MID DAY MEAL- 4 in Hindi Fiction Stories by Swati books and stories PDF | मिड डे मील - 4

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मिड डे मील - 4

4.

राम बिस्वास यह तू सच कह रहा है क्या ? उसने चुप कराते हुए पूछा । हाँ, भाई, बिलकुल सच। माँ भवानी की शपथ। उस साहूकार के बड़े लड़के बिरजू ने मेरी मुनिया की इज़्ज़त को दाग लगाया और फ़िर मुँह बंद रखने को उसने मुझे बीस हज़ार रुपए दिए। उन्ही पैसों से अपने बिटुवा का दाखिला करवाया । बिस्वास ने हाथ से मुँह छुपाते हुए कहा । तू थाने क्यों नहीं गया ? ऐसे कैसे 4 मुँह बंद कर लिया अपना ? हरिहर ने गुस्से में कहा। थाने जाकर क्या हों जाता ? वो थानेदार भी इन पैसे वालों का मुँह लगा हैं। देखा नहीं, रामकिसन के बटुवा को कैसे पीटा था, जब उसने बिना पूछे नहर का पानी अपनी गाय को पिलवा दिया था । शिकायत करने पर उत्ती उसकी खाल ही उखड़वा दीं थीं। फ़िर मेरी मुनिया को जान से मरवाकर किसी के खेत में फैंक देते तो मैं कहाँ जाता । मैं तो कहता हूँ, तू शहर चला जा । वहाँ बहुत स्कूल हैं । बिस्वास ने आँसू पौछते हुए कहा ।

इतना आसान नहीं है, बिस्वास यहाँ से जाना । वहाँ बसने के लिए भी पैसे चाहिए, क्या सड़क पर दो बच्चों को लेकर बैठ जाओ । शहर में खर्चा-पानी चलाना मुश्किल हो जाएगा । अगर हमार बच्चे अच्छे से पास हो गए । तब यह स्कूल आगे की पढ़ाई का खर्च भी उठाता है। कई सरकारी योजना है, जिसके बारे में हमें पता नहीं । हरिहर ने बिस्वास के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। तू थोड़ा पढ़ा-लिखा है । तुझे ज़्यादा पता होगा। मने बस इत्तो मालूम है कि ऐ- सरकार ने कानून सब बनाए । मगर हम ग़रीब की सुनने वाला कोनो नहीं । यहाँ रहना है तो मुँह बंद रखो । और तेरे पास कोई ज़मीन भी नहीं है । किसी के खेत में मज़दूरी करेगा तो तेरे बच्चान को भी मज़दूर बना देंगे। और उधार लेगा तो ब्याज़ तने गंजा कर देगा । तुझे भागो भाभी की कसम है, तूने जे बात किसी को बताई। बिस्वास ने हरिहर के आगे हाथ जोड़े। मुनिया मेरी भी बेटी है । मुझे बुरा लग रहा है कि मैं अपनी मुनिया के लिए कुछ नहीं कर सका । पर भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती। देखियो! उस नासपीटे बिरजू का कैसा हाल करता हैं। हम तो बस भगवन से इतना कहत है कि हम गरीब मज़दूर के घर कोई बिटिया न दीजू कहकर बिस्वास चला गया ।

हरिहर भारी मन से अपने रास्ते चला जा रहा था । सामने से रजनीश मास्टर को आते देख रुक गया । केशव मिल गया ? स्कूल से भागा क्यों था ? हम सभी परेशां हों गये थे। हरिहर ने उसे सारी बात बताई । रजनीश ने सुना, थोड़ा सोचकर बोला, यह तरक्की करता भारत है हरिहर । यहाँ देश की आधी से ज़्यादा आबादी को पता ही नहीं हमारे अधिकार क्या हैं? स्कूलों में कोटा के नाम पर अपनी जान-पहचान वाले कर्मचारी बच्चों को दाखिला कर यह दिखा दिया जाता है कि बिना किसी भेदभाव के शिक्षा सब तक पहुँच रही हैं । अब मनीराम को ही देखो, वह भी तेरी जात का है, मगर यह बात अलग है कि वो इस बात को मानता नहीं, उसके तो चारों बच्चे उसी स्कूल में पढ़ रहे हैं । और कोई दूसरा उसी जात का आ जाए तो उसे पैसे माँगते है, ताकि कुछ ऊपर से कमा सके । इस बार का यह नया प्रिंसिपल वैसे ही बड़ा लालची हैं। क्या! करे, सब ऐसे ही चलता जा रहा हैं । रजनीश ने ठंडी सांस लेते हुए कहा । मैंने पहले दिन ही देख लिया था कि तुम्हारे बच्चे लायक है । उन्हें उचित अवसर मिलने चाहिए । पर यह कैसे होगा मास्टरजी? घरवाली के एक-दो गहने थें, उसकी बीमारी में लगा दिए । अब जमा पूँजी के नाम पर कुक नहीं है ।

रजनीश कुछ रुककर बोला, पिछले साल एक बहनजी हमारे गॉंव आई थीं। किसी कार्यकारी संस्था में काम करती थीं । उनके प्रयास से ही हमारे स्कूल की हालत में बहुत सुधार हुआ था । जाते-जाते मैंने उनका फ़ोन नंबर ले लिया था, क्या नाम था उनका? हाँ, शालिनी, हाँ शालिनी जी। याद आया । मैं उनसे बात करके देखता हूँ। क्या पता, ईश्वर तेरी सुन ले । रजनीश ने हरिहर को धीरज देते हुए कहा । अगर ऐसा हुआ न मास्टरजी तो आपकी बड़ी मेहरबानी होंगी, मैं आपको रोज़ बिना पैसे के समोसे खिलाऊँगा। हरिहर ने हाथ जोड़ते हुए कहा । वह हँसते हुए बोले, मुझे घी-तेल मना है। पर तेरा एक समोसा ज़रूर खाऊँगा। अच्छा चलता हूँ।