नेट की कल्पना
राघव ग्रेजुएशन, कंप्यूटर के अनेक कोर्स और प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने के बाद भी अब तक बेरोजगार ही है। ऐसा नहीं है कि वह अपना रिज्यूमे लेकर कंपनी दर कंपनी भटका न हो। हार मानकर अब वह मोबाइल रिपेयरिंग का काम करने लगा। बीच-बीच में व्हाट्सएप, टि्वटर, इंस्टाग्राम के अतिरिक्त फेसबुक से भी चिपक जाता है। इसी चक्कर में कई बार कस्टमरों का काम न कर पाने के कारण वह बुरी-भली भी सुनता रहता है। सच में, यह नेट की दुनिया, है ही ऐसी, जिसको एक बार चस्का लग जाए तब बाहर निकलना बहुत ही कठिन होता है। ये जमात बड़ी ढीठ किस्म की होती है। अब तो यह कहा जाने लगा है कि गांधी जी के तीन बंदरों के साथ अब "मोबाइल स्क्रीन पर आँख गड़ाये, नेट की दुनिया में तल्लीन बंदर" को भी चौथा स्थान मिलना चाहिए।
इस आभासी दुनिया में तरह तरह के लोग नाता जोड़ते और तोड़ते रहते हैं। कोई भी यूजर किसी के रिमूव, लेफ्ट या ब्लॉक होने पर, न ही दुखी होता है और न ही पश्चाताप करता है। उसे मालूम रहता है कि सारे लोग इन प्लेटफार्मों पर आकर मनोरंजन ही करते हैं। एक दूसरे को बेवकूफ बनाने के आभासी सुख में ही खुशी से झूमना अपनी उपलब्धि मानते हैं। इक्का-दुक्का लोग ही परस्पर यथार्थ में जुड़ पाते हैं। अधिकतर लोग झाँसे ही देते रहते हैं। कोई दूसरी आई. डी. से, कोई फर्जी नाम से तो कोई लड़का या लड़की बनकर आनंद लेता है। टी. वी. सीरियलों की तरह नए-नए हथकंडों के सहारे चैटिंग के एपिसोड खत्म होने का नाम ही नहीं लेते। कई बार तो सालों-साल पता ही नहीं चलता कि यह फर्जी है, पर ऐसे मामलों में जब वास्तविकता का पता चलता है तो यूजर स्वयं को ठगा सा पाता है।
ऐसे वाक़ये राघव के साथ घटते ही रहते हैं, पर उसको अब तक कोई फर्क नहीं पड़ा। एक तो बेरोजगार और दूसरा अविवाहित अर्थात दुबले और दो आषाढ़ की स्थिति होने के कारण कई बार उसे अवसाद में सिर झुकाए भी बैठा देखा गया है। उसके मित्र, परिचित या रिश्तेदार भी कुछ मदद नहीं कर सके और न ही किसी ने उसकी नौकरी-धंधा लगवाने में सहायता की। ऊपर से यह नेट का मानसिक रोग है कि बढ़ता ही जा रहा था। अब तो राघव देर रात तक अपने मोबाइल से चिपका रहने लगा। कभी उसे नौकरी का प्रलोभन मिलता, तो कभी किसी लड़की से शादी की उम्मीद जगती और तो कभी कभी उल्टे कोई स्वयं को मुश्किल में बता कर पैसों की फरमाईश कर देता। बेचारा, वक्त का मारा राघव, कैसे सम्हालता होगा ऐसे प्रकरणों को, भगवान ही जाने। इस तरह वास्तविकता के धरातल पर उसकी हमेशा 'हासिल आई शून्य' ही रहती। अब तक नेट से उसने कोई स्मरणीय अथवा विशेष सफलता प्राप्त नहीं की। मेरी समझ से उसने जितनी बार अपनी उँगलियों और अँगूठे को नेट पर चलाया है, इतना यदि इन्हीं से लेखनी को चलाता तो अब तक कई ग्रंथ लिख गए होते। दूसरी तरह से कहूँ तो एक टाइपिंग की दुकान भी चल सकती थी। लेकिन नेट-एडक्टों की समझ में आये तब न। आते जाते यही सब देखकर कुछ लोगों को अब ऐसा लगने लगा कि राघव एक ड्रग एडिक्ट की तरह इस आभासी दुनिया का मानसिक रोगी बन गया है।
एक रात्रि राघव अपने कमरे के बेड पर अधलेटा फेसबुक मेसेंजर के माध्यम से एक साथ अनेक लोगों से बातें कर रहा था। सबके साथ उनसे बनाए गए सम्बन्धों के अनुरूप अर्थात हम यूँ कहें कि जिस तरह फिल्मों में कोई अभिनेता डबल, ट्रिपल अथवा मल्टी रोल एक साथ करता है, उसी तरह राघव नाम का यह एक व्यक्ति मल्टी व्यक्तित्वों को अपने में समाहित कर सबसे बातें कर रहा था। रात खिसक रही थी। नींद भी कभी-कभी तन-बदन को झटके दे रही थी, लेकिन बिना पड़ाव पर पहुँचे बात की इति करना सामने वाले की नाराजगी का कारण भी बन सकता है, शायद इसलिए वह मेसेंजर पर चिपका हुआ था। चैटिंग की ध्यानमग्नता अपनी शिखर पर पहुँचती गई।
अचानक उसने देखा कि वह जिस लड़की के ऑन लाइन होने की प्रतीक्षा कर रहा था, उसका मैसेज उभर कर मोबाइल स्क्रीन पर आ गया। बंदे की खुशी का ठिकाना न रहा। उसका मन कुलाँचें भरने लगा। बातों का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसे लगा कि आज उसकी सारी मुरादें पूरी हो जायेंगी। जिसके प्रेम में वह विगत छह माह से पागल था, उसे विश्वास हो चला था कि अब दोनों एक दूजे के हो ही जाएँगे। ऑडियो-वीडियो चैट से प्रेम की बातों के बाद अब कल रू-बरू होने की बातें हो ही रही थीं। उसी समय सामने वाले यूजर अर्थात कल्पना के माँ-बाप चुपके से उसके पीछे खड़े रहकर यह सब देख और पढ़ रहे थे। कल्पना ने मिलने का समय और स्थान निश्चित कर लिया।
दूसरे दिन राघव समय से तैयार होकर पूर्व नियत स्थान पर पहुँच गया। कल्पना को वहाँ देखकर राघव को लगा जैसे उसका सपना पूरा होने ही वाला है। राघव ने गर्मजोशी के साथ एक बड़ा-सा बुके कल्पना को दिया और उसे अपनी बाहों में भर लिया। तभी कल्पना के भाई और पिताजी ने पीछे से राघव की लात-जूतों से धुनाई शुरू कर दी। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से राघव घबरा गया और डर कर गिड़गिड़ाने तथा चिल्लाने लगा।
इस चीख-पुकार को सुनकर राघव के घरवालों की नींद खुल गई। उसके कमरे में पहुँचकर वे देखते हैं कि राघव बेड पर उलट-पलट कर चिल्लाए जा रहा था कि- मुझे मत मारो! मुझे मत मारो! मैं कल्पना से प्रेम करता हूँ। मैं उससे शादी करना चाहता हूँ। तभी घरवालों ने राघव को झँझोड़कर उठाया तो वह हड़बड़ा गया। अपनी झिझक छुपाते हुए उसने बताया कि मैं एक सपना देख रहा था, जिसमें कुछ लोग पता नहीं क्यों मेरी धुनाई कर रहे थे।बात यो आई गई, लेकिन अब वह समझ गया था कि "नेट की कल्पना" ने भी उसे धोखा दे दिया है।
इसीलिए साथियो! आभासी दुनिया से निकल कर वास्तविकता के धरातल पर आईये, इसी में सब की भलाई है। इस नेट के चक्कर में पड़े तो न पढ़ाई, न कमाई, न सगाई और हो भी सकती है ऐसी धुनाई।
- विजय तिवारी 'किसलय'