Kanhar Pad mal- Pad- based on classic music - 26 in Hindi Spiritual Stories by ramgopal bhavuk books and stories PDF | कन्‍हर पद माल - शास्त्रीय रागों पर आधारित पद - 26

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कन्‍हर पद माल - शास्त्रीय रागों पर आधारित पद - 26

कन्‍हर पद माल- शास्त्रीय रागों पर आधारित पद 26

सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज कृत

(शास्त्रीय रागों पर आधारित पद.)

हस्‍त‍लिखित पाण्‍डुलिपि सन् 1852 ई.

सर्वाधिकार सुरक्षित--

1 परमहंस मस्‍तराम गौरीशंकर सत्‍संग समिति

(डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)

2 श्री श्री 1008 श्री गुरू कन्‍हर दास जी सार्वजनिक

लोकन्‍यास विकास समिति तपोभूमि कालिन्‍द्री, पिछोर।

सम्‍पादक- रामगोपाल ‘भावुक’

सह सम्‍पादक- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्‍त’ राधेश्‍याम पटसारिया राजू

परामर्श- राजनारायण बोहरे

संपर्कः -कमलेश्वर कॉलोनी, (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर (म0प्र0)

पिन- 475110 मो0 9425715707 tiwariramgopal5@gmail.com

प्रकाशन तिथि- 1 चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी सम्‍वत् 2045

श्री खेमराज जी रसाल द्वारा‘’कन्‍हर सागर’’ (डबरा) भवभूति नगर (म.प्र.)

2 चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी सम्‍वत् 2054

सम्‍पादकीय--

परमहंस मस्‍तराम गौरी शंकर बाबा के सानिध्‍य में बैठने का यह प्रतिफल हमें आनन्‍द विभोर कर रहा है।

पंचमहल की माटी को सुवासित करने जन-जन की बोली पंचमहली को हिन्‍दी साहित्‍य में स्‍थान दिलाने, संस्‍कृत के महाकवि भवभूति की कर्मभूमि पर सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज सम्‍वत् 1831 में ग्‍वालियर जिले की भाण्‍डेर तहसील के सेंथरी ग्राम के मुदगल परिवार में जन्‍मे।

सन्‍त श्री कन्‍हरदास जी के जीवन चरित्र के संबंध में जन-जन से मुखरित तथ्‍यों के आधार पर श्री खेमराज जी रसाल द्वारा ‘’कन्‍हर सागर’’ में पर्याप्‍त स्‍थान दिया गया है। श्री वजेश कुदरिया से प्राप्‍त संत श्री कन्‍हर दास जी के जीवन चरित्र के बारे में उनके शिष्‍य संत श्री मनहर दास जी द्वारा लिखित प्रति सबसे अधिक प्रामाणिक दस्‍तावेज है उसे ही पदमाल से पहले प्रस्‍तुत कर रहे हैं।

कन्‍हर पदमाल के पदों की संख्‍या 1052 दी गई है लेकिन उनके कुल पदों की संख्‍या का प्रमाण--

सवा सहस रच दई पदमाला।

कृपा करी दशरथ के लाला।।

के आधार पर 1250 है। हमें कुल 1052 पद ही प्राप्‍त हो पाये हैं। स्‍व. श्री दयाराम कानूनगो से प्राप्‍त प्रति से 145 पद श्री रसाल जी द्वारा एवं मुक्‍त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्‍कृतिक समिति द्वारा श्री नरेन्‍द्र उत्‍सुक के सम्‍पादन में पंच महल की माटी के बारह पदों सहित शास्‍त्रीय संगीत की धरोहर

तीस रागनी राग छ:, रवि पदमाला ग्रन्थ।

गुरू कन्‍हर पर निज कृपा, करी जानकी कन्‍थ।।

विज्ञजनों को समर्पित करने एवं मर्यादा पुरूषोत्‍तम श्री राम के जीवन की झांकी की लीला पुरूषोत्‍तम श्री कृष्‍ण का जीवन झांकी से साम्‍य उपस्यित करने में बाबा कन्‍हर दास जी पूरी तरह सफल रहे हैं।

डॉ0 नीलिमा शर्मा जी जीवाजी विश्व विद्यालय ग्वालियर से शास्‍त्रीय संगीत की धरोहर कन्‍हर पदमाल पर शोध कर चुकी हैं।

सन्‍त प्रवर श्री श्री 1008 श्री कन्‍हर दास जी महाराज का निर्वाण एक सौ आठ वर्ष की वय में चैत्र शुक्‍ल, श्री रामनवमी रविवार सम्‍वत् 1939 को पिछोर में हुआ।

नगर निगम संग्रहालय ग्‍वालियर में श्री कन्‍हर दास पदमाल की पाण्‍डुलिपि सुरक्षित वसीयत स्‍वरूप रखी हुई है। श्री प्रवीण भारद्वाज, पंकज एडवोकेट ग्‍वालियर द्वारा पाण्‍डुलिपि की फोटो प्रति उपलबध कराने में तथा परम सन्‍तों के छाया चित्र उपलबध कराने में श्री महन्‍त चन्‍दन दास छोटी समाधि प्रेमपुरा पिछोर ने जो सहयोग दिया है इसके लिए हम उनका हृदय से आभार मानते हैं।।

पंचमहली बोली का मैं अपने आपको सबसे पहला कवि, कथाकार मानता था लेकिन कन्‍हर साहित्‍य ने मेरा यह मोह भंग कर दिया है।

इस सत् कार्य में मित्रों का भरपूर सहयोग मिला है उनका हम हृदय से आभार मानते हैं। प्रयास के बावजूद प्रकाशन में जो त्रुटियां रह गई हैं उसके लिए हम सुधी पाठकों से क्षमा चाहेंगे।

रामगोपाल भावुक

दिनांक 16-4-97 श्री राम नवमी सम्‍पादक

राग – अलय्या

कासीपुरी मुकित फलदानी।।

मन वांछित सब देत जाइ अरू, ध्‍यान धरत भक्‍त मुनि ज्ञानी।।

निकट गंग सुभ निरमल धारा, परसत पाप परानी।।

उमा सहित सिव हरि प्रिय राजत, कहत निगम वर बानी।।

सुर अरू असुर त्रसत सब जानैं, हृदय राखि विषसानी।।

विद्या उदित भानु मन सोभित, सेस महेश बखानी।।

अठारह षट श्रुति चार पुरान, रहत सबै सुख मानी।।

कन्‍हर सेवत रहत सदाई, पावतपद निर्वानी।।905।।

सिव समान दानी नहिं कोई।।

दीनदयाल रहत दीननि पर, देत सबै रूचि जोई।।

जे कोऊ सरणागत क‍हि आवत, ताकी भय सब खोई।।

मेरे मन अभिलाष यही है, राम चरन रति होई।।

तुम्‍हारौ नमा लेत भ्रम भाजत, कीजै कृपा नाथ अब सोई।।

कन्‍हर दीन मलीन हीन मति, देउ सुबुद्धि कृपा करि मोई।।906।।

राग – भैरवी

देव महादेव बड़े हैं दानी।।

पारवती पति है सब लायक, देत सबै सब उर रूचि ठानी।।

सदा दयाल रहत दासनि पर, अभय करत सुख मानी।।

तुम्‍ह समान नहिं कोउ उपकारी, देवनि दुख हरौ हर आनी।।

दीन जानि जन कृपा करत हौ, हेरत अघ के पुंज नसानी।।

कन्‍हर राम चरन रति मांगत, कीजै कृपा नाथ जन जानी।।907।।

राग – देस, ताल – कव्‍वाली

सिव प्रिय राम सदा मन भाये।।

लिंग थापि विधिवत पूजा करि, सुंदर नाम धराये।।

सिव समान प्रिय और न कोई, रामनाथ कहि गाये।।

कनहर जे कोऊ ध्‍यान धरत हैं, मुक्ति रूप फल पाये।।908।।

जो मन माहिं बसौ जी झारी वारौ।।

बैजनाथ सुभ नाम मनोहर, लागत सबकौं प्‍यारौ।।

राजत सघन मध्‍य वन सुंदर, नाम लेत अघ टारौ।।

वरदायक दैवे सब लायक, मैटत है दुख भारौ।।

भैरव सदा रहैं रखवारे, निसि दिन सजग सम्‍हारौ।।

कन्‍हर गंगा जल प्रिय लागत, लसत सीस पर धारौ।।909।।

ओमकार वर नाम प्रकासी।।

निकट नर्मदा लसत मनोहर, राजत शिव अविनासी।।

देत अष्‍ट नव सिद्धि कृपा करि, सरनागत जो आसी।।

कन्‍हर गंगा आनि चढ़ावत, मुक्ति रूप फल पासी।।910।।

सिव समान नहिं कोउ उपकारी।।

सरनागत पर कृपा करत हैं, मेटत भव भ्रम भारी।।

पाइ पदम मुंडनि की माला, गौर अंग त्रिपुरारी।।

बाघम्‍बर आसन पर राजत, भैरव संग रहत भयहारी।।

भूषन ब्‍याल इन्‍दु दवि सिर पर, नील कंठ छवि प्‍यारी।।

कन्‍हर विनय करत कर जोरौ, भक्ति देउ कामारी।।911।।

सिव समान दूजौ नहिं दानी।।

जारि कै मार थपौ फिरि जग में, सुनि रति आरति बानी।।

पारवती पति हैं सब लायक, देत सबै मन मानी।।।

ऐसौ समरथ और न कोई, निगम नेति कहि गानी।।

जो गति अगम मुनिनि कौं दुर्लभ, करत सुगम सुभ जानी।।

कन्‍हर सेवन सुलभ सदा ही हेरत, जग अघ पुंज नसानी।।912।।

राग – पीलू

सिव प्रिय विष्‍नु सदा मन मानी ।।

पुरी कांची सोभित सुंदर, उपमा वर कवि गानी।।

ठाकुर श्री बृजराज विराजत, महिमा अमित बखानी।।

कन्‍हर के मन बसौ सदा ही, जुगल ध्‍यान उर आनी।।913।।

सुमिरन करि कैलासपती कौ।।

पारवती अरधंग विराजति, भाल चंद्र मानी कौ।।

बाघम्‍बर आसन पर राजत, भेष लसै जोगी कौ।।

भस्‍म अंग सिर गंग विराजति, नील कंठ मनि ही कौ।।

वाहन वृषभ त्रिसूल सुहायौ, ध्‍यान धरत सिय पिय कौ।।

कन्‍हर दीन सरन भयौ आई, मैटि देउ भ्रम जी कौ।।914।।

राग- भोपाली

जन मन सिव सरूप अति भायौ।।

उमा सहित सोभित तन सुंदर, सेस अधिक छबि लायौ।।

तनय तासु गज वदन विराजत, दरस होत सुख पायौ।।

निकट रहत नंदीगन भैरव, लखि कन्‍हर उर ल्यायौ।।915।।

राग – आसावरी

वेद विदित गुन सिव स्तुति गाजै।।

भूषन ब्‍याल लसत तन सुंदर, उपमा कहि कवि लाजै।

वरदायक हैं वे सब लायक, नाम लेत भय भाजै।।

निकट कुमार षड़ानन राजत, अभय करत सब काजै।।

नंदीगन गननायक सुंदर, भैरव सुभ गल गाजै।।

कन्‍हर जे कोउ ध्‍यान धरत है, तिनि के पाप पराजै।।916।।

बड़े हैं दानी नाह भमानी।।

रहत दयाल सदा दासनि पर, सब के उर की जानी।।

कौन भक्ति कीनी गुननिधि, द्विज राखौ निज पद आनी।।

सकल लोक जन त्रसित जानि के, हृदय राखि विष सानी।।

जापर कृपा करत करूनानिधि, हेरत पाप परानी।।

कन्‍हर विनय करत कर जोरै, देउ राम रति दानी।।917।।

सेतबंद रामनाथ कहाये।।

दरसन करत शुभ फल पावत, अघ भव भरम नसाये।।

देव सकल जहां करत निवासू, मुनि समूह नित आये।।

राम झरोखा सुंदर राजत, बरनत विधि सकुचाये।।

पवन कुमार वीर बल बंका, चरन ध्‍यान उर ल्‍याये।।

तीरथ निकट महा सुखदाई, निर्मल जल मन भाये।।

दछिन दिसा नीरनिधि सोभित, मिले महा छवि छाये।।

कन्‍हर प्रभु निज धाम सुहाये, वेद सदा गुन गाये।।918।।

राग – भैरौं

राजत चित्रकूट छवि चारि।।

सघन विपिन सुन्‍दर अति राजत, उपमा कहि कवि हारी।।

विहरत राम सिया जुत लछिमन, भक्‍तन के हितकारी।।

मंदिर मध्‍य हनुमान विराजत, हरि प्रिय मंगलकारी।।।

अत्री रिषि अनुसुइया सोभित, फटक सिला दुति न्‍यारी।

पय सरनी सुभ नीर बहति है, भरथ कूप भ्रम हारी।।

सदा देव मुनि निकट रहत है, चरन ध्‍यान उर धारी।।

कन्‍हर प्रभु कौ रूप जुगल लखि, सुमिरि मिटै भ्रम भारी।।919।।

जपि मन प्रयागराज सुखरासी।।

गंगा निर्मल धार मनोहर, जमुना वर छवि ल्‍यासी।।

मि‍ली सरस्‍वती राजति सुंदर, परसत जन अघ नासी।।

तिरबेनी छवि ललित कलित लखि, महिमा निगम प्रकासी।।

करत अछैवट दरसन परसन, भौंर भर्म मिटि जासी।।

भरद्वाज मुनि मगन रहत मन, मज्‍जन करि हरषासी।।

तीरथराज प्रयाग दरस कौं, सदा देवगन आसी।।

कन्‍हर पार करे या भव ते, मन इच्‍छा फल पासी।।

पुष्‍करराज परसि अघ जासी।।

प्रगट रूप बाराह विराजत, लखि अनंग सकुचासी।।

विधि सावित्री लसत सुहाये, करि दरसन सुख पासी।।

कन्‍हर प्रभु गुन रूप मनोहर, कहत वेद हरषासी।।920।।

राग – भैरवी

प्रभाकर लोकनि हितकारी।।

उदय होत त्रिभुवन तम नासत, सोभित तेज पुंज भारी।।

सुर मुनि असुर नाग नर सेवत, महिमा विदित तुम्‍हारी।।

कन्‍हर वेद पार नहिं पावत, गावत श्रुति शुभ चारी।।921।।

तूं मन मेरे जपौ ब्रम्‍हाबाला।।

प्रगट रूप नारायण राजत, सुन्‍दर तेज बिसाला।।

हरन अमंगल मंगलकारी, करति सदा प्रतिपाला।।

रहत दयाल सदा दीननि पर, मेटत तन दुख हाला।।

नाम प्रभाव पूरि रहौ जग में, सब के उर में झाला।।

कन्‍हर जेकउ ध्‍यान धरत है, उरझ हटे भव जाला।।922।।

नीमसार हरि प्रिय मन मानी।।

विष्‍नु चक्र सर मध्‍य मनोहर, परसत पाप परानी।।

वास करत मुनि गन वर सुंदर, ध्‍यान मगन मन आनी।।

अरसठ तीरथ प्रगट भये जहं, वरनि वेद वर बानी।।

मज्‍जन करत मुक्ति फल पावति, सारद सेस बखानी।।

कन्‍हर आस राम रननि की, कीजै कृपा नाथ जन जानी।।923।।

द्वारावती भई रजधानी।।

उ‍दति मध्‍य सोभित छवि सुंदर, उपमा कोटि लजानी।।

टीकम अयन छोरि विराजत, को कहि सकत बखानी।।

रतन जटित मंदिर सब राजत, कहि सारद सकुचानी।।

नारदादि मुनि ध्‍यान करत हैं, चरन सरन उर मानी।।

देव सदा नर तन धरि विचरत, हृदय यह सुख मानी।।

तीरथ महा भक्ति का संगम, रटत वेद बखानी।।

कन्‍हर जे कोउ ध्‍यान धरत है, तिन भय निसा सिरानी।।924।।

द्वारावती रन छोर बिराजै।।

सतभामा रूकमिनी आदि सब, उपमा छवि लखि लाजै।।

सुंदर पुरी मनोहर सोभित, रतनागर वर राजै।।

कन्‍हर भूमि जटित र‍तननि सौं, दरश होत भ्रम भाजै।।925।।

कुरूक्षेत्र सबके मन मानी।।

सोहत भूमि मनोहर पावन बरनत है मुनि ग्‍यानी।।

राजत ब्रम्‍ह पुत्र वर सुंदर, विदित देव सब जानी।।

मध्‍य कुंड विधि फूल पराची, उपमा बहुत बखानी।।

गंगा वान प्रथोदक राजत, फल गूवर छवि सानी।।

कन्‍हर तीरथ अमित सुहाये, बरनत मति सकुचानी।।926।।

राग – भैरवी

जपि मन वेद मनोहर चारी, जिनि रघुवर के जस विस्‍तारी।।

तिनि तीरथ पुरान अठारा, सुंदर जग हितकारी।।

कीनौ राम चरित्र कोटिनि सत, कहि – कहि होत सुखारी।।

कन्‍हर तिनिके श्रुति स्‍मृति सब, सुनि भाजत अघ भारी।।

जय – जय सिव सैल सुता सुत, लम्‍बोदर भुज चारी।।

गज आनन वर लसत मनोहर, उपमा बहुत निवारी।।

तुम्‍ह सम और नहिं कोई, जग में दाम भक्‍त दृढ़कारी।

कन्‍हर राम चरन रति मांगत, करौ कृपा बलिहारी।।927।।

राग- भैरौं

श्री गननायक हरि जन सुखदायक

गवरी नंदन तुम जग वंदन, कृपा दृष्टि दैवे सब लायक।।

तुमरौ नाम लेत भ्रम भाजत, भक्‍तनि पर तुम रहत सहायक।।

विद्या वारिद मंगल कारिक, सरनागत के उर तुम भायक।।

सिद्धि होत तुव नाम लये ते, जग भय हटि परे न दुष्‍ट के घायक।।

कन्‍हर विनय करत कर जोरै, कीजै कृपा राम गुन गायक।।928।।

राग – काफी

नाम विदित‍ सुंदर गनराई।।

संकर सुअन भुवन भयहारी, सोभित गज आनन को पाई।।

सकल सिद्धि बुद्धि वरदायक, देत सबै सबके मन भाई।।

दीन जानि जन कृपा करत हौ, सेवक पर तुम रहत सहाई।।

विघ्‍न विनासन नाम तुम्‍हारौ, प्रथम सुमिरि तुम्‍हरौ जस गाई।।

कन्‍हर की अब अरज लगी है, ब‍सहिं राम सीता उर आई।।929।।

गवरी नंदन जन्‍म लयौ है।।

भादौं सुदी की चौथि मनोहर, सुनि उर हर्ष भयौ है।।

छयौ आनंद पूरि रहौ दस दिसि, मुनि गन ध्‍यान ठयौ है।।

कन्‍हर बजत बधाई सुंदर, जग कौ विघ्‍न भग्‍यौ है।।930।।

मैं तुमसौं विनय करत गननायक।।

तुम्‍हरी कृपा होति है जापर, तापर बानी रहत सहायक।।

संकर सुअन भमानी नंदन, भक्‍तनि के तुम हौ सुखदायक।।

कन्‍हर राम चरण रति मांगत, कीजै कृपा देउ सब लायक।।931।।

मोइ राम दूत कौ भरोसौ भारी।।

अरि उर सालिक हरिजन पालिक, दीननि कौ हितकारी।।

जस भरि पूरि रहौ त्रिभुअन मैं, रावन भुजा उखारी।।

जाकी ओर कृपा करि हेरत, ताकी टरति न टारी।।

छवि सिंदूर सीस पर झलकत, द्रौनागिरि कर धारी।।

कन्‍हर सुमिरौ नाम पवन सुत, संकट मोचन हारी।।932।।

हनुमत राम दूत अलबेला।।

रहत असंक संक नहिं मानत, लंका गयौ अकेला।।

कौतिक करि कै दहौ कनिक गढ़, भट मारे करि हेला।।

कन्‍हर वीर बली नहिं, दूजौ, निसिचर प्रति पद पेला।।933।।