायना ने एक पेड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा।
जामुन का वह पेड़ विश्वजीत की कोठी के कैंपस के बाहर था, लेकिन उसकी एक डाल अंदर तक चली आई थी।
विश्वजीत सभी को लेकर नीचे उतर आया। नीचे पहुंचते ही उसने फोन करके सिक्योरिटी को तलब कर लिया।
सिक्योरिटी के लोग जब अंदर पहुंचे तो एक अजीब बात हुई। उनके साथ मेजर विश्वजीत का व्यवहार एकदम बदला हुआ था। उसने उन्हें समझाते हुए कहा, “कोई छत पर पहुंच गया था और उसने पार्टी में खलल डालने की कोशिश की। आप लोग मुस्तैदी से काम कीजिए, और हां! बाहर के जामुन की जो डाल अंदर आती है, उसे कल सुबह कटवा दीजिएगा।”
‘यस सर’ कहते हुए सिक्योरिटी गार्ड वापस चले गए।
उनके जाने के बाद शरबतिया ने कहा, “तीन बजने वाले हैं। मेरे ख्याल से अब विदा ली जाए।”
“गुडनाइट।” मेजर विश्वजीत ने सर्द लहजे में कहा।
राजेश ने घूम कर रायना की तरफ देखा। जैसे पूछना चाहता हो कि तुम्हारा क्या इरादा है।
उसकी निगाहों को मेजर विश्वजीत ने पढ़ लिया था। उसने तुंरत जवाब दिया, “रायना यहीं रुकेगी।”
सार्जेंट सलीम घोस्ट ले कर निकल पड़ा। उसके जिम्मे एक काम और था। उसे शरबतिया हाउस से मिले खून के सैंपल को लैब में भी देना था। उसने घोस्ट का रुख खुफिया विभाग की तरफ कर दिया। गेट पर पहुंच कर उसने आंखों की रेटिना और उंगलियों की छाप का मिलान कराया। उसके बाद आटोमेटिक गेट खुल गया।
खुफिया विभाग शहर से बाहर एक बड़े से अहाते में फैला हुआ था। यहीं सोहराब और सार्जेंट सलीम का दफ्तर भी था। अहाते के एक हिस्से में लैब बनी हुई थी। सार्जेंट सलीम ने लैब में खून का सैंपल जमा किया और घोस्ट को वापस मोड़ दिया।
वह खुफिया विभाग के अहाते से बाहर निकल आया। अब उसकी कार का रुख सिटी श्मशान घाट की तरफ था। उसकी कार की रफ्तार बहुत तेज थी। कुछ देर में ही वह सिटी श्मशान घाट पहुंच गया। उसने कार को एक किनारे पार्क किया और उससे नीचे उतर आया।
अंदर पहुंच कर वह सिहर उठा। कुछ लाशें जल रही थीं। कहीं-कहीं से विलाप की आवाज आ रही थी। उसने देखा एक लाश के पास कुछ बच्चे बुरी तरह से रो रहे थे। यह सारा मंजर देख कर सार्जेंट सलीम का दिल दुख से भर गया। उसने एक ठंडी आह भरी और धीरे से बुदबुदाया, “आज समझ में आ गया कि एक राजकुमार क्यों राजपाठ छोड़ कर गौतम बुद्ध बन गया था!”
वह भारी कदमों से श्मशान घाट के मैनेजर के दफ्तर की तरफ चल दिया। वहां पहुंच कर उसने मैनेजर की तरफ अपना विजिटिंग कार्ड बढ़ा दिया। मैनेजर विजिटिंग कार्ड पढ़ते ही उठ कर खड़ा हो गया। सलीम ने उससे बैठने के लिए कहा। उसने मैनेजर से आज दिन भर यहां अंतिम संस्कार के लिए लाई गईं लाशों का ब्योरा देने के लिए कहा। मैनेजर ने रजिस्टर उसके सामने रख दिया। सलीम ने मोबाइल से रजिस्टर के पेज को स्कैन किया और वहां से निकल आया।
आज सिर्फ सात लाशों का अंतिम संस्कार हुआ था। इनमें सिर्फ तीन लाशें पुरुषों की थीं। बाकी चार महिलाओं की थीं। सलीम वापस आ कर घोस्ट में बैठ गया। उसने रजिस्टर में दर्ज कराए गए एक नंबर पर कॉल मिलाया। उधर से हैलो की आवाज सुनने के बाद उसने आवाज को थोड़ा बारीक बनाते हुए कहा, “मैं म्यूनिस्पल कॉरपोरेशन से बोल रहा हूं। डेथ सर्टिफिकेट बनाना है। डिटेल बताइए।”
उधर से बताई गई डिटेल को वह ध्यान से सुनता रहा। उधर से बताया गया था कि मरने वाला सत्तर साल का एक बूढ़ा था। वह काफी दिनों से बीमार था। सार्जेंट सलीम ने डायरी में डिटेल नोट कर ली। उसके बाद उसने बाकी दोनों नंबरों पर भी इसी तरह से म्यूनिस्पल कॉरपोरेशन का बाबू बन कर फोन मिलाया। वहां से जो भी डिटेल मिली उसने नोट कर लीं। उनमें कोई भी लाश उम्र और ओहदे के लिहाज से डॉ. वरुण वीरानी से नहीं मिलती थी।
सलीम वहां से चल दिया। इसके बाद उसका रुख एक दूसरे श्मशान घाट की तरफ था। वहां से डिटेल लेने के बाद उसने बाकी बचे सारे श्मशान घाट से सारी जानकारी जमा कर लीं। उनके परिवार वालों को फोन करके तस्दीक भी कर ली।
इंस्पेक्टर कुमार सोहराब ने एक महिला को तेजी से बाहर निकलते हुए देखा, इसके बावजूद सोहराब ने उसकी एक झलक देख ली थी। सोहराब ने उस महिला को पहचान भी लिया था। यह वही महिला थी, जो शरबतिया हाउस में पार्टी के दौरान सोहराब के कमरे में आकर सो गई थी। इंस्पेक्टर सोहराब तेजी से महिला के पीछे लपका, लेकिन वह दूसरे दरवाजे से निकल कर जाने कहां गुम हो गई थी।
सोहराब वापस लाश घर में लौट आया था। वह जायजा लेने लगा कि आखिर वह महिला कहां छुप गई थी, जिससे उसकी निगाह महिला पर नहीं पड़ सकी। महिला के देखे जाने के बाद सोहराब शुबहे में पड़ गया था। वह वहीं रुक गया। उसने फैसला लिया कि वह लाश घर में रखी सारी लाशों को ही चेक करेगा।
सोहराब एक-एक ड्रार खींचता और उसमें रखी लाश के चेहरे से सफेद कपड़ा हटा कर देखता। उसके बाद वह फिर से कपड़े से चेहरे को ढक देता। यह काफी मुश्किल और टाइम टेकिंग काम था, लेकिन इसे करना ही था। इसमें उसे काफी वक्त लग गया। अभी चार ड्रार और बचे हुए थे। उनमें से तीन ड्रार खाली निकले। उसने आखिरी ड्रार खोला और जब उसने चेहरे पर से सफेद चादर हटाई तो वह बुरी तरह से चौंक पड़ा। उस लाश का चेहरा तेजाब से बुरी तरह से बिगड़ा हुआ था।
आखिर लाश का चेहरा किसने बिगड़ा था?
डॉ. वीरानी का पुतला किसने फेंका था?
इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...