अध्याय पंद्रह
परमपुरुष ( पुरुषोत्तम या परमात्मा )
अनुभव— दादी जी, मैं परमात्मा, दिव्यात्मा और जीव के अंतर के बारे में बहुत भ्रमित हूँ, क्या आप मुझे फिर से समझायेंगी?
दादी जी— ज़रूर अनुभव, ये शब्द हैं जिनका अर्थ तुम्हें भलीभाँति समझ लेना चाहिए ।
परमात्मा को परमपुरुष, परमपिता , माता, ईश्वर, अल्लाह, परमसत्य और कई अनेक नामों से भी पुकारा जाता है । वही परमब्रह्म , परमात्मा, शिव, परमशिव और कृष्ण हैं । परमात्मा ही सब चीजों का स्त्रोत अथवा मूल है ।
परमात्मा से ऊपर कुछ भी नहीं है ।
ब्रह्म अथवा आत्मा परमात्मा का ही एक अंश है । यह समस्त विश्व परमात्मा का ही विस्तार है और उसी से पोषित भी है ।
दिवयात्माएं — देवी- देवता, जैसे- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तथा अन्य सब — ब्रह्म के ही विस्तार हैं ।
समस्त जीव ( या प्राणी, जीवात्माएँ) जैसे हम सब— दिव्यात्माओं का विस्तार हैं ।
परमात्मा और ब्रह्म अपना रूप नहीं बदलते हैं और वे अमर हैं, शाश्वत हैं ( सदा रहने वाले हैं) । दिव्यात्मा की उत्पत्ति ब्रह्म से होती है और उनका जीवन -काल बहुत लम्बा है, जबकि जीवों का जीवन काल बहुत ही सीमित है ।
यदि तुम सृष्टि की तुलना एक पेड़ से करो, तो परमप्रभु श्री कृष्ण ( परमात्मा ) पेड़ की जड़ हैं , मूल हैं ।आत्मा अथवा ब्रह्म ( या ब्रह्मन् ) पेड़ का तना हैं । विश्व उस पेड़ की शाखाएँ है, पावन धर्म- ग्रंथ— वेद, उपनिषद, गीता, धम्मपद, टोराह, बाइबिल, क़ुरान आदि उसकी पत्तियाँ हैं और जीव ( हम सब जीवित प्राणी ) उस पेड़ के फल-फूल।
देखा तुमने कि कैसे हर चीज परमात्मा से जुड़ी हुई है और उन्हीं का एक अंश है ।
ऐसे समझो— परमात्मा ( या परमब्रह्म) से ब्रह्म ( या आत्मा) निकली । आत्मा से दिव्यात्माएं निकलीं जिनसे बना संसार और हम सब प्राणी- पेड़- पौधे आदि ।
अनुभव— नक्षत्र, सूर्य, चंद्रमा व तारे ,दादी जी?
दादी जी— समस्त संसार, जो दिखाई देता है, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, अन्य नक्षत्र और अंतरिक्ष ब्रह्मा जी की सृष्टि हैं, भगवान विष्णु द्वारा पालित -पोषित है और शिव या शंकर -शक्ति द्वारा उनका विनाश किया जाता है । याद रखो ब्रह्मा, विष्णु और शंकर आदि— ब्रह्म की शक्ति का एक अंश के ही नाम हैं । सूर्य की प्रकाश शक्ति भी ब्रह्म से आती है और ब्रह्म— परमात्मा या भगवान (कृष्ण) का एक अंश है । ऋषि-मुनि हमें बताते हैं कि सब वस्तुएँ भगवान कृष्ण ( परमात्मा) के दूसरे रूप को छोड़कर और कुछ भी नहीं हैं । कृष्ण ही सब चीजों के भीतर और बाहर हैं । वास्तव में वे ही हर चीज का रूप धारण करते हैं ।एक परमात्मा ही सब कुछ बन जाता है । जब आवश्यकता होती है, तो वे ही पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करने के लिए मनुष्य रूप में भी अवतरित होते हैं ।
लगभग 5,100 वर्ष पहले परमात्मा ने किस प्रकार कृष्ण के रूप में अवतार लिया, उसकी कथा इस प्रकार है-
कहानी ( 19 ) बालकृष्ण की कथा
बाल कृष्ण के जीवन की अनेक लीलाओं में से कुछ मैं तुम्हें संक्षिप्त सरल भाषा में सुनाती हूँ, अनुभव, जिससे तुम्हें बालकृष्ण की कहानी को समझने में आसानी होगी ।
कंस जब अपनी बहिन को डोली में बैठाकर धूमधाम से विदा कर रहा था , तो आकाश वाणी हुई — हे कंस! जिसे तुम इतने प्यार से विदा कर रहे हो । उसकी आठवीं संतान ( पुत्र) के द्वारा तुम्हारा वध निश्चित है । यह सुनकर कंस क्रोध में आ गया और बहिन देवकी और अपने बहिनोई ( देवकी के पति) को कारागार में डाल दिया । देवकी और कंस ममेरे-फुफेरे भाई-बहन थे ।
वसुदेव और देवकी ने अनेक बार कंस को समझाने की कोशिश की कि हम तुम्हें आठवीं संतान सौंप देंगे, हमें कारागार से मुक्त कर दो लेकिन वह नहीं माना ।
कारागार में ही उनकी संतान पैदा होती और वह मार देता, इसतरह उनकी सात संतानों को कंस ने मार दिया ।
जब आठवीं संतान का समय आया , तो परमात्मा की ऐसी कृपा हुई कि सभी पहरेदार सो गये ।
परमात्मा,परमसत्ता ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया, पूरे राजमहल और कारागार में शांति का वातावरण जान पड़ता था ।देवकी -वसुदेव का पुत्र होने की वजह से उन्हें देवकीनन्दन और वासुदेव भी कहा जाता है । जब उनका जन्म हुआ तो वसुदेव बालक को घनघोर वर्षा के कारण उन्हें सूप में रखकर नंदगाँव में नंदबाबा और यशोदा को सौंप कर उनकी पुत्री को कारागार में ले आए । ले जाते समय और आते समय कारागार के द्वार परमात्मा की कृपा से स्वयं खुल गए और वह सुरक्षित आ गये ।
कारागार में उनके आने के बाद वहाँ के पहरेदारों को चेतना आई तो उन्होंने कंस को जाकर बताया । कंस ने पुत्री को मारने की कोशिश की तो वह हाथ से निकल कर बिजली की गर्जना के साथ आकाश में चली गईं । तभी आकाश वाणी हुई हे कंस तू मुझे क्या मारेगा,तुझे मारने वाला तो पैदा हो चुका है । कंस और क्रोध में आगया , जितने भी बालक उस दिन पैदा हुए सभी को मारने का अपने सेवकों को आदेश दे दिया ।
बालक कृष्ण का बलराम नाम का एक सौतेला बड़ा भाई था । वे दोनों साथ-साथ गोकुल गॉंव में खेलते थे ।कृष्ण की जन्मदायिनी मॉं का नाम देवकी था और उसके पिता का नाम वसुदेव था । कृष्ण ने अपने बचपन के दस वर्ष माता यशोदा की देख-रेख में बिताए । बलराम और कृष्ण दोनों ही गॉंव की गोपियों को प्रिय थे ।उनकी माताएँ यशोदा और रोहिणी ( बलराम की मॉं ) उन्हें गर्व सहित प्यार करतीं थीं ।उन्हें भव्य रंगों के वस्त्र आभूषण पहनाती थीं ।
कृष्ण को पीले वस्त्रों में और उनके बालों में मोरमुकुट पहना कर सजाती थीं और बलराम को नीले वर्ण में सजाती थीं । दोनों बालक जगह-जगह और जहॉं जाते, वहीं मित्र बना लेते थे । अधिकांश समय वे किसी न किसी मुसीबत में फँस जाते ।
एक दिन वे दूसरे गॉंव के कुछ बच्चों के साथ खेल रहे थे।
धरती खोदकर , माटी की रोटियाँ बना कर, गंदे होकर । कुछ देर बाद बड़े लड़कों में से एक भाग कर आया और उसने मॉं यशोदा से कहा, “कृष्ण बहुत बुरा काम कर रहा है,
वह माटी खा रहा है । यशोदा को अपने बालक पर ग़ुस्सा आया । मॉं यशोदा को और भी शिकायतें मिल रही थी गॉंव वालों से कि कृष्ण उनके घरों से मक्खन चुराते हैं ।”
वह अपने घर से बाहर निकलीं, उन्होंने क्रोध में भरकर कृष्ण से पूछा, “कृष्ण क्या तुमने मिट्टी खाई है? मैंने तुम्हें कितनी बार मुँह में चीजें न डालने को कहा है ।”
कृष्ण नहीं चाहते थे कि उन्हें दण्ड मिले इसलिए उन्होंने मॉं यशोदा के साथ एक चालाकी की । उन्होंने अपना मुँह पूरी तरह खोल कर कहा, “ देखो मॉं मैं कुछ भी नहीं खा रहा था , ये लड़के तो मुझे संकट में डाल ने के लिए झूठ बोल रहे हैं ।”
यशोदा ने कृष्ण के मुँह में भीतर देखा । वहाँ नन्हे बालक के मुँह में उन्होंने सारा विश्व देखा —
पृथ्वी और नक्षत्र, विशाल शून्य - स्थल , सारा सौरमंडल और आकाश गंगा, पर्वत, सागर, सूर्य व चंद्रमा ।
सभी कुछ कृष्ण के मुँह में था । उसने जान लिया कि कृष्ण तो भगवान विष्णु का अवतार हैं । वह पूजा करने के लिए पैरों में गिरने को हुई ।
किंतु कृष्ण नहीं चाहते थे कि वह उनकी पूजा करें । वह तो बस यही चाहते थे कि यशोदा मॉं उन्हें प्यार करें, वैसे ही जैसे मॉं अपने बच्चों से करतीं हैं ।
दानवों से लड़ने के लिए वह किसी भी रूप में धरती पर अवतार ले सकते थे , किंतु उन्होंने ऐसे मॉं - बाप के छोटे बालक के रूप में आना पसंद किया । जिन्होंने भगवान को अपने बालक के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी ।
बालक कृष्ण ने अनुभव किया कि उनकी चालाकी बहुत बड़ी गलती थी ।
तुरंत ही उन्होंने मॉं यशोदा को अपनी माया की शक्ति में बॉध लिया । अगले ही क्षण यशोदा कृष्ण को अपने बेटे की तरह गोद में लिए हुए थीं । उन्हें बिल्कुल भी याद नहीं रहा कि क्षणभर पहले उन्होंने कृष्ण के मुँह में क्या देखा था ।
अनुभव जब तुम्हें समय मिले तो तुम्हें ग्रामीण वासियों के साथ कृष्ण के मायावी खेलों की दिलचस्प कथाओं को पढ़ना चाहिए । अभी मैं तुम्हें संक्षिप्त में ही बता रही हूँ । कृष्ण की अनगिनत लीलाओं का वर्णन मैं फिर कभी करूँगी।
समय-समय पर भगवान हमें शिक्षा देने के लिए शिक्षक या संत के रूप में भी आते हैं ।
ऐसे ही एक संत की कथा सुनो—
कहानी (20) श्री रामकृष्ण की कथा
भगवान रामकृष्ण के रूप में इस पृथ्वी पर 18 फ़रवरी 1836 में पश्चिमी बंगाल राज्य के कमरपुकुर गॉंव में अवतरित हुए । अधिकांश कथाएँ जो मैंने तुम्हें सुनाई है, वे उनकी पुस्तक “श्री रामकृष्ण की कहानियाँ और दृष्टान्त कथाएँ “ से है ।
स्वामी विवेकानंद उनके सबसे प्रसिद्ध शिष्यों में से थे ।
स्वामी विवेकानंद 1893 में अमेरिका में आने वाले पहले हिंदू संत थे । उन्होंने न्यूयार्क में वेदांत सोसायटी की स्थापना की । रामकृष्ण बहुत सादा जीवन जीते थे । वे अपने भोजन और दैनिक जीवन की अन्य दैनिक आवश्यकताओं के लिए भगवान पर निर्भर रहते थे ।वे पैसे स्वीकार नहीं करते थे । उनकी शादी मॉं शारदा से हुई । वे शारदा मॉं के साथ अपनी मॉं जैसा व्यवहार करते थे । उनके कोई बच्चा न था ।मॉं शारदा अपने शिष्यों से कहा करतीं थीं, “यदि तुम मन की शांति चाहते हो तो दूसरों के दोषों को मत देखो , अपने दोषों को देखो । दुनिया में कोई भी पराया नहीं है, सारा संसार तुम्हारा अपना ही है । शारदा मॉं अपने शिष्यों को विरोधी लिंग के व्यक्ति के अति समीप न होने की कड़ी चेतावनी देतीं थीं — “भले ही स्वयं भगवान भी इस रूप में सामने क्यों न आये ।” रामकृष्ण मॉं काली की— अपनी इष्टदेवी के रूप में कलकत्ते के समीप दक्षिणेश्वर में स्थित मंदिर में— उपासना करते थे । वह मंदिर आज भी वहॉं है, लोग दर्शन करने जाते हैं ।
अध्याय पंद्रह का सार— सृष्टि बदलते रहने वाली है, वह सदा रहने वाली नहीं है । इसका जीवन - काल सीमित है ।
ब्रह्म या आत्मा कभी नहीं बदलते, वह शाश्वत है । वह सब कारणों का कारण हैं । कृष्ण को परमब्रह्म या परमात्मा कहा जाता है । वह पूर्ण है क्योंकि उसका कोई मूल नहीं है। परमब्रह्म ब्रह्म का मूल है ।विश्व की सभी चीजें ब्रह्म से आतीं है । ब्रह्मा सृष्टा शक्ति है । दिखाई देने वाला सारा विश्व और इसके जीव ,ब्रह्मा की शक्ति है । जो विष्णु द्वारा पोषित है और महेश द्वारा उसका संहार होता है ।
क्रमशः ✍️
सभी पाठकों को नमस्कार 🙏
पावन ग्रंथ—भगवद्गीता की शिक्षा
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