DAIHIK CHAHAT - 19 in Hindi Fiction Stories by Ramnarayan Sungariya books and stories PDF | दैहिक चाहत - 19

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दैहिक चाहत - 19

उपन्‍यास भाग—१९

दैहिक चाहत –१९

आर. एन. सुनगरया,

प्रत्‍येक प्राणी द्वारा जीवन पर्यन्‍त सुख पाना, पाते रहना ही उद्देश्‍य, मकसद, ध्‍येय इत्‍यादि होता है। सुख का रूप कोई भी हो, प्रकार कोई भी हो, भौतिक, मानसिक, शारीरिक, आर्थिक, आत्मियक, हार्दिक, दिव्‍य अथवा आलोकिक, कैसा भी हो।

सुख तात्‍कालिक, दीर्घकालिक, अथवा सदा-सदैव के लिये हो मगर हो !

सुख, शॉंति, सुरक्षा, प्रसन्‍नता, जागृति, चेतना, आनन्‍द, तृप्ति, संतोष इत्‍यादि-इत्‍यादि की तृष्‍णा के इर्द-गिर्द जिन्‍दगी के समग्र कार्यकलाप, भँवर के चारों ओर चक्‍कर लगाते रहते हैं। जैसे हिरण मृगतृष्‍णा के मोह में मोहित होकर, उस अदृष्‍य वस्‍तु को प्राप्‍त करने के लिये, दिग्‍भ्रमित होकर भागता रहता है, भागता रहता है, अन्‍त तक !

सुख सम्‍पदा पाने के लिये प्रत्येक प्राणी भिन्‍न-भिन्‍न संसाधन संग्रह करता रहता है। सुविधाऍं जरूर मिलती हैं, मगर सुख नदारद रहता है। भौतिकवादी, चल-अचल सम्‍पत्ति में सुख वास करता है, यह भ्रम भी पल्‍लवित होने लगता है।

अल्‍परूप में इसी से मिलते-जुलते गूँढ़ विषय के संदर्भ में अपने यथार्थ अनुभव के सहारे सुख, खुशी, शॉंति, प्रसन्‍नता, खुशहाली शुकून, तृप्ति, संतोष आदि-आदि सॉंसारिक क्षण भंगुर सुख की सामान्‍य परिभाषा के अनुसार, संक्षेप्‍त में सार्थक क्रियाम्‍वन करके लाभ उठाने हेतु कुछ योजनाऍं बना रहे देव ने इसी तारतम्‍व में कहा, ‘’चलते हैं, मार्केट कुछ आवश्‍यक साजो-सामान, बर्तन-भाड़े, कपड़े-लत्ते, ड्रेस, कस्‍ट्यूम, श्रृंगार-सामग्री, राशन-साग-सब्‍जी इत्‍यादि-इत्‍यादि। फिलहाल, अभी तक तो सब काम चलाऊ व्‍यवस्‍था है। क्‍यों न सुव्‍यवस्थित घर गृहस्‍थी स्‍थापित की जाय, सुविधाजनक........।‘’ देव बोलता रहा।

शीला ने टोका, ‘’आहिस्‍ता–आहिस्‍ता, सब कुछ इन्‍तजाम हो जायेगा, एक-एक, एक- दिन में सम्‍भव नहीं है।‘’ शीला ने व्‍यवहारिक अनुभव परक सलाह दी।

‘’मेरा मतलब है, रोज-रोज चक्‍कर ना काटना पड़े !’’ देव का कहना भी जंचा।

‘’सुविधानुसार, सोच-सोच कर लिस्‍ट आऊट कर लें.......।‘’ शीला ने देव की कलाई पकड़कर बैठने का संकेत किया।

‘’हॉं।‘’ देव बच्‍चे की भॉंति मुद्रा में शीला की गोद में, सावधानी पूर्वक पसर गया। सारी जल्‍दबाजी एवं आतुरता भूल गया। सुखद शुकून महसूस करने लगा।

देव ने, शीला से नैन मिलाते हुये बताया, ‘’अगले माह मैरिज कोर्ट से डेट मिल जायेगी, रजिस्‍ट्रेशन की।‘’ आगे देव ने लेटे-लेटे ही अपनी बाँहों को अपने कन्‍धों से ऊपर लेजाकर शीला को लपेटा, अपने चेहरे की ओर निकट खींचकर हल्‍के से धीमी गति में बोलते हुये बताया, ‘’कोर्ट की डेट कन्‍सीडर होने के बाद आगे-पीछे नहीं हो सकती, उस तारीख को ऊपर-नीचे करने हेतु जबरजस्‍त कारण प्रूफ के रूप में प्रस्‍तुत करना होगा। इसलिये तनूजा-तनया को फिक्‍स दिनांक बताना अत्‍यावश्‍यक है, पर्याप्‍त समय पूर्व।‘’

‘’मैं समझती हूँ।‘’ शीला ने गम्‍भीरता पूर्वक कहा, ‘’तुम ही उन्‍हें डिटेल में समझाओ, ता‍कि एनीहॉऊ आ ही जायें, कोशिश करके।‘’

‘’ठीक है, मैं बात करूँगा।‘’ देव ने एस्‍योर किया।

‘’और हॉं।‘’ देव ने अचानक ख्‍याल आने पर तत्‍काल जानकारी दी, यह बगल का क्‍वार्टर एलॉट हो गया है।‘’ आगे बताया, ‘’मैंने एडमिनिशट्रेशन डिपार्टमेन्‍ट को भाईट वाशिंग एवं टूट-फूट रेपेयर करने के लिये लिख दिया है। समय रहते सब काम साफ-सफाई इत्यादि आदेशानुसार हो जायेंगे सुविधापूर्वक..........।‘’

‘’धड़ा-धड़ एकशन ले रहे हो.......।‘’ शीला ने देव को गुदगुदाया।

दोनों खिलखिलाने लगे, एक-दूसरे की गोद में..........कशमशाते हुये.........।

सामान्‍य शॉंत मुद्रा में बैठकर देव ने शीला की तरफ मुखातिब होकर कहा, ‘’शाम को एक अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण कार्य है। चलेंगे दोनों, तैयार रहना।‘’

‘’कहॉं।‘’ शीला ने पूछा।

‘’सस्‍पेन्‍स है।‘’ देव ने बताया दोनों एक दूसरे को नशीली निगाहों से निहारते हुये, कातिल मुस्‍कान बिखेरने लगे............।

शीला शाम को जब तैयार होकर हाल में आई, तब देव सामने ही खड़ा मिला। दीवानों, आशिकों, मस्‍तानों जैसे अनुभवी अभिनय करके तारीफें करता, लच्‍छेदार शब्‍दावली में......कि मैं भी शर्म से लाल हो गई तथा मेरी हंसी छूट पड़ी ! शीला ने कुछ बोले बगैर मुण्‍डी को आहिस्‍ता से झटका देकर सांकेतिक भाषा में चलने के लिये बाध्‍य किया। देव-शीला कम्‍पनी की कार में पीछे वाली शीट पर बैठे, ड्राइवर सामान्‍य रफ्तार में ड्राइव करता हुआ, कुछ देर में फोर व्‍हीलर के सबसे बड़े शोरूम के गेट के सामने रूक गया।

देव कार से बाहर आया, शीला को भी कार से उतरने का संकेत दिया। कुछ क्षण पश्‍च्‍छात शीला उतर गई। अपने केशविन्‍यास को ऊँगलियों से सम्‍भालते साथ ही साड़ी वगैरह सलीके से करते-करते देव के पीछे-पीछे रेंगने लगी।

शोरूम के गेट पर औपचारिक स्‍वागत-सत्‍कार के पश्‍च्‍छात फ्लोर के द्वार तक पहुँचे। यूनिफार्म में तैनात दरवान ने कॉंच का डोर खोला, देव-शीला के प्रवेश करते ही, दो-तीन अटेन्‍डेन्‍ट्स आ धमके, उन्‍होंने पूर्ण आदर-सम्‍मान के साथ महाराजा सोफे पर बैठाया, कोल्ड्रिंक इत्‍यादि ऑंफर किया। देव ने आदेशात्‍मक लहजे में कहा, ‘’हमने लेटेस्‍ट मॉडल की कार बुक की है।‘’

‘’यस सर ! आपके कलर चौवाईस के कारण प्रोसेस नहीं हो पाये डॉकूमेन्‍ट।‘’

‘’करवाओ कलर पसन्‍नद।‘’

‘’आइऐ सर !’’

‘’चलो शीला.....।‘’ कहते हुये, दोनों, अटेन्‍डेन्‍ट के पीछे-पीछे चल दिये। दस-बीस कदम चले होंगे कि अटेन्‍डेन्‍ट ने अपने हाथ के संकेत द्वारा कहा, ‘’ये देखिए सर, ग्राऊँड में इतने तरह-तरह के कलर.........।‘’ उसने रेक्‍यूस्‍ट की, ‘’आप चौवाईस कीजिए, मैं अभी हाजिर हुआ......।‘’ वह चला गया।

‘’तो यह सरप्राइज है !’’

‘’हॉं चूस करो अपना रंग।‘’

‘’तुम बताओ,…..कैसा रंग अच्‍छा लगेगा।‘’

‘’सारे रंग लुभा रहे हैं, फेन्‍टास्टिक, प्‍यारे, सुन्‍दर हैं, चटक मेटालिक कलर हैं।

कुछ समय में विचार-विमर्श करके एक कलर पर सहमति बन गई, तय हो गया फाईनली.....।

डिलीवरी में कुछ टाईम लगेगा, तब तक दोनों रेस्‍टोरेन्‍ट में आकर बैठ गये। एक-दूसरे के सामने।

रेस्‍टोरेन्‍ट में सामान्‍य स्‍वाभाविक हलचल अथवा गतिविधियॉं जारी थीं। शीला-देव औपचारिक बातें करते हुये, निश्चिंत, शॉंत एवं प्रसन्‍न मिजाज में परस्‍पर एक-दूसरे के मुखमंडल पर तैरते भावों को पढ़ने, पहचानने महसूस करने की कोशिश कर रहे हैं।

‘’आर्डर प्‍लीज सर !’’ बैरे ने नोटपेड थामें पूछा।

देव ने शीला की तरफ इशारा किया बैरा शीला की तरफ मुखातिव होकर बोला, ‘’येस मैडम, प्‍लीज !’’

शीला ने मीनू बुक उलट-पलट कर देव की ऑंखों में झॉंका, ‘’क्‍या खाओगे.....।‘’

‘’एज यू लाइक.......।‘’ देव ने सर हिलाया।

शीला ने आर्डर दिया। बैरा चला गया। दोनों पुन: बतयाने लगे, तात्‍कालिक विषयों पर...।

मुखवाश चबाते हुये, शीला-देव रेस्‍टोरेन्‍ट से बाहर आये, तब तक कार डिलीवरी के लिये रेडी हो चुकी थी। मैनेजर चाबी तथा अन्‍य रेलेवेन्‍ट डॉकूमेन्‍ट थामें, खड़ा प्रतीक्षा कर रहा था, देव की ओर सारा सामान, चाबी बढ़ाते हुये बोला, ‘’कॉन्‍ग्रेचुलेशन सर-मैडम।‘’

देव-शीला ने सांकेतिक लहजे में विनम्र, मीठा, प्‍यारा अभिवादन का जवाब दिया। देव ने अत्‍यन्‍त गौरवशाली अन्‍दाज में चाबी शीला की तरफ बढ़ाकर, ‘’लो चाबी चलाओ।‘’ गर्व की अनुभूति।

शीला ने शुभ क्षण में ना-नुकर, नखरे करना उचित नहीं समझा, तत्‍काल चाबी पकड़कर देव के प्रस्‍ताव को स्‍वीकार कर लिया।

शीला ड्राइवर शीट पर बैठकर अत्‍यन्‍त आवश्‍यक प्रारम्भिक कार्यकलाप तैयारी के रूप में कर रही थी, तभी देव ने अपने कीमती मोबाइल द्वारा उसकी सारी एक्‍टीविटीज़ का लाइव विडियो बना लिया। ताकि तनूजा-तनया को लाइव विडियो भेज कर जीवित जानकारी दोनों बेटियों को दी जा सके। शीला ध्‍यान पूर्वक ड्राइविंग करती रही, देव शांत बैठा, उसकी भाव-भंगिमा, मूवमेन्‍ट कन्खियों से दबी नजर से निहार रहा है बहुत खूबसूरत लग रही है। गोरी-गोरी गरिमामयी।

कुछ ही समय पश्‍च्‍छात कार मन्दिर परिसर में प्रवेश कर गई। पुजारी ने, सामान्‍य संक्षिप्‍त पूजा पाठ मंत्र वगैरह गुनगुना कर सुरक्षा की कामना की एवं शुभकामनाऍं दीं, प्रसाद हाथ में पकड़ा दिया।

रास्‍ते में एक-दो स्‍थान बाजार में रूककर कुछ खरीदारी की एवं क्‍वार्टर पहुँच गये। अपने गेट के सामने चमचमाती कार खड़ी करके, दोनों साथ-साथ हॉल में प्रवेश करते ही देव ने कहा, ‘’आज अभूतपूर्व खुशी का एहसास हो रहा है। प्रथम बार पारी‍वारिक दायित्‍व निवाहने की खुशहाली की अनुभूति हो रही है। अन्‍तर्मन प्रसन्‍नता से झूम रहा है। आत्मियक संतृप्ति, संतोष, सुकून लहलहा रहा है दिल-दिमाग में अद्भुत फील हो रहा है।

शीला भी मन ही मन सोच रही है.......देव ने अपने निश्‍च्‍छल, निर्मल, विशाल-खुले दिल का परिचय दिया है। अपनी पारीवारिक भावनाओं को, इच्‍छाओं को, आशाओं को, अरमानों को, जिम्‍मेदारियों को निभाकर, पूरा करके नैशर्गिके यथार्थ का अदृश्‍य स्‍पर्श, आत्‍मा से होता है, तो आलौकिक आनन्‍द की अपूर्व अनुभूति होती है, अमूल्‍य। आज वह दिव्‍य सुख पाकर देव अभिभूत हो गया है। स्‍वार्थ रहित, अपेक्षा रहित, आस रहित !

चेन्‍ज करके नाईट ड्रेस में काफी पीने जब टेबल पर आये तो दोनों पारीवारिक, गृहस्‍थ जीवन के आगाज की चमक, आत्‍मविश्‍वास, गम्‍भीरता, दायित्‍वबोध गहन प्रसन्‍नता, अपूर्व आनन्‍द की दीप्ति। जिन्‍दगी का टर्निंग प्‍वाइन्‍ट अनेक एहसासों से भरपूर, सुनहरे, उज्‍जवल भविष्‍य की तरफ आशावान, दृढ़ संकल्पित, जीवन के सारे कुदरती सुख, सम्‍पदाओं को समेटने की आतुरता छिपाये नहीं छिप रही है। दोनों की मनोदशा एक समान है............बस एक-दूसरे को अपलक निहारे जा रहे हैं, ऑंखों में संसार के समग्र सुख-संतोष तैर रहे हैं, अटखेलियॉं, क्रिड़ा कर रहे हैं। दोनों ने मौन स्‍वीकृति द्वारा परस्‍पर एक-दूसरे को आलिंगन में समर्पित कर दिया............।

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश:---१९

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय- समय

पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्‍वतंत्र

लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍