(भाग छह)
मेरी पढ़ाई छुड़ाने के लिए पतिदेव ने सारे जतन कर डाले। पड़ोसियों, रिश्तेदारों सबसे दबाव डलवाया। मेरे घर आना- जाना बंद कर दिया1 । कुछ दूरी पर किराए का कमरा ले लिया। उसी में मीट की दावत देते। मेरे चटोरे भाई- बहन जाकर खा आते पर माँ और मैं कभी नहीं गए। बच्चों से मिलने घर के बाहर आते तो मैं उन्हें नहीं रोकती। वे घर के बाहर ही उन्हें लेकर बैठते या आस -आस घुमाते, बतियाते, फिर चले जाते। मैं बच्चों के मन में उनके पिता के लिए कोई गलत भावना नहीं भरना चाहती थी। उनके बीच कोई दूरी नहीं लाना चाहती थी। जाने क्यों मुझे अब भी विश्वास था कि मेरी पढ़ाई खत्म होते ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। पर मैं गलत थी। वे बच्चों के मन में मेरे खिलाफ़ जहर भर रहे थे। बड़ा बेटा बिल्कुल उन्हीं पर गया था। छोटा स्वभाव से मेरे जैसा था। एक दिन जब बच्चों को सुलाकर मैं पढ़ने बैठी तो बड़ा बेटा आदेश उठकर बैठ गया। अपनी नन्हीं बाहों को सीने पर बाँधकर गुस्से से बोला--क्यों पढ़ रही हो, जब पापा मना करते हैं?
मैं उसका चेहरा देखती रह गयी। माँ ने तो उसी दिन भविष्यवाणी कर दी कि ये लड़का तुम्हारा नहीं होगा। पिता साँप है तो यह संपोला।
मैं सोचने लगी कि क्या बच्चों को पिता से मिलने देकर मैं कोई गलती कर रही हूँ ? यह कैसा आदमी है जो नन्हे बच्चों के दिमाग में भी ज़हर बो रहा है।
उसने एक पड़ोसी से कहा भी था कि समय का इंतजार कर रहा हूँ। बस बच्चे पांच साल के हो जाएं।
इसके बाद वे क्या करेंगे, इसके बारे में मैंने कुछ सोचा ही नहीं । मैं अपनी पढ़ाई में लगी हुई थी।
और उस दिन मेरा आखिरी पेपर था। मैं परीक्षा देकर थोड़ी देर से लौटी। सभी सहपाठियों ने चाय -पार्टी अरेंज की थी। मैं बहुत खुश थी कि अब नई जिंदगी होगी। प्रथम श्रेणी आ ही जाएगी और कहीं लेक्चरर हो जाऊँगी। फिर पति बच्चों के साथ आनंद पूर्वक जीवन बिताऊँगी, पर मेरा दुर्भाग्य मेरे इंतजार में था ।
घर लौटी तो बच्चे नहीं दिखे । मैंने माँ से पूछा तो वह बोली कि उनका पिता घूमाने ले गया है। घर आया था बहुत रोया, मांफी मांगी। खाना खाकर थोड़ी देर आराम किया फिर बच्चों को बाज़ार ले गया है।
मेरे मुँह से अकस्मात निकला--अब बच्चे नहीं आएंगे। वह उन्हें लेकर भाग गया होगा माँ।
माँ ने मुझे गाली देते हुए कहा--बहुत घमंडी हो तुम, मर्द होकर वह झुक गया और तुम्हें उस पर विश्वास तक नहीं है। अभी आता होगा।
मैं धम से वहीं ज़मीन पर बैठ गयी। ऐसा लग रहा था कि किसी ने मेरे कलेजे को मुट्ठियों में लेकर भींच लिया है। मन से बार बार यही आवाज आ रही थी कि अब बच्चे नहीं आएंगे।
मैं उस आदमी को जानती थी। उसने मुझे तकलीफ देने का कोई अवसर नहीं छोड़ा था। बच्चे पांच साल पूरा कर चुके थे।
बच्चे नहीं लौटे। मेरी आशंका निर्मूल नहीं थी। वह उन्हें लेकर अपने घर बिहार भाग गया था। मेरी बाहों से मेरे बच्चों को वह छीन ले गया था। अब मैं कैसे जीऊँगी?और अगर मैं वहाँ गयी तो वह मुझे मार डालेगा। गिन -गिनकर बदल लेगा। वह मेरा चेहरा जला सकता है, अपाहिज कर सकता है।