Pawan Granth - 17 in Hindi Mythological Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 17

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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 17


अध्याय ग्यारह

भगवान के दर्शन

अनुभव— दादी जी, आपने कहा है , हम भगवान के बारे में बहुत कम जान सकते हैं । तब क्या भगवान के दर्शन करना लोगों के लिए संभव है?

दादी जी— हॉं अनुभव । किंतु हमारी भौतिक ऑंखों से नहीं । जिसका प्रकार हमारी दुनिया में हमारे हाथ-पैर हैं, वैसे तो भगवान के नहीं हैं । किंतु जब भगवान हमारी नि:स्वार्थ सेवा भक्ति से प्रसन्न होते हैं, तो वे हमें स्वप्न में दर्शन दे सकते हैं । वे किसी भी रूप में दिखाई दे सकते हैं ।
हमारे इष्ट देव के रूप में भी दिखाई दे सकते है ।

अनुभव— क्या भगवान के दर्शन का कोई दूसरा मार्ग भी है?

दादी जी— भगवान के दर्शन का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है— हर वस्तु में उनकी उपस्थिति का अनुभव करना क्योंकि हर वस्तु भगवान का ही अंश है । योगी लोग सारे संसार को भगवान के विस्तार के रूप में देखते हैं । हर चीज़ भगवान का ही दूसरा रूप है । यह जानकर हम अपने चारों ओर भगवान के दर्शन कर सकते है । सारा विश्व भगवान का निवास स्थान है और हम भगवान के बच्चे हैं ।उनके साधन या निमित्त मात्र है । भगवान हमारा उपयोग अपने काम करने के लिए करते हैं । वे हम सब में है ।

एक कथा जो दर्शाती है कि भगवान हमारे साथ हर समय हैं , किंतु हम उन्हें अपनी ऑंखों से देख नहीं सकते ।

कहानी (14) भगवान तुम्हारे साथ हैं

एक आदमी धूम्रपान करना चाहता था ।वह अपने कोयलों को जलाने के लिए पड़ौसी के घर आग लेने गया ।
गहरी रात का समय था ।पड़ौसी गृहस्थ सोया हुआ था । लगातार देर तक दस्तक देने पर पड़ौसी अंत में जागा और नीचे आकर दरवाज़ा खोला ।

उस आदमी को देख कर पड़ौसी ने कहा—“ नमस्ते , क्या बात है ?”

आदमी ने उत्तर दिया कि क्या तुम अनुमान नहीं लगा सकते?
“तुम तो जानते हो, मुझे धूम्रपान का शौक़ है । मैं यहाँ अपने कोयले जलाने के लिए आग लेने आया हूँ ।”

पड़ौसी ने कहा—“हा , हा, हा, क्या ही बढ़िया पड़ौसी हो तुम । तुम ने इसी के लिए आँधी गहरी रात में यहाँ आने और इतनी दस्तक देने का कष्ट किया। क्यों? तुम्हारे पास तो पहले ही जलती हुई लालटेन है ।”

हम जिसकी खोज कर रहे हैं वह तो हमारे पास ही है, हमारे चारों ओर हैं ।हर चीज़ अलग-अलग रूप में भगवान ही है— सृष्टि की हर चीज़ उसके विशाल रूप के भीतर है ।

भगवान के दर्शन का दूसरा मार्ग है भक्ति और अच्छे गुणों का विकास करना । भगवान कृष्ण ने कहा है, यदि हमें मोह,स्वार्थ पूर्ण इच्छाएँ, घृणा, दुश्मनी या किसी के प्रति हिंसा का भाव नहीं है, तो हम भगवान की प्राप्ति और उनके दर्शन कर सकते हैं ।

अनुभव— क्या किसी ने कृष्ण को भगवान के रूप में देखा है ?

दादी जी— हॉ, बहुत से संतों ने, ऋषियों ने भगवान कृष्ण को विभिन्न रूपों में देखा है । माता यशोदा ने कृष्ण का दिव्य रूप देखा ।
अर्जुन ने भी कृष्ण को भगवान के रूप में देखना चाहा। चूँकि अर्जुन एक महान आत्मा और कृष्ण का बहुत प्रिय मित्र था, भगवान कृष्ण ने उसे अपने दिव्य रूप में दर्शन दिए । जो अर्जुन ने देखा , गीता के ग्यारहवे अध्याय में उसका वर्णन किया गया है । अर्जुन के द्वारा देखे गये भगवान के दिव्य रूप का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है—

उसने सारे देवी-देवताओं,संतों, ऋषियों, भगवान शिव, ब्रह्मा के साथ समस्त विश्व को कमल - पत्र में बैठे हुए भगवान श्री कृष्ण के शरीर में देखा । भगवान के असंख्य हाथ,मुख , पेट , चेहरे और नयन थे । उनके शरीर का न कोई आदि था न कोई अंत । उनके चारों ओर दिव्य ज्योति थी। अर्जुन ने अपने भाइयों (कौरवों) के साथ अनेक राजाओं, योद्धाओं को भी विनाश के लिए तीव्र गति से भगवान के भयावह मुख में प्रवेश करते देखा ।

भगवान श्री कृष्ण का यह दिव्य रूप रूप देखने में अत्यंत भयानक था, इसलिए अर्जुन ने भगवान कृष्ण के दर्शन शीर्ष मुकुट मण्डित, हाथों में शंख , चक्र , गदा और कमल लिए चतुर्भुज विष्णु के रूप में करना चाहा । भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपने चतुर्भुज विष्णु रूप में दर्शन दिए ।

उसके बाद श्री कृष्ण ने भयभीत अर्जुन को अपने सुंदर मानवीय रूप में दर्शन देकर आश्वस्त किया । उन्हें इस रूप में देख कर अर्जुन पुनः शांत और सहज हो गया ।

भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि वह अपने इस चतुर्भुज रूप में केवल भक्ति द्वारा ही देखे जा सकते है ।

अध्याय ग्यारह का सार — हम भगवान के दर्शन इन मनुष्य नेत्रों से नहीं कर सकते । हम उनके दर्शन केवल स्वप्न या समाधि में कर सकते हैं । हम उन्हें अपने चारों ओर देख सकते हैं
सारी सृष्टि, सृष्टा के शरीर को छोड़कर और कुछ नहीं है ।हम भगवान के दिव्य रूप के एक अंश और उनके केवल निमित्त है ।
अनुभव जब भी कोई परेशानी या घोर संकट हमारे सामने आता है तो भगवान किसी न किसी जीव के माध्यम से हमारी सहायता अवश्य करते हैं । यदि हम सच्चे मन से ,श्रद्धा से उनको याद करें ,प्रार्थना और उपासना करते हुए उन्हें याद करें ।

अनुभव अब आगे की बातें तुम्हें अगले अध्याय में,सरल भाषा में कल बताऊँगाी ।

क्रमशः ✍️