katha buddhi bhatiyarin aur kag manjari ki in Hindi Love Stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | कथा बुड्ढी भटियारिन व काग मंजरी की

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कथा बुड्ढी भटियारिन व काग मंजरी की

कथा बुड्ढी भटियारिन व काग मंजरी की

एक था गाँव गाँव के बाहर थी एक धर्मशाला याने कि सराय रोहिल्ला जो सराय काले खां के बग़ल में थीं जहां आते जाते बटोही रात को ठहरते ओर सुबह उठ कर चले जाते धंधा चौखा चल रहा था

ऐसे ही एक दिन भटका हुआ यात्री आया भटियरिन ने उसे ठहराया खा पीकर जातरू सोने से पहले हुक्का पीने भटियरिन के पास आया हुक्के का कश खिंचा ओर बोला

-हे शहर की मल्लिका कोई ताज़ा क़िस्सा बयान कर ताकि रात कटे कुछ थकान मिटे.

भटियारिन खूब खेली खाई थी बोली

हे राजा आज में तुम्हें काग मंजरी की कथा सुनाती हूँ.

समय पर हुंकारा भरना, तुमने हुंकारा बंद किया तो क़िस्सा कथा कहानी सब बंद

सो प्रेम से सुन और गुन.

फिर शुरू हुईं कथा काग मंजरी की जो बड़ों बच्चों सब को बहुत पसंद आई.

हे बाँके जवान!

काग मंजरी अत्यंत महत्वाकांक्षी औरत थी उसका मन था की किसी अति महत्वाकांक्षी पुरुष रुपी घोड़े की वल्गाएँ पकड में आ जाये तो मज़ा आ जाये,लेकिन इस शहर में घोड़े कम और गधे ज्यादा थे ,किसी एक की होकर काग मंजरी का जीवन कटना मुश्किल था वैसे भी दिल्ली तो बेवफा प्रेमिका की तरह है हार बार उजडती है हार बार बसती है कभी किसी एक की होकर नहीं रहती है.सो उसने अपने घर परिवार को छोड़ा और माया नगरी का रुख किया ,माया नगरी में सब सियार शेर की खा ल औढे घूमते पाए गए,कई दिनों तक तो काग मंजरी को यह खेल समझ ही नहीं पाई,नशे पते के जीव न मरे न जीवे, जातरू ने हुक्के का कश जोर से खिंचा उसे खांसी आई ,भटियारिन ने उसे पानी पिलाया और बाकि का किस्सा कल पर छोड़ दिया ,जातरू सोने चला गया भटियारिन ने एक लम्बी साँस खिची और अपने पुराने भूगोल इतिहास को याद किया और सर तकिये पर टिका दिया ,नींद अभी दूर थी .

उसे मुग़ल सल्तनत के दिन याद आए,उसकी नानी और दादी चावडी बाज़ार में राज करती थीं.समय बदला हिंदुस्तान आज़ाद हुआ ,लालकिले पर तिरंगा फहराने लगा,लेकिन जिंदगी में कुछ भी खास नहीं बदला गरीब गरीब ही रहा और अमीर और भी ज्यादा अमीर होता चला गया.बादशाहों ,बेगमों का राज गया ब्रितानी हुकूमत आई और अब ये देसी हुकूमत ,कही कुछ नहीं बदला.ग़ालिब की गली और भी ज्यादा तंग और भीड़ भरी हो गई मगर जिन्दगी हसीन होने के बजाय और भी कमतर होती चली गयी.पुराने किस्से हों या नए सब का नतीजा ये की रोटी के लिए पाप किये जाओ.औरत का वजूद किसी को पसंद नहीं आया ,देह परे कोई उपयोग नहीं.पति हो या प्रेमी या बाज़ार बस एक ही उपयोग .

उसे नींद आगई.

मुर्गे की बांग से नींद खुली.सुबह का मंजर सुहाना था मगर जल्दी ही शहर जग गया दोड़ने लगा,जातरू अपने काम से चला गया.

शाम को फिर महफिल जमीं.भटियारिन ने काग मंजरी के किस्से को आगे बढाया .

-कहों बांके! कैसा रहा दिन ?

-क्या बताएं बाज़ार और सियासत में तो आग लगी हुई है.शराब शबाब और नकदी तीनों लगते हैं तो कुछ काम होता है ,बाकि तो सब लाल-किला का भाषण है हर सरकार पिछले वाली को गा ली देकर काम चला रही है.जहाँ भी पका फल दीखता है तोतें चोंच मारने पहुँच जाते हैं.हर एक को सियासत के गलियारें में जगह चाहिए.

छोडो यह सब तुम तो काग मंजरी का किस्सा आगे बढाओं ,और हाँ जरा ये हुक्का इधर दो आग तेज़ करों सुनने वालों कान धर कर सुनो.हुंकारा भरते रहना हुंकारा बंद किस्सा बंद.

भटियारिन ने हुक्के को आग दी.किस्से को आवाज़.

यारों वो भी क्या दिन थे जब काग मंजरी के पेशाब में दिए जलते थे.साउथ ब्लोक ,नार्थ ब्लोक तक उसका जलवा था .मगर कल मुहीं अपना मुहं बंद रखना ना सीखी सो एक रात एक अरबपतियों की पार्टी में फंस गयी गोली चली वो तो बच गयीं मगर चलाने वाले ने साफ कह दिया शहर छोड़ दो नहीं तो दुनिया छोडनी पड़ेगी वैसे भी रात के अँधेरे में अरबपति किसी पर भी गाड़ी चढ़ा सकता है कोई सुनने वाला नहीं अख़बार और चेनल वाले रो पीट कर चुप हो जाते हैं पोलिस की अपनी मजबूरियां होती है ,सो काग मंजरी ने अपना जमा जमाया रुतबा छोड़ा और माया नगरी की राह पकड़ी. जातरू ने लम्बा हुंकारा भरा मगर खर्राटें की आवाज़ आई ,भटियारिन ने किस्सा बंद कर दिया.

पूरब की और लालिमा से शहर की भोर हुईं दिन ढला फिर महफ़िल जमी ,इस बार किस्सा काग मंजरी के मुंबई दरबार से शुरू हुआ.

काग मंजरी जवान थी,शातिर थी ,महत्वकांक्षी थी,बस करना ये था की कुछ अच्छे घोड़े ढूँढना और उनकी सवारी करनी थी ,उसे विश्वास था सब ठीक होगा.

काग मंजरी ने एक बड़े हीरो के सचिव को पटाया और महल नुमा बंगले में घुस गई.हीरो तक पहुच हो गई बाकि का काम हुस्न ने कर दिया ,दोनों तरफ से लटके झटकों का आदान प्रदान हुआ .दोनों ने जाल फेंके दोनों एक दूसरे के जाल में फंस गए.हीरो पत्नी को सब कुछ दिखा मगर यहीं सब तो वो भी कर के यहाँ तक पहुंची थी.

प्रेम, वासना ,पैसा व शोहरत सब कुछ ऐसे ही नहीं मिलता ,त्याग और समझोते सब करने पड़ते हैं.सफलता का रास्ता बेड रूम से ही होकर निकलता हैं.

हीरो के सहारे काग मंजरी ने एक प्रोडूसर और एक फिनेंसर को भी फांस लिया अब उसका सर कढ़ाही में व् चारों उँगलियाँ व् एक अंगूठा घी में थे . ,मुहावरा उल्टा इसलिए लिखा की वहां सब काम उलटे तरीके से ही होते हैं .

भटियारिन ने एक ठंडी साँस खिंची जातरू ने हुक्का पकड़ा, खेंचा और लम्बा हुंकारा भरा.

- फिर क्या हुआ अम्मा ?

वहीँ हुआ जो खुदा को मंज़ूर था.हीरो के घर ड्रग्स मिली पकड़ा गया एक रायफल मिली हीरो के कनेक्शन गज़ब के थे उसने सब अपराध की जिम्मेदार काग मंजरी को बताया .काग मंजरी के पास हुस्न के सिवाय क्या था ,नहीं चला ,केस चला काग मंजरी चक्की पिसिंग पिसिंग एंड पिस्सिंग .

रात बहुत हो गई जाओ सो जाओ.

भटियारिन के आँखों से आज भी नींद दूर थी क्योकि काग मंजरी उसकी ही बेटी थीं लेकिन सियासत के गलियारों में कोई सुई तक ना गिरी .कहते हैं काग मंजरी जेल में ही सड़ सड़ के मर गयी ,ऐसे बुरे दिन किसी के न आए प्रभु.करम का लेखा मिटे ना रे .भटियारिन ने एक लम्बी साँस खिंची और खुद से बोली-

यारों! जब महफ़िल में हम ना होंगे तो हमारें अफसानें होंगे .कल फिर शाम होगीं कल फिर महफ़िल सजेगी ,मगर अफ़सोस आप की महफ़िल में हम ना होंगे हमारे अफसाने होंगे ,आमीन.

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यशवंत कोठारी ,८६,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर जयपुर-३०२००२ मो-९४१४४६१२०७