Nazar - 3 in Hindi Thriller by Aarti Garval books and stories PDF | नज़र - 3 - एक रहस्यमई रात

Featured Books
Categories
Share

नज़र - 3 - एक रहस्यमई रात

"बट सर हमने किया क्या है मतलब हम तो आज पहली बार आपसे यहां मिल रहे हैं फिर आप ऐसे क्यों ?? हमसे कुछ गलती हो गई क्या सर?"

मुग्धा को इस लहजे में में बात करते हुए देख डॉक्टर कश्यप के चेहरे के हाव-भाव ही बदल गए।

"वेइट, हु आर यू? आई मीन व्होट व्होट्स योर नेम?"-डॉक्टर कश्यप ने कंफ्यूज होते हुए कहा।

"हम्म् हमारा नाम मुग्धा है सर मुग्धा राठौड़"- कांपती आवाज में मुग्धा ने कहा।

जिंदगीमें पहली बार किसी ने मुग्धा से ऐसे चिल्ला कर बात की होगी शायद.... उसका यूं डरना तो लाजमी था।

मुग्धा के चेहरे के हाव-भाव उसके बोलने का तरीका और उसका नाम सुनते ही डॉक्टर कश्यप एकदम चौक पडते हैं। मुग्धा पर इस तरह से चिल्लाने का पछतावा उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था।

"आई एम सॉरी आई एम रियली सॉरी मुझे कुछ गलतफहमी हो गई थी शायद....आई एम रियली सॉरी"- पछतावे और बहुत सारे सवालों के साथ डॉक्टर कश्यप माफी मांगते हुए वहां से चले जाते हैं।

सब लोग मुक्ता की तरफ बहुत सवाल भरी नजरों से देख रहे होते हैं ।

" अगर जानते ही नहीं थे तो क्यों इतनाांट दिया खामखा"- सुधीर गुस्से में बोल पड़ा।

"अरे वो बहुत बिजी रहते हैं यार काम के स्ट्रेस की वजह से शायद उन्हें कोई गलतफहमी हो गई होगी। जाने दो मुग्धा वो
तुम्हारे लिए नहीं था तुम इतना मत घबराओ ठीक है?" नेहा ने उसे समझाते हुए कहा।
5 मिनट बाद वहां एक और डॉक्टर आते हैं और उन सब को उनकी ड्यूटी समझाने लगते हैं। सब ढेर सारी एक्साइटमेंट के साथ अपने अपने काम में लग जाते हैं। थोड़ी देर में मुग्धा इस बात को भूल भी जाती है।

डॉक्टर कश्यप अपने केबिन में बैठे इसी बात को सोच रहे होते हैं- "यह चेहरा! क्या सच में मुझे कोई गलतफहमी हो रही है? हां ऐसा ही होगा मेंने बिना वजह उस पर इतना चिल्ला दिया"।फिर थोड़ी देर बाद वो भी अपने काम में लग जाते हैं।

धीरे-धीरे मुग्धा हॉस्पिटल के तौर तरीकों में घुलमिल जाती है और अपने सपने के लिए मन लगाकर काम करने लगती है। अपने मासूम से चेहरे और प्यारे से स्वभाव से वह सब के दिलों में जगह बना लेती है, मगर डॉक्टर कश्यप उससे एक अजीब सी दूरी बनाए रखते थे।

सुधीर जैसे-जैसे मुग्धा को जानने लगता है उसका प्यार मुग्धा के लिए और भी बढ़ता जाता है मगर मुग्धाने अपने काम के अलावा और किसी बात पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। इंटर्नशिप स्टार्ट हुए आज 4 महीने हो चुके थे।

नेहा, अंजलि, रुद्र, सुधीर, और मुग्धा आज इतने अच्छे दोस्त बन गए थे कि हर वीकेंड पर वो लोग कहीं ना कहीं साथ में घूमने जाते थे। एक दूसरे की हर छोटी बड़ी गलती या कमजोरी वो सब अच्छी तरह से समझने लगे थे। बस इसी तरह हंसी खुशी दिन गुजरते जा रहे थे , वक्त को मानो पंख लग गए थे। इन लोगों की दोस्ती की तो हर कोई मिसाले देने लगा थे।

वहीं दूसरी और घर पर मुग्धा और वीर की दोस्ती भी काफी हद तक अच्छी हो गई थी, लेकिन हर वक्त घर पर किसी के आस पास होने का एहसास मुग्धा को रात को चैन से सोने नहीं देता था। उसने वीर,यहां तक कि अंजलि को भी यह बात बताई थी। एक दो बार तो अंजलि उसके साथ घर पर रहने तक आई यह देखने के लिए कि क्या सच में ऐसा कुछ हो रहा है या यह मुग्धा का वहम है। मगर उसे ऐसा कुछ नहीं मिला फिर मुग्धा ने भी इस बात को अपना वहम समझकर मन में ही दबा दिया।

संडे की सुबह यानी की आराम का दिन। मुग्धा ने बेडरूम से बाहर आकर देखा तो घड़ी में सुबह के 10:00 बज रहे थे। उसने अपनी कविताओं की किताब को हाथ में लिया कि तभी डोरबेल बजी। मुग्धा ने दरवाजा खोला

"अरे वीर सुबह-सुबह क्या हुआ? अंदर आओ" दरवाजे पर वीर को देख के मुग्धा ने उसे अंदर आने के लिए कहा।
"कहो क्या बात है?"
"मुग्धा में पिछले कई दिनों से तुमसे कुछ बात करने की कोशिश कर रहा हूं मगर किसी ना किसी वजह से रह ही जाता है तो सोचा आज का लंच हम बाहर करें? मुझे तुमसे कुछ बात भी करनी है वो भी कर लेंगे और लंच भी हो जाएगा?"- वीर ने बिना हिचकिचाए एक ही बार में सब कह दिया।

मुग्धा कुछ बोलो उससे पहले ही ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग- मुग्धा का फोन बज उठता है। मुग्धा कॉल पर बात करती है फिर कॉल कट करके वो कुछ सोचने लगती है और वीर से कहती है-
"आई एम सॉरी वीर! मुझे एक अर्जेंट काम आ गया है और अभी बाहर जाना होगा मैं तुमसे शाम को आकर मिलती हूं।"- कहकर मुग्धा जल्दी से रेडी होकर बाहर चली जाती है।

(आखिर किसने कॉल किया था मुग्धा को और क्यों? ऐसा क्या हो गया था कि मुग्धा ने वीर की बात को सुनना तक जरूरी नहीं समझा? और आखिर क्या बात करना चाहता था वीर मुग्धा से? हम जानेंगे अगले एपिसोड में)