girl's right in Hindi Women Focused by Neelima Sharrma Nivia books and stories PDF | लड़की का हक़

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लड़की का हक़

क्या कहूँ ?अब तो थक गयी हूँ मैं . जिस घर से ब्याही जाती हैं ना लड़कियाँ वहाँ से डोली उठते ही घर पराया हो जाता हैं । जिस घर पहुँचती हैं डोली वहाँ जाते ही कह दिया जाता हैं अपने घर से क्या लायी ?

एक नारी की बिसात क्या हैं? बस शतरंज का खेल हैं सब अपनी अपनी चाले चलते हैं कभी इधर वाले जीत जाते हैं कभी उधर वाले . पर दोनों ही नारी को उधर वाली समझते हैं अपने पाले की नही ।
सारा दिन मरती खपती हूँ तो घर का सारा इंतजाम सही से चलता हैं ।एक दिन की छुट्टी भी नही मिलती । मायके वाले जब तब आहें भरते हैं उनको लगता है रानी बिटिया राज कर रही उनकी जब दो घण्टे को कभी उनके घर जाती हूँ।

मायके में भाई का एक ही आलाप रहता कि तुम तो सही से रह रही हो अपने घर में यहाँ तुम्हारे बूढ़े माँ- बाबा को हम देखे, न कही आने के ना जाने के । अब कोई पूछे जब बाबा का मकान जमीन कब्जाई तो पूछा था मुझसे कि तुमने कैसे बच्चो की फीस का इंतजाम किया था तुम्हारी तो कमाई भी मुझसे दस गुना ज्यादा है ।
इधर ससुराल में सब कह देते हैं बड़े बाप की बेटी हैं ५ ० ० रूपये भी यूँ देते हैं जैसे अहसान कर रहे हो । लडकियों का भी हक हैं कि नही जमीन जायदाद में .

अब किदर की सोचे . मैं न इधर कुछ कह सकूँ न उधर , एक बार भाई के सामने यूँ ही कह दिया था कि बाबा का ख्याल रखा कर ......... यूँ गाली गलोज /मारपीट न किया करो तो उसने ऐसी ऐसी सुनाई कि जैसे किसी ने कान में गर्म सीसा उड़ेल दिया हो । उस पर पैसे का नशा ऐसे सर चढ़ कर बोलता हैं जैसे देसी दारू हो ......बस एक दम से कह दिया जा तेरे से सारे रिश्ते नाते ख़तम न तुम अब से हमारी न हम तेरे कुछ ...

.अब डर लगने लगा तब से कल मेरे बेटी की शादी होगी मामा नही आया तो सब कह देंगे लो बड़े बाप का बेटा हैं आया नही ............. भात लेके ।मामा तो आधा ब्याह करते हमारी तरफ । सौ बात मुझे सुन ने को मिल जाएगी ।

अब आदमी भी तब तक अपने होवे जब तक सब उनके मुताबिक हो \ जरा भी -इधेर उधर हो जाये तो जूते मारने को दौड़ते हैं कुछ तो अप्सरा जैसे बीबी के भी माँ- बाप भीको ऐसे गाली सुना लेते हैं कि हम स्त्री जात की आँखे पानी पानी हो जाए ।

यह बात सिर्फ हमारे तबके की नही पढ़े लिखे लोगो में भी भाई भाभी आजकल कितना पूछते हैं यह भाभियाँ भी अपने मायके की उतनी ही सताई होती हैं फिर भी जब बात रिश्तो की आती हैं एक अजीब सी खुमारी चढ़ जाती हैं सब पर अपने कुछ होने की .......

अब थक गयी हूँ आज मायके से फिर भाई का संदेसा आया हैं या तो बाबा से सारी जमीन के कागज पर दस्तखत करा दे या फिर तेरा मेरा रिश्ता ख़तम .अब आप ही बताओ क्या करू ..?

माँ- बाबा ने कोण सा मेरी सुध ली कभी ? बस ब्याह कर दिया और कह दिया अब तेरी किस्मत और तेरे सुख दुःख तेरे हाथ की लकीरे ....... मैं कहाँ हूँ / अच्छा हुआ न मेरी एक ही ओलाद हैं वो भी बिटिया अब जायदाद में किसी से झगडा नही करेगा अब तो सरकार को कहना चाहिए बच्चा हो बस एक , रिश्तो को न लगे सेंक . ...............

आज सुबह काम वाली किरण के रोते हुए दिल की बयानी

यह स्टेटस इंडरप्रस्थ भारती के oct 2014 अंक में प्रकाशित हुआ था