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पूरी रात भर समिधा अर्धसुप्तावस्था में दीवार पर लटके तीर-कमान की चुभन महसूस करती रही थी | एक बार आँखें खुलने पर वह दुबारा नहीं सो सकी, कमरे की खिड़की के सींकचों पर अपनी ढोड़ी अड़ाकर वहखिड़की में से बाहर का नज़ारा देखने लगी परंतु कुछ ही पलों में उसे कमरे की कैद में छटपटाहट होने लगी | धीरे से उसने कमरे का थोड़ा सा दरवाज़ा खोला और उसमें से अपनी गार्डन बाहर की तरफ़ निकाली, चारों ओर नज़रें घुमाईं, ड्रॉइंग रूम में कोई नहीं था |यानि रैम उठ चुका था | उसने धीरे से पूरा दरवाज़ा खोला और बाहर निकाल आई |
“गुड मॉर्निंग मैम ---“सामने किचन में खड़ा रैम कॉफ़ी बना रहा था |
“गुड मॉर्निंग, तुम जाग गए ? मुझे तो लगा था अभी सो रहे होगे |”
“मैडम, मैं तो सुबे—सुबे जाग जाता हूँ ---“वह फिर ठहर कर बोला |
“आप चाय लोगे या कॉफ़ी ?मैं साहब के लिए बनाता हूँ |”
“मैं फ़्रेश होने के बाद लूँगी ---मि. दामले जाग गए क्या ?”
“हाँ, कॉफ़ी उन्हीं के लिए बनता है |”
यह लड़का कभी तो बहुत साफ़-सुथरी भाषा बोलता, कभी-कभी कुछ अजीब सी स्थानीय भाषा तथा उसके अपने परिवेश की भाषा बोलने लगता था | लॉबी में से गुज़रते हुए उसे दामले की आवाज़ सुनाई दी |
“गुड मॉर्निंग मैडम, आइए कॉफ़ी पीते हैं |”
“गुड मॉर्निंग मि. दामले, अभी आती हूँ ---बाहर बैठेंगे |”
लगभग पंद्रह मिनट में जब वह बाहर आई तब तक दामले बाहर बरामदे में बैठकर एक कॉफ़ी पी चुके थे| उसे देखते ही उन्होंने रैम से कहा –
“मैडम के साथ मेरे लिए भी एक कप कॉफ़ी और बनाना |”
युवक कॉफ़ी बनाकर रख गया और बगीचे के पीछे के भाग से रबर का पाईप उठा लाया, अब वह अपने बगीचे में पानी देने लगा था |
“मैडम, इस लड़के की मदर आपको मिली होंगी न ?”
“हूँ—रात इसका खाना देने आईं थीं |” समिधा ने सिप लेते हुए कहा |
“इसका पूरा परिवार कलाकार है, इसने पहले भी हमारे साथ काफ़ी काम किया है |” अपनी आदत के अनुसार दामले की वचा ने अपना कर्म करना प्रर्न्भ कर दिया था | समिधा रैम को पानी देते हुए देख रही थी और अपने कान दामले की ओर लगाए थी |
मि. दामले ने उस आदिवासी युवक के बारे में जो बताया था, वह कुछ इस प्रकार था | मूल रूप से रैम का परिवार आदिवासी था, गरीबी में अटे हुए इस परिवार के पास पेट भरने का ठिकाना तक न था |उन्हीं दिनों यहाँ पर ईसाई मत के लोग आए, उन्होंने गरीबों को खाना, कपड़ा दिया और अपरोक्ष रूप से अपने धर्म का प्रचार शुरू किया |
यहाँ के कुछ परिवार इनके उपकारों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया | |उन कुछ परिवारों में रैम का परिवार भी था | रैम के दादा ने यह धर्म स्वीकार कर लिया था और वे जगदीस से जेम्स जॉन्स बन गए थे |उनकी जाती-डीएचआरएम के लोगों ने उन्हें बहिष्कृत कर दिया परंतु उनके लिए अपने परिवार का पेट भरना उनकी मूलभूत आवश्यकता थी, पेट भरा होने पर ही जाति-धर्म की चिंता कर सकता है मनुष्य !
जगदीस उर्फ़ जेम्स अब अपने परिवार का पेट भरने में समर्थ होने लगे थे |उन्हें अपने धर्म-परिवर्तन में कोई बुराई दिखाई नहीं दी थी |एक परिवार के मुखिया के रूप में घर के सदस्यों को भूखा देखने की पीड़ा को उन्होंने बहुत गहरे से झेला था | परिवार का पेट भरना उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व था | परिवार बढ़ता ही जा रहा था और साथ ही गरीबी की बेचारगी भी !धर्म ख़ाली पेटों को भर नहीं सकता |धर्म परिवर्तन के पश्चात जेम्स के परिवार का स्तर आम आदमी से ऊपर उठ गया था |
अब कम से कम उन्हें अपने परिवार को भूखा देखने की बाध्यता नहीं थी |उन्हीं दिनों झाबुआ में एक चर्च बना और जेम्स को वहाँ नौकरी मिल गई | इस प्रकार यह परिवार झाबुआ के अन्य गरीब, बेचारगी भरे परिवारों की श्रेणी से निकालकर खाते-पीते परिवारों में शामिल हो गया | रैमन जॉन्स अपने दादा की तीसरी पीढ़ी है | उसके पिता का नाम जेनिब जॉन्स और माँ का नाम ऐनी रखा गया |