अवतार in Hindi Spiritual Stories by Alok Mishra books and stories PDF | अवतार

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अवतार

अवतार


आलेख सनातन अवतारवाद और विकासवाद के संबंध पर आधारित है । आख्यानों की अधिकता के बवजूद भी संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है । आख्यानों के विस्तार को सुधी पाठक अलग से पढ़ सकते है ।आपका सहमत होना जरूरी नहीं है । अपने अभिमत को अंकित अवश्य करें ।
जीव विकास क्रम वैदिक शास्त्रों के अनुसार जब-जब धर्म घटता है और अधर्म बढ़ता है तब-तब धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिये भगवान विष्णु अवतार लेते है। धर्म की व्याख्या यदि संक्षेप में की जाए तो जीवन जीने की वह कला जो सत्य व सनातन है, धर्म है।धर्म वो हो जो परिस्थितिगत कारणों से बदलता नहीं । धर्म वह स्थिर नियम है जो किसी भी शृष्ठी के निर्माण के पूर्व ही बन जाता है । धर्म के लिए मानव की आवश्यकता नहीं है । विष्णु को जगत का पालनहार कहा जाता है, अतः विष्णु का स्वयं का धर्म जगत का पालन करता है। जीव तत्व को नवीन मार्ग दिखाना है, जिसके लिये ही वे बार-बार अवतार लेते हैं। कलियुग में होने वाले भविष्य के अवतार से पूर्व नौ अवतारों को यदि देखें तो वे जीवन के विकास क्रम के रूप में दिखते है। प्रथम मत्स्यावतार के रूप में सत्यव्रत को जीवन के प्रतीक रूप में बचाने का उल्लेख तो है ही विकासवादियों के दृष्टिकोण से भी जीवन को उत्पत्ति जलचर रूप से ही मान्य है। कच्छपावतार में भगवान अपनी पीठ पर मंदरांचल पर्वत को उठाकर समुद्र मंथन में सहभागी होते हैं। क्रमिक विकास की प्रक्रिया में मछली के पंख और गलफड़े का विकास, पैर और फेफड़े होने के साथ-साथ जल प्लावित धरती के समुद्र में खिसकने और नये क्षेत्रों से जुड़कर नयी और संभावनाओं को खोजा जाना दर्शाता है ‌। जैविक विकास के साथ ही साथ यह तत्थ आपको भूगोल और भूभौतिकि में भी विस्तार से मिल जाएगा । महाप्रलय का उल्लेख भी सभी धर्म के सहित्यों में मिलता है । वरहावतार के रूप में जलमग्न धरती के कारण जीवों के आवास हेतु समुद्र से धरती प्राप्त करना कथानक है। क्योंकि यहां जीवन समुद्र को छोड़कर चौपायों के रूप में धरती पर आश्रय बनाने लगे थे। कछुआ या कच्छप इसका उत्तम प्रतीक हो सकता था । मानव रूप की सृष्टि से पूर्व है नरसिंहावतार, जो न मानव है और न ही पशु और जो दोनों का मिला-जुला रूप है , जो होमोसीपियंस की तरह अच्छे-बुरे विषय में है। मानव विकासवादी डार्विन भी यही कहते है लेकिन वे मानव के विकास को बंदर से जोड़ते है । वामनावतार के रूप में मानव बौना अवश्य है परंतु ऊर्जावान इतना कि अपने पैरों से ही तीनों लोकों को नाप सकता है। यहां मानव निश्चित रूप से पैदल दुनिया को नापता रहा होगा और यदि आप वामन और मानव की शब्द सृष्टि पर ध्यान देंगे तो दोनों में भेद समाप्त होता दिखेगा। अवतारवाद में यह इस शृष्ठि में वामनावतार मानव के रूप में भगवान विष्णु का प्रथम अवतार था । जब मानव को अस्त्र-शस्त्र की आवश्यक्ता महसूस हुई होगी तब बलशाली विद्वान काया से परिपूर्ण, शस्त्रों को बनाने और चलाने की कला जानने वाला और शत्रुओं पर निर्दयतापूर्वक प्रहार करने वाले अवतार के रूप में परशुअवतार पूज्य है। विकसित होती मानव श्रंखला में वहीं तो विकास को प्राप्त कर सकता था जो बलशाली हो जो अपने बल और शस्त्रों से अपनी और अपने समुदाय की रक्षा कर सके । रामवतार इसी श्रृंखला को बढ़ाते हुए मानव को दस कलाओं में प्रवीण होने तथा कृष्ण को सोलह कलाओं के ज्ञाता होने के साथ आगे बढ़ता है। वस्तुत: कृष्ण को अवतारवाद में परिपूर्ण मानव माना जा सकताराम और कृष्ण में कलाओं का अंतर है जिन कलाओं को राम निसिद्ध मानते थे उन्हें ही कृष्ण की परिपूर्णता कहा जा सकता है । नवम अवतार के रूप में बुद्धावतार मान्य है। मानव की मुक्ति का मार्ग मानव देह में ही प्राप्त हो बुद्धावतार यही करते दिखते है । कलियुग में ढाई हजार वर्ष पूर्व मानव समस्याओं के निदान खोजने के पृथक मार्ग ढूंढता हुआ दिखता है। आज भी नित नये अविष्कार, धर्म, पंथ, विचार धाराएं और वाद बुद्धावतार की विचारवादी आस्थाओं का प्रतीक है। भविष्य के अवतार के रूप में कलकि अवतार घोर कलियुग के अंतिम चरण में ठीक उन्हीं परिस्थितियों में जिनमें भगवान अवतार लेते हैं अवतरित होंगे। उनके पैदा होने के स्थान का नाम संभल ग्राम, संभल का प्रतीक भी हो सकता है। उनका नाम विष्णु यश होगा। लेकिन उनके नाम के प्रथम व अतिम वर्ण का उच्चारण विनाशक विश (विष) है जो कि प्रतीक भी हो सकता है। वे अपने अस्त्र-शस्त्र से दुष्टों का नाश करेंगे परंतु तत्तसमय संतगुणी कोई न होगा अतः संपूर्ण विनाश या प्रलय के बाद नवीन अवतारों के साथ नयी धरती जीव का विकास होगा।

आलोक मिश्र "मनमौजी"