Yes, I'm a Runaway Woman - (Part Nine) in Hindi Fiction Stories by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग नौ)

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हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग नौ)

(भाग नौ)

बेटे के आने के बाद जैसे गड़े मुर्दे फिर से जिंदा होकर सताने लगे थे। कितनी मुश्किल से खुद को संभाला था, जिंदगी में आगे बढ़ी थी। अब जैसे फिर उसी मोड़ पर आ खड़ी हुई थी, जहां से कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। 
बेटा उसके बाद भी कई बार आया और हर बार दुःखी करके गया। मैं ममता में उसके साथ कठोर नहीं हो पा रही थी और वह उसका बेजा फायदा उठा रहा था। 
मेरी लाख मिन्नतों के बाद भी उसने छोटे बेटे की तस्वीर नहीं दिखाई। 
मेरी छोटी बहन ने कोशिश करके छोटे बेटे से संपर्क किया और उसके घर उसका आना-जाना शुरु हो गया। बहन ने उसकी तस्वीर भेजी और उसका समाचार भी मिलने लगा। बहुत खुशी हुई । वह हूबहू मेरे जैसा था। उसने बहन को बताया कि इसी के कारण बचपन से ही वह सबके तानें सुनता था। उसे मुझ पर बहुत गुस्सा था। वह भी यही समझता था कि मैं उसे अबोधवस्था में ही छोड़कर भाग गई थी। मैंने बहन से कहा-उसको सच्चाई बताकर उसके मन की मैल साफ कर दो, तो वह बोली---'-फिर मुझसे भी उसका रिश्ता खराब हो जाएगा। वह तुम्हारे पक्ष में कोई बात नहीं सुनना चाहता। वह तुम्हें एक महत्वाकांक्षी स्त्री समझता है, जो न अपने पति की हुई न बच्चों की। वह मेरी बहुत प्रशंसा करता है क्योंकि मैं इतनी परेशानी झेलकर भी अपनी गृहस्थी संभाल रही हूँ। ' बहन अपनी प्रशंसा से ही खुश थी, अपनी बड़ी बहन के दुःख की उसे कोई परवाह नहीं थी। 
संयोग से छोटे बेटे का तबादला मेरे ही शहर के एयरफ़ोर्स में हो गया था, पर सालों बाद बहन द्वारा ही इस बात का पता चला। वह उसे बहुत मानता था। नौकरी में होने के कारण छोटे की शादी पहले ही हो गयी थी । उसका एक छोटा बच्चा भी था। मेरा मन उनसे मिलने को छटपटाने लगा। एक दिन बहू- पोते के लिए उपहार लेकर मैं उसके आवास पर पहुंच गई। उसने अतिथि की तरह व्यवहार किया। वह न खुश दिखा, न दुःखी। पर मैं बहुत खुश थी। उसे अपने घर बुलाया तो उसने साफ मना कर दिया कि पापा ने मना किया है। वह भी परम पितृ -भक्त था..। पोता पहली बार में ही मुझसे हिल गया। उसके मोह में मैं कई बार वहां गयी। जब उसका तबादला आया तो मैंने कहा कि मिलकर जाना या फिर जब जाना होगा तो बता देना, पर वह चुपचाप चला गया। उसका पिता जाने क्यों उसे मुझसे दूर ही रखना चाहता था?शायद इसलिए कि वह उसके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह था । छोटा बेटा बहन से दिल की बात बता देता था, पर कई मुलाकातों के बाद भी मुझसे नहीं खुला और ना ही अपनापन दिखाया। अवसर मिलते ही वह ताना जरूर मार देता, फिर भी उसका व्यवहार बड़े बेटे से  ज्यादा सम्मानजनक था। कुल मिलाकर उसके पास भी मेरा गुजारा न होना था। 
बड़ा बेटा एक दूसरी बहन के यहां जाने लगा। अब वह आई ए एस का सपना भूलकर सरकारी टीचर बन गया था क्योंकि कई साल से वह सफल नहीं हो रहा था । टीचर बनकर वह भी मेरे शहर में आ गया। मैंने साथ रहने को कहा तो साफ मना कर दिया। उसकी शादी तय हो गयी थी। उसने मेरी दो बहनों को शादी में आमंत्रित किया और मुझे भी उनके साथ आने को कहा, पर किसी मित्र का परिवार बनकर । 
हमें क्या फर्क पड़ता?हम शादी में शरीक हुए पर उसका पिता हमें देखकर बौखला उठा। बात तेजी से फैल गयी कि लड़के की असली माँ आई है। समधिन बहुत खुश हुई, आकर गले मिली। मैं धर्म- संकट में थी। दो बहनों के साथ होने से थोड़ी हिम्मत थी। शादी के समय मैंने देखा कि मेरा पति लड़की की दादी से सिर जोड़े मेरी तरफ देखते हुए कुछ बतिया रहा है। मैं समझ गयी कि वह बेटे के ससुराल में भी मुझे भागी हुई स्त्री के रूप में बदनाम करना चाहता है। दूसरे दिन सुबह लड़की के विदा होते ही लड़की की दादी औरतों के बीच ही मुझसे बोल पड़ी--कैसी औरत हो, सोना जैसे बच्चों को छोड़कर भाग गई थी । अब किस मुँह से शादी में आई हो?आज ससुराल में रहती तो कितना रूतबा रहता!
सभी औरतें मेरा चेहरा देख रही थीं। मैंने बस इतना ही कहा कि--कोई मां अपने बच्चों को छोड़कर भागती है क्या!उसने सब बताया और ये नहीं बताया कि बच्चों को वही लेकर भाग गया था और उन्हें क़ैद करके रख लिया था। 
एक औरत ने भी जब मेरा पक्ष लिया तब बात कुछ बनी। वापस आकर मैँ कई दिन तक सोचती रही कि वह आदमी आज भी जरा -सा नहीं बदला। मुझे लोगों की नजरों से गिराने का एक भी अवसर नहीं छोड़ता। माँ सच कहती है वह जहरीला नाग है। 
बच्चों को थोड़ा- थोड़ा जहर रोज़ पिलाकर उसने बड़ा किया है, इसलिए वे भी जहरीले हो गए हैं । उनसे कोई उम्मीद रखना खुद को दुःखी करना है। शायद वे लड़की होते तो कुछ समझते पर वे भी इस पुरुष- व्यवस्था की ही उपज हैं । 
मैंने तो सोचा था कि जो प्यार उन्हें मैं नहीं दे पाई, उसे अब दूँगी। उन्हें अपना बना लूंगी आखिर वे मेरे ही रक्त- मांस से बने हैं !मेरे ही दूध से पले हैं । गर्भ- नाल का रिश्ता है हमारा। वे मुझे कैसे नहीं समझेंगे?
पर मैं गलत साबित हुई। मैं उनके लिए भी सिर्फ एक भागी हुई स्त्री ही थी।