नाड़ीतंत्र
प्रथम दो लेखांक दौरान ओरा (Aura) और कुँडलिनी के बारे में चर्चा हुईl नाड़ि के बारे में प्राथमिक बात हुई कि जैसे बिजली, रेडियो या लेसर तरंगे अदृश्य होने के बावजूद भी अस्तित्वम में है और प्रवाहित है उसी तरह से प्राणशक्ति का प्रवाह नाड़िओं के माध्यमसे बहता रहता है| नर्वस सिस्टम स्थूल शरीरमें है जब कि नाड़ीतंत्र प्राणशरीर में स्थित है| एक बहुत ही विशाल, जटिल और प्रकृति ही जिसकी रचना कर सकती है ऐसे व्यवस्थित नाड़ीतंत्र के नेटवर्क द्वारा ऊर्जाका प्रवाह शरीर के प्रत्येक अंग एवं कोष में पहुंचता रहता है|
इस हप्ते हम नाड़ीतंत्र को विस्तार से समझेंगे|
मुख्य नाड़ी तीन है - इड़ा, पिंगला और सुषुम्णा| गौण नाड़ी अनेक है जो इन नाडिो में से प्रस्फुरित शाखाएँ है| अन्य एशियाइ देशों के साहित्य में भी नाड़ीतंत्र का उल्लेख अलग-अलग नाम से पाया जाता है, चीन में हजारो वर्ष पूर्व भी मेरीडियनस के रूपमें ऊर्जा प्रवाहित करते नाड़ीतंत्र का ज्ञान प्रवर्त्तमान था, और एक्यूपंक्चर एवं एक्यूप्रेशर थेरापी सम्पूर्ण रूप से इसी मेरिडियन्स पर आधारित है| इसी तरह से जापान में यिन-यान (yin-yang) सिद्धांत पर विकसित शियात्सु नामक थेरपी विश्वविख्यात है| यहाँ पे यिन ही इड़ा नाड़ी और यान (yang) ही पिंगला नाड़ी है|(चित्र देखिए)
हमारे शरीर में बायीं (left) तरफ की नाड़ी इड़ा यानि चन्द्रनाड़ी, दायी (right) तरफ की नाड़ी पिंगला यानि सूर्य नाड़ी और मध्य में स्थित नाड़ी को सुषुम्णा नाड़ी से जाना जा सकता है (चित्र देखें)| इड़ा को स्त्रैण (feminine) नाड़ी माना जाता है जब कि पिंगला पुरुषप्रधान (masculine) नाड़ी कही जाती है| यहाँ पे स्त्रैण व पुरुषप्रधान शब्द का सन्दर्भ जाती या लिंग से नहीं किन्तु स्त्री-पुरुष की मूलतया प्रकृति के साथ लिया गया है| इड़ा यानी चन्द्रनाड़ी शीतल प्रकृति की जब कि पिंगला यानि सूर्यनाड़ी उष्ण प्रकृति की वाहक है|
सामान्यतः हमारे श्वाच्छोश्वास एक ही नाक से चलते है, कभी दायी ओर से तो कभी बायीं तरफ से| कवचित ही ऐसा होता है कि साँस दोनों ही नथुने (नोस्ट्रिल्स) से चलती है| जब बाएं (Left) नथुने से साँस चलती है तब हमारे शरीर पर इड़ा नाड़ी, जब कि दाएं (Right) नथुने से चल रही साँस पे पिंगलानाड़ी का प्रभाव होता है| यदि दोनों नाड़िओं में से साँस चल रही हो तो उस क्षण मनुष्य सुषुम्णा नाड़ी के प्रभाव में होता है| सामान्यतः ध्यान करते समय इस तरह कि स्थिति बनती है या फिर बरसों के ध्यान पश्चात अधिकतर समय कोई मनुष्य खुद को इस स्थिति में रखने में समर्थ होता है|
क्या हमें बीते समय के अधिकतर विचार करने की आदत है? अगर ऐसा है तो इड़ानाड़ी (चन्द्रनाड़ी) दूषित हो रही है| क्या भविष्य के अधिकतम विचार करने की आदत है? यानी पिंगला (सूर्यनाडी) दूषित हो रही है| अधिकतर समय वर्तमान में ही रह सकते है? तो हम निश्चित रूपसे अभिनन्दन के अधिकारी है - क्योंकि ऐसी स्थिति में ऊर्जा सुषुम्णा से प्रवाहित हो रही है| रोजमर्रा की भाषा में कई बार हम किसी व्यक्ति के लिए एक शब्दप्रयोग करते है, "सेंटर्ड या बैलेंस्ड है" इसका मतलब है कि वह व्यक्ति अधिकतर समय वर्तमान में स्थित है|
क्या स्वनिरीक्षण करना है? कुछ प्रश्नों के उत्तर खुद को ही प्रमाणिकतापूर्वक दीजिये|
क्या मैं सृजनात्मक, कलाप्रिय, भावप्रधान, अंतरस्फुरणा से प्रेरित यानी कि intuitive हूँ? थोड़ी ज्यादा ठण्ड महसूस होती है? क्या मेरा पाचनतंत्र बारबार डिस्टर्ब होता है? बायां (लेफ्ट) नाक कभी भी रूठ जाता है? निराशाजन्य विचारों के साथ मेरी थोड़ी-बहुत दोस्ती है ? इन सबका जवाब प्रायः 'हाँ' है तो मुझे समझना होगा कि मेरी प्रकृति इड़ाप्रधान है, मेरा दायां (राइट) मस्तिष्क अधिक सक्रीय है, बीते समय के (पास्ट) विचार करनेकी ादातकी वजह से किसी भी प्रकारकी बीमारी होने की सम्भावना भी बदक़िस्मती से मेरे साथ रहती है | मेरा सकारात्मक पहलु यह है कि मैं जीवन को ज्यादा कलामय रूप से जीने में समर्थ हूँ |
क्या मैं ज्यादा तार्किक (logical), विश्लेषणात्मक (analytical), अधिक उग्र हूँ? गर्मी थोड़ी ज्यादा लगती है? भूख भी ज्यादा लगती है? त्वचा शुष्क है? तो फिर मैं पिंगलाप्रधान हूँ, मेरा बायां (Left) मस्तिस्क अधिक सक्रिय है, शायद लोग मेरी पीठ पीछे मुझे अहंकारी एवं जिद्दी भी कहते होंगे और मेरे सामाजिक सम्बन्ध भी मेरे ऐसे स्वभावकी वजह से कभी बिगड़ते होंगे| मेरा सकारात्मक पहलु ये है कि मेरे भीतर सामान्य लोगोंकी अपेक्षा थोड़ी अधिक ऊर्जा है एवं मेरा स्वस्थ्य भी सामान्यतः ज्यादा अच्छा रहता है|
प्रत्येक इंसान में दोनों प्रकृति अलग-अलग मात्रा में होती हैं और इसी लिए शायद कहा जाता है कि प्रत्येक मनुष्य में शिव:शक्ति दोनों का निवास है, यिन और यान (Yin-Yang) दोनों मौजूद है| एक ही शरीर में इन दोनों नाड़ी का संतुलित समन्वय करना यानी एक उच्चतम आध्यात्मिक शिखर सर करना| और यह संभव भी है| काफी संत-महात्मा (enlightened beings)में अगर हम ध्यान से देखे तो इन दोनों शक्ति का संतुलित समन्वय दिखने मिलता है, अनेक पुरुष संत में काफी सारी भावभंगिमाएं स्त्रैण दिखेगी जो दर्शाती है कि वह दोनों शक्ति का सहज समन्वय करने की और अग्रेसर है और मध्य यानि सुषुम्णा नाड़ि में स्थित रहते है| जब मनुष्य सुषुम्णा नाड़ि में रहते है तब वे अधिक संतुलित एवं शांत रह पाते है और बाह्य परिस्थिति उनको चलित नहीं कर पाती हैं| नियमित रूप से ध्यान इस दिशा की ओर आगे बढने का एक अत्यंत प्रभावी रास्ता है|
नाड़िओं के बारे में इतनी जानकारी लेने के बाद अगले चरण में शरीर कि चक्र व्यवस्था के बारे में जानेंगे l
(क्रमश:)
✍🏾 जीतेन्द्र पटवारी ✍🏾
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