" हा। ६० साल मे पहली बार.......... किसीने दरवाजे की घंटी बजाई है।"
दोनो ने चौंकते हुए कहा।
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" कौन हो सकता है ? मिस्टर कपूर और राज को पासवर्ड पता है। वो दोनो कभी घंटी नही बजाएंगे। ये कौन आया है?" वीर प्रताप ने यमदूत से कहा।
" क्या हमे दरवाजा खोलना चाहिए ?" यमदूत।
" बिल्कुल नही। एक काम करो दीवार से बाहर देखने की कोशिश करो। फिर हमे पता चलेगा कौन है ?" वीर प्रताप।
" मेरे पास दीवार के आरपार देखने वाली ताकद नही है। " यमदूत ।
" किस तरह के दूत हो तुम ? अगर दीवार के आरपार भी नही देख सकते । काम की कोई भी ताकद है तुम्हारे पास ?" वीर प्रताप ने चिड़ते हुए कहा।
" इतने ताकतवर हो तो खुद दीवार के आर पार देख लो ना।" अब यमदूत का सब्र भी टूट रहा था। तभी दरवाजे पर फिर से घंटी बजी। दोनो ने फिर एक दूसरे की तरफ देखा।
" क्या ये सही पता है ? कब से बाहर खड़ी हु। वो दरवाजा क्यो नही खोल रहा। कही चला तो नही गया। " जूही के दिल का दर्द अब आखों मे जमा होना शुरू हो गया था। " नहीं। उसने कहा था कल की टिकट है। मुझसे बिना मिले वो नही जाएगा।" जूही अपने ख्यालों मे खोई हुई थी, तभी दरवाजा खुला। दरवाजे पर यमदूत को देख वो डर गई। उसने दो कदम पीछे लिए तभी यमदूत उसकी तरफ आगे बढ़ा।
" गुमशुदा आत्मा। इतनी रात मेरे दरवाजे पर आने की वजह। कही जीवन पर से विश्वास तो नही उठ गया तुम्हारा। मेरे साथ जाने के लिए आई हो।" यमदूत ने कुछ कदम उसकी ओर आगे बढ़ाते हुए कहा।
" नही। मुझे मेरे मिस्टर से मिलना था। ये उनका घर है ना ? वो कहा है ?" जिस तरह यमदूत आगे बढ़ रहा था जूही अपने कदम पीछे ले रही थी।
" किसने कहा ??? ये मेरा घर है।" जूही अब बस एक पिलर से टकराने वाली थी तभी वीर प्रताप उसके और पिलर के बीच खड़ा हो गया। जूही वीर प्रताप से टकराई।
वीर प्रताप को वहा खड़ा देख वो तुरंत उसके गले लग गई। एक बीन बुलाई मुस्कान वीर प्रताप के चेहरे पर खिल गई। कितना अजीब था ये सब। लेकिन फिर भी उसने जूही को ये करने दिया।
" ओह........ तुम दोनो का झगड़ा अब तक खत्म नहीं हुवा क्या ??? कोई बात नही अब कर लो वैसे भी कल के बाद ये तुम्हे यहां नही मिलेगा।" यमदूत ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
" बस बोहोत हुवा। अंदर जाओ। हमे बात करनी है।" वीर प्रताप ने अपनी आवाज बढ़ाते हुए कहा। यमदूत तुरंत वहा से गायब हो गया।
उसने जूही के सर पर हाथ फेरते हुए कहा, " तुम इतनी रात मुझे क्यो ढूंढ रही थी ? और तुम्हे कैसे पता ये मेरा घर है ? बताओगी।"
जूही ने उसे छोड़ते हुए, अपनी आंखे पोछी। " मैने कुछ भूतों से पूछा। उन्होंने कहा, तुम यहां रहते हो। मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी।"
" कितनी बार कहा है मैने। रास्ते पर आत्माओसे बाते मत किया करो। तुम्हारे लिए ये खतरनाक है। अगर बात करनी थी तो मुझे समन कर देती। पता तो है तुम्हे मुझे कैसे बुलाना है।" वीर प्रताप की आखों मे उसके लिए फिक्र थी।
" कहा ना बात करनी है।" जूही ने उसके सीने पे मारते हुए कहा। उसकी आंखे अब भी झुकी हुई थी।
" कहो क्या बात करनी है।" वीर प्रताप ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
जूही ने उसकी तरफ देखा, जूही की आखों मे आसू थे। " अगर में साबित करु के में अनोखी दुल्हन हूं। तो ३ चीजें होनी चाहिए।
१) क्यो की में तुम्हारी दुल्हन हूं। तुम मुझे तुंरत शादी करने के लिए मजबूर बिल्कुल नही करोगे।
२) तुम मुझे ५००० रूपए दोगे।
३) और क्या............... तुम यहां से दूर चले जाने की जिद्द छोड़ दोगे। "
" पहले साबित करो।" वीर प्रताप का दिल रफ्तार से धड़क रहा था। ऐसी रफ्तार जिसे नापा तक नही जा सकता।
" क्या अनोखी दुल्हन बनने के लिए मुझे तुम में ........ उस .....उस तलवार को देखना जरूरी है।" ये बात सुनते ही वीर प्रताप उसका हाथ छोड़ कर पीछे हो गया। तभी जूही ने अपने हाथो से उसके सीने की तलवार की ओर इशारा किया।
उसका इशारा देख वीर प्रताप चौक गया। क्या ये सच मे वही पल है, जिसका उसने अपनी हजार साल की जिंदगी मे इंतेजार किया था। नही ये ऐसा नहीं होना चाहिए, अगर उसे इसी पल का इंतजार था। तो वो खुश क्यो नही है। यहीं लड़की क्यों ? भगवान क्यों इतने बेदर्द है ?
" क्या हुवा ?" उसकी आंखो मे डर देख जुहिने उसके पास जाते हुए पूछा।
" वही रुक जाओ। कुछ पल यही रुको। में आता हु।" इतना कह वो फिर से घर मे लौट गया।
अंदर जाते ही उसे यमदूत दिखा।
" ये वही है। मेरी दुल्हन। अनोखी दुल्हन।" उसने घबराते हुए कहा।
" इतने यकीन से कैसे कह सकते हो ?" यमदूत अभी भी बेफिक्र बैठा हुआ था।
" उसने तलवार को देखा।" वीर प्रताप।
" कमाल है। इतने दिनो से तो उसे नही दिखी। आज अचानक कैसे? हो सकता है, झूठ बोल रही हो। क्योंकि वो तलवार तो मुझे भी नही दिखती। उसने ये बात जरूर कही सुनी होगी और तुम्हे बताई है।" यमदूत ।
" उसने इस तरफ इशारा किया। देखो यहां। बिल्कुल यहां। अगर उसे नही दिख रही ? तो वो इशारा कैसे कर सकती है ? " वीर प्रताप ने अपने सीने की और इशारा करते हुए कहा।
" सही। तलवार सीने मे है, ये किसी को पता नही। तो अब इंतजार किस बात का ? जाओ उसके पास, और अपने आप को इस जीवन से मुक्त कर लो।" यमदूत अभी भी बेफिक्र था।
" लेकिन अभी मेरी मरने की उम्र नही हुई। में फिलहाल इस चीज के लिए तैयार नहीं हू।" वीर प्रताप।
" तो क्यों ना में गुमशुदा आत्मा को अपने साथ ले जावू ? तुम भी छूट जाओगे और में भी।" यमदूत की बात पर आगे वीर प्रताप कुछ कह पाए तभी वापस दरवाजे की घंटी बजी।