The Author Anand Tripathi Follow Current Read जिंदगी और जंग By Anand Tripathi Hindi Moral Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books आखेट महल - 7 छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक... Nafrat e Ishq - Part 7 तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब... जिंदगी के रंग हजार - 15 बिछुड़े बारी बारीकाफी पुराना गाना है।आपने जरूर सुना होगा।हो स... मोमल : डायरी की गहराई - 37 पिछले भाग में हम ने देखा कि अमावस की पहली रात में फीलिक्स को... शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 23 "शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -२३)डॉक्टर शुभम युक्ति... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share जिंदगी और जंग (1) 2.1k 6.2k 1 जिंदगी और जंग की कहानी बड़ी विचित्र है। जीवन की धुरी पर एक साथ वर्षो तक घूर्णन करना कोई खेल नहीं है। बस एक अनुमान ही है जिसके सहारे इंसान ने विज्ञान को पाया है। जिंदगी में जिंदा रहना बहुत जरूरी है। जिसकी कल्पना जीव मात्र करता है और आगे ज्यादा जवान संभव हो यह भी प्रार्थना करता है। जिंदगी और जंग मे फर्क क्या है। यह एक माध्यम है साहस का। और हिम्मत का। जिंदगी जिंदा रखती है और जंग जीतने की जिद और जुनून पैदा करती है। जीवन भर एक इंसान लड़ता रहता है। पैदा होकर वो सबसे पहले रोता है। उस बात से अंदाजा लगाओ कि ईश्वर प्रत्येक प्राणी को सुरु से मुसीबत देता है। लेकिन उसी समस्या से निकलना एक आर्ट ऑफ लाइफ और समस्या तो पार्ट ऑफ़ लाइफ है। जिंदगी और जंग का जो विषय है वो बहुत अद्भुत है। पुराने जमाने में लोगो में एक ही कार्य होता था। खाओ खेती करो और सो जाओ। अर्थात किसी भी तरह से उनके लिए कोई समस्या नहीं थी। उनको अन्नदाता अन्न देता था। और वो भी पूरी आस्था से उसको सेवन करते थे। समाज व्यवस्थित हुआ करता था। लोग एक दूसरे की कद्र गहराई से करते थे। बच्चो में शुरवात शिक्षा देश प्रेम दी जाती थी। जीवन को इंसानियत के तौर पर कैसे जीना है यह सीखते थे। लोग चाटुकार नही थे। काला विज्ञान की निपुणता थी लेकिन सीमित थी। जन्म से लेकर मृत्यु तक विज्ञान की अपार संभावना होने के बावजूद भी वो संस्कार से नही हटते थे। नित्य बिहारी जी की पूजा नदी के जल का पान स्नान और प्रकृति को पूजना यही नियमाचार होता था। गतिविधियां बहुत अनोखी होती थी। प्रत्येक क्षण का एक अलग आनंद अनुभूत अपेक्षा होती थी। जीवन रूपी गाड़ी के चारो पहिए बराबर अपनी पटरियों पर लड़खड़ते चले जा रहे होते थे। कोई और किसी प्रकार की समस्या ही नही थी। भविष्य को लेकर वर्तमान में जीने का साहस होता था। लोगों को स्वास्थ्य की चिंता हो नही होती थी। शुद्ध खाना शुद्ध पीना और शुद्ध ही रहना यह नियम संयम होता था। जीवन की गति कब बढ़े कब घटे कुछ पता नहीं चलता था। और सबसे बड़ी बात की उस समय में स्पर्धा नही थी। कंपटीशन नाम का जहर नही था। लोग मूलभूत सुविधाओं में भी जी लेते थे। किसी को किसी प्रकार का दुर्दांत भय नहीं था। जीवन बहुत उच्च कोटि का होता था। आप और हम जो आज जी रहे है। अगर कभी उन्होंने कल जिया होता तो पता चलता की कितना सुंदर था बीता हुआ कल। पुराने गाने रेडियो साइकिल टायर नाचना, कौरा जलाना ठंड में। कितना सुखमय जीवन था। प्रेम की अलग संज्ञा दी जाती थी उस जमाने में। लोग प्रेम अमरत्व माना करते थे। और सच कही कोई जात पात और भेद भाव भी नहीं था। जिंदगी की जंग कब शुरू हुई जब उस जमाने के इंसान दुख से लड़ना छोड़ दिया। मुसीबत से त्याग हुआ। चैलेंज स्वीकार करना छोड़ दिया। जिद करना सीखा। चीज आसान बनाने लगा। सुख के चक्कर में जीवन की कला का त्याग किया। सुविधा को पाने में असली आनंद को छोड़ा जिसका उसको ध्यान भी नही है। मैं इनको जनता हूं क्योंकि मैं बीच में हूं थोड़ा उधर और थोड़ा इधर भी जिया है। आज कोशो दूर रिश्ते मोबाइल में आ गए। तार चिट्ठी खत कबूतर घोड़े ये सब डाकिया बेकार हैं। समझौता के नाम पर हमने मेहनत बुराई दुराचार से समय बचाने से समझौता कर डाला। हमने कितने दूर दूर घर बनाए ताकि शान शौकत से सालो बाद मिल सके। पैसा खर्च और जीवन की लालच ने हमे कहा से कहा पहुंचा डाला मोबाइल ही अब हमारी दुनिया है। चार लोग या तो विवाह में या तो शमशान में ही मिलेंगे। अब समय नहीं लेकिन पैसा है। अब प्रेम नही है लेकिन दुश्मन दबा के हैं। इंसान अब कितनी बड़ी जंग लड़ने जा रहा है ये हमे अंदाजा भी नहीं है। धर्म जाति मजहब पानी जमीन बिजली सड़क हत्या बलात खून चोरी चाकरी,मार घसीट लेन देन जंगल खत्म हो रहे है। महल बनाए गए हैं। हम कहा जी रहे है। जहा पर सुख के नाम पर मोबाइल दी गई है। दुनिया देखने और समझने का वक्त कहा है। समय भाग रहा है। जीवन। अवधि कम हो गई है। लोग सांस लेने का वक्त नहीं है। पैसा और सिर्फ पैसा। क्या इससे पैसे के पहले लोग नही जीते थे। क्या आज 24 घंटे भी कम है किसी बात का हल निकालने में। इतना पैसा और इतनी कठिनाई क्या खेल है। जिंदगी क्या से क्या हो गई। कई तो अपनी जिंदगी। को ऐसे ही निकल देते है यायावर बनकर। बाप बेटे से,ननद भाभी से सास बहू से इंसान से इंसान लड़ रहा है। देखो विश्व विकास कर रहा है। जीवन तंग हो चुका अब बहुत मुश्किल है। इससे पार पाना। समाज में व्यक्ति निखरना नही बल्कि बिखरना चाहता है ताकि लोग उन्हें जाने। लेकिन इस कार्य में सफलता मिलती है। और लोग पगले की तरह मजबूत होकर उस रील और एफबी इंस्टा का लुत्फ उठाते है। हमारी मानसिकता बड़ी संकीर्ण हो गई है। पुरातन और आज में जमीन और आसमान का अंतर है। समय को रोकना अब बस की बात नहीं है। लोग अपने अपने पिताओं के लिए एक दूसरे के पिताओं को अपराधी बता रहे है। जो की सबका परम पिता है। उसकी रक्षा लोग कर रहे है जो सबकी रक्षा करता है। इंसान ज्यादा बुद्धिमान होने से वो बहुत ही खुश हैं। लेकिन उसको ये नही पता अगला पल कैसा होगा। वो हर प्रकार से अपने जीवन में आज खुसिया लाना चाहता है। लेकिन संभव ही नहीं है। एक ऐसी दौड़ जिसमे आज का बच्चे से लेकर वृद्ध सब दौड़ रह है। लेकिन किसी को खबर नहीं है की मंजिल कहा है। सीमित व्यवस्था होते हुए भी असीमित के पीछे भाग रहा है। खबर नहीं की निवाला मिलेगा की नही और दूसरो को भविष्य बताने वाला पंडित ज्ञान दे रहा है। चलो आज एक बात तो समझ आई की लोग मृत्यु की ओर स्वयं भाग रहे ये सोचकर की यहां कही तो सुख से बैठेंगे एक दिन सब सुख से बैठेंगे। Download Our App