DAIHIK CHAHAT--20 in Hindi Fiction Stories by Ramnarayan Sungariya books and stories PDF | दैहिक चाहत - 20 - अंतिम भाग

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दैहिक चाहत - 20 - अंतिम भाग

उपन्‍यास भाग—२०

दैहिक चाहत –२०

आर. एन. सुनगरया,

प्रत्‍येक शख्‍स, जब कोई यादगार उल्‍लेखनीय इवेन्‍ट का अवसर पाताख्‍ है, तब वह उम्‍मीद,आशा, इच्‍छा, अकॉंक्षा आदि रखता है कि उसके हृदय के निकट, जितने भी चहेते हैं, अपने हैं, सम्‍बन्धित हैं, वे सब उसके उत्‍साह, उल्‍लाहास, खुशहाली के आयोजित समारोह, आयोजन में निश्चित रूप में शामिल हों, हर्ष-उत्‍सव, मांगलिक-कार्य अथवा ऐसा कार्यक्रम, जो जीवन प्रवाह में सम्‍भवता: इकलौता हो, जिसका साक्षी बनना, पुन: दुर्लभ हो, ऐसे ही विचार मंथन के उपरान्‍त तनूजा-तनया ने टाईट-टाईम में भी मॉम की वर्षों से मर्यादित प्रतीक्षा का अन्‍त होने का स्‍वर्णिम अवसर की साक्षात साक्षी बनने का अवसर किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहती है। दोनों ने देव को तत्‍काल मोबाइल लगाया, वेल क्रिरक्रिरा उठी, देव ने अविलम्‍व ऑन किया, ‘’हैल्‍लो ! कौन.......।‘’ आवाज पहचानने की कोशिश की।

‘’हम तनूजा-तनया।‘’ उत्तर मिला संयुक्‍त स्‍वर में।

‘’जी अंकल, हम एक्‍जाम को एवाईड नहीं करना चाहते थे, मगर बहुप्रतिक्षित, पुनर्विवाह के लिये ‘मॉम’ की रजामंदी, जिन्‍दगी की अमूल्‍य उपलब्धि है। इस इवेन्‍ट में हम एनी हॉऊ शामिल होना चाहते हैं। लेकिन मॉम की उम्र भर की तपस्‍या हमारा करियर भी प्रभावित नहीं होना चाहिए।‘’

‘’तो फिर.......?’’ देव ने टोका।

‘’मैरिज कोर्ट की फार्मिलिटिज तो दोपहर तक हो ही जायेगी।‘’ दोनों बहनों ने अनुमान लगाया, रेक्‍यूस्‍ट की, ‘’कोर्ट की औपचारिकताओं से निबट कर, आप एयरपोर्ट पर दोपहर की फ्लाईट से हमें रिसीव कर लें, ताकि हम मंदिर में रस्‍मों-रिवाज के अनुसार होने वाली शादी में शामिल हो सकें, इसके पश्‍च्‍चात हमें एयरपोर्ट ड्राप कर दें, ताकि रिटर्न फ्लाईट से वापिस होकर अपने एक्‍जाम की तैयारी सम्‍हाल सकें।‘’

‘’ओ. के.।‘’ देव ने पूर्ण सहमति एवं सहयोग का आस्‍वाशन दिया, ‘’एज यू लाइक !’’

‘’थेन्‍क्‍यू अंकल।‘’ दोनों की ध्‍वनि। समय बीतते देर नहीं लगती। वह दिन भी आ गया जिसका बेसब्री से इन्‍तजार था।

एयर पोर्ट से लौटकर देव सोफे पर बैठ गया, शीला अपने रूम में चली गई, ‘’चेन्‍ज करके आती हूँ।‘’ कहते हुये।

ऑंखें मीचकर विश्राम मुद्रा में देव सोफे पर निढ़ाल होकर सोचने लगा,………एयर पोर्ट पर कुछ मिनिट पहले ही पहुँच चुके थे। सभी के चेहरे प्रफुल्‍ल एवं शॉंत, शुकूनयुक्‍त, सन्‍तोष की भावना से दमकते हुये प्रतीत हो रहे थे। देव ने अपने ब्‍लेजर से दो लिफाफे निकाले और एक-एक करके तनूजा, एवं तनया की तरफ बढ़ाये, ‘’ये लो शगुन।‘’ दोनों लिफाफे देखकर चौंकीं, पहले कभी ऐसा अवसर नहीं आया था, दोनों तनूजा-तनया ने मुण्‍डी हिलाकर, ‘’नो....नो एट आल.....।‘’

शीला भी सारे दृश्‍य को चुपचाप गौर कर रही थी। देव ने शीला की तरफ देखकर कहा, ‘’बताओ शीला, बेटी जब स्‍कूल-कालेज जाती है, तो जब खर्च अथवा पॉकेटमनी देता है, ना गार्जियन !’’

‘’हॉं हॉं, क्‍यों नहीं, यही तो समाज एवं परिवार की परम्‍परा है। प्रीत, प्‍यार-स्‍नेह जगाने, बढ़ाने एवं दृढ़ करने की।‘’ शीला ने तनूजा-तनया को अपने दॉंये-बॉंयें पहलू में लगाकर समझाया, लिफाफा स्‍वीकार करने के लिये प्रोत्‍साहित, प्रेरित अथवा आदेशित किया, ‘’ले लो सम्‍मान पूर्वक शगुन खुश-किस्‍मत लोगों को मिलता है।‘’

तनूजा-तनया की ऑंखों में भावात्‍मक ऑंसू छलक आये, कदाचित उन्‍हें अभिमन्‍यु, अपने पिता की स्‍मृतियों ने आ घेरा।

तुरन्‍त दोनों ने लिफाफे ग्रहण कर लिये तथा चरण स्‍पर्श करते हुये, उनका आभार माना। एक ही स्‍वर में कहा, ‘’थेन्‍क्‍यू पापा........!’’

देव ने दोनों बेटियों को अपने दॉंये-बॉंये आलिंगनबद्ध करके उनके माथे चूम लिये स्‍नेह पूर्वक, ‘’सदा सुखी रहो.......।‘’ दुआऍं निकल पड़ीं मुँह से मन्‍द स्‍नेही सुरूर में......। सबके सब अत्‍यन्‍त भावुक हो गये।

तनूजा-तनया एयर पोर्ट परिसर पर हाथ हिलाते हुये प्रवेश कर गई।

देव-शीला भाव-विभोर, ठगे से उन्‍हें अपनी नजरों से ओझल होते देखते रहे।

‘’कहॉं खो गये।‘’ शीला ने एक ग्‍लास पानी बढ़ाते हुये देव को जगाया।

‘’आज सच्‍चा, शाश्‍वत, शॉंति, संतुष्‍टी, संतृप्ति की आत्‍म अनुभूति, हो रही है। दिल-दिमाग, दायित्‍वबोध का एहसास करा रहा है। ऐसा लगता है, मुझे पूर्ण रूप से चाहने वाली सम्‍मान, सत्‍कार, दु:ख-दर्द को साझा करने वाली, मेरा समुचित ध्‍यान, देखभाल करने वाली, सुसभ्‍य फैमिलि प्राप्‍त हो गई है। मैं बहुत ही गौराम्वित फील कर रहा हूँ। औलाद के लिये फिक्र तड़प, स्‍नेह की तरंगें कैसी उठती हैं। अभी महसूस कर रहा हूँ।‘’

हॉं सारा वातावरण ही पारीवारिक चाहतों का झरोखा जैसा बन गया था। सभी के हृदय से एक-दूसरे के प्रति कोमल भावनाओं के सुगन्धित पुष्‍प हिलोरें ले रहे थे।‘’ शीला ने माहौल पूर्णत: भावुक बना दिया। समय का रूख बदलने की गरज से शीला लगभग चिल्‍लाई, ‘’फुल्‍लो दो कॉफी बनाओ...........।‘’ देव की तरफ देखकर, ‘’लेंगे ना कॉफी !’’

‘’हाँ ।‘’ देव ने तुरन्‍त हॉंमी भर। आगे कहा, ‘’आता हूँ वॉश रूम से।‘’

कॉफी पकड़ते ही देव ने कहा, ‘’सारे काम मन मुताविक हो गये, कोरोना पोर्टोकाल के कारण लिमिटेड गेस्‍ट ही आ पाये, मगर कार्यक्रम भव्‍य था, गरिमामयी। दुल्‍हन के लिवाज में सजी-धजी, सौलहा श्रृंगार की हुई तुम साक्षात परिस्‍थान की रहवासी लग रही थीं। सबकी निगाहें तुम्‍हारी जगमगाती खूबसूरती पर ही टिकीं थीं।

तनूजा-तनया ने भी भरपूर प्रसंसाऍं, तारीफें बटोरीं, टेलेन्‍टेड, होशियार, चंचल चहंकती हुई, हंसमुख, नटखट, स्‍वस्‍थ्‍य, चमचमाती सुन्‍दरता, प्‍यारी-प्‍यारी, रंग-बिरंगी, नाजुक-नाजुक, पुष्‍प-दर-पुष्‍प उड़ती, फुदकती प्रत्‍येक दृष्टि को लुभाती तितलियॉं हैं। समग्रता में सम्‍मोहित कर लेने वाली, दृष्टि व्‍यवहारिक, मिलनसार, सम्‍पूर्ण अतिथियों के हृदय में अपने व्‍यक्तित्‍व का अक्‍स अंकित करने स्‍वात: प्रेरित, चन्‍द क्षणों में सबको अपना प्रसन्‍सक बना लेने का इल्‍म वाखूबी आता है। भयमुक्‍त, सारे कन्‍सेप्‍त क्लियर !’’

शीला एक टक देव को प्रसन्‍सारत देखती रही। पुन: देव ही बोला, ‘’मुझे तो उनका परिचय करवाने में अपूर्व गर्व, गौरव, अभिमान महसूस हो रहा था। दोनों बहनों में विशाल खूबियॉं, एक-से-बड़कर-एक, सच, लाखों में.........दोनों हीरे हैं........बेमिसाल !’’

शीला से भी नहीं रहा गया, वह भी अपनी फीलिंगस का इजहार करने में नहीं चूकी, दिल खोलकर रख दिया, जो महसूस हुआ, दिल-दिमाग में, उसे खुलकर विस्‍तार से ज्‍यों-के-त्‍यों उजागर कर दिया, सब कुछ सुना डाली, तनिक भी गोपनीय नहीं रखा, ‘’मैं संघर्षरत महिला का गर्म, पथरीला जीवन ढोह रही थी, जो अनेक जिम्‍मेदारियों से लदा हुआ था, जिसे अनजाने में ही, ऐसे अपराध की अदृश्‍य सजा, मिल रही थी, कठोर दण्‍ड भोग रही थी, जिसे उसने किया ही नहीं था। सामाजिक परम्‍पराओं, रीति-रिवाजों, मर्यादाओं, संस्‍कारों, संस्‍कृति को ऐसे पवित्रता पूर्वक, ईमानदारी, कठोरता एवं पारदर्शिता पूर्वक निवाह रही थी, अपनी नियति मान बैठी थी कि ऐसी दिनचर्या के बगैर पतीता करार दे दी जाऊँगी, त्‍याज्‍य हो जाऊँगी वहिष्‍कृत कर दी जाऊँगी समाज, जात, बिरादरी से, इतना भयग्रस्‍त, आतंकित हो गया था, समग्र व्‍यक्तित्‍व, दिल-दिमाग कि तनिक भी आहट हो तो सिहर जाती थी। कभी-कभी तो मेरा दम घुटने लगता, खुली सॉंस शुद्ध वायु भी दूभर लगने लगती।

दोनों बैटियों के पालन-पोषण, शिक्षा-दिक्षा के स्‍वाभाविक दबाव में, सारे भार हंसते-हंसते सहन करती चली आई !

जब वे दोनों आत्‍मनिर्भर बनी तो, मैंने अपने आपको भयमुक्‍त महसूस करना शुरू किया। संयोगवश देव मेरे सम्‍पर्क में आया, एक ही प्रोजेक्‍ट में पोस्टिंग के कारण। अनुकूल हालातों, परिस्थितियों के परिणाम स्‍वरूप, एक दूसरे के सम्‍बन्‍धों में परस्‍पर प्राँगढ़ता आती चली गई, लाईकमाइन्‍डेड, समरूप दृष्टिकोण् होने के प्रभाव में रिश्‍ता परवान चढ़ता चला गया। तदुपरान्‍त दोनों की राहें एक हो गईं, दोनों के दु:ख-सुख एक हो गये। दोनों की सोच, विचार-धाराऍं एक हो गईं, दोनों के कर्त्तव्‍य, दायित्‍व, मंजिल एक हो गईं......जिसे कानूनी रास्‍ता अपना कर घोषित कर दिया, स्‍वीकृत रिश्‍ता।‘’

देव ने मुस्‍कुराते हुये पूछा, ‘’मगर इतनी खूबसूरती कहॉं छुपाकर रखी थी, आज तो तुम दिलकश हंसीना से कम नहीं लग रहीं थीं।‘’ आगे देव की आवाज धीमी हो गई, ‘’जिसने भी देखा, देखता रह गया.....।‘’

‘’दरअसल।‘’ शीला ने देहसौन्‍दर्य के कुछ सीक्रेट्स का खुलासा किया, कई सालों बाद मैंने व्‍युटी पार्लर में महकब करवाया, एक मुद्दत पश्‍च्‍चात कम्‍पलिट ज्‍वेलरी पहनी। दुल्‍हन का कॉस्‍ट्यूम ही अति सुन्‍दरता में चार चॉंद लगाता है।‘’

‘’मैं तो तुम्‍हें देखकर, बल्कि देखते रहकर निहाल हो गया।‘’ देव ने आहों-पर-ऑंहें पुरजोर भरना शुरू कर दिया शीला देव के बगल में बैठते हुये बोली, ‘’दिल-दिमाग के सम्‍पूर्ण तनाव कपूर की भॉंति हवा में विलीन हो गये।‘’ शीला कुछ गम्‍भीर होकर कहने लगी, ‘’मगर अतीत की यादों की गॉंठें, तन-बदन-मन में फैली हुई हैं, जो समय-बे-समय टीस मारती रहती हैं.........।‘’

देव ने जागरूक, सचेत होकर शीला को देखा, पीठ की तरफ से अपना दायें हाथ घुमाकर, उसकी बॉंह पकड़ ली कसकर अपने पहलू में चपेटते हुये, भौतिक चिकित्‍सा बताई, ‘’इश्किया तपन की तासीर के घर्षण द्वारा, कठोर-से-कठोर गॉंठें भी मोम की भॉंति पिघल जायेंगी पानी की तरह........।‘’ शीला के चेहरे के समीप अपनी सूरत सटाकर कहा, ‘’चिन्‍ता की कोई बात नहीं, वर्तमान के सामने अतीत को टपक पड़ने की गुंजाइश ही कहॉं.........।‘’ दोनों हंस पड़े, लिपटे-लिपटते खिलखिलाने लगे......।

शीला-देव अपना ट्रेक शूट पहन कर, सुबह-सुबह मॉर्निंग वाकिंग के लिये निकल गये। ज्‍यादा-से-ज्‍यादा शुद्ध शीतल समीर स्निग्‍धता लिये, बहुत ही शुकून फील करा रही हैं। जॉगिंग करते-करते क्‍वार्टर लौट आये। अपने-अपने नित्‍य प्रति दिनचर्या के कामों में व्‍यस्‍त हो गये। कुछ क्षणों उपरान्‍त मोबाइल की बेल घनघना उठी। देव ने मोबाइल स्क्रीन देखा, ऑन किये बगैर शीला की ओर बढ़ा दिया, ‘’तनूजा का.......।‘’ वाक्‍य पूरा होने से पहले ही शीला ने थाम लिया, स्‍क्रीन देखते ही ऑन किया, ‘’हैल्‍लो तनूजा......।‘’

‘’हम हैं........। पापा हैं ?’’

‘’हॉं हैं !’’

‘’तो स्‍पीकर ऑन कर दो।‘’

‘’ये लो, कर दिया।‘’

‘’अब हमारी बारी है, तुम्‍हें चौकाने की !’’

‘’हॉं तो चौंकाओ ना।‘’ शीला ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘’बताओ, क्‍या हुआ।‘’

‘’आप दोनों झूम उठेंगे।‘’

‘’जल्‍दी कहो, पहेलियॉं मत बुझाओ।‘’ शीला देव की मिश्रित आवाज।

‘’टोका-टाकी नहीं, पूछा-पाछी नहीं, क्‍यूशनिंग नहीं......।‘’ दोनों ने कड़ी चेतावनी दे दी, ‘’हमारा कैम्‍पस सेलेक्‍शन हो गया, अच्‍छे पैकेज पर, एक ही शहर में, दोनों का जॉब है। जिन लड़कों को हमने जीवन साथी के लिये पसन्‍नद किया है, वे दोनों उसी शहर के मूल निवासी हैं, जिस शहर में अभी आप निवास कर रहे हैं।......शुभ समाचार समाप्‍त हुये......वाय !’’ दोनों के हंसने, खिलखिलाने की अस्‍पष्‍ट आवाज........मोबाइल कट.......।‘’

शीला-देव एक-दूसरे को देखते हुये प्रसन्‍नता में बोले, ‘’एक ही झटके में, सारी शेष खुशियॉं अपनी झोली में आ टपकीं, दामन भर गया। अब बस धूम-धाम से, गरिमामयी शादी करने की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़नी है। सारे अरमान, अभिलाषाएँ, इच्‍छाऍं पूर्ण करनी हैं। कोई कसक ना बचे...........।‘’

♥♥♥♥ इति ♥♥♥♥

समपूर्ण प्रिय-प्रबुद्ध पाठकों को धन्‍यवाद !

---आर. एन. सुनगरया

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय- समय

पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्‍वतंत्र

लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

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