Naina Chhindati Shasrani - 14 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 14

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 14

14

उस दिन भी समिधा को कुछ ऐसा एहसास हुआ था जो आज पेड़ पर से गिरने वाले युवक के बारे में सोचते हुए हो रहा है, वह बहुत-बहुत आनमनी हो उठी | गाड़ी में एक ज़ोरदार ब्रेक लगा और समिधा रेल की यात्रा से वर्तमान स्थिति पर आ पहुँची | इस घटना से यूँ तो सभी क्षुब्ध थे | इस समय रैम भी कुछ भी नहीं बोल रहा था जबकि वह इस प्रकार की घटनाओं से आए दिन बबस्ता होता रहता था | 

गाड़ी रुकने पर मि. दामले उतरे और दरवाज़ा खोलते हुए बोले –

“आइए मैडम ! इसी स्कूल में मुलाक़ात लेनी है आज | ”

वह अपने विचारों की नींद से जागी और उतारकर अपने चारों ओर देखने लगी | स्कूल में रंग-बिरंगी कागज़ की झंडियाँ लटका दी गईं थीं | इन झंडियों को चिपकने के लिए जो डोरी बाँधी गई थी वह स्कूल की छत से होती हुई स्कूल को घेरने वाली काँटों वाली बाड़ में बांध दी गई थी | इन रंग-बिरंगी झंडियों से उस कच्चे-पक्के स्कूल का लगभग पूरा मकान घिरा हुआ था | स्कूल के बाहर बड़े मास्टर जी अपने दो सहयोगी मास्टरों के साथ खड़े थे | बच्चों को पंक्ति में खड़ा कर दिया गया था | कुल पचास के आसपास बच्चे होंगे | समिधा ने बच्चों की पंक्ति पर दृष्टिपात किया | 

कुछ बच्चे सहमे हुए से थे, किसी-किसी का तो मुँह भी पूरी तरह से साफ़ नहीं था | कोई बच्चा अपनी बाँह से नाक रगड़ रहा था | हाँ, जो बच्चे आगे की पंक्तियों में खड़े थे वे काफ़ी साफ़ लग रहे थे और उनके हाथ जंगली फूलों से बनाए हुए गुलदस्तों से भरे हुए थे | कोई बच्चा आँखों से ही चपल और शरारती दिखाई दे रहा था और अपनी पंक्ति से आगे बढ़कर अतिथियों को अपना परिचय स्वयं ही देने की चेष्टा करने के व्यर्थ प्रयत्न में मास्टर जी की आँखों की तरेर सहने के लिए विवश था | 

स्कूल को घेरने वाली बाड़ के बाहर ऐसे दूसरे उन बच्चों को रोक दिया गया था जो स्कूल के विद्यार्थी नहीं थे और तमाशा देखने के लिए भीतर प्रवेश करना चाहते थे | वहीं बाड़ के बाहर कुछ आदिवासी औरतें और मर्द भी उत्सुकतापूर्वक बाड़ में से झाँक रहे थे | यह सब देखकर समिधा का मन थोड़ा बदला पर वह अनमनी ही बनी रही | बड़े मास्टर जी ने अपने दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करके अतिथियों का स्वागत किया | उनकी देखा-देखी वहाँ खड़े सभी लोगों ने बड़े मास्टर जी का अनुपालन करते हुए नमस्कार की मुद्रा में अपने हाथ जोड़ दिए | 

अब बच्चों ने भी अपने हाथ जोड़ते हुए ‘नमस्ते’ का उच्चारण किया | स्पष्ट था कि बच्चों को इसी तारतम्यता में सिखाया –पढ़ाया गया था | बच्चों से सबको जंगली फूलों के गुलदस्ते दिलवाए गए, फिर उन्हें गीत गाने का आदेश दिया गया;

‘हम होंगे कामयाब ---हम होंगे कामयाब –एक दिन –ओ-हो-हो, मन में हे बिसबास ---पूरा हे बिसबास ‘

गीत की समाप्ति पर तालियों की आवाज़ से बच्चों के मुखों पर झलकती प्रसन्नता ने समिधा का मन बीते पल से बाहर निकलकर खड़ा हो गया और उसने बंसी से गाड़ी में से अपना टौफ़ियों भरा थैला निकालकर लाने के लिए कहा | गीत के पश्चात बच्चों को उनके घर जाने की आज्ञा मिल चुकी थी, समिधा के कहने पर उन्हें रोक लिया गया | बंसी बैग उठाकर ले आया था | मास्टर जी की आज्ञा लेकर समिधा ने बच्चों में टौफ़ियाँ बाँटकर उनके बिना धुले चेहरों पर मुस्कान भर दी थी | 

सब बच्चों को दो-दो टौफ़ियाँ मिलीं थीं और बच्चे उन्हें अपनी मुट्ठियों में भींचकर एक-दूसरे को चिढ़ाते हुए ऐसे ख़ुश हो गए थे मानो उन्हें क़ारूँ का खज़ाना मिला गया हो | उनकी चमकती हुई रोशनी भरी आँखें देखकर समिधा के मन का गुबार भी कुछ हल्का होने लगा था | अभी थैले में काफ़ी टौफ़ियाँ बची थीं, उसने बंसी से कहा कि वह सब टौफ़ियाँ बाहर खड़े हुए लोगों में बाँट दे | 

मेहमानों को अंदर कमरे में ले जाया गया जहाँ उनके बैठने के लिए कुर्सियों की व्यवस्था की गई थी | समिधा ने देखा अंदर दो कमरे पक्के बने हुए थे और बीच में एक सहन जैसा था जिसे पार करके दो कच्चे कमरे थे जिन पर टीन का शेड डाल दिया गया था | स्कूल के बड़े मास्टर जी बता रहे थे कि किस कठिनाई से बच्चों को पकड़कर पढ़ाने के लिए लाया जाता है | 

बच्चों के माता-पिता का कहना था पढ़ -लिखकर उन्हें ‘क्लेटर’तो बनना नहीं है तो क्यों ‘टैम’बर्बाद किया जाए ? चाहे वे दिन भर मिट्टी में पेशाब करते, उसीमें लोटते फिरें | उसमें उनका ‘टैम’बर्बाद नहीं होता था | मास्टर जी ने बताया था कि बच्चों को स्कूल में लाने के लिए बच्चों को ही नहीं, उनके माता-पिता को भी लालच देना पड़ता है, तब कहीं बच्चे स्कूल में आ पाते हैं | 

मेहमानों के ‘लंच’ के लिए खिचड़ी का प्रबंध किया गया था| समिधा को सामने के सहन में लकड़ियों के चूल्हे पर एक बड़े से पतीले के भगौने में ‘बीरबल की खिचड़ी’पकती दिखाई दे रही थी | अब दोपहर के ढाई बज चुके थे, सबके पेट में चूहे कबड्डी खेल रहे थे | बड़े मास्टर जी ने बताया कि उनके स्कूल के एक मास्टर जी दही का प्रबंध करने गए हैं | वे अपने स्कूल तथा वहाँ की कठिनाइयों के बीच स्कूल चलाने की अपनी काबलियत की प्रशंसा करते हुए नहीं थक रहे थे और समिधा को थकन के साथ ऊब सी हो रही थी | 

कुछ ही देर में एक दुबले-पतले महाशय साइकिल पर पीछे कैरियर से बाँधे एक मटकीनुमा बर्तन को लेकर हाँफते –हाँफते हाज़िर हुए | कमरे से उनका हाँफना देखकर समिधा को लगा कि बेकार ही उन बेचारों पर अत्याचार किया गया है | उन्होंने कमरे की चौखट पर ही साइकिल लाकर खड़ी की थी | किस कदर हाँफ रहे थे वे ! फिर भी बड़े मास्टर जी ने अपने बड़प्पन तथा अनुशासन का प्रमाण देते हुए उन्हें लताड़ा | 

“इतनी देर मास्टर---! पता नईं है, मेहमान भूखे बैठे हैं ? ”

वह बेचारा झेंपता हुआ सा साइकिल के कैरियर से दही का बर्तन उठाकर शर्मिंदगी भरी आँखों से सहन की ओर भागा और चूल्हे पर चढ़ी खिचड़ी को चमचे से हिलाकर निकालते का उपक्रम करते हुए मेहमानों की खातिरदारी में व्यस्त हो गया | सब बड़े मास्टर जी के साहस की कहानियों से रोमांचित होने का दिखावा करते हुए खिचड़ी आने की प्रतीक्षा कर रहे थे | 

’भूख में किवाड़ भी पापड़ ---‘समिधा का ध्यान पतीले में से खिचड़ी निकालते हुए मास्टर पर था जिसके काँपते हाथों से बार-बार खिचड़ी प्लेट के स्थान पर ज़मीन पर टपक पड़ती थी | क्षण भर को समिधा को वह निरीह सा लगा, बेकार ही सबके सामने बड़े मास्टर ने उसकी भद्द पीट दी थी | उसे लगा वह उठकर उसकी सहायता कर दे परंतु उस समय उसकी स्थिति एक सम्मानीय अतिथि की थी और उसके किसी भी दयापूर्ण कार्य-कलाप से बात और बिगड़ने की संभावना थी | 

दूसरे कमरे में ज़मीन पर बच्चों के लिए बैठने की टाट की बोरियाँ बिछी हुई थीं | अतिथियों को वहाँ बैठाकर उनके समक्ष खिचड़ी परोस दी गई, साथ ही मिट्टी की कटोरियों में दही भी ! जो न जाने कितनी दूर से लाई गई थी और फटने की स्थिति तक गरम हो चुकी थी | एक प्लेट में अचार तथा दूसरी प्लेट में कटी हुई प्याज़ भी रखी थी | बड़े मास्टर जी के साथ दूसरे मास्टर भी हाथ बाँधे किसी अपराधी की भाँति अपने अतिथियों के समक्ष खड़े थे | 

गर्मागर्म खिचड़ी का एक चम्मच मुँह में डालते ही सबके चेहरों पर एक अजीब सी रेखा तन आई | खिचड़ी बेहद कच्ची थी, इतनी कि उसे चबाना बड़ा कष्टकर था | ऊपर से पेट की बेचारगी !

‘मारता क्या न करता ‘दो-चार कौर खिचड़ी के चबाकर सब उठ खड़े हुए | बड़े मास्टर जी तथा अन्य मास्टरों को धन्यवाद देकर काफ़िला कुछ ऐसे अपने लक्ष्य की ओर भाग चला मानो रुक गए तो ज़बरदस्ती सबके मुँह में खिचड़ी ठूँस दी जाएगी|