साहब और नीशू
(यह एक रचनात्मक कहानी है। )
एक वक़्त की बात है, वहा एक बड़े जमीनदार रहते थे। उनके परिवार में उनकी पत्नि सरोजिनी और एक लड़की थी निशा। वो थी तो सत्रह साल की पर सिर्फ उम्र में ही। क्यों कि उसकी दिमागी हालत से तो सिर्फ पांच साल की बच्ची थी।
जबकि वो बड़ा घराना था वो जमीनदार था! तो सब साथ मे ही रहते थे। उस जमीनदार का बड़ा भाई भी था पर वह बहुत बुरा इंसान था। और उसका भतीजा था जिसका नाम सुभाष था।
एक दिन निशा उसकी मम्मी सरोजिनी के साथ मंदिर में पूजा करने के लिए गई थी। वहीं मंदिर के गर्भगृह मे सरोजिनी ने निशा को वहा अपने पास बिठाती है। तब वहा सरोजिनी का ध्यान पूजा मे लिन हुआ। वहा निशा मंदिर के प्रांगण में पहुँच गई। जब कि सरोजिनी को कुछ पता चलता उससे पहले वह मंदिर से बाहर निकल चुकी थी। सरोजिनी को ये पता ही नहीं था। क्यों कि वह तो पूजा मे लिन थी। थोड़ी देर बाद जब सरोजिनी पूजा से खड़ी हो कर गर्भगृह से बाहर निकल कर देखा तो निशा वहा नहीं थी। तो वह मन ही मन डर ने लगी। कि कहां गई होंगी निशा? वो एक दम से मंदिर में से बहार निकल कर देखने लगी। पर वहा ना तो निशा मिली, नाही उसके जुते! वह इधर उधर देखने लगी पर उसे निशा कहीं पे नजर नहीं आयी। फिर काफी ढूढ़ने के बाद भी ना मिलने पर वो निराश हो कर घर चली गई।
दुसरी और निशा। वहा मंदिर के प्रांगण से निकल कर पास के पाठशाला मे जा चुकी थी। वहा सब कुछ अजनबी की तरह देख रही थी। मानो उसे कोई स्वर्ग दिखा हो, तभी वहा उसे देख कर मास्टर जी आ पहुँचे।, वह निशा से पूछते हैं, कि तुम यहा क्या कर रही हो? तो निशा कोई उतर नहीं देती। तभी वहा पाठशाला की घंटी बजाने का शोर सुनाई देती है। और वहा बहोत जोरों से शोर मचाते हुए, बहोत भीड़ में, बच्चे अपने अपने घर की ओर बढ़ रहे थे। कि तभी वहा एक लड़का आता है सुभाष, वह रिश्ते मे निशा का चचेरा भाई था।
वहा मास्टरजी उसे रोकते हैं। और कहते हैं, कि तुम्हारी बहन निशा यहा आ गई है। तुम उसे अपने साथ घर ले कर जाओ। तभी सुभाष कहता है, कि नहीं मे नहीं ले जाऊँगा। लोग मुझपर हंसेंगे। एसा कह कर वह वहा से चला जाता है।
जब कि पाठशाला का समय खत्म हो चुका था। सारे बच्चे अपने अपने घर की तरफ़ निकल गए थे। तो मास्टरजी उसे लेकर घर तरफ़ निकल पड़ते हैं। और तभी रास्ते मे पहले मास्टरजी का घर आ पहुंचा, और उसके थोड़े फ़ासले पर जमीनदार का घर आता था। मास्टरजी निशा को लेकर पहले उनके घर जाते हैं।
मास्टरजी अपने घर पर जाते ही अपना समान घर मे रखते हैं। कि वहा जमीनदार आ पहुंचा, और मास्टरजी बाहर आए तो जमीनदार उन पर टूट पड़ा, मेरी बेटी को बहार निकाल, हमने उसे कहा कहा नहीं ढूढ़, और तूने उसे घर मे छुपा कर रखा है। तभी मास्टरजी बताते हैं, कि रुकिए जमीनदार आपकी बेटी मुजे पाठशाला के दरवाजे के पास मिली! मेंने सुभाष को कहा कि तुम उसे घर ले जाओ। तो वह वहा से निकल गया। तो मे लेकर आ ही रहा था! कि आप आ गए, तभी निशा बाहिर आती है। और जमीनदार उसकी बेटी को लेकर वहा से चले जाता है। घर पर सरोजिनी निशा से पूछती है! कि कहां गई थी बेटा? जब कि निशा की दिमागी हालत ठीक ना होने के कारण कुछ बता नहीं पाती। तब वहां सुभाष आता है, और वह बताता है कि निशा मास्टरजी के साथ थी तो सरोजिनी भड़क जाती है, तब जमीनदार भी यहि सोच मे थे, कि नजाने उसने निशा को कुछ किया तो नहीं? क्यों कि उस किस्से के बाद से, निशा ने बिल्कुल बोल ना बंद कर दिया था। और वहा सब अफवाह फैलने लगी थी कि जमीनदार की लकड़ी को मास्टरजी अपने घर ले गए थे।