What kind of friendship is this? in Hindi Moral Stories by Dinesh Tripathi books and stories PDF | ये कैसी मित्रता?

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ये कैसी मित्रता?

मित्र का शब्द बड़ा व्यापक है| इसेसखा,सखी मित,्र दोस्त आदि नाम से जाना जाता है लेकिन प्रचलन मे दोस्त शब्द व्यापक ह मित्रता के बाजार में एक नया शब्द अंग्रेजी का फ्रेंड ज्यादातर उपयोग में होता है मित्रता शब्द से व्यापक है इसकी परिभाषा !भगवान राम के समय में कुछ ?कृष्ण के समय में कुछ?और हमारे समय में बहुत कुछ! जिसे समझना नामुमकिन सा लगता है भगवान राम न सुग्रीव से मित्रता की त उसका आधार थ एक दूसरे की मदद ,दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर एक दूसरे को मदद का वादा कर मित्र बंधन में बंध गए |और एक दूसरे की मदद करते रहे बिना किसी मुसीबत के|@बीच मे कुछ कटुता आई तो लक्ष्मण ने वादाखिलाफ और स्वार् का आरोप लगाकर दंड देने का फरमान सुना दिया परंतु सुग्रीव न गलतफहमी दूर की और कलेस मिट गया और आजीवन मित्र बंधन में बंधे रह|े भगवान कृष्ण ने सुदामा से मित्रता की उसका आधार था आश्रम में विद्याध्ययन वक्त उपजा प्रेम जिसका संबंध भगवान और भक्त जैसा बेदाग दूध की तरह जो जीवन पर्यंत अटूट बंधन में बंध समूचे विश्व को एक उदाहरण प्रस्तुत किय |अब हमारा वक्त आया तो मित्रता के प्रकार और परिभाषा हमने दोनो ही बदल दी हमने मित्र दो प्रकार के बना लि पहला समान लिंग आकर्ष और दूसरा विपरीत लिंग आकर्षण| पहले प्रकार वाले मित्र की परिभाष तो कृष्ण सुदामा से चुरा ली लेकिन सिर्फ नाम के लिए हृदय में स्वार्थ लालच से लबालब भरा हुआ |त्याग बिल्कुल गायब| ह,ै तो सिर्फ दिखावे के लिए| परिणाम स्वरुप मित्रता हुई विश्वासघात हुआ और मित्रता का अब नए रिश्ते दुश्मनी की शुरूआत जो अशांति के अलावा कुछ नहीं |दूसरे प्रकार की मित्रता में हम आग नहीं जलाते किसी को साक्षी ही नहीं बनात स्वयं हैंडस सुंदर मित्र चु लेते हैं औ साक्षी होता है फ्रेंड शिप बेल्ट और मित्र बंधन मे बंद जाते है हैं वादे तो होते हैंो मानसून की बारिश की तरह लेकिन सुनामी जैसे बह भी जाते हैं | इस मित्रता का उद्देश्य ही टाइम पास करना होता है |
रक्षाबंध से ज्यादा चलन मे आ रहा है यह मित्रबंधन |लोग इंतजार भी करते हैं फ्रेंडशिप डे क़ा| जों अगस्त माह के प्रथम रविवार को आता है ,उस दि जो भी मित्र बंधन मैं बंधे उनमें कुछ वैलेंटाइन डे क अपने प्रेम की प्रगाढता प्रकट करते हैं और फिर फिल्मी गाना तेरी मेरी दोस्ती प्यार में बदल गई चरितार्थ होता है|वक्त गुजरता है प्यार मोहब्बत की कलियां खिलती ह और स्वार्थ पूरा हुआ तो फिर किलयाँ मुर्झा भी गयी बचता है तो सिर्फ यादों के अवशेष कार! हमें फिर से नए फूल या भंवरे का इंतजार जो आसानी से उपलब्ध ज्यादा हैंडसम खर्चीला पैसे वाला ह|ै पहले प्यार की राख ठंडी भी नही हुई और नई तलाश शुरू |
पहला प्रेमी अपमानि उसे मिलती है तो सिर्फ दुत्कार |क्या सच्चा प्रेम का यही इना ?अगर पहला प्रेमी व दोस्त मिलने की कोशिश करें तो उसे नपे तुले शब्द सुनने पढेंगे ,जैसे मुझसे मिलने फोन करना और मैसेज करने की कोशिश मत करना नहीं तो मेरे पेरेंट्स कुछ कर देंगे |
तो क्या पेरेंट्स ने अभी तक की इजाजत दे रखी थी कि 1 साल के लिए एक ब्वायफ्रेंड और बाद में दूसरा |जिसे देवता की तरह चाहा याद किय उसी का तिरस्कार यह आदतें संस्कार का दर्पण दिखाती है |
कुछ लोग प्रेम में सफल हो ही जाते हैं तो कुछ साल बाद तला यानी कि जरा सी अंडरस्टेंडिं नहीं|ऐसे लोग प्रेम की सच्ची परिभाषा से मीलों दूर हैं|वो सिर्फ अपनी सुंदरता से समाज को दूषित जरूर कर सकते है| ऐसी है आज के समाज में मित्रता की भयावह परिभाष |अतः हमें चुनना है परिभाष मित्रता की ,शुद्ध दूध की तरह निष्कलंक सच्ची मित्रत या अविश्वास छल, झूठ, लालच से भरी मित्रता! आज के युवाओं को निर्णय लेना पड़ेगा क्यों मित्रों का जीवन में बड़ा योगदान है जीवन सवारने में|
मित्रता तो कर्ण-दुर्योधन की!दुर्योधन जिसने कर्ण को पलभर में रंक से अंग देश का राजा बना दिया|
कर्ण किसने कहा- मित्र दुर्योधन, तुम सही करो या गलत तुम सिर्फ मित्र हो,मेरा जीवन तुम्हे समर्पित है|सच ही है सच्चा प्रेम ही मित्रता निभाता है क्योंकि प्रेम तो अंधा होता ह| वह नहीं देखता कि मित्र अच्छा या बुरा ह मित्रता में सिर्फ मित्रता दिखती है और सच्चा मित्र वही है जो मित्र के सुख-दुख, संताप को कम करने का प्रयास करें न कि बढाने का प्रयास करे |
उसे हमेशा कदम पर कदम मिलाकर मित्र का साथ देना चाहिए |
-िदनेश त्रिपाठी-