1101 in Hindi Comedy stories by Sunil Jadhav books and stories PDF | ११०१

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११०१

लेखक-डॉ.सुनील गुलाबसिंग जाधव

नांदेड,महाराष्ट्र

मो-९४०५३८४६७२

एक रात सपने में बाबा गूगल द्वारा आकाशवाणी हुई, बेटा यूजर प्रो.बबन जी! सारी दुनिया वेबीनारा कर रही हैं और आप घोर निद्रा में अपना समय बर्बाद कर रहे हो | उठो, जागो तुम्हे अपना और अपने देश का नाम रौशन करना हैं | तुम्ह भविष्य में प्रो.बबन वेबिनारवाले के रूप में जाने जाओगे | तुम्हारा देश-विदेश में नाम होगा | तुम्हे देश-विदेश के कोने-कोने से बुलाया जायेगा | तुम्हारा सत्कार और सम्मान किया जायेगा | इसीलिए जल्दी उठो और वेबीनार ज्वाइन करों |

सुबह उठकर वास्तविक जगत में कमाये गये सारी डिग्रियों को नेमप्लेट से हटाकर उन्हें धरती वासी बना दिया गया | और नीचे नई डिग्री लगा दी गई थी | नेमप्लेट पर लिखा था प्रो.बबन वेबीनारवाले |

अब बबन के सामने और एक प्रश्न चिन्ह उपस्थित हो चूका था | वेबीनार क्या हैं ? उसने इसका अर्थ खोजने की भरसक कोशिश की | अनुमान भी लगाया | अंत में उसने सोचा वह गूगल बाबा से ही पुच्छेगा | पता चला कि वेबीनार दो शब्दों से मिलकर बना हैं | वेबी और नार | वेबी का सम्बन्ध www से था तो नार का सेमीनार से | इंटरनेट आधारित कंप्यूटर, मोबाइल, लैप टॉप, टेबलेट पर होनेवाला सेमीनार ही वेबिनार हैं | लेकिन वेबीनार कैसे किया जाय ? तब एक बकरी जैसी दाढ़ी, चिपके नाकवाले व्यक्ति ने उसे बताया | यह एक लम्बी कहानी हैं, नवम्बर २०१९ में माँ चमगाधड और लबी दीवार के घर में रहने वाले पिता चीन ने अपने वूहान के घर में एक सुंदर से बालक कोविद-१९ को जन्म दिया| जिसका नाम रखा गया था ‘कोरोना’ | बालक कोरोना के जन्म से पहले ही आकाशवाणी हो चुकी थी कि यह कोई साधारण बालक नहीं होगा | यह सारे ब्रम्हाण्ड में अपना नाम कमायेगा | लोगो की जबान पर इसका नाम होगा | बालक को गोद में उठाकार उस दिन पिता ‘चीन’ ख़ुशी से झूम उठा था | और फिर अपने बालक के सामने फुट पड़ा था | उसने कोरोना को बड़ी मिन्नतो से प्राप्त किया था | अपने बालक के सामने अपना दुःख व्यक्त करते हुए उसने कहा था, “ मेरे चीनीलाल कोरोना बेटा, सारी दुनिया हमारा “चायनीज माल-चायनीज माल” कहकर मजाक उड़ाती हैं | वो कहते हैं कि, हमारे वस्तु गारंटी वाले नहीं होते | बेटा, तुम्हे सारी दुनिया की जबान बंद करनी होगी कि चायनीज माल गारंटीवाला होता | बेटा, मैं तुम्हे हमारी विरासत हड़पशाही-गडपशाही दे रहा हूँ | अब तुम्हे ही इस विरासत को आगे बढ़ाना हैं |

प्रति दिन दुगना-चौगुना बढ़ने वाले बालक ने कसम खायी कि वह अपने पिता की तरह हडपशाही और गड़पशाही को सारी दुनिया में बढायेगा | उसने घोषणा कर दी जो भी घर के बाहर रहेगा मैं उसे मार दूँगा और जो घर में रहकर वेबीनार करेगा वह बच जायेगा | सारी दुनिया में यह बात ध्वनि से भी तेज गति से पहुँच चुकी थी | सब लोग अपने-अपने घरों में बैठकर वेबीनार करने लगे थे | कोरोना के पप्पा ने हड़पशाही-गडपशाही के तहत ज़ूम एप बना दिया था | लोग कोरोना के भय से ज़ूम एप को अपनाकर झुमने लगे थे | वेबीनार करने लगे थे | जो हिम्मत वाले थे, वे चुपके-चुपके गूगल मिट, वेबेक्स, माक्रोसोफ्ट टीम, फेसबुक, यू टूबे, व्हाट्स एप, टेलीग्राम पर वेबीनार में जुट गये थे | बबन भी कोरोना के वचन से भयभीत हो चुके थे | उन्होंने सबसे पहले ज़ूम पर ही वेबीनार करना पसंद किया था |

बबन ने अपने मोबाइल में ज़ूम को डाउनलोड तो कर लिया पर उसमें कहीं वेबीनार दिखायी नहीं दे रहा था | वह बेसब्री से इंतजार करने लगा था कि कब इसमें वेबीनार शुरू होगा | वह इंतजार करते-करते थक चुका था | उसे लगा आज से १०० साल पहले अंगरेजों ने अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था को लाकर हमे अनपढ़ बना दिया था | जब हमने अंग्रेजी व्यस्था को सिख लिया तो कंप्यूटर युग आया | कहा गया जो इसे नहीं जानता वह अनपढ़ हैं | इतना पढ़ कर भी कोई अनपढ़ नहीं रहना चाहता था | सबने कंप्यूटर सिख लिया | अब कोरोना के आने से एक युग आरम्भ हो चूका था जो अपने साथ कई युग को लेकर चल रहा था | उसी में से एक युग था वेबीनार युग | जो इस वेबीनार युग में पीछे रहनेवाला था, वह अनपढ़ कहलाने वाला था | और कोई भी अनपढ़ नहीं कहलाने वाला था | बबन भी अनपढ़ नहीं कहलाना चाहते थे | इसीलिए उन्होंने ज़ूम को अपने मोबाईल में डाउनलोड किया था | बबन की इस वेबीनार युग में शिक्षा आरंभ हो चुकी थी | उसे अपने नेमप्लेट को सार्थक करके दिखाना था |

एक दिन सुबह-सुबह जब बबन व्हाट्स एप की सुदंर सड़क पर जोगिंग करने के लिए निकले थे तो एक संदेश उनके पढने में आया कि हमारे यहाँ वेबीनार हो रहा हैं | आप सब अपने-अपने मोबाइल की थाली में ज़ूम की कटोरी रखले | कल सुबह ठीक ग्यारह बजे वेबीनार परोसा जायेगा | यह सुनना ही था कि कई दिनों से वेबीनार के भूखे बबन दूसरे दिन ज़ूम पर टूट पड़े थे | ज़ूम में ज्वाइन होते ही बबन ने अपने आपको पहले देखा और जब वे एक-एक को सबको एक साथ सामने देखने लगे तो बड़े प्रसन्न हो गये | ज़ूम में घोषणा कर दी गयी थी कि आप सभी का स्वागत हैं | मेहमान आचुके हैं | जल्दी वेबीनार शुरू हो जाएगा | वेबीनार की पंक्ति में एक-एक से लोग आ रहे थे और बैठ रहे थे | किन्तु वेबीनार का अध्यक्ष ही नहीं आया था | वेबीनार का संचालक लगातार कहे जा रहा था कि मेहमान आ चुके हैं | लेकिन अध्यक्ष के बारें में वह चुप बैठा था कि अचानक वेबीनार के उस मंच पर वेबीनार के अध्यक्ष प्रकट हो चुके थे | अध्यक्ष टाइ और कोट पर आकर बैठ चुके थे | उन्हें देखकर वे अध्यक्ष लग रहे थे | जब उनका अध्यक्षवाला भाषण समाप्त हुआ तो उन्होंने हमेशा कि तरह कारण बताते हुए घर बैठे कहा कि मई व्यस्त हूँ लोग मेरा इंतजार कर रहे हैं | मुझे जाना होगा | वे उठकर जानेके लिए निकले तो पता चला कि अध्यक्ष ने कोट के निचे पेंट ही नहीं पहना हुआ था | केवल कच्छे से काम चला रहे थे | संचालक विवश थे | वे कुछ भी नहीं कह सकते थे | अध्यक्ष उठकर गये और पलंग पर लेट कर टीव्ही खोलकर एम टीवी पर गीत सुनते हुए बैठ गये | कुछ देर तक यह सिल-सिला चलता रहा | सबको लगा यह भी वेबीनार का कोई हिस्सा होगा | सब लोग वेबीनार की सुन्दरता को देख और सुनकर घर बैठे ही तालियाँ बजाने लगे थे |

प्रो.बबन को वेबीनार करते हुए कई अनुभव आ रहे थे | वेबीनार आरम्भ हो चूका था | प्रो.बबन वेबीनार के अप्लिकेशन को जानने की कोशिश करने लगे | वे सबकुछ सीखना चाहते थे | इसीलिए वेबीनार सुनते-सुनते अप्लिकेशन का बारकाई से अध्ययन करने लगे थे | हर बटन दबाकर देखते | कौनसा बटन दबाने से क्या होता है, सिखने लगे थे | कई वेबीनार में कई अध्यापकों को एक साथ देख बबन देखने लगे कि इसमें कौन-कौन हैं ? वे प्रत्येक अध्यापक को देख रहे थे | न जाने कहाँ-कहाँ से अध्यापक शोधार्थी इस में जुड़े थे | इनमें अपने परिचय का कोई हैं क्या, ढूंडने लगे | देखते-देखते उन्हें अपने ही शहर के दूसरे प्रो. बबन दिखाई दिए | वे कुर्सी पर बड़ा-सा हेड फोन पहने बैठे वेबीनार को बड़े गौर से सुन रहे थे | उन्हें देख प्रसन्नता हुई | लगा चलते सेमीनार में हम जैसे बात करते हैं, वैसे उनसे बात करें | पर यह सुविधा यहाँ नहीं थी | थी तो सबको तुरंत पता चल जायेगा कि कौन आपस में बात कर रहा हैं | उन्हें छोड़ बबन आगे बढ़ गये | आगे कौन हैं ? उनके मन में विचार आया कि इसमें सुंदर अध्यापिका भी हो सकती हैं | ढूंडने पर एक से बढ़ का एक सुंदर अध्यापिकायें भी दिखाई दी | यहाँ बिना मेकअप का उन्हें कोई दिखायी नहीं दिया था | सभी अपने-अपने घर से मोबाईल या कंप्यूटर का प्रयोग कर इस वेबीनार में शामिल थे | कई अध्यापकों के घर में उनके पीछे उनके बच्चे खेल रहे हैं थे | तो कोई पीछे बैठा खाना खा रहा था | तो कहीं बर्तन पटकने की आवाजे आ रही थी | कहीं पर अध्यापक केमरे के सामने कुछ नहीं बोल पाने के कारण अपने बच्चों को आँखों को बड़ा कर अपना गुस्सा प्रकट कर रहे थे | आगे जाकर बबन ने सोचा चलो इस वक्त दूसरे बबन क्या कर रहे देखतें हैं | जब वे दूसरे बबन के पास पहुँचे तो वहाँ पर खाली कुर्सी सिंहासन की भांति शोभायमान हो रही थी | बबन ने सोचा सारी दुनिया जिस सिंहासन के लिए देश तक को बेचने से हिचकते नहीं हैं | ऐसे सिंहासन रूपी कुर्सी को खाली छोड़कर वे कहाँ चले गये | कुछ समय पश्चात देखा कि वक्ता जो अबतक बात कर रहे थे | उनका वक्तव्य समाप्त हो चूका था और अगले वक्ता को आमंत्रित किया जा रहा था | किन्तु अगले वक्ता कोई प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार ही नहीं थे | जब वक्ता का नाम गौर से सुना तो देखा कि यह तो उन्ही के शहर के दूसरे बबन मित्र हैं | वे तो पिछले कुछ मिनटों से खाली कुर्सी छोड़ कर कहीं चले गये हैं | बहुत देर तक आवाज लगाने के बाद यह समझा गया कि वक्ता किसी शंका के समाधान हेतु कहीं चले गये हैं|

वेबीनार में नये वक्ता अपनी बात रख रहे थे | वे अबतक के वक्ताओं में ज्ञानी, विद्वान लग रहे थे | उनका वक्तव्य विद्वता पूर्ण था | सबने उनका वक्तव्य गौर से सुना और उनके बाद कोई वक्ता अपना वक्तव्य सूना रहे थे किन्तु उनकी आवाज ही लोगों तक पहुँच नहीं रही थी | उन्हें रोका भी नहीं जा सकता था | इसमें उनका अपमान हो सकता था | इसीलिए उन्हें वैसे ही चलने दिया गया | इस दौरान सबने यह समझा के फ़िल्म में जैसे इंटरवेल होता हैं | यह इंटरवेल का समय हैं | सभी लोग अपना-अपना इंटरवेल अपनी सुविधा नुसार पूरा करने लगे थे | बबन कहाँ खामोश बैठने वाले थे | उन्हें अपना ज्ञान बढ़ाना था | सो निकल पड़े कि इस वक्त सब लोग क्या कर रहे हैं | देखते-देखते उन्हें एक फोरेनवाली अध्यापिका दिखाई दी | उन्हें लगा कि इनसे मित्रता करनी चाहिए पर कैसे ? उन्होंने शोध लगा ही लिया कि पर्सनल चैट के जरिये बात की जा सकती हैं | बबन ने पर्सनल चैट के जरिये फोरेनवाली अध्यापिका से आखिर मित्रता कर ही ली थी | इस दौरान वक्ता का वक्तव समाप्त हो चूका था | अब अगले वक्ता को आमंत्रित किया गया था | उनकी आवाज तो आ रही थी किन्तु खाली कुर्सी ही दिखाई दे रही थी | जब उन्हें बताया गया कि उनकी आवाज आ रही हैं लेकिन वे नहीं दिखाई दे रहे हैं | तब उन्होंने कोशिश कि लेकिन वे अपना अदृश्य शरीर प्रकट नहीं कर पायें | जब संयोजक के द्वारा बार-बार उन्हें इस बारें में कहा गया तो वक्ता गुस्से में आ गये | उन्हें लगा कि मुझे इस वेबीनार में बुलाकर मेरा अपमान किया जा रहा हैं | कुछ देर उनकी ऐसी हरकतों को देखकर उनका दस साल का नन्ना बालक दौड़ते हुए आया और केमरे में कुछ किया और वक्ता दृश्यमान हो गये | सबने कहा कि वक्ता दिखाई दे रहे हैं | यह एक चमत्कार के समान था | वक्ता बड़े गर्व के साथ अपना वक्तव्य गर्व से भरा पूरा किया था | अंत में फीडबैक भेजा गया |जैसे ही फीडबैक भेजा गया सभी लोग उस पर टूट पड़े थे | जैसे कोई शादी में सुबह से भूखा हो और खाना मिलने पर टूट पड़ते हैं | सारा दृश्य कैसे सुंदर था | उधर आभार प्रदर्शन चल रहा था | ईधर लोग फीडबैक पर टूट पड़े हुए थे | जिन्होंने फीडबैक भरा वे बड़े खुश होकर वेबीनार की हलचल पर नजर रखने लगे थे | वेबीनार खत्म हो चूका था | सब लोग एक-एक से वेबीनार के कक्ष से बाहर जा चुके थे किन्तु कुछ अजनबी बबन वहीं बैठे थे कि अभी और कुछ बाकी होगा|

वेबीनार का सिलसिला लगातार बिना थके चलता रहा | यह उस दिन की बात हैं, जब बबन बहुत खुश थे | ख़ुशी का विशेष कारण था | बबन को पहली बार वेबीनार का ई-प्रमाणपत्र मिला था | उस दिन बबन ने ख़ुशी में एक रोटी ज्यादा खाली थी |

बबन अपने मित्रों को फोन पर बताने लगे थे कि उन्हें वेबीनार का ई-प्रमाणपत्र कैसे प्राप्त हुआ | बबन ने एक मित्र को बताते हुए कहा, “मित्र, वेबीनार खत्म होते ही एक फीडबैक अर्थात प्रतिपुष्टि प्रपत्र भेजा गया | उसे ऑनलाइन भरना था | सो भर दिया | और देखते हैं तो क्या ई-प्रमाण पत्र तुरंत इमेल पर आ पहुँचा |” बबन इस तकनीक से खुश थे | उन्होंने ठानली कि वे और वेबीनार करेंगे और देश का नाम सूरज की तरह रौशन करेंगे | ऐसा ही हुआ | रात और दिन उन्होंने धन को छोड़कर तन और मन से वेबीनार किया | मेहनत का फल मिलना ही था | बबन ने ११०१ वेबीनार किये और ११०१ ई-प्रमाणपत्र प्राप्त किये | बनन हर बार ई-प्रमाणपत्र की प्रिंट निकाल लेते थे | देखते ही देखते ई-प्रमाणपत्र के प्रिंट से तीन-चार सन्दुक भर गये | उसे अपने कार्य पर गर्व होने लगा था | वह महसूस करने लगा था कि ५५ और ५६ इंच छाती पर किसी और का कॉपीराइट होने के कारण उनका सीना ५७ इंच चौड़ा हो गया हैं | वह अपने आप को वेबीनार का धनवान व्यक्ति समझने लगा था | पर यह बात उसके सिवाय और किसी को पता ही नहीं थी | जबतक औरों को पता नहीं चलती तबतक इसका क्या फायदा था | बबन ई-प्रमाणपत्र से भरें सन्दुक दोनों हाथों में उठाकर किसी बहाने घुमने निकल पड़ते थे | अनलॉक के काल में वह सन्दुक लेकर एक दो बार शहर के चक्कर भी लगा चूका था | जिसने भी देखा उसने अपने दातों तले उँगलियों को कच्चा चबा डाला था | पर कहीं न कहीं बबन के भीतर उदासी छायी थी |

एक रात फिर से गूगल बाबा सपने में आये और बबन को मार्गदर्शन करने लगे | “ उठो बेटा यूजर बबन ! मैं तुम्हारी उदासी को जानता हूँ | तुम्हारी इस उपलब्धी को केवल तुम्हारा शहर जानता हैं पर विश्व नहीं जानता | जबतक सारा विश्व नहीं जान लेता तब तक तुम्हारी उदासी नहीं जायेगी | उसी उदासी को दूर करने के लिए मैं वापस आया हूँ | तुम्हे मेरी बेटी फेसबुक और बेटे व्हाट्स एप, ट्विटर से मिलना होगा | वो तुम्हारी मदद करेंगे | तुम्हे तुरंत विश्व के कोने-कोने तक पहुँचा देंगे | सुबह उठकर प्रो.बबन ने यही किया | गूगल बाबा के सारे बेटे और बेटियों से मित्रता करली और अपनी कहानी सुनाई | तब गूगल के बेटे और बेटियों ने बबन के ई-प्रमाणपत्र से भरे सन्दुक देखा और कहा, “बबन इसकी सारी सोफ्ट कॉपी हमें भेज दो | हम इसे सारी दुनिया में फैला देंगे |” बबन ने वैसे ही किया और देखते ही देखते बबन सारी दुनिया में लोकप्रिय हो गये | विश्व के कोने-कोने से बबन को तारीफों के भगौने, बकेट, टोकरे, ट्रक, बस और न जाने क्या-क्या भर-भर कर तारीफें भेजी जाने लगी थी | बबन को लगा की इस सारी दुनिया में वह अकेला हैं, जिसने इतने वेबीनार किये हैं, ई-प्रमाणपत्र प्राप्त किये हैं | पर यह ख़ुशी अधिक दिनों तक नहीं चलने वाली थी | उसने देखा कि इस तालाबंदी में हर कोई हजारों ई-प्रमाणपत्र का मालिक बन बैठा हैं | सबने अपने ई-प्रमाणपत्र बड़े-बड़े सन्दुक में भरकर रख दियें हैं | प्रो.बबन फिर से उदास हो गये थे |

फिर से एक रात गूगल बाबा सपने में आये और बबन से बोले, “ बेटा यूजर बबन, मैं तुम्हारी उदासी को समझ सकता हूँ | तुम्हे भी अब औरों की तरह वेबीनार लेना होगा |”