Taapuon par picnic - 43 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | टापुओं पर पिकनिक - 43

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टापुओं पर पिकनिक - 43

दरवाज़ा खोल कर नौकरानी भीतर आई और आगोश की मम्मी से बोली- मम्मी साहब, बाहर कोई है!
- कौन है, तूने पूछा नहीं? मम्मी ने कुछ सचेत होकर कहा।
- एक लड़की है और उसके साथ एक साहब हैं, शायद उसके पिताजी होंगे। लड़की बोली।
ये सुनते ही मम्मी उठ कर दरवाजे तक आईं और उनकी ओर उत्सुकता से देखती हुई उन्हें भीतर आने और बैठने का न्यौता देने लगीं।
पर वो दोनों ही कुछ घबराए हुए, बल्कि हड़बड़ाए हुए से थे। दोनों ने हाथ जोड़ कर मम्मी को नमस्कार किया पर वो बैठे नहीं।
लड़की बोली- आंटी आगोश नहीं है घर में...?
- अच्छा- अच्छा... आगोश से मिलना है.. मम्मी कुछ शंका से उन्हें देखती हुई जल्दी से भीतर आगोश के कमरे में गईं और उसे ज़ोर से झिंझोड़ते हुए बोलीं- आगोश, ... आगोश ! देखतो बेटा कौन है बाहर... कोई लड़की है.. जल्दी से आ, शायद उसके पिताजी भी हैं उसके साथ।
ये सुनते ही आगोश कूद कर बिस्तर से नीचे उतरा और हाथ से ही बालों को ठीक करता हुआ मम्मी के पीछे- पीछे बाहर आया।
बाहर मधुरिमा और उसके पापा को देख कर आगोश एकदम से उत्साहित होकर मम्मी से उनका परिचय कराने लगा, बोला- मॉम, ये मधुरिमा है.. और ये पापा। नमस्ते अंकल।
- अच्छा - अच्छा, कहती मम्मी कुछ मुस्करा कर उन्हें बैठने का इशारा करने लगीं। पर मधुरिमा ध्यान न देते हुए एकदम से हड़बड़ा कर बोली- आगोश ग़ज़ब हो गया।
- ऐसा क्या हुआ? कहते आगोश का चेहरा भय से पीला पड़ गया।
- आगोश, रात को घर में चोरी हो गई। मधुरिमा डर से कांपने लगी। बोलते- बोलते उसका गला रूंध गया। वो पल भर को रुकी तो उसके पिता बोलने लगे- बेटा, हमें तो कुछ पता नहीं था, रात को दो लोग आए और तुम्हारा नाम लेकर चाबी मांगने लगे.. उन्होंने ये भी कहा कि तुम भी आ रहे हो, वो तुम्हारे रिलेटिव ही हैं। हमने चाबी दे दी।
उन्होंने कार बाहर खड़ी कर दी और भीतर तुम्हारे कमरे में चले गए। मैंने तो उनसे ये भी पूछा कि क्या आप ही यहां रहने के लिए आए हैं? वो बोले- जी, मैं ही रहूंगा, ये मेरे ऑफिस का आदमी है...
आगोश ने माथा पकड़ लिया।
मम्मी भी घबरा गईं।
मधुरिमा बोली- पापा ने तो उनसे ये भी कहा कि पानी- वानी या और किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो बताएं, पर वो बोले, चिंता न करें, गाड़ी में सब है ही... और थोड़ी देर में आगोश भी आने वाला है।
पापा भीतर आ गए।
पर सुबह उठ कर देखा तो वहां कोई नहीं था... तुम्हारा सामान भी नहीं.. बिल्कुल सब कुछ ले गए, और दरवाज़ा तक खुला पड़ा हुआ छोड़ गए।
- ओह!
- फ़िर? मम्मी अचरज से बोलीं।
मधुरिमा ही बोली- पापा तो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की सोच ही रहे थे पर मैंने कहा एक बार आगोश को पहले बताएं तो सही। हम तो यही सोच रहे थे कि तुम भी उनके साथ हो।
आगोश सपाट से चेहरे से न में सिर हिलाता रहा। और किंकर्तव्यविमूढ़ होकर बैठ गया।
मधुरिमा उन लोगों को सब कुछ बता देने के बाद अब कुछ संयत थी।
आगोश की मम्मी ने ऊंची आवाज में नौकरानी से उन लोगों के लिए पानी लाने को कहा।
- कार कौन सी थी? आगोश ने पूछा।
- बेटा, मैंने तो ध्यान से देखा भी नहीं, रात का समय था पर हां हल्के बदामी से रंग की कार थी। एक व्यक्ति तो लगभग पैंतीस साल का होगा दूसरा लड़का सा ही था। चेहरे- मोहरे से अच्छे घर के ही लग रहे थे।
मधुरिमा बोली- मैंने तो देखा भी नहीं था, पर जब पापा ने मुझे बताया तो मैं एक बार तुम्हें फ़ोन ज़रूर कर रही थी। फ़िर मिला नहीं तो मैंने सोचा तुम ड्राइव कर रहे होगे, पापा बोले कि तुम भी आ ही रहे हो। तो मैंने ध्यान नहीं दिया।
- कौन लोग हो सकते हैं? मम्मी कुछ शंकित सी बोलीं।
- अंकल कह रहे हैं न कि उन लोगों ने मेरे आने की बात भी कही, वहां से चाबी मांगी, मतलब कोई न कोई सब जानकारी रखने वाला आदमी ही होगा... नोन टू द फ़ैमिली! आगोश ने यह कर रहस्यमय ढंग से मम्मी की ओर देखा।
लड़की पानी लेकर आ गई थी। मम्मी ने उसे चाय बना लेने को भी कहा।
- बहन जी, तकलीफ़ मत कीजिए, ये वक्त वैसे भी कोई बैठ कर चाय पीने का नहीं है.. क्या करें आगोश बेटा? मधुरिमा के पापा ने कहा।
वो फ़िर बोले- अगर तुम्हें कोई सोर्स समझ में आता है तो ट्रेस करो, नहीं तो पुलिस कंप्लेंट कराना ठीक रहेगा। वो लगता है, ख़ाली बैग्स इस तरह लेकर आए थे कि एक- एक चीज़ उठा ले गए हैं।
मधुरिमा ने जैसे ही कहा कि, तुम्हारा लैपटॉप और टैबलेट तक ले गए, उसके पिता गौर से मधुरिमा की ओर देखने लगे। मधुरिमा कुछ सकपका गई।
- मुझे तो लगता है कि उनके साथ कोई पिकअप- वैन भी होगी, इतना सामान गाड़ी में तो नहीं जा सकता। वहां से फर्नीचर तक गायब है। पापा बोले।
आगोश एकदम पस्त सा होकर बैठ गया।
- कौन हो सकता है आगोश? मधुरिमा ने एक बार फ़िर कहा, तो आगोश सिर हिला कर सोच में डूब गया।
- क्या करें बेटा? पापा बोले- बोलो, अगर रिपोर्ट करानी है तो चलें, नहीं तो हम चलें, हमें इजाज़त दो...
- आप चाय तो पीजिए, आ रही है। मम्मी ने कहा।
तब तक सभी को कुछ और सोच पाने का मौक़ा भी मिल गया।
- लड़का थोड़ा गंजा सा... बाल्ड था क्या? यकायक आगोश बोला।
पापा ने नकार में सिर हिलाया, मानो कहना चाहते हों कि कह नहीं सकते।
- जस्ट ए मिनट प्लीज़... कह कर आगोश उठकर भीतर गया। वह अंदर जाकर कपड़े बदलने लगा ताकि वह भी उन लोगों के साथ वहां जा सके।
- वैसे बहन जी, आपके वो गेस्ट कब आने वाले थे जिनके लिए रूम लिया है।
मम्मी से मधुरिमा के पापा ने जब ये सवाल पूछा तो मम्मी ने शायद इस पर ध्यान ही नहीं दिया क्योंकि तब तक चाय की ट्रे लिए नौकरानी भीतर दाख़िल हो चुकी थी। मम्मी कप उठा कर मधुरिमा और उसके पापा को देने में व्यस्त हो गईं।
मधुरिमा ने राहत की सांस ली कि मम्मी ने उसके पापा का ये सवाल सुना ही नहीं, क्योंकि वह जानती थी कि आगोश का कोई रिलेटिव कहीं से आने वाला नहीं था।
आगोश की मम्मी के बार - बार चाय और नाश्ते के आग्रह करने तथा आगोश के भीतर से कपड़े बदल कर इत्मीनान से वापस आने से मधुरिमा के पिता ये समझ गए कि ये लोग शायद पुलिस रिपोर्ट कराने के इच्छुक नहीं हैं। हो सकता है कि ये अपने स्तर पर ही कोई जानकारी या तहकीकात करें, या फिर इन्हें किसी परिचित व्यक्ति पर संदेह ही हो।
वो इत्मीनान से चाय पीने लगे। चाय के साथ परोसे गए कोफ्ते काफ़ी लज्जतदार थे। शायद इनमें मटर भी थी।