Its matter of those days - 26 in Hindi Fiction Stories by Misha books and stories PDF | ये उन दिनों की बात है - 26

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ये उन दिनों की बात है - 26

मैं तुरत-फुरत से तैयार होकर सीधा कामिनी के घर पहुंची और उसे सागर की लिखी हुई वो चिट्ठी दिखाई |
अरे वाह!! मेरी लाडो!! यानी आग दोनों तरफ ही बराबर लगी हुई है | इधर तू उसके लिए तड़प रही है, उधर वो तेरे लिए तड़प रहा है | मेरा मतलब "जीजाजी" और कामिनी हँस दी |
क्या कामिनी!! तू भी ना!! उसके सागर को जीजाजी बोलते ही शर्मा सी गई थी मैं |
आय! हाय! मन में तो लड्डू फूट रहे हैं |
अच्छा, अच्छा, अब ये बता आगे क्या!!
आगे क्या, जिस तरह जीजाजी ने तुझे चिट्ठी लिखी उसी तरह तू भी उन्हें चिट्ठी लिख |

मैं? घबराहट सी हो रही थी मुझे |
हाँ, तू |

और ये जीजाजी-जीजाजी क्या लगा रखा है तूने, अभी हमारी शादी थोड़े ही हुई है |
हाँ तो!! मैं तो भई जीजाजी को जीजाजी ही बोलूंगी | कोई शक!!!
अच्छा, अच्छा अब ज्यादा "मिथुन चक्रबोर्ती" मत बन |

फिर मैं कागज-पेन लेकर बैठ गई |
क्या लिखूं!! दिलो-दिमाग सोच रहा था |
तू बता ना, कामिनी क्या लिखूं |
हे भगवान!! क्या करूँ इस लड़की का मैं? अब ये भी मैं ही बताऊँ क्या तुझे?
जो तेरे दिल में है वो सब लिख डाल | अपना दिल खोल कर रख दे जीजाजी के सामने की तू भी उन्हें उतना ही चाहती है जितना वो तुझे |

कम से कम छह-सात पेज फाड़ चुकी थी मैं सागर को चिट्ठी लिखने में | समझ ही नहीं आ रहा था |
लेकिन उसी दौरान रेडियो पर एक गीत बजने लगा जो की लता जी की आवाज में था | उसे सुनकर ऐसा लगा की ये मेरे ही भाव है जिन्हे वो इस गाने के जरिये व्यक्त कर रही है | बस फिर क्या था!!! मैंने उस गाने को ही सागर के लिए उस चिट्ठी में लिख दिया |
कामिनी को दिखाया तो उसे भी काफी अच्छा लगा |
हाँ ये ठीक है |
अब परेशानी ये थी कि किसके हाथ ये चिट्ठी भेजी जाए |
कामिनी तुरंत मेरे मन के भावों को समझ गई |
जिस तरह ये चिट्ठी तुझ तक पहुंची है उसी तरह तू भी उन्हें भेज दे, पागल!!!

थैंक यू, कामिनी और फिर उसके गले लगी |


कामिनी से विदा लेकर मैं सीधी घर गई | चिंटू की किताब अभी भी मेरे पास ही थी | मेरे होंठों पर एक मुस्कान-सी तैर गई थी की अब काम बन जायेगा |

फिर किताब में चिट्ठी रखकर चिंटू के घर पहुंची | चिंटू बाहर ही मिल गया था |

उसे चिंटू को देते हुए कहा जा ये सागर भैया को दे आ |

वो कुछ कहता उससे पहले ही मैंने कहा, सागर भैया से ही ले लेना चॉकलेट, उनके पास बहुत सारी है |

चिंटू सागर के घर पहुंचा |

"भैया" दिव्या दीदी ने आपके लिए भेजा है |

अच्छा!! जैसे ही सागर ने उसे लेने के लिए हाथ बढ़ाया, चिंटू ने फौरन चिट्ठी पीछे छुपा ली |

पहले डेयरी मिल्क!!

अच्छा बाबा! ये लो चॉकलेट, सागर हँसते हुए बोला | फिर चिंटू ने सागर के हाथों में चिट्ठी थमा दी |

सागर ने अपनी तेज धड़कनो को सँभालते हुए चिट्ठी पढ़ी जिसमें कुछ यूँ लिखा था..................

"प्रिय सागर,
इस तरह से कभी मैंने किसी को चिट्ठी नहीं लिखी | पहली बार तुम्हारे लिए लिख रही हूँ और अपने दिल का हाल इस गाने के जरिये तुमसे कह रही हूँ...........

"आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे,

दिल की ए धड़कन ठहर जा,

मिल गई मंजिल मुझे,

आपकी नज़रों ने समझा..........

जी हमें मंजूर है आपका ये फैसला,

कह रही है हर नज़र बाँदा परवर शुक्रिया,

हँसके अपनी ज़िन्दगी में कर लिया शामिल मुझे,

दिल की ए धड़कन ठहर जा,

मिल गई मंज़िल मुझे,

आपकी नज़रों ने समझा |"

तुम्हारी दिव्या

चिंटू अभी भी वहीं था | सागर ने चिंटू को गोद में उठाकर उसके गालों पर प्यार की बौछार कर दी | उसने दिव्या के खत को सीने से लगा लिया और ख़ुशी से झूम उठा | आज मुझे मेरी मंज़िल मिल गई, मेरी दिव्या मिल गई | वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती है जितना मैं उससे करता हूँ |

उसने दिव्या के खत को उसी की फोटो के साथ अपनी डायरी में संजोकर रख दिया |

सागर और दिव्या दोनों ने चिट्ठी की बाबत इजहार-ए-मोहब्बत कर लिया था | लेकिन फिर भी कुछ बाकी था और वो ये था की दोनों ही एक दूसरे से मिलकर अपने प्यार का इजहार करना चाहते थे | वो तीन शब्द कहना चाहते थे, जो हर लड़का या लड़की एक दुसरे से कहते हैं, जिसे सुनना हर लड़के-लड़की को अच्छा लगता है | इधर दिव्या परेशान थी की कैसे कहूँ और उधर सागर बेचैन था, उससे मिलकर वो सब कहना चाहता था जो वो कहना चाहता था |


वो कहते हैं ना पूरी शिद्दत से जो आप चाहते हो तो किस्मत भी आपका साथ जरूर देती है ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी हुआ |
हुआ यूँ की हम सब सहेलियाँ बगीची में झूला झूल रही थी कि अचानक मेरी नजर सागर पर पड़ी | मुझे नहीं पता था की वो कब मेरे पीछे-पीछे वहाँ तक आ पहुँचा |
"उसने मुझे इशारा किया" |
मैं धीरे से झूले से नीचे उतरी | कामिनी को कहा "मैं अभी आ रही हूँ" |

हम दोनों थोड़ी दूरी पर बैठे थे | बीच में एक पेड़ था, जिसके एक तरफ मैं, तो एक तरफ सागर था |

क्या हम कहीं बाहर मिल सकते हैं? सागर ने सामने की ओर देखते हुए पूछा |

क्यों? मैंने भी सामने की ओर देखते हुए ही पूछा |

व्हाई? डोंट यू वांट टू मीट?

मैंने कुछ नहीं कहा |

कुछ कहना नहीं चाहती, कुछ सुनना नहीं चाहती, उसने फिर से सवाल किया |

अब मैं क्या जवाब देती | सच तो यहीं था की मैं भी उससे मिलने को बेकरार हो रही थी पर कह नहीं पा रही थी |

कामिनी से पूछकर बताऊँगी, बस इतना ही कहा मैंने |

क्यों? क्या तुम्हारे सारे फैसले कामिनी करती है? यदि ऐसी ही बात है तो नो प्रॉब्लम | आई विल वेट ऑफ़ योर आंसर |