Mout Ka Khel - 9 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | मौत का खेल - भाग-9

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मौत का खेल - भाग-9

कब्र खोदी गई


डॉ. वीरानी की कब्र सभी लोगों के सामने थी। गड्ढा मिट्टी से भरा हुआ था। रायना और शरबतिया ने लोगों को बताया था कि उन्होंने कुछ घंटे पहले गड्ढा खुला हुआ देखा था और उसमें लाश नहीं थी।

“गड्ढा खोल कर देख लो, लाश है भी या नहीं?” दिनांक ठुकराल ने मशवरा दिया।

उसकी बात सभी को ठीक लगी। कुछ दूर पर पड़े फावड़े से गड्डे की मिट्टी हटाई जाने लगी। कुछ मिट्टी हटने के बाद लाश का कफन नजर आ गया। सब को यकीन हो गया कि लाश गड्ढे में मौजूद है। मिट्टी फिर से भरी जाने लगी। तभी दिनांक ठुकराल ने कहा, “मेरे ख्याल से एक बार लाश का चेहरा भी देख लेना चाहिए, ताकि किसी तरह का शुबहा न रहे।”

फावड़े से कुछ और मिट्टी हटाई गई। इसके बाद कफन हटाया गया तो उसके अंदर से डॉ. वरुण वीरानी का चेहरा नजर आ गया। ऐसा लगता था, जैसे वह गहरी नींद में सोया हुआ हो। उस का चेहरा देख कर रायना सिसक पड़ी। अबीर उसे ढांढस बंधाने लगा।

कफन फिर से बांध दिया गया। उसके बाद उस पर मिट्टी डाल दी गई। कब्र को जमीन के बराबर ही रखा गया था, ताकि देखने पर वह अलग सी नजर न आए। इस काम से फारिग होकर सभी वापस कोठी की तरफ चल दिए।

रास्ते में दिनांक ठुकराल ने राजेश शरबतिया से कहा, “वैसे मेरी राय यह है कि लाश का विधिवत अंतिम संस्कार कर दिया जाए। इस से किसी तरह का खतरा हमेशा के लिए टल जाएगा। वरना लाश कौन रखाता रहेगा।”

“बात तुम्हारी ठीक है।” राजेश शरबतिया ने कहा, “लेकिन लाश जलाए जाने पर उससे उठने वाली लपटें दूर से नजर आएंगी।”

“आप को दिक्कत हो रही है तो मैं कहीं और अंतिम संस्कार कर लूंगी।” रायना ने सख्त लहजे में कहा, “मुझे डॉ. वरुण की बॉडी चाहिए।”

उसकी इस बात पर शरबतिया घबरा कर ठुकराल की तरफ देखने लगा। ठुकराल ने उसे इशारों में कहा कि वह समझाता है रायना को।

रास्ते में कोई कुछ नहीं बोला। कोठी पर पहुंचने के बाद ठुकराल ने रायना से कहा, “रायना... हम सब तुम्हारे दुख में बराबर के शरीक हैं। डॉ. वरुण वीरानी की भरपाई कोई नहीं कर सकता है।” कुछ देर खामोश रहने के बाद ठुकराल ने आगे कहा, “यह भी सच है कि डॉ. वीरानी की यहां किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। ऐसे में उन की मौत महज हादसा ही है। अगर उनकी मौत की बात बाहर जाती है तो हम सब मुश्किल में पड़ जाएंगे। दूसरे इससे कुछ हासिल भी नहीं होना है।”

बाकी दोस्तों ने भी अपने-अपने तरीके से रायना को समझाया। नतीजे में रायना खामोश हो गई। वह किसी का विरोध नहीं कर सकी। वैसे भी इनमें से बहुत से ऐसे थे, जिनसे डॉ. वीरानी की बीसियों साल की दोस्ती थी।

कोठी पर कुछ देर बैठने के बाद धीरे-धीरे सभी रवाना हो गए। कुछ देर बाद रायना भी जाने के लिए उठ खड़ी हुई। सदर दरवाजे से निकलते हुए उसने कहा, “मैं कल फिर आऊंगी।”

रायना के जाने के बाद राजेश शरबतिया ने सुकून की सांस ली।

'बॉर्बी डॉल' की तलाश


सार्जेंट सलीम ने अपने कमरे पर पहुंच कर लिफाफा खोला। उसमें एक युवक और एक लड़की की तस्वीर थी। लड़की की तस्वीर देख कर उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं। ऐसा लगता था यह तस्वीर किसी बार्बी डॉल की हो! थोड़ा लंबे से चेहरे पर छोटी सी नाक थी और खूब बड़ी-बड़ी सी आंखें थीं। चेहरे की रंगत गुलाबी थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह सचमुच किसी जीती-जागती लड़की की तस्वीर है।

उसने कई बार तस्वीर देखने के बाद उसे पलट दिया। उसके पीछे लड़की का नाम रायना लिखा हुआ था। उसके नीचे पता था। इसके बाद सलीम ने मर्द की तस्वीर पर भी एक नजर डाली। उसके पीछे भी नाम और एड्रेस दर्ज था।

दोनों तस्वीरों को उसने लिफाफे में रख लिया। कपड़े बदले और लिफाफे को कोट की अंदरूनी जेब में रखने के बाद बाहर आ गया। रायना को इंप्रेस करने के लिए उसने घोस्ट से जाने का फैसला किया था। वह पार्किंग से घोस्ट लेकर निकल पड़ा। सबसे पहले उसने रायना के घर जाने का फैसला किया।

आधे घंटे बाद वह रायना के पते पर पहुंच गया। उसने उसकी कोठी के बाहर कार रोकी और बाहर निकल आया। यह एक बड़ी सी कोठी थी। वह गेट के बाहर काफी देर तक बेल बजाता रहा, लेकिन कोई भी बाहर नहीं आया। तभी उसकी नजर अंदर दरवाजे पर पड़ी। वहां ताला लटक रहा था। सार्जेंट सलीम काफी निराश हुआ।

सार्जेंट सलीम आकर कार में बैठ गया और वह आगे बढ़ गई। अब वह दूसरे पते पर रवाना हो गया। यह पता एक आलीशान कोठी का निकला। उसने कार सड़क के दूसरी तरफ रोक दी। वह अंदर का जायजा लेने लगा। वह सोचने लगा कि किस नाम और काम से मुलाकात की जाए। तभी कोठी का बड़ा सा गेट खुला और एक विदेशी कार बाहर निकल आई। उसने कार ड्राइव कर रहे युवक को पहचान लिया था। वह फोटो वाला अबीर ही था।

सार्जेंट सलीम ने कुछ दूर जा कर घोस्ट को टर्न किया और एक निश्चित दूरी बना कर उसका पीछा करने लगा। कार कई सड़कों से होते हुए एक दूसरी सड़क पर मुड़ गई। सलीम बराबर कार के पीछे लगा हुआ था।

कुछ आगे जाने के बाद कार शेक्सपियर कैफे के सामने रुक गई। सलीम ने भी अपनी कार पार्क की और बाहर निकल आया। अबीर उसे कहीं नजर नहीं आया। वह कैफे के अंदर पहुंचा तो वहां उस वक्त ज्यादा लोग नहीं थे।

अबीर एक सीट पर जा कर बैठ गया। उस पर पहले से एक लड़की बैठी हुई थी। वह शायद उसका ही इंतजार कर रही थी। सार्जेंट सलीम पास पड़ी एक खाली मेज की तरफ चल दिया। उस ने लड़की का चेहरा देखा तो तुंरत यू टर्न ले लिया। वह लड़की शनाया थी। उससे थर्टी फर्स्ट नाइट की पार्टी में सार्जेंट सलीम मिल चुका था।

सार्जेंट सलीम सीधे वाशरूम चला गया। वहां पहुंच कर उसने अपने नथुनों में स्प्रिंग डाल ली। इस से उसकी नाक थोड़ा चौड़ी हो गई थी। इसके अलावा होठों पर बून स्टाइल की मूछें भी चिपका लीं। यह सब बदलाव करने के बाद उसने खुद को आइने में देखा। उसकी शक्ल काफी बदल गई थी। उसने कोट उलट कर पहन लिया और बाहर आ गया। वह आराम से टहलता हुआ शनाया के पास वाली मेज पर जा कर बैठ गया।

शनाया और उस युवक में बहस हो रही थी। शनाया उस से कह रही थी, “तुम झूठ बोल रहे हो। तुम्हारी तबियत खराब नहीं थी। मैंने तुम्हारी कोठी पर भी कॉल की थी। वहां से पता चला था कि तुम घर पर नहीं हो।”

“यकीन करो.... मेरी तबयत ठीक नहीं थी। मैं एक डॉक्टर दोस्त के यहां खुद को दिखाने चला गया था।” अबीर ने कहा।

“झूठ मत बोलो अबीर!” तुम पूरी रात घर से गायब थे। मैंने सब पता लगा लिया है। तुम्हें अगर मेरे साथ न्यू इयर सेलिब्रेट नहीं करना था तो मना कर देते। कम से कम मैं इतनी सर्दी में ठिठुरने तो न जाती।”

“देखो न बेबी मैं तुम से मिलने आया न!” अबीर ने कहा।

“क्या फायदा... मेरी न्यू इयर पार्टी तो खराब हो गई न।”

“तुम नाराज मत हो बेबी... मैं नेक्स्ट सनडे तुम्हें एक आलीशान पार्टी दूंगा। उसमें मैं और सिर्फ तुम रहोगी। तीसरा कोई नहीं।”

इस बात पर लड़की खुश हो गई। उस ने कहा “तुम बहुत क्यूट हो शोना बाबू।”

तभी अबीर के फोन की घंटी बजी। फोन पर नाम देखते ही वह उठ खड़ा हुआ। उसने कहा, “यार मुझे जाना होगा… एक इमरजेंसी मीटिंग है।”

यह कहते हुए अबीर तेजी से बाहर निकल गया। वह शनाया का जवाब तक सुनने के लिए नहीं रुका। कैफे से निकलते-निकलते उस ने फोन पिक किया और तेजी से पार्किंग की तरफ चला गया। सलीम भी बाहर आ गया था। हालांकि उसने बाहर निकलने में कोई तेजी नहीं दिखाई थी, क्योंकि वह किसी तरह का शक पैदा नहीं करना चाहता था।

बाहर आने पर उस ने अबीर की कार को पार्किंग से निकलते देखा। वह खड़ा होकर उसकी दिशा देखने लगा। उसके बाद वह भी घोस्ट पर सवार हो गया सड़क पर आ गया। तीन सेकेंड में ही घोस्ट सौ की स्पीड पर दौड़ने लगी। कुछ मिनट बाद ही उसने अबीर की कार को पा लिया।

अबीर की कार की रफ्तार काफी तेज थी। कुछ देर बाद उसकी रफ्तार धीमी होती गई और वह होटल सिनेरियो की तरफ मुड़ गई। सलीम कार को कुछ दूर रोके खड़ा रहा। कुछ देर बाद वह घोस्ट को पार्किंग की तरफ लेकर चला गया। कार से निकलते-निकलते उसने अपना रेडीमेड मेकअप हटा लिया था।

वहां से वह सीधे होटल के डॉयनिंग हाल की तरफ गया। उसे उम्मीद थी कि अबीर वहीं मिलेगा। उस का अंदाजा सही निकला। वह एक कुर्सी पर बैठा हुआ था। उस के सामने बैठी युवती पर सलीम की निगाहें जम कर रह गईं। यकीनन उस ने ऐसी खूबसूरत लड़की कभी नहीं देखी थी। सलीम को लगा वह सुधबुध खो बैठेगा। उस ने खुद को संभाला और पास की एक मेज पर बैठ गया। सलीम को यकीन नहीं था कि रायना से उस की इस तरह से अचानक मुलाकात हो जाएगी।

रायना अबीर से कह रही थी, “मैं एक परेशानी में फंस गई हूं। मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।”

“कैसी परेशानी डार्लिंग!” अबीर ने रायना का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, “परेशान मत हो... मुझे बताओ क्या बात है?”

रायना ने कहा, “मुझे डॉ. वरुण वीरानी की लाश चाहिए। वरना मैं लोगों को क्या जवाब दूंगी कि वह कहां चले गए?”

“लेकिन तुम राजी क्यों हो गई थीं उस रात उसे वहीं दफ्न कर देने के लिए?” अबीर ने कहा।

“सब कुछ बहुत अप्रत्याशित तौर पर हुआ था। उस वक्त मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। फिर लोगों का दबाव भी था। मैं नहीं बोल सकी।” रायना ने कहा।

“आज भी शरबतिया हाउस में तुम ने इस पर ज्यादा जोर नहीं दिया।” अबीर ने कहा।

“वहां कोई भी मेरी सुनने को तैयार नहीं था। मैं क्या करती।” रायना ने तेज आवाज में कहा।

“कुछ करते हैं।” अबीर ने कहा। इसके बाद वह उठ खड़ा हुआ। रायना भी खड़ी हो गई। उस ने रायना का हाथ पकड़ा और उसे लेकर डायनिंग हाल से ऊपर कमरों की तरफ जाती सीढ़ियां चढ़ने लगा। सलीम ने ऊपर जाने के लिए लिफ्ट का इस्तेमाल किया था। जब वह ऊपर पहुंचा तो अबीर और रायना को एक कमरे में जाते हुए देखा।

सलीम के कान गर्म हो रहे थे।

*** * ***


डॉ. वरुण वीरानी की लाश का क्या हुआ?
क्या डॉ. वरुण वीरानी किसी साजिश का शिकार हुए थे?

इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़िए कुमार रहमान का जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’ का अगला भाग...