drizzle fall sawan in Hindi Short Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | रिमझिम गिरे सावन

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रिमझिम गिरे सावन


झुलसा देने वाली गर्मी के बाद आज बादल सुबह से ही अपने पूरे शबाब में झूम झूमकर बरस रहे थे। मानो लोगों की दुआओं को पूरी करने में वो भी कोई कोर कसर बाकी ना रखना चाह रहे हो। रंग बिरंगे रेनकोट और छतरियों में इधर-उधर जाते लोग कितने सुंदर लग रहे थे। बारिश की शुरुआत थी इसलिए सभी बिना नाक भौंह सिकोड़े इसका लुत्फ उठा रहे थे।
सबसे ज्यादा जो बारिश का मजा ले रहे थे। वो थे बच्चे! कितनी देर से सभी नहाने के साथ-साथ खेलने में लगे थे।

अब तक गर्मी में जहां सभी लोग हल्का खाना खाकर गुजारा कर रहे थे। वही बरसात शुरू होते ही आज सुबह से ही पूरी बिल्डिंग में अलग-अलग पकवानों की सुगंध फैली हुई थी।
एक तरफ पकवानों की सुगंध तो दूसरी तरफ बारिश में उठने वाली मिट्टी की सोंधी महक!
"अरे रमा, कब तक बालकनी में खड़ी बारिश का मजा लेती रहेगी। आ जा। ये बारिश तो अगले शनिवार से पहले रुकने वाली नहीं।"
" रमा देख, तेरी मम्मी तो मौसम विभाग की तरह भविष्यवाणी करने लगी।" रमा के पापा हंसते हुए बोले।

" आपकी मां की कहीं बातें ही दोहरा रही हूं । वही ऐसी भविष्यवाणी करती थी। कहती थी, अगर शनिवार को बारिश हो तो फिर समझ लो, अगले शनिवार को ही जाकर रुकेगी !"
" अच्छा ! मेरी मां कहती थी तो बिल्कुल ठीक ही कहती होगी!"
" देखा बहू, कैसे अपनी मां का नाम आते ही शांत हो गए वरना मेरी तो हर बात में इन्हें मीन मेख निकालने की आदत है!" सरला जी थोड़ा मुंह बनाते हुए बोली।
" अरे मम्मी जी, पापा तो बस आपको छेड़ने के लिए कहते हैं। कोई दिल दुखाना मकसद थोड़ी ना होता है उनका!"
" अरे रहने दे ! छेड़ने की उम्र थी, तब तो कभी ना छेड़ा! अब चलें है , बुढ़ापे में मजनू बनने!" सरला जी अपने पति की ओर देख मुस्कुराते हुए बोली।
उनकी बात सुन सरलाजी की बहू रेखा भी हंसने लगी।

"बहू, जरा रमा को बुला ले। मैंने तो कितनी आवाजें दी
लेकिन पता नहीं कौन से ख्यालों में गुम हैं!"
" हेलो दीदी, किनके ख्यालों में गुम हो! वैसे मुझे पता है, हमारे जीजाजी के अलावा और किसकी याद सता रही होगी आपको! लेकिन भई, हम चाहकर भी उन्हें यहां नहीं बुला सकते। लॉकडाउन जो लगा है!
इसलिए जीजाजी की यादों से बाहर निकल, हमारे हाथों के गरमा गरम पकौड़ों का आनंद लीजिए!"

" तुम भी ना रेखा! ऐं वें ही, हवा में तीर छोड़ती हो। अरे, कोई नए नवेले तो है नहीं हम। 15 साल हो गए शादी को। मुझे तेरे जीजाजी की नहीं बच्चों की याद आ रही थी। "

" रहने दो दीदी, मुझे मत बनाओ। माना छोटी हूं पर इतना तो मुझे भी पता है। समय के साथ पति पत्नी का रिश्ता और गहरा होता है । शुरूआत में तो केवल आकर्षण ही होता है। और वैसे भी पतियों का प्यार बरसात में कुछ ज्यादा ही जमकर बरसता है। क्यों सही कह रही हूं ना मैं!"
" हां दादी अम्मा, तुम कभी गलत कह सकती हो। चलो अब, नहीं तो पकौड़े ठंडे हो जाएंगे और तुम्हें दोबारा रसोई में फिर से मेहनत करनी पड़ेगी।"
शाम की चाय पीने के बाद रमा अपने कमरे में जाकर लेट गई। बारिश अभी भी अनवरत जारी थी।
शादी के बाद यह दूसरी बार था। जब बरसात के मौसम में वह राजन से दूर थी। शादी के बाद पहली तीज मायके में ही मनाई जाती है इसलिए ना चाहते हुए भी उसे राजन से दूर रहना पड़ा था।
उस समय कुछ महीने ही तो हुए थे उनकी शादी को। इन कुछ महीनों में ही दोनों एक दूसरे के बिना जीने की सोच भी नहीं सकते थे। ऐसा भी नहीं कि दोनों पहले से जानते थे एक दूसरे को । कुछ महीनों के साथ में ही कैसा अटूट बंधन जुड़ गया था, दोनों दिलों का।
इतने सालों में रमा एक-दो दिन से ज्यादा राजन से दूर नहीं रही लेकिन इस बार अपनी भाभी की डिलीवरी के लिए उसे आना पड़ा। बच्चों के एग्जाम थे इसलिए उन्हें भी साथ नहीं ला सकती थी। उसकी मां के घुटनों में दर्द था और वह ज्यादा भागदौड़ नहीं कर सकती थी। अभी उसे अपने मायके आए, 15 दिन ही हुए थे कि लॉकडाउन लग गया।
शुरुआती एक दो महीने तो जच्चा बच्चा की सेवा में निकल गए लेकिन धीरे धीरे उसकी भाभी और मां ने घर का सारा काम संभाल लिया।
जिम्मेदारी से मुक्त होते ही रमा को अब अपने परिवार की याद सताने लगी थी लेकिन चाहकर भी वह उनके पास नहीं जा पा रही थी।
राजन व बच्चे उसे रोज वीडियो कॉल कर तसल्ली देते कि वह सब ठीक है लेकिन फिर भी एक मां और पत्नी का दिल अपने बच्चों व पति से मिलने के लिए तड़प रहा था।
तभी राजन की वीडियो कॉल आ गई। उसने बच्चों को छत पर बारिश में मस्ती करते हुए, रमा को दिखाया तो उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई।
वह भी तो हर बारिश में कैसे बच्चों के साथ बच्चा बन जाती थी।
और राजन !! वह भी तो बच्चों की आंख बचा शरारत करने से बाज कहां आता था। यादकर उसके शरीर में मीठी सी सिरहन दौड़ गई।
यह सब सोचते हुए वह फिर से बालकनी में आ खड़ी हुई । हवा के साथ बारिश की बूंदें उसे भिगो रही थी लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि हमेशा तन मन को ठंडक पहुंचाने वाली बारिश की ये बूंदे, आज उसके हृदय की तपिश को और क्यों बढ़ा रही थी।
वह सोच ही रही थी कि तभी अंदर से टीवी पर आ रहा गाना और उसके भाव उस अग्नि को ओर हवा देने लगे।

रिमझिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन।
सरोज ✍️