Women empowerment in Hindi Women Focused by Pinku Juni books and stories PDF | नारी सशक्तिकरण

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नारी सशक्तिकरण

मेरे कहने से कुछ बदल जाता तो मैं सब कुछ सबसे पहले कहती की, नारी अब वो नहीं रही की जो सब सह लेती थी बिना कुछ कहे। आज नारी की स्थिति पिछली शताब्दी से आज बहुत उच्च है आज वह छोटे से घर की बड़ी सी अर्थव्यवस्था को संभालने से लेकर,भू से नभ को माप चुकी है, उसने ब्रम्हाण पर अपना सपनो का घर बनाया हैं. पर यह इतना भी सच नहीं है जीतना समाचार पत्रों मे दिखता है रंगीन टेलीविज़न पर नज़र आता हैं,शायद वास्तविकता तो और कुछ ही बताती है की उनकी 21वीं शताब्दी मैं भी बहुत गंभीर हालात हैं तो एक मानवतावाद पर व्यंग व्यक्त करती है क्या देखा है कभी तुमने उसको किसी कोने मे सिसकते हुए पर आज भी वो रोती है पर उसके गम को कोई देख नहीं पाता या देखना नहीं चाहता पर वो क्या कहे और किस सी कहे अपने गम का सार। मुझे आज भी समझ नहीं आये की जो सब कुछ परोपकार के लिए करती है उसका अस्तित्व ही संकट मैं क्यू हो जाता, कभी आबरू के लिए तो कभी अपनों के लिए वो ही क्यू करे बलिदान क्या पुरुष नहीं है इस समजा का अंग पर उस सी नहीं कहा जाता बलिदान के लिए, आज भी वो अपने सपनो को दबाते आई है कभी भाई के लिए तो कभी परिवार के लिए,क्यू नहीं जा सकती वो भी पुरष की तरह बिना कहे, बिना बताय कही भी सब की अनुमति या सब के साथ ही जाए,
मैं दुखी नहीं हू की वो चाँद पर पहुंची हैं पर मैं दुखी हू की वो घर मैं बैठी है. मुझे उस का रहना अच्छा लगता है बिना गुंगट मैं पर उसके ऐसे रहने पर समाज के ठेकेदार जब नारी बन जाती हैं तब अच्छा नहीं लगता मुझे। समझे उसे कोई नहीं तब दुःख नहीं होता है पर समझाए हर कोई जब रोना आता हैं।
आप किसी के बारे मैं शायद अपने मन का अनुमान ही अनुमानित करते है कभी उसके विचारो को भी शामिल करो सब मैं,
मेरे घर की हर नारी या मेरे देश की या पुरे ब्रम्हाण की मुझे वो पसंद आती है जो सब को नज़र आती है .
मत बन ये नादान मानव इतना बर्बर की जिस कोख सी तुम जन्मा है वो ही शर्मशार हो जाये,
कुछ करो मत उनके लिए बन उड़ने दो उनको उनके पंखो सी उची उड़ान उनके हौसलों पर पर करने दो उनको आसमान,
मैं एक नहीं हजारों की आन हू मैं हजारों की शान हू बस चल साथ कदम सी कदम पर मुझे नहीं पता कोन अपना है कोन पराया बस मिला स्नेह जहाँ से वो आँगन बन जाता है मेरा तुम दोगे ना साथ मेरा मेरे आ गये बढ़ने मैं और लक्ष्य को पार करने मैं तुम बनो गए ना मेरे पथ का पथवार. ये मेरा हौसला हैं जो हर बार मेरे साथ होता हैं पर मैं ही कभी पहचान नहीं पाती।
बन तुम भी हौसलों की उड़ान मैं उड़ने वाली हे नारी मत बन किसी की मोहताज आज नहीं तो कल सब कुछ तुझे ही सभाँला है
खत्म कर इस पुरुषपदान /पुरुषस्तत्मक समाज को
बन तुम भी लोहगामीनी......