Mid Day Meal - 5 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | मिड डे मील - 5

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मिड डे मील - 5

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चार दिन बाद शालिनी और हरिहर स्कूल के बाहर खड़े थें । मनीराम पान से भरा मुँह बिचकाकर उन्हें देख रहा था । जब उसने स्कूल का दरवाज़ा खोला तो हरिहर को लगा आज उसके बच्चों की बंद किस्मत के दरवाज़े भी खुल जायेंगे। मोतीलाल इस तरह अपने कमरे में दोनों को देखकर हैरान और सकते में आ गया । उसने बड़े ही कड़वे लहज़े में बोलना शुरू किया, यह कोई तरीका नहीं है, मैं तुम लोगों को अभी थाने पहुँचा सकता हूँ । और बहनजी आप यहाँ इनके साथ क्या कर रही हैं? अब पुरषों की रीढ़ की हड्डी नहीं रही, जो उन्हें औरतों का सहारा लेना पड़ रहा है । यह सुनकर शालिनी ने उसे घूरकर देखा और बोली, रीढ़ की हड्डी आपकी भी नहीं है, तभी अपना घर ग़रीब का हक़ मारकर चला रहे हैं । कौन गरीब ? यह हरिहर, आप जानती नहीं, इन लोगों को सरकार से आज बहुत सुख-सुविधाएँ मिल रही है। अब ये कैसे गरीब हों गए । इन्हें आदत है, अपनी जात को गरीबी का जामा पहना लोगों से हमदर्दी हासिल करने की । उसके गुस्से में व्यंग्य छिपा था । इसका निर्णय आप नहीं करेंगे, मोतीलाल जी। सविंधान की क़िताब शहरों में पढ़ी जाती हैं । और आप जैसे लोग दीमक बनकर उस पुस्तक को खा जाते हैं । जिसका भुगतान इन दूर दराज़ ग्रामीण परिवेश से जुड़े लोगों को करना पड़ता हैं । तभी तो आप हरिहर के बच्चों के एडमिशन के लिए रिश्वत माँग रहे हैं। शालिनी ने भी व्यंग्य का ज़वाब व्यंग्य से दिया। अगर हम दो पैसे माँग रहे हैं, तो इसमें गलत क्या हैं, बहनजी । सब जगह यही होता हैं । आख़िर हमारा स्कूल ज़िले का उत्तम स्कूल हैं । सभी तरह की सुख -सुविधाएँ मिलती हैं और पैसा बच्चों पर ही लगाया जा रहा हैं। मोतीलाल ने सफाई दीं । आप दो पैसे नहीं मांग रहे हैं । आप बीस हजार माँग रहे हैं । और सरकारी वेतन आपको पचता नहीं है, जोकि आपको ऊपर की कमाई भी चाहिए । और सुख-सुविधा भी सरकार के सहयोग से ही आपके स्कूल को दी जा रही है। इसलिए यह लालच छोड़िये और दोनों बच्चों का एडमिशन होने दीजिये। शालिनी ने अपनी बात ख़त्म की।

ठीक है, बीस हज़ार भी इन जैसे लोग दे रहे हैं । फिर क्या दिक्कत हैं? मोतीलाल ने आखिरी तर्क पेश किया। अगर वहाँ की गिरह भी खोली जाएँगी तो मुझे यकीन है, आप जैसे लोग कटघरे में खड़े नज़र आएंगे। अब मोतीलाल निरुत्तर हो गया । उसे पता चल चुका था कि अब उसे हरिहर के बच्चो को दाखिला देना होगा। बहनजी कानून जानती है। हो सकता है, कोई जाँच ही न हो जाए । इस हरिहर को बाद में देख लिया जाएगा । फिलहाल तो जो हो रहा है, उसे होने दो। मोतीलाल ने मन ही मन सोचा। हरिहर के चेहरे पर मुस्कान आ गई, केशव का पहली और मनोहर का तीसरी में दाखिला हों गया । बच्चे पढ़ने में होशियार हैं, यह बात स्कूल की प्रवेश परीक्षा में सभी को नज़र आ गई। और हरिहर बच्चों की किताबें-कॉपी वर्दी लेकर जब अपने बच्चों के पास पहुँचा। तब उन्हें लगा कि इस दुनिया में इससे ज्यादा कीमती चीज़ क्या होंगी। वे दोनों बाकि बस्ती के बच्चों को अपना स्कूल का सामान दिखाने घर से निकल गए और हरिहर शालिनी का धन्यवाद बोलने के लिए चल पड़ा ।

रास्ते में उसे राम बिस्वास मिला। उसने उसे यह खुशखबरी सुनाई । उसने बड़ी ख़ुशी से हरिहर को गले लगा लिया। तू शुरू से ही बड़ा किस्मतवाला रहा है हरि। जिस चीज़ के पीछे लग जात है, उसे करके ही छोड़त हैं। और भगवान की भी तेरे ऊपर विशेस कृपा बनी हुई हैं । काश! तेरी पढ़ाई न छूटी होती, फ़िर क्या पता, कहीं अफ़सर ही लग जात बिस्वास ने हँसते हुए कहा । क्यों मज़ाक उड़ा रहा है बिस्वास, मैं पढ़ाई में इतना अच्छा नहीं था कि कहीं अफ़सर लग जाता। बस मेरे बाबा का सपना था, जो पूरा न हों सका। अब भागों का सपना पूरा कर रहा हूँ। मुझे लगता है कि भागो ने ही भगवान को कह अपने बच्चों का दाखिला करवा दिया हैं । हरिहर ने आसमान की तरफ़ मुँह करते हुए कहा। मेरा श्रीधर भी उसी स्कूल में हैं। तेरे बच्चो का साथ हों जायेंगा। कहकर बिस्वास आगे बढ़ गया और हरिहर शालिनी को अपनी तरफ़ आते देख वही हाथ जोड़कर उसका धन्यवाद करने लगा ।

सचमुच बहनजी, आपने बहुत उपकार किया, हम गरीबों पर। अगर आज आप न होती तो मेरे बच्चे कभी भी यह दिन न देख पाते । हरिहर की बातों में कृतज्ञता थीं । मुझे धन्यवाद तब कहना, जब तुम्हारे बच्चे पढ़-लिखकर इस पूरे गॉंव का नाम रोशन करे और लोगों को पता चले कि शिक्षा किसी में भेदभाव नहीं करती। अगर कोई मन लगाकर उसका अध्ययन करें, तब वह सबको बराबर फल देती हैं । बहनजी, आपकी यह बातें सुनकर मन को बड़ा संतोष मिलता हैं। ईश्वर आपको लम्बी ज़िंदगी दें। हरिहर ने आशीष वचन कहें । तुम समझदार हो, इसलिए कभी यह मत सोचना कि तुम अपने ऊपर हों रहे अनाचार को चुपचाप सह जाओ । कभी हिम्मत मत हारना । और अपने बच्चो को भी निडर बनाना। मैं तुमसे ही मिलने आ रही थीं, आज शाम की ट्रैन से झारखण्ड जा रही हूँ । कुछ आदिवासी बच्चों का स्वास्थ्य कैंप लगने वाला हैं । बस यही कहना है कि हो सकता हैं, अभी मुश्किलें टली न हों । इसलिए हताश न होना। शालिनी ने समझाते हुए कहा। अब क्या मुसीबत आएँगी ?बहनजी, हमने अपने बच्चों का दाखिला करवाना था, वो हो गया। बस अब राम की कृपा से सब अच्छा होगा। हरिहर ने आत्मविश्वास के साथ कहा । "ऐसा ही हों ! अपना और अपने बच्चों का ध्यान रखना, चलती हूँ । कहकर शालिनी उसी रास्ते से वापिस चली गई ।

उन्हें जाते देख हरिहर सोच रहा था कि अब सब अच्छा होने वाला हैं। पता नहीं, बहनजी क्यों परेशां हों रही थीं। वह अपनी कल्पना में देख रहा है कि केशव और मनोहर बड़े हों चुके हैं । केशव डॉक्टर और मनोहर वकील बन, अपने पिता का आशीर्वाद ले रहे हैं । तभी उसे पीछे से किसी ने धक्का मारा और वह ज़मीन पर औंधे मुँह गिर गया।

क्यों रे ! बीच में क्यों खड़ा है ? तेरी शक्ल क्या देख ली, मेरा तो दिन ही ख़राब हो गया । चल हट, यहाँ से । हरिहर ने खुद को सम्भाला और खड़ा होकर पीछे देखा तो सामने बिरजू अपने दोस्तों के साथ खड़ा था । हरिहर ने उसे घूरकर देखा उसकी आँखों के सामने मासूम मुनिया का चेहरा घूमने लगा । मन किया, वहीं बिरजू को पीट दें, मगर वो अपना गुस्सा पी रास्ते से हट गया । अगर कभी बीच में खड़ा हुआ तो खाल निकलवा दूँगा । कहकर बिरजू और उसके दोस्त हरिहर को हीन दृष्टि से देख आगे निकल गए और हरिहर चुपचाप वापिस अपने समोसे के ठेले पर आ गया।

उसने अपनी ख़ुशी से सबको एक समोसा फालतू दे दिया और बड़े प्यार से अपने बच्चों के लिए भी समोसे बनाने लगा। उसे पता है कि केशव को समोसे अच्छे नहीं लगते। मगर फिर भी वह दोनों बच्चों को अपनी गोद में बिठकार खिलायेंगा। सोचते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए। का हुआ हरिहर काहे ! लुगाई की तरह गंगा-जमुना बहाने लग जात है। किती बार कहा है, दूजा व्याह क्यों नहीं करवा लेता । घर में औरत आएँगी तो मर्द बना रहेगा। हरिहर ने आँखें साफ़ की। और सामने रखे स्टूल पर लोहिया चाचा को बैठे देखा । क्यों मर्द रो नहीं सकते का ? उनके सीने में भी दिल होत हैं । खाली औरत जात क्या ऊपर से लिखवाकर लाई है कि बस हम ही टंकी चालू रखेंगे । हरिहर ने उन्हें समोसे देते हुए कहा । मर्द की दाढ़ी होती है और औरत की नलकी । अब हमें ही देख लो, तेरी चाची मरी हमने एक आँसू नहीं बहाया । हाँ, थोड़ा दुःख था, फ़िर दूजा व्याह कर लिया। अब तेरे बच्चों का दाखिला भी हो गया है। अब तू अपने बारे में सोच । तू कहे तो मैं बात करो? किससे बात करोंगे ? अरे ! वही अपने मनसुख की बिटिया, का नाम है उसका ??? लोहिया चाचा कुछ बोलते, तभी बोल पड़ा "कौन रमा ???? नहीं रे ! वो विधवा है। वो दूसरी कैं नाम था उसका ? चंदा। हाँ चंदा, उसे व्याह रचा लें ।"