Nainam Chhindati Shasrani - 12 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 12

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नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 12

12

“ये तो बताओ क्यों मारा ? ”समिधा ने घबराहट भारी उत्सुकता से पूछा, उसके भीतर धुकर-पुकर हो रही थी, पेट में जैसे गोले से गोल-गोल चक्कर काटने लगे थे | 

“वो---ताड़ी का पेड़ है न ? ”कहकर रैम रुका और उस ओर इशारा किया जहाँ बहुत से लोग खड़े थे | समिधा ने ध्यान से देखा वहाँ चारों ओर ही ताड़ी के लंबे-लंबे पेड़ थे | 

रैम कुछ कहने ही जा रहा था कि समिधा ने देखा मि. दामले के साथ सभी लोग गाड़ी की ओर आ रहे थे, वह चुप हो गया | दामले ने आते ही समिधा से कहा –

“मैडम ! मिठाई खिलाइए, बहुत ज़बर्दस्त केस है, सुनेंगी न तो रौंगटे खड़े हो जाएँगे| आपको ज़बर्दस्त ‘मैटर’ मिल गया है | 

ठीक था, समिधा झाबुआ कि वास्तविक परिस्थिति को देखने, उस पर शोध करने ही आई थी पर इस प्रकार किसीकी जान जाने पर मिठाई खाने की बात तो नहीं बनती, वह उदास हो उठी | 

“अरे ! मैडम, उदास क्यों हो रही हैं, यह तो इन लोगों के लिए बहुत ‘नॉर्मल’है | “

मि. दामले घटना का वर्णन करने में व्यस्त हो गए थे | 

“झाबुआ में ताड़ी के पेड़ों के अतिरिक्त और कोई खेती नहीं होती, इसका कारण उस स्थान का सूखा जलवायु तथा पानी की कमी है | ताड़ी के पेड़ों की यह खेती पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है | राधेराम के घर भी ताड़ी की खेती होती है ---ताड़ी के ये पेड़ राजाराम के दादा के लगाए हुए हैं ---| ”

“ताड़ी वही न जिसे शहर में नीरा कहते हैं, शहर में तो उसे लोग स्वास्थ्य के लिए पीते हैं –“समिधा को यकायक याद हो आया, जब वह आकाशवाणी जाती थी, रास्ते में उसे लोग श्वेत रंग का पेय सेवन करते हुए दिखाई देते थे | 

“मैडम ! नीरा ही कहते हैं उसे ---लेकिन नीरा ताड़ी का वह शुद्ध रूप है जिस पर सूर्य की किरणें नहीं पड़तीं | सूर्य की जितनी किरणें नीरा पर पड़ती हैं, उतना ही वह ‘स्ट्रॉंग’ताड़ी के रूप में परिवर्तित हो जाता है | वो---आप देख रही हैं –वो ऊपर --| ”

दामले ने अपने हाथ के इशारे से समिधा को ताड़ी के पेड़ दिखाए जिन पर रस्सियों से बँधी छोटी-छोटी मटकियाँ लटकी हुई थीं | 

समिधा ने पहले ताड़ी के बारे में सुन रखा था परंतु इतने लंबे-लंबे पेड़ कभी देखे नहीं थे | 

“क्या हुआ मि. दामले --? ” रैम कुछ कह रहा था किसी ने अपने बेटे को मार डाला ? ”

“जी, मैडम ! वही बता रहा हूँ | राधेराम को यहाँ सब लोग राधे कहकर पुकारते हैं | उसके एक ही बेटा था मुनुआ ! यहाँ के लोग ताड़ी पीने के इतने आदि हो जाते हैं कि उसके बिना इन्हें साँस भी लेनी दूभर हो जाती है | समझ लीजिए न ताड़ी इनकी रगों में लहू के साथ बहती है | वैसे इनमें से बहुत से लोग ताड़ी का व्यापार भी करते हैं | नीरा को सूर्य के प्रकाश में जितनी अधिक देर रखा जाता है उतनी ही वह अधिक मादक बन जाती है, उस मादक द्रव्य पदार्थ को ताड़ी कहते हैं | उसमें बहुत नशा होता है, इसी नशे के ये आदिवासी बुरी तरह आदी हो जाते हैं | रात में ये लोग उठकर कभी-कभी अपने ताड़ी के पेड़ों की रखवाली करते रहते हैं | कल मुनुआ कहीं बाहर गया था, अंदर उसकी माँ व पिता राधे सो रहे थे | अचानक राधे को कुछ खटर –पटर की आवाज़ सुनाई दी| वह बाहर अपने तीर-कमान के साथ आया ।उसे लगा कोई बाहर का आदमी उनके ताड़ी के पेड़ों से ताड़ी चुरा रहा है | बस, बिना कुछ सोचे-समझे उसने आवाज़ की दिशा में तीर चला दिया, बाद में पता चला उसने दूसरे आदमी के भ्रम में अपने ही इकलौते बेटे पर तीर चला दिया था | 

समिधा दुखी हो उठी, एक युवा ने अपनी जान खो दी और वह तथा उसकी टीम उस घटना को भुनाने के लिए तैयार बैठे हैं | उसे दामले का ‘मिठाई खिलाइए मैडम !’अमानवीय व अशोभनीय लगा | एक जान की कीमत क्या हमारे लिए कुछ भी नहीं है? वास्तव में देखा जाए तो हम अमानवीय व क्रूर हो गए हैं और अपने इस व्यवहार को हमने बड़ा ‘क्लासिक’नाम दे रखा है –‘प्रोफ़ेशनल !’

हम केवल अपने लिए, अपनी सफ़लता के लिए, अपने सुख के लिए जीते हैं | यह बात इतनी आश्चर्य करने वाली भी नहीं है | समय के अनुसार समस्त परिस्थितियों मेन बदलाव हो रहे हैं | आज की परिस्थितियों मेन मनुष्य का इतना स्वार्थी हो जाना इतना अप्रत्याशित भी नहीं है | आज के परिवेश मेन जीवन का कारी-व्यापार चल भी नहीं पाता परंतु वह अमानवीय हो जाए, स्न्वेदनाओं से इतना खोख्ला हो जाए कि उसे अपने अतिरिक्त कुछ भी न दिखाई दे, यह बहुत कष्टदायक है !

मनुआ का पिता चीख़ –चीख़कर रो रहा था | माँ ज़मीन पर पछड़ खा रही थी और आसपास के लोग आँखों से आँसू बहते हुए उन लगभग मृत माता-पिता को संभालने में व्यस्त हो गए थे | इस कारुणिक दृश्य से समिध का दिलो-दिमाग दहल गया था |