Let's go for a walk somewhere... 11 in Hindi Travel stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | चलो, कहीं सैर हो जाए... 11

Featured Books
Categories
Share

चलो, कहीं सैर हो जाए... 11



सुबह के लगभग सात से कुछ अधिक का ही वक्त हो चला था । आज के लिए हमारे पास कोई अग्रिम योजना नहीं थी सो हमें कोई जल्दी नहीं थी । बड़े आराम से धीरे धीरे चलते हुए हम लोग निचे उतर रहे थे ।

धुप पूरी तरह से निखर चुकी थी । अभी भी हम लोग काफी उंचाई पर थे । कई जगह निचे के दृश्य देखने के लिए व्यू पॉइंट बनाये गए हैं । इन जगहों से निचे घाटी की अनुपम छटा सूर्य की रोशनी में और निखर उठा था । बड़ा ही मनमोहक अवर्णनीय दृश्य था । दूर नजर उठाकर देखने पर पूरा कटरा शहर किसी इंजिनियर द्वारा बनाये गए किसी प्रोजेक्ट की प्रतिकृति सा लग रहा था ।

सीधे बायीं तरफ हेलीकाप्टर के उडान भरने के लिए बनाया गया हेलीपैड भी दृष्टिगोचर हो रहा था । उसी सीध में पश्चिम की तरफ तब निर्माणाधीन कटरा रेलवे स्टेशन की इमारत भी अलग छटा बिखेर रही थी । अब तो कटरा देश के सभी कोनों से से बड़े रेलवे स्थानकों से भलीभांति जुड़ चुका है ।

ऐसे ही अपने आस पास और दूर तक भी नजर आनेवाले दृश्यों का अवलोकन करते हम लोग धीरे धीरे निचे के तरफ अग्रसर थे । लगभग दो किलोमीटर से अधिक ही हम लोग उतर चुके थे । अब बाणगंगा परिसर और दर्शनी ड्योढ़ी भी साफ दिखाई पड़ रहे थे । रास्ते के दोनों तरफ दुकानों की श्रंखला भी शुरू हो चुकी थी और इसीलिए भीड़ की वजह से काफी चहल पहल भी लग रही थी ।

निचे उतरने वाले समूह दुकानों पर खरीददारी करते नजर आ रहे थे । अखरोट की खरीददारी बहुतायत में हो रही थी । प्रसाद भी आकर्षक पैकिंग में उपलब्ध थे । लोग जम कर खरीददारी कर रहे थे लेकिन हम लोग बस सब कुछ देखते समझते निचे ही उतर रहे थे । वही अफरातफरी अभी भी मच जाती जब घोड़ों का समूह ऊपर की तरफ या निचे की तरफ आते जाते मिल जाते । कई दुकानों पर माताजी के ऑडियो विडियो भी बेचे जा रहे थे । दुकानों पर विडियो भी प्रदर्शित किये जा रहे थे ।

अब हम चरण पादुका पहुँच चुके थे । पुनः दर्शन करने का मोह न त्याग सके और हनुमानजी और माताजी के चरण पादुका के दर्शन कर शीघ्र ही बाहर निकले । अब बाणगंगा नजदीक ही था ।

बाणगंगा से याद आया कुछ बाणगंगा की उत्पत्ति के बारे में भी चर्चा हो जाए ।

भैरव का वध करने के पश्चात् माताजी ने भैरव को उसकी विनती अनुसार आशीर्वाद तो दे दिया अब उनकी नजर वहीँ समीप ही हाथ जोड़े खड़े हनुमानजी पर पड़ी । हनुमानजी दोनों हाथ जोड़े माताजी से विनती करने लगे ” हे माते ! तुम्हारी आज्ञानुसार मैंने भैरव का मुकाबला करते इतना समय व्यतीत किया । अब बहुत प्यास लगी है माते ! कृपा करो माते ! ”

पहाड़ पर पानी कहाँ से आता ? तब माताजी ने एक तीर धरती पर चलाया और वह तीर धरती पर जहां लगा वहीँ से साक्षात् गंगाजी अपनी निर्मल जलधारा के साथ अवतरित हुयीं । गंगाजी की जलधारा माताजी के चरणों पर गिर रही थीं मानो माताजी की चरण वंदना कर रही हों । हनुमानजी ने भी गंगा माँ को प्रणाम कर उनके जल से अपनी प्यास बुझाई और माताजी से विदा लेकर वहाँ से प्रस्थान किये । इधर माताजी ने उसी शीतल जल से अपने हाथ मुंह और अपने खुले केशों को धोया ।

बाणगंगा अर्थात बाण से उत्पन्न गंगा । यही जलधारा आगे चलकर बाणगंगा नदी में तब्दील हो जाती है । इसी कहानी की मान्यता के फलस्वरूप आज भी दर्शनार्थी महिलाएं बाणगंगा में इसी जलधारा में अपने केश अवश्य धोती हैं ।

लगभग बारह बजनेवाले थे और हम बाणगंगा पहुँच चुके थे । रात भी ढंग से खाना नहीं खा पाए थे सो अब भूख भी लग रही थी । भोजन करने से पहले एक बार और क्यों न बाणगंगा के पावन जल में स्नान कर लिया जाए ? विचार अच्छा था सो हम बाणगंगा में कुण्ड में नहाकर आगे बढे ।

गुलशन कुमार द्वारा चलाये जा रहे लंगर में भोजन करने का इरादा था लेकिन भोजन के लिए लगी लम्बी कतार देखकर हमने वहाँ भोजन करने का विचार त्याग दिया । रास्ते में और भी कई होटल मिले लेकिन हमें पसंद नहीं आये । तीर्थस्थानों में अक्सर नजदीकी जगहों पर कई तरह की शिकायते पाई जाती हैं इसीलिए हम अब दर्शनी ड्योढ़ी से बाहर निकल कर ही भोजन करना चाहते थे ।

उसी भीडभाड के बीच ढोल वाले ढोल बजा रहे थे और कुछ उत्साही लोग उन्हें पैसे देकर और बजाने को प्रेरित कर रहे थे और स्वयम ढोल की ताल पर उत्साह से नाच रहे थे । इन सब का नज़रों से अवलोकन करते थोड़ी ही देर में हम लोग दर्शनी ड्योढ़ी पर पहुँच गए ।

विशाल भव्य दर्शनी ड्योढ़ी पर पहुँच कर हमने पीछे देखा । पीछे उंचाई पर अर्ध्क्वारी मंदिर का विशाल भवन देखते ही हमने श्रद्धा से सिर झुका कर प्रणाम कर लिया । माताजी को याद करते हम लोग आगे बढे ।

आगे सड़क पर एक उद्घोषणा कक्ष से उद्घोषक लगातार घोषणाएं किये जा रहा था । किसी के गुम होने क़ी सूचना देते हुए उनके परिजन कहाँ इंतजार कर रहे हैं यह भी बता रहा था तो कोई खोया हुआ स्वयं ही अपने परिजनों को उस बूथ के पास होने की जानकारी दे रहा था ।

यात्रियों की गहमागहमी काफी थी । ड्योढ़ी से बाहर सड़क चढ़ान लिए हुए थी । यह हलकी चढ़ाई भी अब हमें दुरूह लग रही थी । हालांकि सामने ही ऑटो वालों की कतार लगी हुयी थी जो हमें बस स्टैंड तक छोड़ देते लेकिन अभी तो सबसे पहले हमें पेटपूजा ही करनी थी इसीलिए पैदल ही चलते रहे ताकि जहां भी अच्छा लगे वहीँ शुरू हो जाएँ ।

लगभग पांच मिनट में ही हम लोग एक छोटे से रेस्टोरेंट के सामने थे । यहाँ उसी कतार में अन्य होटल भी थे लेकिन हमें यही पसंद आया और यहाँ तीन वक्त के बाद हमने अपनी पसंद का भोजन पाया । फिर क्या था । सबने जी भरके पेटपूजा की । कई बार ऐसा होता है कि पेट तो भर जाता है लेकिन मनचाहा पदार्थ नहीं होने की वजह से मन नहीं भरत़ा । ऊपर पहाड़ों पर या तो मनचाही सामग्री नहीं मिली तो कभी समय नहीं मिला । इसी वजह से उस रेस्टोरेंट का साधारण खाना भी हमें असाधारण लग रहा था और हमने पेट भर के खाया ।

होटल से बाहर निकल कर हम लोग पुनः बस स्टैंड की तरफ बढ़ने लगे । बस स्टैंड लगभग एक किलोमीटर ही दूर था और हम लोग कुछ खरीददारी भी करना चाहते थे । रास्ते में मिलने वाली दुकानों पर प्रसाद से भरी एक छोटी सी गहरी प्लेटनुमा टोकरी पन्नी से ढंकी सजी हुयी रखी थी । हम लोगों को वही पसंद आ रही थी । हमने सभी की कुल जरूरत के मुताबिक एक दुकानदार से ऐसे पचास प्रसाद के पैकेट ख़रीदे । इकठ्ठा मिलकर खरीदने से दुकानदार ने पांच रुपये प्रति पैकेट के दाम कम कर दिए थे ।

बस स्टैंड अब नजदीक ही था । दायीं तरफ टूर व टैक्सी वालों की कई दुकानें थी ।
हम लोग यहाँ आसपास के दर्शनीय स्थलों की जानकारी पाना और देखना चाहते थे । सो कई दुकानों में घुसे और वहाँ उनसे बातचीत की । उनके जरिये पता चला की कटरा में ही चार या पांच दर्शनीय स्थल हैं जहां यह लोग घुमा सकते थे और किराया भी सिर्फ दो सौ रूपया प्रति व्यक्ति ही था ।

हम कटरा घुमने का अभी तय ही करते की हमारे एक मित्र ने सुझाया माताजी का दर्शन करने के पश्चात् सबसे पहले नौ कन्याओं को भोजन कराया जाता है उसके बाद ही कुछ और करेंगे । सवाल आस्था और विश्वास का था सो एक स्वर से सबने उसकी बात मान ली । पूछने पर पता चला बस स्टैंड के ही पास वाले चौक में एक कोने पर इसकी भी व्यवस्था है । वहाँ कतार में कई दुकाने भी हैं और छोटी छोटी गरीब लड़कियां भी कुछ पाने की आस लिए बैठी रहती है । हम चौक की तरफ बढ़ चले ।
थोड़ी ही देर में हम लोग चौक में जा पहुंचे थे ।

यह चौक बस स्टैंड के समीप ही था जहां से हमने यात्रा शुरू की थी । चौक पर यात्रियों की खासी भीड़ थी । चौक में ही उत्तर की दिशा में दुकानों की कतार के बीच ही एक छोटा सा मंदिर था । उसीके बगल में दो नाश्ते की दुकानें थीं और उन दुकानों के सामने ही छह से ग्यारह बारह बरस की कई लड़कियाँ भी बैठी हुयी थी । लोग आते और दुकानदार को उन लड़कियों को खीलाने की बात कहकर पैसे देकर चले जाते ।

हम लोगों ने भी स्थिति का जायजा लिया और उन लड़कियों की भीड़ में से नौ लड़कियों को भोजन कराने के लिए चुनकर उन्हें अपने हाथों पूरी और चने का प्रसाद खीलाया । बाकी बची लड़कियों को भी कुछ न कुछ हम लोगों ने दिया और वहाँ से फिर वापस बाणगंगा रोड पर आ गए । और वहां से मुम्बई वापसी के लिए प्रस्थान कर गए !
।। जय माता दी ।।
राजकुमार कांदु