अध्याय बारह
भक्तियोग
अनुभव— दादी जी, क्या हमें प्रतिदिन पूजा या ध्यान करना चाहिए, या केवल अवकाश या रविवार को ही ?
दादी जी— बच्चों को किसी न किसी रूप में प्रतिदिन पूजा, प्रार्थना या ध्यान करना चाहिए । विद्यालय में प्रतिदिन वंदना (प्रार्थना) में अवश्य उपस्थित होना चाहिए । घर में भी प्रतिदिन भगवान की प्रार्थना करनी चाहिए ।वह जिस रूप में तुम करना चाहो ।अच्छी आदतों को जल्दी ही बनाना चाहिए।
अनुभव— आपने कहा कि भगवान निराकार है, पर साकार भी है ।तो क्या मुझे भगवान की पूजा राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव के रूप में करनी चाहिए या उनके निराकार रूप की ?
दादी जी— अर्जुन ने यह प्रश्न गीता में भगवान कृष्ण से किया है । कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि भगवान के साकार रूप की पूजा निष्ठा के साथ करना अधिकांश लोगों के लिए— विशेषकर उनके लिए जिन्होंने भक्ति मार्ग पर अभी पैर ही रखा है— सुगम और बेहतर है । किंतु एक सच्चे भक्त की आस्था भगवान के निराकार रूप में भी और उनके राम, कृष्ण, हनुमान, शिव , मॉं काली , दुर्गा आदि साकार रूप में भी होती है ।
अनुभव— दादी जी मुझे पूजा किस प्रकार करनी चाहिए ?
दादी जी— स्कूल जाने से पहले पूजा या ध्यान-कक्ष में जाकर पूजा करो । सीधे बैठो, अपनी ऑंखें बंद करो, कुछ साँस धीरे से और गहरे लो। अपने इष्टदेव का स्मरण करो और उनसे आशीर्वाद माँगो । ऑंखें बंद कर के अपने इष्टदेव पर मन को केंद्रित करना ध्यान योग कहलाता है । तुम मन ही मन में दोहराते हुए ओम् ,हरे राम हरे राम,राम राम हरे हरे , हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे , ओम् नम: शिवाय आदि मंत्र का जाप भी कर सकते हो।जोमंत्र तुम्हें सुगम हो तुम उसका जाप कर सकते हो ।
अनुभव— जब मैं ध्यान मग्न होने का प्रयत्न करता हूँ, तो मैं मन को लगा ही नहीं पाता हूँ , दादी जी । मेरा मन सब जगह भागने लगता है ।मुझे क्या करना चाहिए ?
दादी जी— चिता मत करो,यह तो बड़ों-बड़ों के साथ भी होता है बार-बार मन लगाने की,केन्द्रित करने की कोशिश करो ।अभ्यास से तुम अपने मन को अच्छी प्रकार केन्द्रित करने में सफल हो जाओगे, न केवल भगवान में, बल्कि अपनी पढ़ाई के विषयों में भी ।यह तुम्हें स्कूल में अच्छे मार्क लाने में भी सहायक होगा । तुम प्रेम सहित अपने इष्टदेव को फल-फूल आदि अर्पित करके भगवान की प्रार्थना-पूजा कर सकते हो और हॉं, अपनी पढ़ाई शुरू करने से पहले भगवान गणेश, हनुमान अथवा मॉं सरस्वती आदि ज्ञान के देवी- देवता का भी स्मरण करो। बुरे परिणाम के आने पर दुःखी न होकर अपने काम के फल को स्वीकार करो।
अपनी असफलताओं से सीखने का प्रयत्न करो। कभी हार न मानो और अपने में निरंतर सुधार करते रहो।
अनुभव— बस इतना सब कुछ करना है , मुझे दादी जी ?क्या भगवान ने और कुछ भी कहा है ?
दादी जी—तुम्हें अच्छी आदतें भी डालनी चाहिए ।
जैसे—मॉं -बाप की आज्ञाओं का पालन करना, ज़रूरत पड़ने पर दूसरों की सहायता करना, किसी को दुख न पहुँचाना, सबके साथ मित्रता का व्यवहार करना, किसी को दुख पहुँचाने पर खेद प्रकट करना अथवा क्षमा मॉगना, मन को शांत रखना, उनके प्रति आभारी होना, जिन्होंने तुम्हारी सहायता की है । ऐसे लोगों को भक्त कहा गया है ।यदि तुम में इन अच्छी आदतों में से किसी की कमी है तो उसे अपनाने की कोशिश करो।
अनुभव— क्या बच्चे के लिए भक्त होना संभव है?
दादी जी— मैंने तुम्हें पहले ही ध्रुव की कहानी सुनाई है।
अब मैं तुम्हें एक और भक्त की कहानी सुनाऊँगी । उसका नाम प्रह्लाद था ।
कहानी (15) भक्त प्रह्लाद की कथा
हिरण्यकश्यप दानवों का राजा था । उसने भयंकर तपस्या की थी । उसने कठोर एवं भयंकर तपस्या की थी , ब्रह्मा देवता ने उसे प्रसन्न होकर एक वरदान दिया था कि उसे न मनुष्य मार सकेगा न पशु ।न मैं बाहर मरूँ न अंदर, मैं दिन में मरू न रात में ।न आकाश में मरू न पाताल में , वरदान पाकर वह बहुत घमंडी हो गया । उसने तीनों लोकों में आतंक फैला दिया, उसने घोषणा करा दी कि उसको छोड़ कर और कोई ईश्वर नहीं है । सभी को उसी की पूजा करनी पड़ेगी ।
उसका प्रह्लाद नाम का एक बेटा था, वह एक धार्मिक बालक था जो भगवान विष्णु की उपासना करता था । इससे उसके पिता को बहुत क्रोध आता था । वह बेटे प्रह्लाद के मन से भगवान विष्णु का ध्यान पूरी तरह से निकाल देना चाहता था ।इसलिए उसने प्रह्लाद को एक सख़्त अध्यापक को सौंप दिया, जो उसे केवल हिरण्यकश्यप की पूजा करने की शिक्षा दे , विष्णु की पूजा नहीं ।
प्रह्लाद ने शिक्षक की बातें मानने से इंकार कर दिया और अन्य बच्चों को भी विष्णु भगवान की पूजा करने की शिक्षा देने लगा । इससे शिक्षक को बहुत क्रोध आया और उसने राजा से शिकायत की ।
राजा बेटे के कमरे में ग़ुस्सा करता हुआ आया और ज़ोर से चिल्लाने लगा— “मैंने सुना है तुम विष्णु की पूजा करते हो।”
प्रह्लाद ने काँपते हुए धीरे से कहा, “हॉं पिताजी, मैं विष्णु की पूजा करता हूँ ।”
राजा ने कहा— “वचन दो कि तुम आगे से कभी भी विष्णु की पूजा नहीं करोगे ।”
प्रह्लाद ने उत्तर दिया— “मैं वचन नहीं दे सकता पिताजी।”
राजा चीखा— “तब तो मुझे तुम्हें मरवाना पड़ेगा ।”
बालक प्रह्लाद ने नम्रतापूर्वक राजा को उत्तर दिया — “ऐसा तब तक नहीं होगा, जब तक भगवान विष्णु की इच्छा नहीं होगी ।”
राजा ने प्रह्लाद का पूरी तरह से मन बदलने की कोशिश की, परन्तु वह ऐसा करने में हर प्रकार से असफल रहा ।
तब राजा ने अपने रक्षकों से प्रह्लाद को महासागर में फेंकने का आदेश दिया ।राजा को आशा थी कि ऐसा करने से प्रह्लाद डर कर उसकी बात मान कर कभी भी विष्णु की पूजा न करने का वचन दे देगा ।किंतु प्रह्लाद विष्णु के प्रति निष्ठ रहा ।अपने हृदय में भक्ति और प्रेम से विष्णु की प्रार्थना करता रहा । रक्षकों ने उसे भारी शिला से बॉंधकर महासागर में फेंक दिया । भगवान की कृपा से शिला अलग जाकर गिर गई और प्रह्लाद सुरक्षित जल की सतह पर तैरता रहा ।उसे सागर तट पर भगवान विष्णु को देख कर बहुत आश्चर्य हुआ ।
भगवान विष्णु ने मुस्कुराते हुए उससे कहा, “जिस चीज़ की भी इच्छा हो मुझसे मॉंग लो ।”
प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “मैं राज्य, धन , स्वर्ग या दीर्घ जीवन नहीं चाहता ।मैं केवल इतनी शक्ति चाहता हूँ कि हमेशा आपको प्यार करता रहूँ और मेरा मन कभी भी आपसे अलग न हो ।”
भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की इच्छा पूरी की। जब प्रह्लाद पिता के महल में वापिस आया, राजा उसे देख कर अवॉक रह गया ।
“तुम्हें सागर से निकाल कर कौन लाया? राजा ने अचंभित हो कर पूछा ।
बालक प्रह्लाद ने सहज भाव से कहा, “भगवान विष्णु ।”
“मेरे सामने उसका नाम न लो” राजा चिल्लाया ।
राजा ने अपनी बहिन को बुलाया जिसे आग में कभी भी न जलने का वरदान मिला हुआ था,उसका नाम होलिका था ।
राजा ने लकड़ी के ढेर पर होलिका को बैठाकर उसकी गोद में प्रह्लाद को बैठाकर , अपने सेवकों से आग लगने को कहा— प्रह्लाद हाथ जोड़कर बूआ की गोद में बैठ गया और भगवान विष्णु की प्रार्थना करता रहा । भगवान की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बैठा रहा और होलिका जल गई। बालक को कुछ नहीं हुआ वह विष्णु का नाम लेते हुए आग में से उतर कर खड़ा हो गया,होलिका भस्म हो गई ।
तभी से होली का पर्व भारत में मनाया जाता है ।विस्तार से फिर कभी यह कथा सुनाऊँगी ।
राजा को यह देख कर बहुत आश्चर्य हुआ और क्रोध में बोला—
“कहॉं है तुम्हारा भगवान विष्णु? उसे मुझे दिखाओ ।” उसने चुनौती दी ।
“वह तो सब जगह है” , बालक ने उत्तर दिया ।
“क्या इस खम्बे में भी है ?” राजा ने पूछा ।
“हॉं , इस खम्बे में भी है,” प्रह्लाद ने पूरे विश्वास के साथ उत्तर दिया ।
“तो वह मेरे सामने जिस भी रूप में वह प्रकट होना चाहे, आये,” हिरण्यकश्यप चिल्लाया और उसने लोहे की गदा से खंबे को तोड़ दिया ।
तभी खम्बे से नरसिंह नाम का जीव कूद कर बाहर निकला। वह आधा पुरुष था और आधा सिंह ।
हिरण्यकश्यप उसके सामने बेबस खड़ा रहा ।उसने भयभीत होकर सहायता के लिए पुकार की, किंतु कोई भी उसकी सहायता के लिए नहीं आया ।
शाम का समय था,न दिन थी न रात थी ।
नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को उठाया और अपनी गोद में रखा ।देहली परबैठकर वहॉं उसने हिरण्यकश्यप के शरीर पर ज़ोर से प्रहार किया और चीर डाला । इसप्रकार हिरण्यकश्यप अपनी मृत्यु को प्राप्त हुआ ।
भगवान ने प्रह्लाद को प्रभु में गहन विश्वास रखने के लिए आशीर्वाद दिया । हिरण्यकश्यप की मृत्यु के बाद दानवों का दमन हुआ और देवताओं ने पुनः दानवों से पृथ्वी छीनकर उस पर अधिकार कर लिया । आज तक प्रह्लाद का नाम महान भक्तों में गिना जाता है ।
अध्याय बारह का सार— भगवान के प्रति भक्ति के मार्ग पर चलना अत्यंत सरल है । इस मार्ग के अंश हैं: देवी-देवता की दैनिक उपासना,भगवान को फल फूल अर्पित करना, भगवान की महिमा की कीर्ति में भजन गाना और कुछ अच्छी आदतें डालना ।
आगे का अध्याय अनुभव तुम्हें कल सुनाऊँगी ।
क्रमशः ✍️