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मि.दामले रात कोई नौ बजे के क़रीब होटल से लौटे |तब तक रैम समिधा के साथ बैठकर न जाने कितनी बातें कर चुका था | दोनों में अच्छी मित्रता हो गई थी |
“भूखे पेट न होए भजन ..... मैडम ! आपके लिए –“दामले ने समिधा के हाथ में खाने का पैकेट पकड़ाते हुए कहा और कानों तक एक लंबी मुस्कान खींच ली |
“धन्यवाद …. आपने डिनर कर लिया क्या ?”
“नहीं, मैं जा रहा हूँ | आप खाकर आराम कर लीजिए | सुबह जल्दी निकलना होगा |
समिधा जानती थी अभी दामले का पीने-पिलाने का कार्यक्रम होगा फिर भोजन ! खाना खाने के लिए रैम भी तो वहाँ से जाएगा | अकेलेपन की कल्पना से उसे फिर से घबराहट होने लगी |
“रैम आपके पास ही रहेगा, इसका खाना कोई भी दे जाएगा आपको जिस चीज़ की भी ज़रूरत हो इसे कह दीजिएगा |“
“ठीक है –“समिधा ने एक आश्वस्ति की साँस ली |
“आप मेरी चिंता न करें, मैं तो घोड़े बेचकर सोने वाली हूँ |”उसने अपनी गर्दन पर तीर की नोंक महसूसते हुए बहादुर बनकर दामले को आश्वस्त करने का प्रयास किया |
वैसे, अभी तक वह काफ़ी सहज हो चली थी | प्रकृति की निकटता तथा रैम के सानिध्य ने उसमें प्रसन्नता भर दी थी, अब वह कमरे के भीतर आ चुकी थी |
“गुड इवनिंग मैडम ...”
समिधा ने घूमकर देखा, सलीकेदार साड़ी पहने एक साधारण नैन-नक्श की महिला कमरे के दरवाज़े पर न जाने कब आकर खड़ी हो गई थी |उसके हाथ में एक थैला था |
“मम्मी ---“ रैम ने कहा |
“ले, तेरा डिनर रैमोन .... “ कहकर महिला ने आगे आकार थैला युवक के हाथ में पकड़ाया और उसके पाँवों की ओर झुक गई | “अरे रे, ये क्या कर रही हैं .... ?”महिला के अप्रत्याशित व्यवहार से समिधा हड़बड़ा गई |
“मैं –इसकी माँ –“रैम के मम्मी कहने से वह समझ चुकी थी यह रैम की माँ हैं |
“हाँ ---पर आप मेरे पैर क्यों छू रही हैं ?”
“आप मेरे से बड़ी हैं ---“उसने शालीनता से उत्तर दिया |
“आपका डिनर भी हमारे घर पर ही था पर साहब ने कहा आपको आराम की ज़रूरत है इसीलिए आप नहीं आ सकेंगीं |”
“हाँ, मैं आराम करना चाहूँगी, कल सुबह जल्दी निकलना होगा|”उसे वे ऊबड़-खाबड़ रास्ते याद आ गए जिनसे गुज़रकर वे सब यहाँ पहुँचे थे |इन रास्तों पर गाड़ी इतनी कूदते-फाँदते चलती है कि पेट-पीठ सब एक हो जाते हैं और कमर व पूरे शरीर में भयंकर पीड़ा होने लगती है |
“तो मैडम !कल सुबह आप हमारे साथ नाश्ता करके ही निकालना ---“दोनों हाथ प्रार्थना की मुद्रा में उसके समक्ष जोड़ने का उसका अनुरोध समिधा को प्रभावित कर गया |
“मुझे प्रोग्राम के बारे में कुछ पता नहिनहाइ |”समिधा के कहने पर रैम की माँ तुरंत ही बोल उठीं |
“दस बजे से पहले तो कोई तैयार नहीं हो पाता ---“फिर वह रैम की ओर देखकर बोलीं –
“सुबह मैडम के तैयार होने के बाद इनको घर पर ले आना, मैं मैडम का नाश्ता बनाकर रखेगी –“
“हो—“
“अबी मैं चलती मैडम, आपको आना है सुबह में, अबी साहब और इसका पापा ड्रिंक ले रहे हैं, उनको डिनर देने का है | गुड नाइट मैडम |” कहकर उसकी बात बिना सुने ही वह एक चाभी वाले खिलौने कि भाँति जिधर से आई थी, उधर की तरफ़ मुड़कर चल दी | समिधा एक दर्शक की भाँति खड़ी रहकर रैम की माँ को तेज़ी से जाते हुए देखती रह गई |
बहुत न-नौकर के बाद रैम ने उसके साथ खाना स्वीकार किया |वह समिधा को अपने खाने में से लेने के लिए एक बच्चे की भाँति ज़िद करने लगा, समिधा के कहने पर उसने भी होटल के खाने में से कुछ लिया और अपनी प्लेट लेकर ज़मीन पर बैठ गया |
“अरे !ऊपर बैठो न !”समिधा ने कई बार उसे कुर्सी पर बैठने के लिए कहा तब कहीं वह कुर्सी पर अपनी प्लेट लेकर बैठा |
खाना खाते हुए उसने बताया कि उसका घर सड़क पर ही है, यहाँ से दो मिनट का ही रास्ता है |उसके परिवार में मम्मी –पापा के अलावा वे दो भाई हैं |उसका स्कोल का नाम रैमोन है, मम्मी उसे इसी नाम से बुलाती है, कभी प्यार से रैम भी कहदेती है|पापा भी रैम कहते हैं बाकी सब लोग रामा बुलाते हैं |
“यहाँ इसी तरह के नाम होते हैं क्या?”समिधा ने पूछा |
“नहीं, नहीं मैडम, हम तो आदिवासी हैं पर मेरे दादा ने ख्रिस्ती धरम अपना लिया था इसीलिए हमारे नाम ऐसे हैं ---यहाँ तो भगवा, मनवा, रमेस, जगदीस ऐसे नाम होते हैं |
समिधा के मन में प्रश्न उपजा ---
‘रैम के परिवार को क्या ज़रूरत थी धर्म बदलने की ?हम एक इंसान के रूप में क्यों नहीं रहते ?ख़ालिस इंसान !जसे भूख लगती है, प्यास लगती है | जिसमें अपनापन, स्नेह, प्यार भरा है जिसमें करुणा होती है, जिसमें क्रोध के साथ दया-माया –ममता सब भरी होती है ---ये सब किसी विशेष जाति या धर्म की विशेषता तो नहीं हैंफिर भी हमने इन प्रकृतिक संवेदनाओं को विभक्त कर दिया है |’
रैम ने समिधा को आदिवासी क्षेत्र के बारे में बहुत सी बातें बताईं, वहाँ के लोगों के, रीति-रिवाज़ के बारे में, उनका रहन-सहन, उनकी जीवन–शैली, बहुत कुछ ! समिधा के मन से अब इस नए स्थान कि भयावहता और अजनबीपन निकलने लगा था | उस स्थान का, वहाँ की संस्कृति एक खाका सा समिधा के मन में खिंच गया था |
खाना खाकर समिधा को ख़ुमारी चढ़ी, उसे ज़ोर से नींद आ रही थी |रैम ने उसे आश्वस्त किया कि वह कमरे में सो जाए वह वहीं पर है |जब भी किसी चीज़ की ज़रूरत होगी, वह उसे आवाज़ देकर बुला सकती है |
समिधा मन व तन से बहुत थक चुकी थी | कमरे में जाकर उसने दरवाज़ा बंद कर लिया और पंखा चलकर बिस्तर पर लेट गई, बहुत जल्दी उसकी आँखें लग गईं | दामले कब आए, उसे पता नहीं चला | सुबह साढ़े पाँच बजे के क़रीब जब उसकी आँखें खुलीं, उसने खिड़की में से झाँककर देखा, वातावरण में झुटपुटा भर रहा था |
अचानक उसे फिर से तीर-कमान की याद आई और फिर से एक छोटी सी झुरझुराहट उसके अन्तर को छूकर निकाल गई |पास वाले कमरे में रैम सो रहा है, सोचते हुए उसने करवट बदल ली, वह अब भी बहुत थकावट महसूस कर रही थी | करवटें बदलते हुए वह फिर से सोने का प्रयास करने लगी |