पंछी उसे नज़रअंदाज़ करते हुए क्लास में प्रवेश करने वाली ही होती है कि निल रोक देता है और कहता है - कल गार्डन में तुम ऋषि से क्या कह रही थी ? पंछी - नही कुछ नही कह रही थी । निल - मैने सुना तुमने क्या कहा जो, वो सच था क्या ? पंछी - हां , सच था और उसने हां भी कर दी है। , तुम्हें अपनी खैर चाहिये तो मुझसे तो दूर ही रहना वरना ऋषि कुछ भी कर सकता है फिर मुझे मत कहना कि पंछी मुझे बचाओ , मुझे बचाओ। हर्ष उसके पीछे खड़ा खड़ा उनकी बातें सुन रहा था और पंछी की बात पर मुस्कुरा रहा था निल - तुम्हें क्या मैं बुद्धू लगता है जो झूठ बोले जा रही हो, मुझे पता है ऋषि ने कुछ भी हो तुझे तो हां नही बोला होगा। पंछी उसकी बात सुन घबरा गयी फिर भी घबराते हुए बोलती हैं - क्यों नहीं बोलेगा और वैसे भी तुझे क्या मतलब , अपने काम से काम रख ना। निल - भूल मत की उस दिन तूने मुझे थप्पड़ मारा था तो तुझे क्या लगता है मैं तुझे छोड़ दूंगा इस कॉलेज से निकलवा कर रहूंगा तुझे । उसकी बात सुन हर्ष पंछी के पास आकर खड़ा हो जाता है और निल को अंगुली दिखाते हुए बोलता है - ओय हेल्लो, पंछी से अपनी औकात में रहकर बात कर, ऐसी बदतमीजी दुबारा मत करना वरना कुछ करने के लायक नहीं रहोगे , समझे ? निल हर्ष की बात सुन नज़रे झुका कर वहाँ से चला जाता है उसके जाने के बाद निल पूछता है कि ये वही लड़का है जिसके सामने तुम ऋषि को नाटक करने की बोल रही थी ? पंछी - हां, ये वही है । हर्ष - तू मुझे पहले बोलती ना, उसे कब का सबक सिखा देता फिर कभी इस कॉलेज में किसी लड़की से बोलने की हिम्मत नहीं होती उसकी।
पंछी - नहीं, मुझे कोई लड़ाई झगड़ा नही चाहिये , बात बिना लड़ाई के ही ख़त्म हो जाये तो अच्छा है।
हर्ष - ठीक है । (हर्ष भी ज्यादा कूछ नहीं बोलता क्यों कि वो भी यही चाहता था कि कैसी भी हो एक बार पँछी ऋषि की गर्लफ़्रेंड बन जाये )। हर्ष कहता है चलो कॉफी पीते पीते ऋषि को मनाने का कोई आईडिया सोचते है । दोनों कैटीन में टेबल पर बैठे होते हैं ।
हर्ष - मेरे पास एक आईडिया है हम दोनों कॉलेज खत्म होने के बाद ऋषि के घर चलेंगे वहाँ तुम ऋषि से बात कर लेना ।
पंछी - अभी भी तो कर सकते हैं ना ?
हर्ष - कर तो सकते है लेकिन यहाँ ऋषि मानेगा नही, दूर दूर भागेगा ।
पंछी - ठीक है तुम भी मेरे साथ चलना ।
हर्ष - हा चलूंगा ना पर मैं ऋषि के सामने नही आ सकता , उसे पता चल गया कि मैं तुम्हारी हेल्प कर रहा हूँ तो ऋषि तो मुझे मार ही डालेगा । पर पक्का मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा ।
पंछी - ठीक है ( थोड़ा घबराती तो है पर मान जाती है । )
कॉलेज खत्म होने के बाद लगभग 2 घंटे बाद हर्ष औऱ पंछी ऋषि के घर पहुचते है । हर्ष पंछी को गेट की घंटी बजाने की बोलता हैं और खुद वहीं एक पौधे के पीछे छुप जाता है पंछी घंटी बजाती है , ऋषि दरवाजा खोलता है । पंछी को अचानक से सामने देख ऋषि आश्चर्यचकित हो जाता है पर पंछी को देख वो खुश भी होता है फिर उसे याद आता है कि कही पंछी उसे नकली बॉयफ्रेंड बनने के लिये तो नही पूछने आयी हैं ? और वो पंछी से पूछता है - पंछी तुम यहाँ ? कुछ काम था क्या ? और तुम्हें मेरे घर का पता कैसे मालूम हुआ ? पंछी को कुछ समझ नही आता है कि क्या बोले फिर बातों को घूमाते हुए बोलती है - हां वो मैं यहां से गुजर रही थी तो तुम दिख गए तो मैं यहाँ आ गयी , हां हां इसीलिए आ गयीं।
ऋषि - क्यों ?
पंछी - मैं , मैं बस ऐसे ही टहलते टहलते आ गयीं।
ऋषि - टहलते टहलते....... ?????
पंछी - हां ,वो मेरा मतलब मुझे तुमसे बात करनी थी।
ऋषि - अगर तुम मुझे मनाने आयी हो कि मैं तुम्हारा नकली बॉयफ्रेंड बन जाऊं तो मैं नही बनने वाला ।
पंछी उसकी बात सुन उदास हो जाती है और बिना कुछ बोले नीचे देखने लगती है। ऋषि को उसे उदास देख कर अच्छा नहीं लगता है , पंछी बिना ऊपर देखे पलट कर जाने लगती है तभी ऋषि रोकते हुए कहता है - पंछी रुको , ठीक है मैं तैयार हूं तुम्हारा नकली बॉयफ्रेंड बनने के लिये । पंछी ये सुन बहुत खुश होती है और खुशी से उछलते हुए बोलती है - थैंक यू ऋषि, थैंक्यू। कल कॉलेज में मिलते हैं। तब वो बहुत खुश थी ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई आधी जंग जीत ली हो। ऋषि उसे इतना खुश होते हुए बस देखे ही जा रहा था और फिर पंछी चली जाती हैं ऋषि भी मुस्कुराते हुए अपने घर के अंदर चला जाता हैं ऋषि के जाते ही पंछी वापिस आती हैं और हर्ष के पास आकर बोलती है - हर्ष ऋषि मान गया है अपना काम हो गया है । चलो अब चलते हैं। हर्ष बाहर निकलते हुए - ठीक है चलते हैं। घर से थोड़ी दूर आने के बाद हर्ष कहता है - पंछी तुम्हारा काम तो हो गया इस खुशी में कुछ खाने चले, मुझे बहुत तेज भूख भी लगी है। पंछी भी खुशी खुशी कहती हैं - ठीक है चलो , पर क्या खाएंगे ?
हर्ष - रेस्टॉरेंट चलते हैं वहाँ की सबसे बेस्ट डिश खाएंगे।
पंछी हिचकिचाते हुए कहती है कि ठीक है चलते है पर जल्दी वापिस आ जाएंगे हना ? , मेने घर पर कुछ बताया नहीं है ।
हर्ष - ठीक है अभी तो चलो ।
दोनो रेस्टॉरेंट जाते हैं रेस्टोरेंट के सामने सड़क पार करते समय पंछी पीछे रह जाती हैं हर्ष वापिस जाकर उसे लेकर आता है , दोनों अंदर जाते हैं खाना मंगवाते है। और थोड़ी देर में खाना आ जाता है हर्ष चम्मच ओर कांटे से खाना खाने लगता है और पंछी उसे खाते हुए देख रही थी उसे ऐसे देखता देख हर्ष कहता है - क्या हुआ पंछी , तुम भी खाओ ना ।
पंछी - वो क्या है ना कि मैं हमेशा हाथो से ही खाती हु तो चम्मच ओर कांटे से खाया नही जाता है । पंछी ने इतनी मासूमियत से बोला था कि हर्ष उसे कुछ बोल ही नही पाया और वो भी बिना बोले हाथ से खाने लग जाता है । पंछी बहुत खुश होती हैं और खाना खाने लगती हैं खाते खाते हर्ष की नज़र अचानक से पंछी पर पड़ती है पंछी अपने मे ही मस्त मगन होकर बड़े चाव से खाना खा रही थी उसे ऐसे खाना खाते देख हर्ष अचानक से कही खो जाता है वो पंछी को देखे जा रहा था। फिर अचानक से उसे होश आता है और सोचता है - मैं ये क्या कर रहा था पंछी के बारे में ये क्या सोच रहा था। इन सब को नज़रअंदाज़ करते हुए वो फिर से खाना खाने लगता है थोड़ी देर बाद वेटर आता है पंछी के मना करने के बाद भी हर्ष बिल जमा करवा देता है दोनों वहाँ से निकलते हैं हर्ष पंछी को घर छोड़ देता है और वापिस अपने घर चला जाता है। रास्ते में हर्ष को रेस्टोरेंट की बात याद आती हैं और खुद से ही सवाल करने लगता है - हर्ष तुझे ये क्या हो गया था ऐसा सोच भी कैसे सकता है उसके बारे मे ऐसा सोचना ही गलत है । फिर अपने आप को मनाते हुए कहता है - वा रे हर्ष तू भी बहुत ज्यादा सोच रहा है वो तेरे टाइप की नही है । फालतू मैं टेंशन ले रहा है। इस तरह खुद को मना कर वो वापिस ऋषि के घर चला जाता हैं दोनों ऋषि के कमरे में बैठे बैठे बाते कर रहे थे बातों बातों मैं हर्ष पूछता है कि जब पंछी ने तुम्हें बॉयफ्रेंड बनने के लिए पूछा था तो तुमने मना क्यों किया ऋषि कहता है - वो इसलिये क्योंकि उसे पता ही नही है कि में सच मैं उससे प्यार करता हूँ तुम्हें पता है जब मैं बचपन में उसके साथ खेलता था तो वो समय मुझे बहुत अच्छा लगता था ऐसा लगता था कि खेलते रहो पर वो चली जाती थी फिर मुझे अगले दिन का इंतेज़ार रहता था तुम्हें पता है एक दिन वो अपने साथ एक छोटा सा ड्रैगन लेकर आयी थी और उसके साथ उसकी एक फ्रेंड भी आयी थी । तो दोनों अपने में ही बिजी थे तब मुझे बहुत बुरा लगा था मैं बार बार उनके पास जाता और पंछी को अपने साथ खेलने को बोलता एक बार तो वो मुझ पर गुस्सा हो गयी और गुस्से में बोला - क्या है ऋषि , थोड़ी देर रुको ना। , वो क्या है ना कि उस समय भी में यही चाहता था कि पंछी सिर्फ मेरे साथ खेले और सिर्फ मेरे साथ बातें करें । फिर थोड़ी देर बाद वो मेरे पास आकर बोली - सॉरी ऋषि , तुम्हारे साथ नही खेल पायी, अब मुझे जाना होगा , वैसे तुम्हें कुछ बताना था कल हम यहाँ से जा रहे हैं। दूसरी जगह रहेंगे तो आज हम लास्ट बार मिल रहे हैं मैं ये सुनकर बहुत नाराज हो गया था उस टाइम मुझे बहुत बुरा लगा था फिर पंछी वापिस बोली - तुम मेरा ये ड्रैगन ले लो इसके साथ खेल लेना , हम कल शाम तक जाएंगे । और ऐसा बोल कर वो चली गयी अगले दिन मैने उसका वहीं गार्डर में इंतज़ार किया था मुझे लगा वो लास्ट बार मिल कर जाएगी पर नही आयी।
ऋषि की बात सुन हर्ष बोलता है - ऋषि तब तुम बहुत छोटे थे तो ऐसे कैसे ?
ऋषि - हा , मुझे पता है तब मैं बहुत छोटा था वो सिर्फ एक दोस्ती थी लेकिन उसके जाने के बाद जब मैं बड़ा हो गया तब उसकी हर एक बात याद थीं मुझे , मुझे लगा कि दोस्ती की वजह से याद आती होगी लेकिन जब भी किसी लड़की के साथ होता था तब भी मुझे पंछी की बातें याद आती था। फिर बाद में मुझे एहसास हुआ कि धीरे धीरे मैं उससे प्यार करने लगा था, जब मैं पंछी से पहली बार मिला तब मुझे पता चल गया कि मैं उससे प्यार करने लगा हु । तुम्हें पता है उसका दिया हुआ ड्रैगन आज भी मेरे पास है जब भी मिस करता हु ड्रैगन को सीने से लगा लेता हूँ।
हर्ष - तो फिर तुमने उसे बॉयफ्रेंड बनने से क्यों मना किया था ?
ऋषि - क्योंकि मैं उसे सच में अपना बनाना चाहता हूं मैं चाहता हूं कि वो हमेशा मेरे साथ रहे मुझसे ढेर सारी बातें करें, उसकी बातें सुनते सुनते सोना चाहता हूं , सब के सामने चिल्ला कर बताना चाहता हूं कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ.......... पंछी। इसलिये मैं उसका नक़ली बॉयफ्रैंड बनने का नाटक नही कर पाऊंगा इसलिये मना कर दिया
हर्ष बस उसकी बातों को सुने जा रहा था । ऋषि उसे होश में लाते हुए कहता है - हेल्लो हर्ष, तुम कहा खो गए ?
हर्ष - कहि नही, बस तुम्हारी बातें सुन रहा था ।
ऋषि - सुन ली मेरी बाते ।
हर्ष - हां
ऋषि - तुम्हें पता है आज पंछी घर आयी थी कैसे भी करके उसने बात मनवा ही ली।
हर्ष - हां , पता है ।
ऋषि - क्या ......?????? तुम्हें कैसे पता ?
हर्ष - मेरा मतलब मुझे कैसे पता होगा , मुझे नही पता की वो यहाँ आयी थी कि नहीं
ऋषि - मुझे तो ये पता नहीं है कि उसे मेरे घर का पता कैसे पता चला ?
हर्ष - मुझे भी नहीं पता ।
ऋषि - शायद वो सच बोल रही हो मुझे यहाँ आते हुए देख लिया होगा इसलिए पता चल गया होगा।
हर्ष - हां , ऐसा ही हुआ होगा ( फिर धीरे से चैन की सांस लेते हुए फुसफुसा है - बच गए )
ऋषि - क्या बोल रहे हो ?
हर्ष - कुछ नहीं, कुछ नहीं , अब मैं जाता हूँ बहुत लेट हो गया है गुड नाईट
ऋषि - गुड नाईट
फिर हर्ष वहाँ से अपने घर के लिए निकल जाता हैं। ओर पीछे ऋषि सोचता है - इसे पता नहीं अचानक से क्या ही गया है।