DAIHIK CHAHAT - 15 in Hindi Fiction Stories by Ramnarayan Sungariya books and stories PDF | दैहिक चाहत - 15

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दैहिक चाहत - 15

उपन्‍यास भाग—१५

दैहिक चाहत –१५

आर. एन. सुनगरया,

तनया-तनूजा संयुक्‍त रूप से मोबाइल लगाकर बैठ गईं, ‘’हैल्‍लो मॉम !’’

‘’ हॉं बोलो।‘’ शीला ने टोका, ‘’दोनों एक साथ बोल रही हो !’’

‘’हॉं, साफ सुनाई दे रहा है।‘’ संयुक्‍त स्‍वर।

‘’बोलो, स्‍पष्‍ट है..........।‘’ शीला ने अनुमति दी।

‘’हम चाहते हैं, तुम पहले पुनर्विवाह कर लो।‘’

‘’मुझे छोड़ो !’’ शीला ने तुरन्‍त विरोध किया, ‘’कोई जरूरी नहीं है, मैं तनहा ही ठीक हूँ।‘’

‘’तुम हमारी पूरी योजना सुनो बीच में बिलकुल ना टोको, समझे।‘’

‘’हॉं मेरी दादी–नानी ।‘’ शीला ने मजाकिया लहजे में कहा, ‘’सुनाओ मैडम, योजना।‘’

दोनों पुन: एक स्‍वर में, ‘’हमें अभी समय है, कम्‍प्‍लीशन की आवश्यक फार्मिलिटीज होनी है। जॉब चूस करने में भी टाइम लगेगा, तभी अपने मन-मुताबिक, अनुकूल नौकरी मिल पायेगी। ये सब होने के उपरान्‍त ही न्‍यूनतम प्रयास पर सुटेबल साथी मिलने में देर नहीं लगेगी।‘’

‘’आप अपनी सारी शंकाऍं, कुशंकाऍं, शक, डर, भय, चिन्‍ता, धारणा मिथक या जो भी पाल रखा हो दिमाग से निकाल दो। हम अपने संस्‍कारी बाप एवं आदर्श मॉं की बेटी हैं। ऐसा कोई आपत्तिजनक काम नहीं कर सकतीं जिससे किसी को लॉंछन लगाने, बदनामी करने, अथवा किसी भी तरह की विपरीत कार्यकलाप की भविष्‍य में कहीं कोई सम्‍भावना नहीं है, हमारे ऊपर आपने अभी तक पूर्ण विश्‍वास किया है, तो कुछ समय और मौहलत दो, आत्‍म निर्भर बनने का यानि अपने पैरों पर खड़े होने का.........।‘’

‘’मगर......।‘’ शीला का स्‍वर।

‘’नो कमेन्‍ट, मॉम वाय।‘’ दोनों की एक ध्‍वनी के साथ ही तत्‍क्षण मोबाइल स्‍वीच ऑफ हो गया।

हॉस्‍टल की युवती कितनी भी चरित्रवान हो पर वह संदेह, प्रश्‍नों के घेरे में रखी जाती है। हॉस्‍टल का जीवन आजादी तो देता है, सामाजिक मर्यादाओं के अन्‍तर्गत ही रहकर, जीवन जीना होगा।

शीला अनायास ही विचार मग्‍न हो गई,………इतना तो क्लियर है कि दोनों बेटियॉं हॉस्‍टल के भटके तत्‍वों से दूर हैं। अपने काम-से-काम के सिद्धान्‍त का निर्वहन कर रही हैं। बहके हुये रास्‍ते से किनारा किये हुये हैं। गलत ग्रुप की सौहवत में भी नहीं हैं। यह सब सोच-विचार कर आत्‍म- संतोष हुआ। शंकाऍं-कुशंकाऍं दिल-दिमाग से छू-मंतर हो गई। बेटियों पर गर्व महसूस हो रहा था, शीला को, उन्‍हें संस्‍कारी, व्‍यवहारिक, लगनशील, मिलनसार, जानकर हर्ष हो रहा है। सारी दुष्चिंताऍं मिट गईं। शीला निश्चिंत हो गईं।

क्‍वार्टर में गहरा सन्‍नाटा सा छाया हुआ है। कहीं से कोई स्‍वर, आहट, आवाज, जहॉं तक कि कुदरती वायु बहने की अनुभूति भी नहीं हो रही है।

शीला अपनी खोजी नजरों को चारों ओर कोने-कुचालों तक में दौड़ा रही है, परन्‍तु कहीं से कोई भी संकेत नहीं मिल रहा है कि भले ही गहरी नींद में कोई सो रहा हो। मगर खर्राटे अथवा सॉंसों का महीन स्‍वर, सुगबुगाहट तक कानों में नहीं पड़ रही है।

अन्‍तत: सब गये कहॉं। बल्‍लु-फुल्‍लो भी नहीं आये अभी तक ! देव ना जाने कहॉं अटक गया। सामान्‍यता वह शीला के साथ ही जाता है, कुछ काम हो तो दोनों साथ-साथ जाकर निवटाते हैं।

शीला को अकेलापन, एहसास होने के पश्‍च्‍चात, अखरने लगा, सुनसान घर....सॉंय....सॉंय........भॉंय........भॉंय भुताहा लगने लगा।

गेट पर किसी के आने की मिश्रित आवाजें सुनाई दे रहीं हैं। तो शीला को अच्‍छा लगा, शायद देव होगा !

‘’बोर तो नहीं लगा शीला।‘’ देव ने प्रवेश करते ही पूछा।

‘’ लगा तो।‘’ शीला ने सामान्‍य लहजे में चेहरे पर हल्‍की मुस्‍कान लिये हुए कहा, ‘’कोई खास नहीं।‘’

‘’अपनी आवश्‍यक कार्यवाहियों की औपचारिकताओं को पूरी करवाने में भाग-दौड़ तो होगी ही।‘’ देव ने किन कार्यवाहियों- औपचारिकताओं की ओर ईशारा किया। शीला स्‍पष्‍ट समझ नहीं पाई, पूछना भी उचित नहीं समझा। प्रतीक्षा ही फिलहाल विकल्‍प श्रेयष्‍कर होगा।

‘’साथ-साथ चलते........!’’

‘’नहीं ये सारे काम मुझे, अकेले ही करने होंगे।‘’ देव ने अपनी विवशता बताई।

‘’चलो भोजन करते हैं।‘’ शीला ने बात-चीत का विषय बदला ‘’ बल्‍लू-फुल्‍लो तो अभी तक दिखाई दिये नहीं।‘’ शीला ने आगे कहा, ‘’तुम हाथ-मुँह धो लो, मैं खाना लगाती हैूं।‘’

‘’हॉं, भूख तो लगी है।‘’ देव ने कहा, ‘’आता हूँ वाशरूम जाकर..........।‘’ देव तनाव मुक्‍त लगा।

भोजन उपरान्‍त शीला सोफे पर आकर बैठ गई, देव किचिन में चला गया, ….कुछ मिनिटों, पश्‍चाती देव अपने दोनों हाथों में आइसक्रीम के डब्‍बे पकड़े, चला आ रहा है, धीरे-धीरे कदम गिनता हुआ, शीला की ओर निहारता हुआ। निकट आकर, एक हाथ का डब्‍बा, टी टेबल पर रखा, दूसरे हाथ के डब्‍बे से प्‍लास्टिक चम्‍मच में आईसक्रीम लेकर शीला की ओर बढ़ाया, ‘’मुँह खोलो.....।‘’ देव का आईसक्रीम का ऑफर करना शीला एग्‍नौर नहीं कर सकी, मुँह खोल दिया, मगर देव का हाथ औंठों तक जाकर ठहर गया, शीला मुस्‍कुराई, ‘’क्‍या हुआ।‘’

देव की नजरों का नूर, शीला की निगाहों से टकराकर, शुरूर, हल्‍की मश्‍ती में तबदील हो गया।

देव का शुरूरी स्‍वर फूट पड़ा, ‘’तुम्‍हारा चेहरा चटक गोरे-गोरे लावण्‍ययुक्‍त दीप्तिमान नाक-नक्‍श गुलाबी पंखुडि़यों जैसे नरम-नरम चिकने गाल-औंठ गज़ब ढाते घायल कर रहे हैं, उफ्फ ! ये हुस्‍न.......कातलाना.......।‘’

‘’आश्‍कीय अन्‍दाज में आईसक्रीम पिघल रही है।‘’ शीला खिलखिलाकर हंस दी।

‘’यहॉं तो मैं ही पिघला जा रहा हूँ।‘’

दोनों खुली हँसी में परस्‍पर संयुक्‍त शामिल होते-होते एक हो गये पहलू में लेटकर आईसक्रीम को चाट-चाट कर चुस्‍की सा चस्‍का लगा रहे हैं।

सर्वमान्‍य सामान्‍य श्रृंगार, कुर्ती-सलवार पहने डुपट्टा सम्‍हालते हुये, शीला ड्रेसिंग रूम से निकलती हुई, दीवानी, मस्‍तानी चाल-ढाल में, देव की तरफ बढ़ी, देव की नज़र, जैसे ही उस पर ठहरी, वह चहक उठा, ‘’ओह ! नई-नवेली नवयौवना को भी मात दे रही हो कुर्ती-सलवार तो तुम्‍हारे बदन, कद-काठी पर खूब फबती है।‘’ देव की निगाहों में समाया सौन्‍दर्य।

शीला के दूधिया मोतियों जैसे चमकते दॉंतों के साथ मुक्‍त निश्‍च्‍छल मुस्‍कान बिखेरती बोली, ‘’तुम्‍हारी निगाहों के करम का करिश्‍मा, जादू है..............।‘’ शीला अपनी कस्‍ट्यूम को इंगित करती हुई कहने लगी, ‘’अन्‍यथा यह तो अधिकांश ख्‍वायसमन्‍दों का पसन्‍नददीदा पहनावा है।‘’ ट्रेडीशनल पोषाक !

‘’बहुत ही बेलेन्‍स बॉडी पर प्रत्‍येक पहनावा जयादा ही जचता है।‘’ देव ने अपना दृष्टि-दर्शन व्‍य‍क्‍त किया।

शीला लचक व लोचदार नजाकत से मस्‍त मतवाली चाल में कदम-दर-कदम बढ़ाती देव की ओर आ रही है।

देव ने अंगूठे पर पहली उंगली टच करके तिरछी नज़रों ने निशाना नापते हुये अन्‍दाज़ में कहा, ‘’बहुत खूबसूरत, सुन्‍दर अप्‍सरा...........खैर नहीं आशिकों की........।‘’

‘’आशिक मिजाजी......उपरान्‍त चलें........।‘’ शीला का शरमाना, लजाना, नजाकती चेहरा.....देखते ही बनता है।

शीला आगे शीट पर बैठी, ड्राइवर शीट पर देव ने स्‍टेयरिंग सम्‍हाला, चल दिये सामान्‍य रफ्तार से हाईवे पर, दोनों किनारों के घने, हरे-भरे ऊँचे-ऊँचे वृक्ष पीछे छूटते जा रहे हैं। कार स्‍पीड पकड़कर सरपट फर्राटे भर रही है। देव तो ध्‍यान पूर्वक कार ड्राइव में लीन था, मगर शीला कुदरती नजारों की सुहानी, सलोनी लहलहाती छटाओं को ऑंखों में समेट दिल-दिमाग को तरोताजा, तरावटयुक्‍त एहसास का अपूर्व नैशर्गिक खासियत होती है, जो वातावरण के कण-कण में व्‍याप्‍त रहती है। उसी अन्‍दरूनी अदृश्‍य प्रभाव से सासों के द्वारा हम आकर्षित होते हैं, अभिभूत हो जाते हैं। कुदरत का वशीकरणीय मंत्र, जादू हमारे वजूद को मंत्रमुग्‍ध कर देता है, हमारा अन्‍तर्मन, अन्‍तार्त्‍मा कह उठती है, ‘’वाह कितना मदमस्‍त मौसम है।‘’ हमारी ताजगी खुश मिजाजी, खुशगंवार, दिव्‍य एहसास का जरिया बनती है। आत्‍मा तृप्‍त हो जाती है, अन्‍तर्मन प्रफुल्‍ल हो उठता है। कुदरत का समीप्‍य सदैव सकारात्‍मक प्रभाव छोड़ता है, स्‍थाई रूप में। अमूल्‍य !

‘’कैसा फील हो रहा है।‘’ देव ने कनखियों से देखा। पूरे रास्‍ते में एक मात्र इच्‍छा पूछी।

‘’अति उत्तम !’’ शीला ने संक्षेप्‍त उत्तर दिया, ‘’अब तो बता सकते हो, कहॉं जा रहे हैं।‘’ शीला ने झुंझलाकर, हल्‍की दृढ़ता से जानना चाहा।

‘’बस कुछ मिनिट।‘’

‘’इतना सस्‍पेन्‍स !’’

‘’रहस्‍योद्घान की अगली कड़ी है।‘’ देव ने संकेत दिया। अस्‍पष्ट।

कार अपनी रफ्तार से फर्राटे भर रही है। फोरलेन का नवनिर्मित रोड दोनों ओर हरे भरे, ऊँचे-ऊँचे, घोर-घने, मन्‍दपवन में भी पत्ते हिलते, चमचमाते, पर्यावरण का जीवन्‍त उदाहरण चिकनी, चमकदार, साफ-सुधरी, उच्‍च मानकों पर निर्माणाधीन, डिवाइडर पर सुगन्धित फूलों के झुरमुटनुमा बड़े-बड़े गमले, अत्‍याधुनिक बिजली व्‍यवस्‍था। लग नहीं रहा है, कि हम ऐसे सर्वसुविधायुक्‍त शहर की फोरलेन पर सफर कर रहे हैं, जिसका अधिकांश हिस्‍सा, अपनी मूलभूत आवश्‍यकताओं के लिये, दिन-प्रति-दिन संघर्ष करता है। इसके बाबजूद भी न्‍यूनतम जरूरतें ही पूरी हो जायें तो शुकर है। अनेक प्रकार के अभाव तात्‍कालिक अथवा दीर्घकालिक.....।

शीला को कार की गति धीमी होने का आभास हुआ। कुछ ही क्षणों में लेफ्ट साइड किनारे होकर, हल्‍के झटके से रूक गई, आ गये अपने गन्‍तव्‍य तक।‘’ देव ने कार का गेट, डोर खोलकर इशारा किया, शीला को।

दोनों कार के बाहर खड़े-खड़े चारों और नजरें घुमा-घुमा कर सारे परिवेश का सामान्‍य जायजा ले रहे हैं, तभी देव ने अपनी उंगली से संकेत करते हुये कहा, ‘’ये है, अपना प्‍लॉट.....।‘’

शीला ने एक नजर प्‍लॉट को देखा, फिर देव की ओर निहारने लगी।

‘’कैसा लगा।‘’ देव ने आँखें मिलाते हुये पूछा।

‘’कब से लेकर पटक रखा है।‘’ शीला ने अपना व्‍हयू व्‍यक्‍त किया, ‘’बहुत बड़ा है, पॉश इलाके में। रीच्‍ड रहवासी लगते हैं, सराऊँडिंग में।‘’

‘’अवश्‍य।‘’ देव ने रहस्‍योद्घाटन किया, ‘’इसकी रजिस्‍ट्री, शीला-देव के संयुक्‍त नामों से कराकर अपनी आत्‍मा की आवाज को महत्‍व देकर, शॉंत करने का आगाज़ करना चाहता हूँ।‘’

शीला ने रायल मूड में हल्‍के-फुल्‍के, लापरवाही युक्‍त लहजे में कहा, ‘’ये आवश्‍यक तो नहीं......।‘’

‘’जरूरी है।‘’ देव तुरन्‍त बोला, ‘’मैं अपनी फैमिली के लिये ही कुछ कर रहा हूँ। एक आदर्श परिवार की तरह गढ़ना चाहता हूँ।‘’ देव ने आगे कहा, ‘’जल्‍द-से-जल्‍द अपनेपन को भुनाना चाहता हूँ। प्रेम, प्रीत सहानुभूति, सम्‍वेदनशीलता, समग्र पारिवारिक, सामाजिक सुख्‍, सम्‍बृद्धि समेट लेना चाहता हूँ, जो कुदरत के क्रूर पंज्‍जों ने मुझसे छीन लिये थे।‘’ शीला की ओर मुखातिब होकर, ‘’तुम्‍हारा साथ, सहयोग, सहारा, समर्पण चाहिए...........।‘’

शीला ने बाहें फैला कर गले लगा लिया, ‘’इतनी भावुकता,……….रूलाओगे !’’ शीला ने देव की ऑंखों में ऑंखें डालकर कहा, ‘’धैर्य-धैर्य !! सब कुछ अनुकूल ही होगा, इच्‍छा अनुसार ! विश्‍वास रखो........।‘’

दोनों कार में आकर बैठ गये भावनाओं के सैलाब के साथ........।

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

क्रमश:---१६

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय- समय

पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्‍वतंत्र

लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍