Sweekriti - 6 in Hindi Moral Stories by GAYATRI THAKUR books and stories PDF | स्वीकृति - 6

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स्वीकृति - 6

विनीता अपनी मौसेरी बहन मीनाक्षी के आने से बेहद खुश थी ,उसके आने से मानो उसके अकेलेपन का दुख जैसे कम हो गया हो ..और साथ ही अपनी मौसेरी बहन को अपनी देवरानी के रूप में देखने की उसकी प्रबल इच्छा फिर से जाग उठी थी . उसके उस भूतपूर्व इच्छा को साधने का अवसर मिलने की उम्मीद भर से उसकी खुशी दोगुनी हो गयी थी . विनीता हमेशा से चाहती थी कि उसकी मौसेरी बहन की शादी श्रीकांत से हो जाती परन्तु अपने पति के विरोध के कारण उसने अपने इस इच्छा को मन में ही दबा दिया था. उसने अपनी इस इच्छा को बातों ही बातों में अनेकों बार अपनी सास के समक्ष जाहिर भी किया था परंतु सास ने भी उसकी इस इच्छा को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया था. लेकिन अभी स्थिति क्योंकि बदल चुकी थी अतः इस बदले हुए परिस्थिति में उसके मन में एक उम्मीद की किरण ने जन्म ले लिया था उसे भरोसा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि उसकी सास उसके इस प्रस्ताव को पूरे मन से स्वीकार करेंगी और जहां तक हो सके इस कार्य में उनका साथ तो अवश्य ही मिलेगा.


" वैसे भी श्रीकांत और मीनाक्षी एक दूसरे के अच्छे दोस्त हुआ करते थे .. उसकी शादी में जब श्रीकांत बारात में आया था तभी से उनके बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी...और अच्छा ही है मीनाक्षी कुछ दिन यहां हम सब के साथ रहने के लिए राजी हो गई श्रीकांत का भी मन लगा रहेगा और वह धीरे-धीरे अपने इस तकलीफ से भी बाहर निकल सकेगा...वैसे मीनाक्षी और श्रीकांत दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं और समय एवं तकदीर दोनों को ही यही मंजूर है..वरना उस की दुल्हन उसे छोड़कर चली क्यों जाती....कहीं ना कहीं ऊपर वाला भी यही चाहता है"....विनीता इन्हीं सब विचारों में खोई हुई घर के ऊपर छत पर बने उस कमरे को मीनाक्षी की जरूरत के हिसाब से संभालने में लगी हुई थी.


ऊपर छत से लगा वह कमरा था तो मेहमानों के ठहरने के लिए परंतु उसका सदुपयोग छत पर सुखाए जा रहे आचार पापड़ और सूखे कपड़े को रखे जाने के लिए होता था. विनीता ने उस कमरे की सफाई कर खाली पड़े उस पलंग पर एक हल्के गुलाबी रंग की चादर को बिछा दिया और पलंग के ठीक सामने पड़े लकड़ी के उस अलमारी को जिस पर पापड़ तथा अचार के डिब्बे पड़े रहते थे बड़े सजगता के साथ साफ सफाई कर दी ताकि मीनाक्षी वहां अपने किताबों को रख सके फिर खिड़की के ठीक सामने एक टेबल और कुर्सी लगा दी ताकि वह जितने दिन यहां रहे उसे किसी प्रकार की असुविधा ना हो और वह अपने शोध कार्य को भी बिना किसी दिक्कत के पूरा कर सकें विनीता अपनी बहन के आने की खुशी में झूमे जा रही थी इस खुशी ने कुछ देर के लिए ही सही उसके पति के बेरुखी भरे उस

बर्ताव से मिले दर्द को भी कुछ हद तक कम कर दिया था उस कमरे को मीनाक्षी की जरूरत और उसकी पसंद के हिसाब से ठीक करने के बाद वह सीढ़ियों से नीचे उतरती हुई श्रीकांत के कमरे की ओर चल देती है जो दूसरे माले पर था छत वाले उस कमरे के ठीक नीचे.


"हां ...हां ...ठीक है ..! चौधरी जी ..माना अभी हम विपक्ष में है ..,परंतु राजनीति में उतार चढ़ाव ..ऊपर नीचे ..तो होता रहता है ..आज हमारी पार्टी विपक्ष में है ,परंतु देखना आप इस आने वाले चुनाव में हमारी पार्टी को भारी बहुमत हासिल होगी.. हमें इस बात का पूर्ण विश्वास है वैसे भी सत्ताधारी पार्टी की नैया डूबती हुई दिख रही है पार्टी के अंदर ही घोर मतभेद है..! " यह कहते हुए उस मोटे और नाटे कद के नेता ने अपनी आंखों से चश्मा निकाला और अपनी पैकेट से एक रुमाल निकाल कर उससे अपने चश्मे के शीशे को साफ करता है और उसके बाद चश्मे को वापस आंखों पर चढ़ा लेता है तथा टेबल पर पड़ी एक पतली सी पत्रिका को उठाकर उस पर अपनी दृष्टि जमा देता है और कुछ पन्ने को इधर-उधर उलट ने पलटने के बाद चौधरी जी को थमा देता है.


उस मोटे से दिखने वाले उस नेता का तोंद बाहर की ओर कुछ इस हद तक निकला हुआ था कि जिसके दबाव से उसकी कमीज के नीचे के दो बटन खुल पड़े थे और मानो जैसे अतिक्रमण अतिक्रमण चिल्ला उठे हो...

ऐसे ही किसी मोटे इंसान को देख कर किसी बड़े साहित्यकार ने यह बात कही होगी ..,"अरे मोटे आदमियों...तुम जरा दुबले हो जाते...तो ना जाने कितनी ठटरियों पर मांस चढ़ जाता ". "

उस मोटे और नाटे कद काठी के नेता के बगल में घने रौबदार मूछों वाला जो शख्स बैठा हुआ था उसका नाम दीनानाथ पांडे था. कुछ साल हुए दीनानाथ को राजनीति के कीड़े ने ऐसा काटा कि इन्होंने पुलिस की वर्दी उतार फेंकी और इन नेता जी की शरण में आ गए और फिर आखिर..इन्हें भी तो अपने सेवा का इनाम चाहिए था, जो पुलिस सेवा में कार्यरत रहते हुए देश के लिए कम और इन नेताओं के लिए ज्यादा की थी. और अब उसी के प्रसाद स्वरूप इन्हें भी इस चुनाव में पार्टी से टिकट पाने की आस थी और इन नेताओं की शरण में आने के बाद यह ना तो अब ‘दीन’ रहे और ना ही ‘अनाथ’! अतः अब दिल खोलकर समाज सेवा करने के लिए इनके अंदर का कीड़ा भी फड़फड़ा रहा था .

"मेनिफेस्टो को देखने की फुर्सत कहां ..पार्टी हाईकमान ने जो कुछ काम सौंपा है उसी से फुर्सत नहीं..,और हां ....,चौधरी जी इससे आगे कुछ कह पाते कि उनकी बात बीच में ही काटते हुए दीनानाथ बोल पड़ता है ,"अरे हां ..! जीत तो पक्की है वैसे भी इस बार सत्ता पक्ष के काम से जनता में काफी निराशा है और अपने चिर परिचित अंदाज में मुस्कुराने लगता हैं उसकी यह मुस्कुराहट उसकी होठों पर नहीं उसकी मूछों पर फैलती नजर आती है..


सुष्मिता की नींद अचानक खुल जाती है .उसे खिड़की के पीछे किसी के खड़े होने का एहसास होता है ,उसे लगता है कि कोई कमरे के बाहर है वह खिड़की से बाहर देखने की चेष्टा करती है परंतु उसे कुछ नजर नहीं आता और फिर वह इसे अपना भ्रम समझ कर वापस कुर्सी पर बैठ जाती है और फिर कुछ सोचने लगती है और फिर अचानक ही वहां से उठ कर किचन की ओर चल पड़ती है, गर्मी बहुत थी ..उसका गला प्यास से सूखा जा रहा था ..वह एक गिलास में पानी भरकर पीने के लिए अपने होठों तक लाती ही है कि उसे दरवाजे की घंटी बजने की आवाज सुनाई पड़ती है उसे लगता है कि शायद संदीप आया होगा परंतु अगले ही क्षण उसे ख्याल आता है कि संदीप तो काफी देर रात तक बाहर ही रहता है आज इतनी जल्दी कैसे ...यही सब कुछ सोचती हुई वह अचानक ही दरवाजे को खोल देती है परंतु दरवाजे के बाहर कोई भी नहीं होता वह थोड़ी और बाहर जाकर इधर-उधर देखने का प्रयास करती है और फिर सामने के सड़क पर उसे कुछ बच्चे खेलते नजर आते हैं उसने सोचा कि शायद उन्हीं में से किसी बच्चे ने शरारत की होगी और वह अंदर आकर वापस दरवाजे को बंद कर देती है और किचन की ओर पुनः जाने के लिए पैर बढ़ाती ही हैं कि वापस घंटी बजने की आवाज आती है और वह फिर से झुझलाती हुयी दरवाजे को खोल देती है बाहर कोई शख्स नहीं दिखता गुस्से में वह दरवाजा बंद करने ही वाली थी कि तेजी से भागते हुए किसी के कदमों की आहट उसके कानों में आती है ..वह दौड़ती हुई सीढ़ी के पास बढ़कर देखने की कोशिश करती है परन्तु वह जो कोई भी था वह शायद जा चुका था.. वह वापस अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है दरवाजे पर उसका पाव किसी वस्तु से टकराता है वह नीचे झुक कर देखती है कुछ पार्सल जैसा कोई चीज पड़ा था उसे वह अपने हाथों में उठा कर नीचे खेल रहे उन बच्चों को आवाज लगाती है और पूछती है कि क्या उनमें से किसी ने यहां से किसी को जाते हुए देखा था. बच्चे अपने खेल में मग्न थे. उन्होंने बड़े ही लापरवाही से जवाब दिया.."नहीं आंटी हमने किसी को नहीं देखा.. " सुष्मिता हैरान-परेशान सी पार्सल को उठाएं कमरे के अंदर आ जाती है और दरवाजे को बंद कर लेती है उसके मन में अनेकों सवाल उठ खड़े होते हैं वह उस बिना पत्ते के पार्सल को लेकर सोच में पड़ जाती है उसे खोलने से पहले वह संदीप को कॉल करती है कि क्या कहीं उसने तो नहीं भिजवाया, परंतु संदीप का फोन स्विच ऑफ होता है. सुष्मिता उस पार्सल को खोलती है..

__ गायत्री ठाकुर