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“चाय बनाऊँ न मैडम?”
“मैडम ! चाय” बना लूँ, पीएंगे न ?”
युवक को समिधा से दोबारा पूछना पड़ा था ---समिधा उसकी बात सुन ही नहीं पाई थी, वह न जाने किन विचारों में उलझी हुई थी |
“मैडम ! चाय ---“तीसरी बार की आवाज़ से समिधा की तंद्रा भंग हुई |
“अरे ! हाँ, दामले साहब के लिए भी बना लेना, साह ही लेंगे |”वह वहाँ अकेली नहीं रहना चाहती थी | शायद स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रही थी |तीर से टपकता हुआ रक्त कभी उसके अपने शरीर के भाग का तो नहीं ? ऐसे तो वह पूरी की पूरी ही निचुड़ जाएगी | एक अजीब सी बेचैनी और घबराहट उसके भीतर सुरसुराने लगी |
“हाँ जी, साहब फ़्रेश हो रहे हैं, अंदर की तरफ़ एक और बाथरूम है ---“
“ठीक है ---“बाथरूम का दरवाज़ा बंद करते हुए समिधा के हाथ अचानक रुक गए |
“सुनो, क्या नाम है तुम्हारा ---?”उसने धीरे से लड़के से पूछा |
“मेरा नाम रैम है, सब मुझे रामा कहकर बुलाते हैं –वो---ड्रोइंग रूम के बाजू में किचन है न ---वहीं चाय बना रहा हूँ --|”
प्यारा सा लड़का था वह !किसीके पुकारने पर जब ‘हो’ कहकर उत्तर देता तब ही उसके आदिवासी होने का अनुमान लगाया जा सकता था |
फ़्रेश होकर समिधा जल्दी ही बाहर आ गई | अब तक दामले भी आकार सोफ़े पर बैठ चुके थे | वह रामा को कम करते हुए देखने लगी |उसके मनोमस्तिष्क में जाने क्या-क्या चल रहा था |वैसे भी मस्तिष्क कहाँ खाली रहता है ! वह तो चेतन –अचेतन अवस्था में भी अपना कम करता ही रहता है, कुछ न कुछ सोचता ही रहता है, कीपका लेता है उन बातों को जो निरर्थक होती हैं | उसके मस्तिष्क में भी इस समय युवक को लेकर निरर्थक बातें ही तो चल रही थीं, उसे अपने ऊपर नाराज़गी हो आई |
युवक ने बड़े सलीके से चाय और उसके साथ एक प्लेट में गर्मागर्म दालबड़े और नीबून वाली प्याज़ रखकर उन दोनों के सामने बढ़ा दिए |
दालबड़े वाक़ई बड़े स्वादिष्ट थे, गरम और कुरकुरे भी !
“वाह ! बहुत अच्छे हैं ---“समिधा ने युवक की तरफ़ देखा |
“तुमने बनाए हैं क्या ?”सहज होने का प्रयास करते हुए समिधा ने रैम की प्रशंसा की, शायद संतुलित होने का प्रयास !
“नहीं मैडम ---वो सामने ही तो लारी है | उसको बोल दिया था, अभी देकर गया है जब आप बाथरूम में थीं |
“चाय तो तुमने बनाई है न ?”समिधा ने युवक को ख़ुश करने के लिए कहा | वैसे चाय थी भी बहुत स्वादिष्ट, उसमें दालचीनी और गुजराती चाय के मसाले का स्वाद आ रहा था |
उसे लगा वह कुछ अधिक ही भयभीत हो गई थी और युवक का संबल पाने के प्रयास में कुछ अधिक ही लल्लो-चप्पो करने लगी थी |परंतु अचानक चाय का प्याला उसके होठों की ओर बढ़ते हुए रूक गया, सामने लटके तीर से आरकेटी टपकना बंद ही नहीं रहा था |
“मेरी मम्मी ने बनाकर रखा है चाय का मसाला ----साब लोग आते रहते हैं, सबको बहुत अच्छा लगता है |”रामा ने दामले की ओर इशारा करके कहा |
“मैडम!रैम का इंतज़ाम बहुत बढ़िया होता है | आपको किसी तरह की कोई तकलीफ़ नहीं होने देगा |”
“रैम ! हम यहाँ न भी हों तब भी तुम्हें मैडम का ध्यान रखना है |”
समिधा की मन:स्थिति से बेख़बर रैम की ओर मुड़कर दमले ने कहा |
“मैं ज़रा यूनिट के और लोगों के पास होटल जाकर आता हूँ, तब तक आप आराम कीजिए |”
लगभग चार दिन पहले ‘लोकेशन हंटिंग’के कुछ और लोग भी यहन पहुँचे हुए थे, दमले उनसे ही मिलने जाने की बात कर रहे थे |
“मिलते हैं मैडम !---कुछ देर में ---“
मि. दामले उठकर चले गए, कुछेक मिनिट के बाद गाड़ी के स्टार्ट होने की आवाज़ आई | ड्राइवर बंसी गाड़ी लिए बाहर ही साहब की प्रतीक्षा कर रहा था | न जाने क्या सोचते हुए समिधा की दृष्टि फिर से दीवार पर लटके हुए तीर-कमान पर चिपक गई |वह पुन: एक झुरझुरी से नहा उठी |
मि. दामले के जाते ही समिधा को अकेलापन महसूस होने लगा |दीवार पर लटकते तीर से नर्स का रक्त टपकना बंद ही नहीं हो रहा था | उसके मन में फिर बेतुके खयालात घर करने लगे |
‘क्या वह स्वयं वही नर्स तो नहीं थी अथवा उसमें उसी नर्स की आत्मा तो प्रवेश नहीं कर गई थी !शायद ---वह इसीलिए यहाँ आई हो, शायद उसका इस सबसे कुछ संबध ही हो | जैसे फिल्मों में दिखाते हैं, कभी कोई पत्र किसी वर्षों पुरानी खूब बड़ी किसी खंडहर सी हवेली में अचानक ही जा पहुँचता है !वह भूतों के घेरे में फँस जाता है, कभी-कभी भूत भी उस पत्र पर चिपट जाता है |, पात्र उल्टी-सीधी हरकतें करने लगता है | कहीं उसके साथ भी तो यह सब नहीं होने वाला है ??’
पता नहीं क्यों ‘शूरवीर’कहलाई जाने वाली समिधा को अजीब सी बेचैनी होने लगी थी |हर बात को एसपीएसएचटी कह देने वाली समिधा को उसका पति सारांश व बच्चे ;झनसी की रानी’ कहकर चिढ़ाते थे ।अब क्या हो रहा है ?’झाँसी की रानी’ को ? आर्य समाजी वातावरण।संस्कारों में पाली-बढ़ी समिधा अपने मूर्खतापूर्ण विचार पर स्वयं ही हँस पड़ी |इस र सी बात को टूल देना उसे शोभा देता है क्या ?उसने अपनी दृष्टि सामने की दीवार से हटाने की चेष्टा की |
यह सब दामले के द्वारा सुनाई गई घटना का प्रभाव था जो एक घुसपैठिए की भाँति उसको भयभीत कर रहा था |या उसकी दाँत ही ऐसी थी ? ‘मैडीटेशन’ के लिए बैठती तब भी उसके मस्तिष्क में बेकार की बातें घुमड़ती रहतीं |कभी-कभी उसे बहुत संकोच होता है, उसका मस्तिष्क घड़ी के पैंडुलम की भाँति एक ओर से दूसरी ओर डोलता रहता है |एक स्थान पर क्यों टिककर नहीं रहता ? जिस बात को छोडने की, भूलने की चेष्टा करती है, वही बात घूम-फिरकर फिर से उसके मस्तिष्क की कोठरी में साधिकार प्रवेश कर जाती है | वह ठीक से पूजा तक तो कर नहीं पाती | उसके दिलोदिमाग की गलियों में कुछ न कुछ खुराफ़त घूमती ही रहती है | बस, हाथ जोड़े और हो गई पूजा !वह जब सारांश से इस बारे में चर्चा करती है, वो हँसकर उसकी बात हवा में उड़ा देते हैं |