Pawan Granth - 20 in Hindi Mythological Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 20

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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 20



अध्याय चौदह

प्रकृति के तीन गुण

अनुभव— दादी जी, कभी-कभी तो मुझे बहुत आलस आता है और कभी मैं बहुत सक्रिय (गतिशील,active)हो जाता हूँ ।ऐसा क्यों है?

दादी जी— हम सभी कार्य करने के लिए अलग-अलग अवस्थाओं से गुजरते हैं ।ये अवस्थाएँ अथवा गुण तीन प्रकार के हैं ।
सतोगुण जो अच्छी अवस्था है ।
रजोगुण तीव्र कामना की अवस्था है ।
तमोगुण अज्ञान की अवस्था है ।

हम तीनों गुणों के प्रभाव में आते रहते हैं । कभी-कभी एक गुण दूसरे दो गुणों से अधिक शक्तिशाली हो जाता है।

सतोगुण तुम्हें शांत और सुखी बनाता है । इस अवस्था में तुम धर्म शास्त्रों का अध्ययन करोगे, किसी को हानि नहीं पहुँचाओगे, दुख नहीं पहुँचाओगे और ईमानदारी से काम करोगे ।
जब तुम रजोगुण के प्रभाव में होते हो तो धन और सत्ता के लोभी बन जाते हो । तुम भौतिक सुखों को भोगने के लिए परिश्रम करोगे और अपनी स्वार्थ पूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए सब कुछ करोगे । किंतु जब तुम पर तमोगुण का प्रभाव होता है, तो तुम अच्छे बुरे कर्म में अंतर नहीं कर सकते और तुम पाप कर्म करोगे । तुम आलसी और लापरवाह बन जाते हो , तुममें विवेक शक्ति (बुद्धि) का अभाव होता है और आध्यात्मिक ज्ञान में कोई रुचि नहीं रहती ।

अनुभव— क्या प्रकृति के ये तीन गुण हमें अपने नियंत्रण में रखते हैं , दादी जी ? या हमारा अपने कर्मों पर नियंत्रण रहता है ।

दादी जी— वास्तव में, यही तीन गुण सब कर्मों के कर्ता हैं ।
जब हम सतोगुण के प्रभाव में होते हैं, तो हम अच्छे और सही कर्म करते हैं ।

रजोगुण के प्रभाव में हम स्वार्थ पूर्ण कर्म करते हैं ।

तमोगुण के प्रभाव में बुरे कर्म करते हैं, और आलसी हो जाते हैं ।

निर्वाण या मोक्ष पाने के लिए हमें तीनों गुणों से ऊपर उठना पड़ेगा ।

अनुभव— जब हम इन तीनों गुणों से ऊपर उठ जाते हैं तो हम कैसे होते हैं?

दादी जी— जब हम इन तीनों गुणों से ऊपर उठ जाते है, तो हमें दुख-सुख प्रभावित नहीं करते, न ही सफलता और असफलता और हम सभी को अपने समान समझते हैं । इस प्रकार का व्यक्ति परमात्मा को छोड़ कर और किसी पर निर्भर नहीं रहता ।

अनुभव— इन तीनों गुणों से ऊपर उठना तो बहुत कठिन होगा । मैं इन तीनों गुणों से ऊपर कैसे उठ सकता हूँ, दादी जी?

दादी जी— इन तीनों गुणों से ऊपर उठना बहुत आसान नहीं है । किंतु कुछ प्रयत्न करने पर ऐसा करना संभव है ।यदि तुम तमोगुण के प्रभाव में हो, तो तुम्हें आलस छोड़ना होगा, जो तुम्हें करना है, उसे टालना बंद करना होगा और दूसरों की सहायता करना शुरू करना होगा और दूसरों की सहायता करना शुरू करना होगा । यदि तुम रजोगुण के प्रभाव में हो, तो तुम्हें स्वार्थ भाव का, लोभ का त्याग करना होगा और दूसरों की सहायता करनी होगी । ऐसा करने से तुम सतोगुण के प्रभाव में आ जाओगे । सतोगुण को प्राप्त कर तुम प्रभु की भक्ति से तीन गुणों से ऊपर उठ सकोगे । भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ,
“ जो मेरी सेवा और भक्ति प्रेम से करता है, वह तीनों गुणों से ऊपर उठ जाता है और गुणातीत होकर ब्रह्म ज्ञान पाने के योग्य हो जाता है ।”

तीनों गुणों के विषय में एक कथा मैं तुम्हें सुनाती हूँ ।

कहानी ( 18 ) आध्यात्मिक राह के तीन लुटेरे

एक बार एक आदमी वन में होकर जा रहा था । तीन लुटेरों ने उसपर आक्रमण कर के उसे लूट लिया ।

लूटने पर उन लुटेरों में से एक ने कहा, “इस आदमी को जीवित रखने से क्या लाभ है?”

लुटेरे ने उस आदमी को मारने के लिए तलवार उठाई ही थी कि इतने में दूसरे लुटेरे ने उसे रोक दिया और कहा, “इसे मारने से भी क्या लाभ है? इसे पेड़ से बांधकर यही छोड़ दो।”

लुटेरे उसे पेड़ से बांधकर चले गए ।

कुछ देर में तीसरा लुटेरा वापिस आया । उसने आदमी से कहा, “मुझे खेद है , तुम्हें कष्ट तो नहीं पहुँचा ? मैं तुम्हें खोल देता हूँ ।”

आदमी को आज़ाद करके लुटेरे ने कहा, “आओ मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें सड़क तक पहुँचा देता हूँ ।”

काफ़ी देर चलकर वे सड़क पर पहुँचे ।

तब उस आदमी ने कहा, “श्रीमन् , आप मेरे प्रति बहुत भले रहे हो , मेरे साथ मेरे घर चलो।”

“नहीं भाई, नहीं ,” लुटेरे ने उत्तर दिया । “मैं वहाँ नहीं जाऊँगा, पुलिस को पता चल जाएगा ।”

यह संसार वन है । तीन लुटेरे तीन गुण हैं— सत्व् , रजस् और तमस् (या सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण) । ये ही है जो हमें हमारे आत्मज्ञान से वंचित करते, लूटते हैं । आलस हमें नष्ट करना चाहता है । कामना हमें संसार से बॉंध देती है । सतोगुण हमें काम और आलस के बंधन से मुक्त करता है । सतोगुण के बढ़ने पर हम काम, क्रोध, लोभ और आलस से मुक्ति पाते हैं । वह हमें संसार के बंधन से भी राहत दिलाता है, बंधन को ढीला करता है । किंतु सतोगुण भी एक लुटेरा ही है । यह हमें परमात्मा का शुद्ध ज्ञान नहीं दे सकता। यह केवल हमें परमात्मा के परमधाम का मार्ग (सड़क) दिखा सकता है । मार्ग पर हमारे साथ चलकर हमें घर तक नहीं पहुँचा सकता । हमें तीन गुणों से ऊपर उठ कर। प्रभु के प्रति प्रेम बढ़ाकर अपना घर (परमधाम)पहुँचना होगा ।

अध्याय चौदह का सार— प्रकृति मॉं हमारे माध्यम से अपने कार्य कराने के लिए हमें तीन ( सतोगुण,रजोगुण और तमोगुण) गुण रूपी रस्सी से बांध देतीं हैं । वास्तव में तो सारा कर्म प्रकृति के इन तीन गुणों द्वारा ही किया जाता है । हम कर्ता नहीं है, किंतु हम अपने कर्मों के प्रति उत्तरदायी हैं क्योंकि हमें बुद्धि मिली है। हमें अच्छे -बुरे कर्मों का निर्णय करने और चुनने के लिए स्वतंत्र इच्छा -शक्ति भी मिली है । तुम सच्चे प्रयत्न और परमात्मा की भक्ति व उनकी कृपा से तीन गुणों के प्रभाव से बच सकते हो ।


क्रमशः ✍️


सभी मातृ भारती के पाठकों को नमस्कार 🙏
प्रथम अध्याय से पढ़िए ,डाउनलोड कर अपने मित्रों और परिवारजनों, बच्चों को भी पढ़ाइए ।