मैं ईश्वर हूँ – अंतिम भाग
अब तक आपने पढ़ा : मनुष्य अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर अपने इष्ट भगवन के दर्शन करता है और भगवन के द्वारा बताये गए मार्ग अपर चलता हुआ अपनी आत्मा को शरीर से अलग करता है. फिर उसकी आत्मा तीन अलग – अलग चरण से गुजरती हुई अपनी वास्तविक स्थिति को देखती है जहाँ उसे अपने लोगों के द्वारा ही दुःख और सुख दोनों देखना पड़ता है यहाँ कुछ समय बिता कर आत्मा फिर अपने गंतव्य पर चलना चालू कर देती है।
अब आगे : बिम्ब अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर है उसे जो भी देखना था और कहना था वो सब कुछ वो कर चूका है अब उसे केवल अपने सफ़र के प्रारंभ होने का इंतजार है, बिम्ब तेरह दिनों तक अपने घर पर ही रहा और उसने इस समय में अपने लड़के को वो सब कुछ बताया जो उसने अपने प्रारंभ के सफ़र में महसूस किया था और उसने भगवन के साथ हुई बातचीत को भी कहा, पर अब उसे यहाँ से जाना होगा क्योंकि उसे अब अपने सफ़र के अंतिम पड़ाव को पूरा करना है।
बिम्ब को वही शक्ति फिर से चलायमान कर देती है अब बिम्ब बहुत तेज रफ्तार से ऊपर की और चला जा रहा है रास्ते में आने वाले सभी पड़ाव उसे दिखाई नहीं दिए थे पर अब उसकी आंखें, हाँथ, पैर और बाकी का शरीर भी बन चूका है, थोड़ा छोटा है पर अब उसके पास शरीर है जिससे वो सब कुछ देख, सुन और महसूस कर सकता है, वो साफ़-साफ़ देख सकता है की एक के बाद एक चार आसमान निकल चुके हैं पर उसका सफ़र अनंतर चालू है इन चार आसमान की परतों पर उसने बहुत कुछ देखा जो किसी सामान्य मनुष्य की सोच के बस की बात नहीं है।
पहले आसमान पर उसे चाँद, तारे, सूरज और अन्य गृह दिखाई देते हैं जो सामान्यतः हमें भी यहाँ पृथ्वी से दिखाई दे जाते हैं, आसमान की दूसरी परत पर बहुत से शून्य जो अभी-अभी मृत्यु को प्राप्त हुए हैं वो विचरण कर रह होते हैं, आसमान की तीसरे स्तर पर या यूँ कहें की तीसरे आसमान पर बहुत सी भटकती हुई आत्माएं हैं जिनका समय अभी पूरा नहीं है ये आत्माएं या तो किसी खास मकसद को लेकर यहाँ पर हैं या समय से पहले मृत्यु हो जाने की वजह से वो यहाँ रह कर अपने समय का इंतजार कर रहीं हैं, चौथे आसमान पर बहुत ही दिव्य प्रकाश है कई छोटे-छोटे दिव्य पुंज यहाँ पर विद्यमान हैं जो शायद पुण्य आत्माएं हैं।
बिम्ब अब पाँचवें आसमान पर पहुँच चूका है यहाँ कई देवी-देवता बैठे हुए हैं और कई बहुत खूबसूरत दिव्य अप्सराएँ नृत्य कर रही हैं उनका नृत्य बहुत ही मनमोहक है, अगर कोई उनके नृत्य को देख ले तो समस्त जीवन केवल वही नृत्य देखने के लिए वहां रुक जायेगा पर फिर भी बहुत सी दिव्य आत्माओं पर इस नृत्य का कोई भी असर नहीं होता और वो आगे की यात्रा पर चलते रहते हैं, बिम्ब कुछ देर के लिए ही सही पर इस नृत्य से आनंदित हो गया था पर परम पिता परमेश्वर की कृपा से उसका ध्यान वहां से हट जाता है और फिर वो अपने सफ़र पर फिर से निकल पड़ता है।
बिम्ब अब छठे आसमान पर पहुँच जाता है इस जगह पर केवल पानी ही पानी है नीला, साफ़ और शीतल। पर यहाँ इस पानी के अलावा और कुछ दिखाई नहीं दिया, बिम्ब को विचार आया की पृथ्वी लोक में पढ़ा था की भगवन विष्णु क्षीर सागर में निवास करते हैं कहीं इसे ही तो क्षीर सागर नहीं कहते, पर यहाँ तो भगवन कहीं दिखाई नहीं देते केवल जल ही जल है और कुछ भी नहीं, बिम्ब उस छठे आसमान पर आगे जाने का विचार करता है पर कोई शक्ति है जो उसे वहां जाने से रोक लेती है और बिम्ब ऊपर उठ जाता है सातवें आसमान के लिए।
सप्तम् या सातवां आसमान- बिम्ब यहाँ पर आकर असीम शांति और सुख अनुभव करता है उसकी रास्ते भर की थकान यहाँ पर कब खत्म हो गई पता ही नहीं चला। आसमान के स्तर पर चारों ओर बहुत ही मधुर संगीत गूंज रहा है इस संगीत में ओम का उच्चारण हो रहा है सारा आसमान गूगल और धुप की खुशबू से सुगन्धित हो रहा है, सारे आसमान पर वनस्पति और हरी घास लगी हुई है। ऐसा लगता है की दूसरी पृथ्वी सातवें आसमान पर है यहाँ बहुत अधिक ठंडक है जैसे हिमालय पर्वत के ऊपर इस आसमान को रखा गया है।
बिम्ब बहुत धीरे पर अब बिना किसी दूसरी शक्ति के सहारे, खुद से ही आगे की ओर बढ़ रहा है, जैसे-जैसे बिम्ब आगे चलता जाता है उसे अपने ही समान और भी कई बिम्ब दिखाई देते हैं, फिर कुछ आगे ही एक विशाल पर्वत दिखाई देता है ये ओम की धुन वहीं से आती हुई सुने दे रही है, बम उस पर्वत पर चढ़ना चालू कर देता है पर उस पर्वत पर पैर रखते ही मानो वो हवा में उड़ने लगता है और बिना किसी परिश्रम के ही पर्वत पर ऊपर की ओर उड़ने लगता है कुछ ही देर में पर्वत पर पहुँच जाता है और वहां का दृश्य देख कर बिम्ब अचंभित हो जाता है वहां पहुँचते ही बिम्ब के आकर में बदलाव होने लगता है।
अब बिम्ब पूर्ण रूप से पुरुष की आकृति में आ जाता है जैसा वो पहले पृथ्वी पर था पर उसके कपडे बैसे नहीं हैं वो मृग चल और बहुत सी रुद्राक्ष की माला पहने हुए है अब वो आगे बढ़ता है कुछ दूर चलने पर ही उसे एक बड़ी चट्टान पर देवों के देव महादेव भगवन शिव बैठे हुए दिखाई देते हैं इस समय वो समाधि लीन हैं माता पार्वती उनके नीचे थोड़ी छोटी चट्टान पर बैठी हुई हैं और भगवान अघोरनाथ के लिए माला बना रहीं हैं हजारों गण इन दोनों को चारों और से घेरे हुए हैं, डमरू, मृदंग, खरताल और शंख हांथों में लेकर बजा रहें हैं उनके मुख से भगवान शिव की उपासना और प्रार्थना में मंत्र और गीत निकल रहे हैं।
माता पार्वती जी के मुख से ओम शब्द की ध्वनि निकल रही है बिम्ब ये सब कुछ देख कर बहुत ही रोमांचित हो जाता है उसका शरीर पुलकित हो जाता है वो भगवान शिव के सामने खड़े होकर दोनों हाँथ जोड़कर “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करने लगा, अपनी आदत के अनुसार आँख बंद करके वो शिव का ध्यान करने लगा पर फिर कुछ देर बाद ही शिव के एक गण ने बिम्ब को जागे और कहा की पृथ्वी पर आंख बंद करके उपासना की जाती है क्योंकि वहां पर भगवान अद्रश्य रूप में होते हैं पर यहाँ पर भोले नाथ स्वयं माता शक्ति के साथ विराजमान हैं तो यहाँ पर आँख बंद करने का क्या उद्देश्य, इसलिए भगवान के दर्शनों का लाभ उठाएं।
बिम्ब पता नहीं कितने समय तक भगवान को निहारता रहा और पता नहीं कितनी बार ही उसने भगवान के चरणों में दण्डवत किया, कुछ समय पश्चात भगवान आदिनाथ ने अपनी आंखें खोली और सभी भक्तों को देख कर बहुत प्रसन्न हुए, इसके बाद सभी ने मिलकर भगवान की बहुत प्रकार से आरती और पूजा की जिससे भोले भंडारी बहुत ही खुश हो गए, साथ ही उनकी नज़र बिम्ब पर गई तप उन्होंने बिम्ब कोप इशारे से अपने पास बुलाया और कहा की “ तुम्हारा स्वागत है, तुमने अपने संपूर्ण जीवन काल में जो भी अच्छे कर्म किये थे उन अच्छे कर्मों के वजह से ही तुम्हें हमारे धाम में लेकर आया गया है अब जन्म जन्मांतर के चक्कर से मुक्त होकर यहीं पर निवास करो।
स्वयं भगवन के मुख से सत्कार पाकर बिम्ब बहुत ही प्रफुल्लित हो उमापति से बोला “ है प्रभु आज में धन्य हो गया अगर आप मुझ पर आशीर्वाद रखते हैं तो मेरे कुछ सवालों के उत्तर देने की कृपा करें।“ भगवान ने इशारे से हाँ कह कर बिम्ब को अनुमति प्रदान की बिम्ब ने बोलना चालू किया।
बिम्ब : भगवन मनुष्य को ऐसा क्या करना चाहिए की वो अपनी देह त्यागने के बाद आपके श्री चरणों में स्थान पा सके?
भगवन : हे पुत्र मानव दो तरीके से इस परम पद को प्राप्त कर सकता है एक मार्ग है जिसे संत और महात्मा अपनाते हैं वो अपना संपूर्ण जीवन ईश्वर की उपासना में लगा देते हैं पर उनमें से भी सिर्फ वही यहाँ तक पहुँच पाते हैं जिनका उद्देश्य सही होता है और जो निस्वार्थ भाव से भगवान का भजन करते हैं, और दूसरा मार्ग गृहस्थ लोगों के लिए है जिसमें हर मानव को अपने पुत्र, पुत्री, माता, पिता और बंधूँ बांधवों का लालन –पालन उनका सही तरीके से ख्याल रखना और साथ ही अपने कर्म से मुक्त होकर अपने इष्ट का भजन करना।
बिम्ब : हे प्रभु जब लोगों को यहाँ पर आकर सब कुछ ज्ञात हो जाता है तो वापस मृत्युलोक में जा कर वो फिर से वही गलतियाँ क्यूँ करता है ?
भगवन : मानव जब यहाँ से पुनः जन्म लेने जाता है तो उसे सब याद रहता है परंतु जब वो जन्म ले लेता है तब मृत्यु लोक में मौजूद महा माया उसे अपनी माया के जाल में फसा लेती हैं और वो सब कुछ भूल जाता है।
बिम्ब : प्रभु क्या आपके इस धाम में आने के बाद भी पुनः जन्म होता है?
भगवन : हर पुण्य और पाप का समय काल निश्चित है मनुष्य जितने समय पाप करता है उतना ही समय नर्क में बिता कर वो फिर से जन्म ले लेता है और मनुष्य जितना समय पुण्य करता है उतना समय अपने इष्ट के पास बिताकर फिर से जन्म ले लेता है।
बिम्ब : हे प्रभु इस जन्म मरण से मुक्ति का कोई उपाय नहीं है क्या?
भगवन : हे वत्स इस क्रम से स्वयं देवताओं को मुक्ति नहीं मिलती है फिर मनुष्य कैसे इन सब से मुक्त हो सकता है पर तुम स्वयं के पुण्य से यहाँ आकर कुछ समय तक अपने पुण्य का लाभ उठा सकते हो और अगर तुम्हारी मृत्यु के बाद तुम्हारे नाम से तुम्हारे पुत्र आदि जो भी पुण्य कर्म करेंगे उसका लाभ तुम्हें होगा और तुम उन पुण्य कर्मों के प्रभाव से और अधिक समय तक यहाँ रह सकते हो।
बिम्ब को इतना कह कर भोले नाथ फिर से ध्यान में लीन हो गए और बिम्ब वहां से उठकर चला गया अब बिम्ब इस शिव धाम में तब तक निवास करेगा जब तक की उसके पुण्य उसका साथ देंगे और अगर उसके पुत्र आदि उसके नाम से कुछ पुण्य करते हैं तो वो और अधिक समय तक यहाँ रह पायेगा।
बिम्ब भी गणो के साथ भगवान की प्रार्थना में लीन हो जाता है।
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
अंतिम भाग
सतीश ठाकुर