Antim Ichchha in Hindi Short Stories by S Sinha books and stories PDF | अंतिम इच्छा

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अंतिम इच्छा

कहानी --अंतिम इच्छा

ऊपरवाले से बड़ा कहानीकार तो कोई नहीं हो सकता है .किसकी कहानी कैसी होगी , कितनी लम्बी या छोटी , सुखान्त या दुखांत कब और कहाँ कहानी में ट्विस्ट होगा वह बखूबी स्क्रीप्ट लिखता है . मेरी यानी शीला की कहानी भी कुछ ऐसी ही है .मैं मुंबई के एक अस्पताल में बहुत दिनों से से बिस्तर पर पड़ी हूँ .लग रहा है कि द्रौपदी की चीर की तरह ज़िन्दगी खींची जा रही है .सुनने में आया है कि मेरे ब्लड का सैंपल किसी विशेष टेस्ट के लिए विदेश भेजा गया है .अगले सप्ताह उसकी रिपोर्ट मिल जाएगी तो शायद ज़िन्दगी की लम्बाई डॉक्टर नाप सकेंगे .बहरहाल अभी तो अस्पताल के केबिन में मैं हूँ और मेरे साथ मेरी आया मार्था है जो पिछले दो साल से मेरे साथ है .बीच बीच में डॉक्टर और नर्स आकर देख जाते हैं .

आज मेरा ब्लड रिपोर्ट आया है . डॉक्टर ने आकर मार्था को सब समझाया है . पिछले दो सालों से मार्था ही मेरा परिवार है .मार्था की आँखें नम हैं और डॉक्टर ने मेरी ओर देखते हुए कहा कि अम्मा तुम अब घर जाओ और वहीँ आराम करो , दवा से ज्यादा तुम्हें दुआ की जरुरत है .मैं भी समझ गयी हूँ कि अब मेरी लाइफ स्टोरी कट एंड पैक अप होने वाली है .मैंने भी डॉक्टर से कहा कि घर में भी एक कमरे के बिस्तर पर दम तोड़ना है तो क्यों न यहीं सही , यहाँ तो मार्था के अतिरिक्त आपलोग भी आकर हालचाल पूछ जाते हैं .

मुझे पता चल गया है कि इस दुनिया के रंगमंच पर मेरी भूमिका कुछ दिनों में समाप्त होने वाली है .मैंने आँखें बंद कीं तो मेरी आँखों के पर्दे पर मेरे अतीत के दिनों के दृश्य रिवाइंड होने लगे हैं . बिहार के एक छोटे से शहर में मध्यम परिवार में जन्म हुआ था .वहीँ से मैट्रिक तक की पढ़ाई की थी . उसके बाद बनारस में स्नातकोत्तर तक पढ़ी थी .फिर माता पिता ने बड़े शौक से मेरी शादी भिलाई स्टील प्लांट के एक इंजीनियर अशोक से किया था. मैं भी बहुत खुश थी . दो साल के अंदर ही पहली बार माँ बनी थी , एक सुन्दर सा बेटा मेरी गोद में आया .मैं और पति अशोक दोनों बहुत खुश थे .बेटे को प्यार से बंटी पुकारते थे .देखते देखते तीन साल के अंदर ही मैं दूसरे बच्चे की माँ बनी थी .एक सुन्दर प्यारी सी बिटिया हुई थी ,हम दोनों की इच्छा भी यही थी कि इस बार बेटी हो .बेटी को हमलोग घर में बेबी ही पुकारते थे .अब हम दो से चार हो गए थे . हमने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं होने दी , यहाँ तक कि मैंने लेक्चरर का ऑफर भी ठुकरा दिया था .दोनों बच्चे अब स्कूल जाने लगे थे .

शुरू के दस साल तो हंसी ख़ुशी से देखते देखते गुजर गए थे . सबसे पहले तो सिविल टाउन की गन्दी सड़कों और नालों को दूर छोड़ कर एक साफ़ सुथरे खूबसूरत कॉलोनी में आई थी .कंपनी ने काफी अच्छा क्वार्टर दिया था .यहाँ भारत के विभिन्न प्रांतों के लोग कारखाने में काम करते थे .आस पास के पड़ोसियों, कुछ हम दोनों के कॉलेज के सहपाठियों और इनके सहकर्मियों से मिलना जुलना होता था . वैसे तो ज्यादातर लोग प्लांट में ही काम करते थे पर इनकी पोस्टिंग प्लांट से बाहर डिजाइन ऑफिस में थी . इससे फायदा यह था कि ये लंच में करीब एक बजे घर आ जाते थे फिर लंच और कुछ आराम कर ऑफिस जाते थे .दूसरा फायदा यह कि रात की शिफ्ट ड्यूटी और ब्रेकडाउन होने पर कभी भी बुलावा आने का डर न था .और तीसरा यह कि प्लांट का गेट तो सिर्फ शिफ्ट ड्यूटी के आने जाने के समय पर ही खुलता था जिससे प्लांट में काम करने वालों पर एक तरह से बंदिश थी और ये मुक्त थे .

मैं और मेरे पति अशोक दोनों बहुत खुश थे .शनिवार एवं रविवार को शाम को प्रायः क्लब जाया करते थे .उन दिनों मेरे बगल के स्ट्रीट में इनके एक करीबी मित्र वर्माजी रहते थे जिनके यहाँ हमलोग अक्सर आते जाते थे . वर्माजी की पोस्टिंग प्लांट में थी , वो सुबह घर से लंच बॉक्स लेकर निकलते तो शाम पांच बजे के बाद ही आते थे. मिसेज़ वर्मा औरों से अलग थीं और उनकी एक आदत मुझे बिलकुल पसंद न थी , मुझे क्या अन्य लेडीज को भी .उनके यहाँ जब भी कोई जाता था तो चाय वगैरह देते समय अपनी साड़ी का पल्लू जानबूझ कर गिरा देती थी और लो कट ब्लाउज से अपने वक्षस्थलों का प्रदर्शन करती थी .उनकी कोशिश रहती कि वह अपने को दूसरी औरतों से ज्यादा काबिल और स्मार्ट दिखाएँ , जबकि ऐसी कोई बात उनमें नहीं थी .फिर भी अगर कोई औरत अंग प्रदर्शन करे तो सामने बैठा मर्द एक बार तो देखेगा ही .अशोक भी इससे अछूते नहीं थे .

वर्माजी के स्ट्रीट में ही मेरे कॉलेज की एक सहेली सरिता भी रहती थी. बच्चों के स्कूल और इनके ऑफिस चले जाने के बाद , नाश्ता पानी कर ,मैं अक्सर उसके यहाँ चली जाती थी और ये दोपहर लंच के समय आते वक़्त हमें स्कूटर पर ले आते थे . मेरी सुख सुविधाओं का काफी ख्याल रखते थे जिसके चलते पड़ोसिनें कभी ताने भी मारती कि पति मिले तो अशोक जैसा. मुझे लगने लगा था कि मिसेज वर्मा को मुझसे जलन होने लगी थी . अंग प्रदर्शन कर के भी अभी तक वह उनको लुभा नहीं सकी थी .जब कभी उनके घर हम जाते तो इनपर ख़ास मेहरबान थी .खूब हँस हँस कर चाय स्नैक्स देतीं तो पल्लू किसी न किसी बहाने सरक कर नीचे गिर ही जाता था .धीरे धीरे उनकी अदाओं ने इन पर अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था . ये भी आजकल उनकी तारीफें करते नहीं थकते थे .मेरी तारीफ़ में तो आजतक एक शब्द भी नहीं निकला था इनके मुख से .इस बात को लेकर हम दोनों पति पत्नी में अक्सर झगड़े हुआ करते थे .न जाने क्यों मुझे लगने लगा कि यह औरत मेरे और पति के बीच कबाब में हड्डी बनी हुई है ,

करीब दस साल बाद मैंने भी एक प्राइवेट स्कूल ज्वाइन कर लिया था .घर की एक चाभी इनके पास होती थी , ये घर आकर खुद लंच कर लेते थे .घर में प्रवेश के दो दरवाजे थे. अक्सर एक दरवाजे की चाभी इनके पास होती थी और दूसरे की मेरे पास .बच्चे भी शाम चार बजे आते थे ,तब तक मैं घर में होती थी . इधर मैंने इनमें कुछ बदलाव महसूस किया .मुझे लगा कि ये मुझसे दूर होने लगे थे क्योंकि बात बात पर गुस्सा करते और मेरी कमियाँ निकालते थे .मुझे लगा कि यह मेरा शक हो . पर एक दिन जब अपनी सहेली सरिता के यहाँ गयी तो उसने कहा " देख शीला , तू मेरी पुरानी सहेली है .बुरा न मान तो एक बात कहूँ? कॉलोनी में भी काना फूसी हो रही है ."

" तू कह न , मैं तेरी बातों का बुरा नहीं मानूँगी ." मैं बोली थी .

सरिता बोली " अशोक जी प्लांट के बाहर होने का नाजायज़ फायदा उठा रहे हैं .अक्सर उनका स्कूटर दोपहर में वर्माजी के घर के बाहर देखने को मिलता है . तेरे और वर्माजी के बच्चे तो दिन भर बाहर रहते हैं और वर्माजी प्लांट में .उनकी अनुपस्थिति में अक्सर देर तक मिसेज वर्मा के साथ अशोकजी का रहना सबके मन में खटकता है .तू समझ रही है न ? "

मैंने थोड़ा गंभीर हो कर ' हूँ ' भर कहा था कि सरिता आगे बोली " तुझे लगता है कुछ खबर नहीं है .एक दिन तो हद हो गयी थी . अशोकजी और मिसेज वर्मा साथ में थे ,उसी समय अचानक वर्माजी भी अपने घर पहुँचे तो पत्नी से पूछा कि अशोक का स्कूटर लगा है , वह आया है क्या ? इधर वर्माजी ने जब बेल बजाया तो अशोक झटपट बाथरूम में घुस गए थे. वर्माजी के अंदर आने के बाद अशोकजी बाथरूम से बेल्ट कसते हुए निकले और कहा कि उनकी चाभी आज छूट गयी है और उन्हें बाथरूम जाना था .वर्माजी ने भी इस बात को तवज्जो नहीं दी थी . "

तभी मुझे भी याद आया कि एक दिन मिसेज वर्मा ने भी सफाई देते हुए मुझसे यह बात कही थी तो मैंने भी इसे सामान्य बात मान ली थी .एक बार सरिता ने कहा था कि अशोकजी मॉर्निंग वॉक करने उसकी स्ट्रीट से हो कर क्यों जाते हैं जबकि तुम्हारे घर के सामने ही इतना बड़ा पार्क है .वह बोली कि मिसेज वर्मा उस समय बालकनी में ही होती थी और हाथ हिला कर हाय हैल्लो करती थी .पर अब तो यह बात कॉलोनी में धीरे धीरे फ़ैल गयी थी .वर्माजी के कानों तक भी पहुंची तो उनका भी माथा ठनका .मुझे भी अब लगा कि मेरा शक निराधार नहीं था . और मेरे मन में मिसेज वर्मा के प्रति नफरत भर गयी थी . अब उनके पल्लू गिराने का तात्पर्य भी समझने लगी थी .

तभी एक ऐसी अप्रत्याशित घटना घटी जिसने मेरी ज़िन्दगी का रुख बदल दिया .वर्माजी ने एक प्लान बनाया सच जानने के लिए .उन्होंने पत्नी से कहाकि वो ऑफिसियल टूर पर तीन चार दिनों के लिए दिल्ली जा रहे हैं .पता नहीं रात में कब लौटना हो इसलिए एक दरवाजे की चाभी अपने पास रख कर इसे अंदर से बंद नहीं करने को कहा .इधर मिसेज वर्मा और अशोक के मन में लड्डू फूटने लगे और उन्होंने भी अपनी मौज मस्ती का प्लान बना लिया .

दूसरे दिन वे अचानक दोपहर में अपने घर पहुँचे तो अशोक का स्कूटर लगा था . हालांकि आजकल अशोक स्कूटर रोड पर नहीं रख कर सीढ़ी रूम में लगा देते ताकि सबकी नज़र न पड़े .वर्माजी ने बिना बेल बजाये या कोई आवाज किये दूसरा दरवाजा खोल कर घर में प्रवेश किया . अंदर बेड रूम का दृश्य देख उनको पसीना छूटने लगा .मिसेज वर्मा और अशोक दोनों अर्धनग्न अवस्था में अत्यंत आपत्तिजनक अवस्था में थे. मिसेज वर्मा ने झटपट अशोक को जोर से झटका देकर अपने से अलग किया और अपने कपड़े ठीक किये. अशोक भी जल्दी से कर उठ कर अपने कपड़े पहनने लगे . पर अचानक ऐसी स्थिति की कल्पना किसी ने नहीं की थी .तीनों को काटो तो खून नहीं .ऐसा लगा कि अचानक भूचाल आ गया हो .

वर्माजी उस समय चुप चाप घर से निकल पड़े थे . वर्माजी शाम को जब मेरे घर आये उस समय तक ये घर नहीं पहुँचे थे . वर्माजी ने सारी बातें संक्षेप में बतायी .मैं क्या बोलती , खामोश थी .मेरे ऊपर तो मानो वज्रपात हो गया था . वे चले गए तो मुझे ख्याल आया उनसे चाय पानी तक नहीं पूछा था .खैर , स्थिति ही अप्रत्याशित थी कि इसका ध्यान ही नहीं रहा .उधर वर्माजी के घर का हाल क्या था -मालूम नहीं .शाम को जब ये घर आये तब हम दोनों में कोई बात नहीं हुई थी . रात में जब बच्चे सो गए तो मैंने कहा कि वर्माजी आकर सारी बात बता गए हैं . मैंने उनसे कहा कि आज से हमलोग सिर्फ समाज को दिखाने के लिए ही पति पत्नी रहेंगे और एक छत के नीचे रहते हुए भी हम अलग रहेंगे, जब तक बच्चे सेट्ल नहीं हो जाते .बस उस दिन से मेरी ज़िन्दगी की कहानी में एक ट्विस्ट आ गया .

उस दिन के बाद से मेरे और अशोकजी का एक घर में एक साथ रहते हुए भी कोई रिश्ता नहीं रहा था . महीने साल गुजरते रहे , हमारे दोनों बच्चे पढ़ लिख कर अमेरिका में सेट्ल हो गए . अब मैंने पति से दो टूक शब्दों में कह दिया कि हम दोनों एक साथ नहीं रह सकते .हालांकि हमने तलाक नहीं लिया .मैं जिस मिशनरी स्कूल में पढ़ाती थी उसका ब्रांच मुंबई के उपनगर में भी था , मैंने वहाँ ट्रांसफर करा लिया . अब रिटायर भी कर चुकी हूँ ,नानी , दादी भी बन चुकी हूँ . अमेरिका कभी मैं अकेली जाती तो, कभी अशोकजी अकेले जाते थे .बच्चे जब हमारे एक साथ न आने का कारण पूछते तो बता देती कि दोनों को एक साथ छुट्टी नहीं मिल सकी थी . पर जब उन्हें पता चला कि रिटायरमेंट के बाद भी हम दोनों अलग रह रहे हैं तो उन्हें भी दाल में कुछ काला लगा .बच्चे मुझसे ज्यादा फ्रैंक हैं सो पूछने पर मैंने सिर्फ इतना कहा कि हमलोग अब कभी एक साथ नहीं रह सकते हैं हालांकि इसकी कोई वजह मैंने नहीं बताई .

अब पिछले दो साल से मेरे परिवार में बस मैं और मेरी आया मार्था ही है .यह चौबीस घंटे मेरी देख भाल , सेवा सुश्रुषा करती है .मार्था को जब डॉक्टर ने मेरी ब्लड रिपोर्ट मिलने के बाद कहा कि अब मेरा अंत निकट है , तो मार्था ने समझदारी से काम लेते हुए मेरे बच्चों को खबर कर दिया है .मेरे बेटे ने अशोकजी को भी बता दिया था . दो दिन बाद मेरे दोनों बच्चे सपरिवार अस्पताल में मेरे केबिन में आये हैं .उनके पीछे मेरे पति भी आये हैं . मैंने उनकी ओर देखा भी नहीं .बेटे से इतना ही कहा " बंटी बेटे ,मैं अब कुछ पल की मेहमान हूँ .मेरी एक छोटी सी अंतिम इच्छा है उसे अवश्य पूरी करना ."

बंटी ने कहा " माँ , तुम जो चाहोगी वही होगा .बोलो तो सही ."

मैंने कहा कि मेरी मुखाग्नि सिर्फ तू देगा और तेरे पिता मेरी अर्थी को हाथ भी न लगाएँ .बस इसे मेरी अंतिम इच्छा समझना और तुम मेरी इस इच्छा को पूरी करोगे .

यह आशा करती हूँ . इसके बाद मैंने अपना मुँह दूसरी ओर फेर लिया और अब मौत का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हूँ .

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कहानी पूर्णतः काल्पनिक है